श्री ए. के. गोयल जी
एमडी एंड सीईओ
यूको बैंक
कोलकाता
आदरणीय गोयल जी,
यह सुनना नागवार लगता है कि 'अमुक आदमीं हरामखोर निकला'। लोग अपनी उपेक्षाओं को लेकर अपनें गुस्से का इजहार करते अपनीं मर्यादाओं को भूल जाते हैं। ऐसा ही माहौल बैंककर्मियों, खासकर पेंशनरों, में बना है जो पीड़ा दायक है।
आप जानते हैं कि माननीय वित्तमंत्री ने स्टेट बैंक के चेयरमैन श्री दिनेश खारा साहब से 'बड़े भाई' की भूमिका निभाने और आईबीए से मिल कर पेंशन रिवीजन के समाधान का दायित्व सौंपा था। उन्होंने तत्कालीन आईबीए चेयरमैन श्री राज किरण राई से भी कहा था कि पूर्व बैंककर्मियों के योगदान को नजरंदाज नहीं किया जा सकता और उन्हें उनका हक दें। वित्त सचिव से भी देखनें को कहा।
इस बात को हुए एक वर्ष से ज्यादा हो गये है। जाहिर है, पेंशनरों में घोर निराशा और क्षोभ है। राज किरण जी आईबीए से विदा ले चुके हैं। अब आईबीए की बागडोर आपके हाथ में है।
पेंशनरों के संज्ञान में है कि माननीय वित्तमंत्री ने खारा जी को 'बड़े भाई' की भूमिका निभाते आईबीए से मिलकर पेंशन रिवीजन तय करनें की बात कही थी। जब भी पेंशन रिवीजन की बात होती है, लोग खारा जी और राज किरन राय को लेकर अनाप-शनाप बकनें लगते हैं।
माना कि पेंशनर बहुत कष्टित हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे अपनी मर्यादाएं भूल जाएं और असंसदीय शब्दों का प्रयोग करें। हम ऐसे लोगों की तरफ से क्षमा प्रार्थी है, क्योंकि ऐसे लोगों में हमारे एक्टविस्ट्स भी हैं।
हमें खेद है, हमारी बैंकों की यूनियनों ने अपनें ही बीच से शीर्ष पदों पर पहुंचे कार्यपालकों से सौहार्दपूर्ण रिस्ता कायम करनें में नाकामयाब रहीं है। इसी का खामियाजा है, यूनियनें शीर्ष कार्यपालकों का सहयोग हासिल नहीं कर पाती और बैंककर्मीं भुगत रहे हैं। रिजर्व बैंक में भी यूनियनें हैं, लेकिन प्रबंधन के साथ उनका एक प्रगाढ़ रिस्ता है, जो काम आता है।
आप संपूर्ण परिस्थितियों से परिचित हैं। पेंशन रिवीजन एक ज्वलंत मुद्दा है। इस बात को समझते ही माननीय वित्तमंत्री बहन निर्मला सीतारमण को आगे आकर बिजनेस लाइन में साक्षात्कार के माध्यम से और 10.11.2020 को आईबीए की सामान्य वार्षिक सभा को संबोधित करते हुए बैंकों के कार्यपालकों से सामनें सीधे उठाया। वे किसी प्रत्यक्ष या परोक्ष दबाव में नहीं थीं, बल्कि सत्य और न्याय से प्रेरित थीं।
हमें खेद है, अनेक मुद्दे ऐसे हैं जो बेवजह हैं और बैंककर्मियों को परेशान कर रहे हैं। स्टैगनेशन वेतनवृद्धि एक मायाजाल बना हुआ है। 25.5.2015 का समझौता और क्रियान्वयन अब भी शेष।
पेंशन रिगुलेशन्स की धारा 22 में रिमूवल, डिसमिसल, डिस्चार्ज, टर्मिनेशन आईबीए ने रद्द करते पेंशन बहाल किया हैं, पर बैंकें लागू नहीं कर रही है। आईबीए ने ऐसा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अधीन किया है। धारा 22 में अब केवल रिजाइनी बचा है जिसकी पेंशन फोरफीट है।
सर, रिजाइनी कोई अपराधी नहीं। जब अपराधियों और सजायाफ्ता लोगों की पेंशन बहाल हो चुकी है तो आईबीए रिजाइनी की पेंशन बहाल क्यों नहीं करती। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को आईबीए का लीगल ओपिनियन धारा 22 के खिलाफ मानता है, तभी 'रिमूवल' के साथ साथ अन्य मामलों में पेंशन बहाल कर दी गई। रिजाइनीज लटके हैं।
इसी तरह ग्रैच्युटी के हजारों मामलों में बैंकें मुकदमा लड़ रहीं हैं वह भी डिक्रीड राशि जमा कर। यह कोई एक मामला नहीं या एक सक्षम प्राधिकारी का निर्णय नहीं, बल्कि देश के हर सक्षम प्राधिकारी का निर्णय है और अपीलेंट प्राधिकारी ने बैंकों की अपीले भी निरस्त करती जा रहीं हैं, फिर भी मुकदमेबाजी जारी है।
आईबीए के चेयरमैन होने के नाते यह आपका विधिक कर्तव्य है कि ऐसे गंभीर विषयों को आप गंभीरता से लें, एक रोडमैप दें ताकि समस्याओं का निस्तारण हो, बैंकें पैसे का दुरुपयोग करते अपने ही कर्मचारियों से मुकदमा न लड़ें, मुकदमेबाज की छबि से बचें, समझौते ठीक से लागू हों, स्टेगनेशन वेतन वृद्धि के आलोक में पेंशन रिवाइज हो, रिजाइनी की पेंशन बहाल हो, डी.एफ.एस. के 24.2.2012 के अनुसंशाओं को लागू करते पेंशनरों को बैंकों की कल्याण निधि से स्वास्थ्य बीमा हो और पेंशन रिवीजन के ज्वलंत मुद्दे का कम से कम अब तो समाधान हो, जब आप जैसा नेक इंसान आईबीए का अध्यक्ष है।
आशा है, आप हमारी बातों पर गंभीरता से विचार करते कारगर कथम उठाएंगे।
सादर,
(जे. एन. शुक्ला)
राष्ट्रीय कंवेनर,
07.12.2021
9559748834
प्रति:
बहन निर्मला सीतारमण,
माननीय वित्तमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली
श्री देबाशीष पांडा,
सचिव, डी.एफ.एस.
वित्तमंत्रालय
नई दिल्ली
श्री दिनेश खारा जी,
चेयरमैन,
भारतीय स्टेट बैंक
मुंबई
////'''''''''//////////////////////////////''/////////'////''///
No comments:
Post a Comment