Tuesday, August 25, 2020

क्या न खायें

 *आयुर्वेद सम्मत मानव शरीर को निरोग रखने के उपाय* (भाग -२५)


 *क्या न खायें*  



 *लगातार गलत चीज़ें खाने की अपेक्षा यह जानना  महत्वपूर्ण है कि हमें क्या नहीं खाना है।* खान-पान मैं थोड़ी सी चूक से  सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों को फ़ूड पॉइजनिंग की बहुत आशंका बनी रहती है, परन्तु किसी के शरीर में इसका प्रभाव  दिखाई पड़ जाता है तो किसी को यह  शांत रूप में होती है और शरीर पर इसके प्रभाव  धीरे धीरे दिखायी पड़ते है। हम इसके प्रभाव को खान पान की कमी के कारण हुए रोग मैं  मानते भी नहीं हैं। चूंकि रोगप्रतिरोधक तंत्र अधिक उम्र में मज़बूत नहीं होता है अतः फ़ूड पोइसिनिंग इस आयु में स्प्ष्ट दिखाई पड़ती है। जबकि युवा इसके प्रभाव से तात्कालिक रूप से अप्रभावित जान पड़ते है।


 बहुत से खाद्यों में बहुत कीटाणु सक्रिय हो जाने से  फ़ूड पॉइजनिंग की संभावना होती है, जिससे वरिष्ठों के स्वास्थ्य पर विशेष रूप से एवम अन्यों पर सामान्य रूप से उनके शरीर की सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। जब हमारी उम्र बढ़ती है तो हमारे शरीर के लिए कीटाणुओं से लड़ना कठिन हो जाता है, जिससे बीमार पड़ना सरल हो जाता है। *इसलिए "क्या न खायें" का "क्या खायें" की तुलना में अधिक महत्व है।* अतएव हमें इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए।


*हमको सदैव अपने देश की जलवायु को ध्यान में रखना होगा क्योंकि यहां कि जलवायु जीवाणु एवम कीटाणु के पैदा होने, पनपने व विकास करने में सहायक है। इसी कारण हमारे पूर्वज अधिक देर के बने भोजन को, बासी अथवा खाने के कच्चे माल की आयु पर सदैव ध्यान रखते थे।*


यदि  स्वस्थ रहना है तो  बीमारियाँ पैदा करने वाले खाद्यों से दूर रहना चाहिए। निम्नलिखित खाद्यों को उपेक्षित करना सबसे अच्छा है-


*अंकुरित अन्न (Sprouts)* को स्वास्थ्यप्रद खाद्य माना जाता है क्योंकि उनमें अनेक प्रकार के पोषक तत्व और पचने में सहायक तत्व होते हैं। लेकिन ये बीमारियाँ फैलाने वाले कीटाणुओं के लिए प्रजनन के स्थान भी होते हैं। अतः इनको उपयोग करने से पूर्व इसके निर्माण प्रक्रिया, आयु इत्यादि का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।


*मुलायम पनीर (Soft cheese)* सामान्यतया पाश्चुरीकृत नहीं होता, इसलिए वह बड़ी संख्या में कीटाणु प्रजनन के लिए खुला होता है।


*कच्चे माँस (Raw meat)* से भी  बचना चाहिए, क्योंकि अधिकांश मामलों में कीटाणु पकाने से नहीं मरते। यदि आप माँसाहारी हैं तो आपको कच्चे माँस की जगह सफेद माँस (white meat) और समुद्री जंतुओं से बने खाद्य लेने चाहिए।


*कच्चे अंडे (Raw eggs)* तथा कम पकाये गये अंडे बड़ी उम्र वालों के लिए जोखिमपूर्ण होते हैं और इनका स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव हो सकता है।


*बिना पाश्चुरीकृत दूध (Unpasteurised milk) तथा रसों (Juices)* को प्राय: इनमें उपलब्ध खनिजों और लाभप्रद वसा के कारण स्वस्थ भोजन माना जाता है, लेकिन वरिष्ठों को विशेषतया इनसे बचना चाहिए, क्योंकि ये बहुत बड़ी संख्या में कीटाणुओं का प्रजनन करते हैं। रसों (juices) के बदले में हमारी सलाह है कि जब तक दाँत सही हैं जूस के स्थान  तब तक फलों और सब्ज़ियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। ताजा जूस दांतों की समस्या होने पर अथवा किसी सब्जी या फल के लाभ अधिक के लेने पर लेना चाहिये।


*कम वसा के खाद्य (Low fat foods)* जिन खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक स्तर का वसा पाया जाता है, जैसे मछली, फलियाँ और तेल/देशी घी, उनसे बचना बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि ये हृदय और मस्तिष्क की रक्षा करने में लाभदायक हैं।


यदि आप  इन खाद्यों से बचते हैं तो स्वयं को अपने सुनहरे वर्षों तक एवम मैं स्वस्थ और सक्रिय रख सकेंगे।


*अगले लेख में हम उन चीज़ों की सूची देंगे, जिनको नहीं खाना चाहिए।* यह सूची खाद्य पदार्थों को चुनने, तैयार करने और खाने से बनायी जाएगी।


--जगमोहन गौतम


*आयुर्वेद सम्मत मानव शरीर को निरोग रखने के उपाय* (भाग -२६)


■◆●●•• *क्या न खाएं - स्पष्टीकरण* ••●●◆■


इस लेखश्रंखला के भाग -२५ में *क्या न खाएं*  के शीर्षक तले हमने उन खाद्य पदार्थों के समूहों को उपेक्षित करने की सलाह दी थी, जिनके चयन एवम खाने मैं थोड़ी सी असावधानी अथवा चूक हमको अस्वस्थता की और ले जा सकती है, विशेषतया बढ़ती आयु के वर्ग के लिये। हम आज उन्हीं खाद्य पदार्थों के समूहों पर चर्चा करेंगे, जिन पर कुछ पाठकों ने प्रतिक्रिया दी है, हो सकता है ये प्रश्न आपके मन में भी आये हों।  हमारे स्पष्टीकरण का आधार निम्न बिंदू/ सूत्र होंगे:

(1)  यह लेखश्रंखला अपने शीर्षक से ही स्प्ष्ट संकेत देती है कि निरोगी रहने के जो उपाय इसमें सुझाये जा रहे हैं अथवा जिन पर चर्चा हो रही है, वह सब *आयुर्वेद* की धारणाओं पर आधारित हैं।

(2)  स्थानीय परिस्थितियों यथा जलवायु, ऋतु, आदि एवं  भारत मैं आदि काल से चली आ रही परम्पराओं/मान्यताओं पर प्रमाणित सार ही लेख में लिए जा रहै हैं।

(3)  कहीं कहीं पर अपनी सलाह देते हुए हमने सर्वमान्य प्रचलन को भी अपने लेखों मैं संजोया है, जब कि हो सकता है आयुर्वेद इनको मान्यता न देता हो। इस के पीछे हमारा तर्क है कि समय एवं परिस्थितियों के अनुसार आयुर्वेद नई शोधों से दिशा देने  में असमर्थ रहा है अतः हमको निकटतम एवम सहयोगी पद्यतियों के साथ तालमेल करते हुए वैज्ञानिक तर्कों का सहारा लेना चाहिये।

(4) पिछले 100 वर्षों में तेजी से हुए वैश्वीकरण एवम अंतरराष्ट्रीयकरण ने प्रत्येक देश में जीवनशैली के अंग खान-पान मैं तेजी से होते बदलाव का अनुभव किया है और यह बदलाव आज जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है, यदि इस पर कोई भी प्रश्न चिन्ह लगाया जाए तो वह स्वयम प्रश्नों के घेरे में आ जाता है। जो खाने की वस्तुएँ अपने गुण एवम दोषों के कारण  सदैव से हमारी परिस्थितियों के विपरीत रही हैं, आज लोकप्रिय ही नहीं अपितु स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद भी मानी जा रही हैं।  हमने इस संवेदनशील पक्ष को अपने लेखों में बहुत सावधानी से, इन पर परोक्ष रूप में अपनी प्रतिक्रिया/ सलाह प्रस्तुत की हैं। 


_पाठकों की जिज्ञासा निम्न विषयों पर और स्पष्टीकरण की थी::_


*अंकुरित अन्न (sprouts)*


इस पर हम एक बार फिर अपनी सन्तुतियों की और आपको ले चलते हैं, जो हमने अपनी लेखमाला के भाग २५ मैं लिखी थी एवं जो निम्न थी:

*"अंकुरित अन्न (Sprouts) को स्वास्थ्यप्रद खाद्य माना जाता है क्योंकि उनमें अनेक प्रकार के पोषक तत्व और पचने में सहायक तत्व होते हैं। लेकिन ये बीमारियाँ फैलाने वाले कीटाणुओं के लिए प्रजनन के स्थान भी होते हैं। अतः इनको उपयोग करने से पूर्व इसके निर्माण प्रक्रिया, आयु इत्यादि का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है।"*


यदि हम अंकुरित अन्न के उपयोग का अपने देश में इतिहास देखेंगे, तो पाएंगे कि इसके उपयोग को  सम्भवतः यहां की जलवायु के कारण , कभी भी प्राथमिकता नहीं दी गयी। *इसके लाभ को इससे होने वाली हानियों की तुलना मैं गौण समझा गया।* हाँ भीगे चने का उपयोग अवश्य शरीर सौष्ठव में लीन नवयुवकों को खाने की सलाह आदि काल से आहार विशेषज्ञ देते रहे हैं। अंकुरित अन्न, सोयाबीन, जैतून का तेल, कुछ फल इत्यादि कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ है जिनका उपयोग तेजी से पिछले 50 वर्षों में बढ़ा है एवम बिना इनके उपयोग के स्थान, का ध्यान रखते हुए इनको स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभप्रद के रूप में प्रस्तुत किया गया है। 

*अंकुरित अनाजों के खाने से होने वाले लाभ से इंकार नहीं किया जा सकता,* _लेकिन इसके दुष्परिणाम भी हमको पता होना चाहिए,_  *ताकि हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकें।* 

अकैडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स की एक रिसर्च के अनुसार स्प्राउट्स को अंकुरित करते समय इसमें रहने वाली नमी से साल्मोनेला, ई.कोलाइ और लिस्टेरिया जैसे बैक्टीरिया पैदा हो सकते हैं, जो बीमारियों पैदा करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यही वे बैक्टीरिया हैं जो बड़ी बीमारियों का कारण बनते हैं। इनमें साल्मोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया आपको टायफाइड का मरीज बना सकता है, वहीं लिस्टीरिया नामक बैक्टीरिया किडनी संबंधी समस्या का कारण बन सकता है। ई कोली वायरस आपके शरीर में जाकर यूरिनरी ट्रैक्स इंफैक्शन का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं अंकुरित अनाज फूड पॉइजनिंग या दस्त की स्थिति भी निर्मित कर सकता है।


*इस विषय पर पुनर्विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि हमारी पूर्व मैं की गयी विवेचना तर्क संगत एवम भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप है।* हमको अंकुरित अन्न की निर्माण प्रक्रिया पर ध्यान देना आवश्यक है। *यदि हम इसके लाभ लेना ही चाहते हैं तो अंकुरित अन्न को उपयोग से पूर्व हल्का सा स्टीम देना उचित रहेगा।*  हम अपनी सलाह पर द्रढ है जो हमने ऊपर फिर से उद्घृत की है।


*गाय/भैंस का ताजा दूध एवं मुलायम पनीर*


हमने इस विषय पर कहा था कि चूंकि भारतीय जलवायु जीवाणु और कीटाणुओं के प्रजनन एवं पनपने के अनुकूल है अतः हमको पश्चराइज़्ड दूध एवम इसके बने उत्पादों को प्राथमिकता पर उपयोग करना चाहिए। पश्चराइज़्ड कि प्रक्रिया मैं दूध को उच्च तापमान पर गर्म करके फिर निम्न तापमान पर ठंडा करने से यह जीवाणु/कीटाणु मुक्त हो जाता है। आपने अनुभव किया होगा कि यदि गाय/भैंस के ताजे दूध को 3-4 घण्टे के बाद उबाला जाय तो यह फट जाता है अर्थात इसमें जीवाणु/कीटाणु इतने कम समय में पनप जाते हैं। आपने यह भी देखा होगा कि दूध की आयु बढाने के लिए पहले समय में  इसको देर तक उबाला जाता था एवम इस प्रक्रिया को निश्चित अंतराल पर दोहराया भी जाता था। बहुधा सुबह का ताजा दूध दिन भर गर्म होता रहता था और शाम को दही के लिए जमाया जाता था जबकि शाम का ताजा दूध खूब खोलाकर पीने के लिए उपयोग किया जाता था। पाश्चराइज़्ड कि प्रक्रिया वैज्ञानिक है। *चूंकि हम दूध गर्म रखने, करने में  पूर्व की भांति सजग नहीं हैं अतः पाश्चराइज़्ड दूध एवम इसके बने खाद्य पदार्थ का विकल्प वैज्ञानिक है। यही स्थिति मुलायम पनीर की भी है।*

यदि हमको ताजा दूध ही उपयोग करना है तो उसको उबालने, खोलाने की प्रक्रिया में एवम इसको दोहराने में संकोच नहीं करना चाहिए।


इसके साथ हम आज के लेख को विराम देते है एवम  *अगले लेख में हम उन चीज़ों की सूची लेकर आएंगे, जिनको नहीं खाना चाहिए।* यह सूची खाद्य पदार्थों को चुनने, तैयार करने और  उपयोग से बनायी जाएगी।


--- *जग मोहन गौतम*


आयुर्वेद सम्मत मानव शरीर को निरोग रखने के उपाय* (भाग -२७)

 *क्या न खायें (जारी)



भोजन दवा भी हो सकता है और विष भी। हालाँकि प्रत्येक शरीर की अपनी विशेषतायें होती हैं, फिर भी संयोग (combination) और दुर्योग (perturbation) के आधार पर क्या न खायें के बारे में निम्न सूची की सलाह दी जाती है-



१. खाना या पानी पकाने, गर्म करने और सुरक्षित रखने के लिए प्रेशर कुकर, माइक्रोवेव ओवन और फ्रिज पर अपनी निर्भरता जितनी सम्भव हो, उतनी कम करनी चाहिए।



२. १५ दिन से अधिक पुराना गेहूँ का आटा और चना, मक्का, जौ आदि अन्य मोटे अनाजों का ७ दिन से अधिक पुराने आटे का उपयोग नहीं करना चाहिए।



३. आटे की लोई (गूंदा हुआ आटा) बनाने के ४५ मिनट के अन्दर उपयोग कर लेना चाहिए। विशेषतया फ्रिज में रखे गूंदेआटा का उपयोग करने से बचना चाहिए।



४. पकाया हुआ खाना पकाने के ४५ मिनट के अन्दर अवश्य खा लेना चाहिए।



५. किसी भी हालत में बासी या बचे हुए खाने को नहीं खाना चाहिए।



६. प्रोसेस किये हुए खाद्यों से बचिए।



७. जब तक मुँह में दाँत हैं, तब तक जूस न पियें, इसकी जगह फल और सब्ज़ियाँ खायें।



८. भोजन से पहले और बाद में जल न पियें।



९. फ्रिज में रखा पानी न पियें।



१०. कच्चा (अपाश्चुरीकृत) दूध न पियें। इसके बजाय खूब उबाले गये दूध को ग्रहण करें।



११. बेकरी की कोई वस्तु न लें।



१२. रात्रि में दही, तिल और सत्तू से बचें।



१३. रात्रि के भोजन में खीरा न खायें। {खीरा सुबह हीरा, दिन मैं जीरा और रात मैं कीड़ा}       



१४. भोजन के तुरंत बाद फल न खायें।



१५. कच्ची या कम उबाली हुए अंकुरित फलियाँ न खायें।


             


 १६  कच्चे अंडे, मछली व  कस्तूरी (oysters) न लें।



१७. प्रोसेस किये हुए कार्बोहाइड्रेट जैसे पास्ता, ब्रेड और पकायी हुई वस्तुओं से बचें।



१८. आलू चिप्स और फ़्रेंच फ्राई का उपयोग न करें।



१९. खराब गुणवत्ता के खाद्य जैसे ट्रान्स वसा (trans fats) से बचें, जिनसे जलन (inflammation) होती है।



२०. तथाकथित आयोडीनयुक्त नमक और सफेद चीनी को तत्काल छोड़ दें। इनकी जगह सेंधा नमक तथा गुड़/खाँड़/बूरा का उपयोग करें।



२१. अपाश्चुरीकृत जूस से बचें।



२२. निम्नलिखित खाद्य वस्तुएँ परस्पर विरोधी हैं। इनको एक साथ नहीं लेना चाहिए-


- दूध और माँस 

- नमकीन और दूध

- पनीर और फल

- दूध के साथ फल

- बासी (बचा हुआ) खाना

- दही या दूध के साथ मछली

- दूध और दही 

- गीली, हरी और पत्तेदार सब्ज़ियाँ या सलाद आवश्यकता से अधिक मात्रा में न लें। 

- अचार या विक्षोभीकृत खाद्य (fermented foods) अधिक मात्रा में न लें।

- रात में आइसक्रीम

- बेमौसम का खाना

- दूध और खट्ठे फल

- दूध और कटहल (jackfruit)

- शहद और घी 

- दूध की खीर के साथ खिचड़ी

- उड़द के अकेले ही लें, विशेषत: दही के साथ नहीं लें।

- जहां तक हो सके द्वि दल के साथ दही लेने से बचें।



२३. हमारे पूर्वजों के समय से परिवार मैं जो खाद्य पदार्थ न खाने की परम्परायें चली आ रही हैं उनका कडाई से पालन करें। इस सलाह का कारण यह है कि पीढ़ियों से मौसम, समय और भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार भोजन की आदतें बनायी जाती हैं।



२४. अपने भौगोलिक क्षेत्र से बाहर उगाये गये तथा बेमौसम के फल, सब्ज़ियों तथा अन्य खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। इसके बजाय स्थानीय तथा मौसमी वस्तुओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।



२५. भोजन के समय ठंडे पेय और सामान्यतया बर्फ़ जैसे ठंडे भोजन से बचना चाहिए।


२६.  रिफाइंड आयल प्रयोग न करें अपितु देशी घी, सरसों/तिल/नारियल /मूंगफली के तेल क्षेत्र विशेष के अनुसार कच्ची घानी का प्रयोग करें।



सही कहा गया है कि  यह अधिक महत्वपूर्ण हो गया है कि जीवनशैली के महत्वपूर्ण कारकों को पहचाना जाये, जिससे पूरी आयु में संज्ञानात्मक (cognitive), मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य को बनाये रखा जा सके।


इन शब्दों के साथ मैं क्या न खाएं पर चर्चा समाप्त कर रहा हूँ । हमारी चर्चा का अगला विषय मात्र वृद्धों के लिए ही नहीं अपितु सभी आयु वालों के लिए महत्वपूर्ण होगा - *हम क्या अवश्य खायें।*



-- *जगमोहन गौतम*

आयुर्वेद सम्मत मानव शरीर को निरोग रखने के उपाय (भाग -२८)

क्या न खायें व्याख्या 



भाग-२७ में दी गयी *क्या न खायें* की सूची पर कुछ पाठकों ने  तार्किक रूप से सहमत होने के बावजूद दबे स्वर में आधुनिक समय में अव्यावहारिक कह कर इसको अस्वीकृत किया है जो उन्हीं के लिए घातक हो सकता है। लेकिन इससे वो असहज भी हैं और हमारी तरफ स्पष्टता व समाधान हेतु ताक भी रहे हैं। अतः हम सूची के क्रम में संस्तुति का आधार, इसका ऐतिहासिक पहलू एवम अपनाये जाने की व्यावहारिकता पर चर्चा यह विचार करते हुए करेंगे कि मैं स्वयम इस समस्या से जूझ कर इसका हल निकाल रहा हूँ।


१. खाना या पानी पकाने, गर्म करने और सुरक्षित रखने के लिए प्रेशर कुकर, माइक्रोवेव ओवन और फ्रिज पर अपनी निर्भरता जितनी सम्भव हो, उतनी कम करनी चाहिए।

*इस संस्तुति से हमारा आशय यह था कि प्रेशर कुकर का उपयोग इसका ढक्कन बन्द करके पकाने के लिए, माइक्रोवेव का उपयोग गर्म करने के लिए एवम फ्रिज का उपयोग दाल/सब्जी इत्यादि सुरक्षित रखने से था। हमारी यह संस्तुति व्यावहारिक ही नहीं अपितु अपनी याद के अनुसार भी हैं जब हम इन यंत्रों के बिना आसानी से अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे।*


२. १५ दिन से अधिक पुराना गेहूँ का आटा और चना, मक्का, जौ आदि अन्य मोटे अनाजों का ७ दिन से अधिक पुराने आटे का उपयोग नहीं करना चाहिए।

*जहां तक हो सके पैक्ड आटे से बचे एवम इसके स्थान पर 15 दिन/ 7 दिन  के उपयोग का आटा चक्की से लाएं। आज भी चक्कियां आपके घर के आसपास उपलब्ध हैं। आप हमारे पूर्वजों की वैज्ञानिकता समझें कि जब पनचक्कियां नहीं थी और शादी में अधिक मात्रा में  गेंहू के आटे की आवश्यकता होती थी तो घरों की हाथ की चक्की में पीसने के लिए गेंहू, मोहल्ले में 15 दिन के अंदर ही बांटा जाता था न कि इससे पहले। यदि अपरिहार्य परिस्थितियों में पैक्ड आटा लेना ही पड़ता है तो इसकी पैकेजिंग डेट अवश्य मिला लें। 15/7 दिन मैं आटा अपना सत खो देता है।*

 

३. आटे की लोई (गूंदा हुआ आटा) बनाने के ४५ मिनट के अन्दर उपयोग कर लेना चाहिए। विशेषतया फ्रिज में रखे गूंदेआटा का उपयोग करने से बचना चाहिए।

*45 मिनेट पूर्व का अभिप्राय है कि इस समय में खाद्य वस्तुओं मैं हमारे देश की जलवायु में संक्रमण प्रारम्भ हो जाता है। 45 मिनट का समय, शास्त्रों में वर्णित काल गणना को आधुनिक समय में परिवर्तित करने पर आता है।*


४. पकाया हुआ खाना पकाने के ४५ मिनट के अन्दर अवश्य खा लेना चाहिए।

*45 मिनेट का सिद्धांत प्रश्न 3 के स्पष्टीकरण अनुसार। हमको यह भी स्पष्ट करना है कि भोजन तैयार करने की प्रक्रिया एवम इसको संक्रमित रहित रखना अति आवश्यक है। जैसे मिक्सी में पीसने की प्रक्रिया कटिंग है न कि घर्षण। इसी प्रकार कूकर में अन्न प्रेसर से फट जाता है अपितु अणुओं के गल कर पकने से।हम यह समझते हैं कि फ्रिज मैं रखा खाद्य पदार्थ सड़ नहीं रहा है जब कि वस्तुतः संक्रमित/खराब होने की प्रक्रिया जारी है धीमी अवश्य है।*


५. किसी भी हालत में बासी या बचे हुए खाने को नहीं खाना चाहिए।

*ऐसा बासी/बचे हुए भोजन में  संक्रमण से बचने के लिये संस्तुति की गयी थी।*


६. प्रोसेस किये हुए खाद्यों से बचिए।

*बहुधा प्रोसेस करने में रसायनों का उपयोग होता है जो निरन्तर उपयोग से शरीर पर कुप्रभाव डालते हैं।*

*साथ में उपयोगी पोषक तत्वों को भी प्रोसेसिंग में समाप्त कर दिया जाता है।*


७. जब तक मुँह में दाँत हैं, तब तक जूस न पियें, इसकी जगह फल और सब्ज़ियाँ खायें।

*जिससे पचाने में सहायक फाइबर व अन्य पोषक तत्वों का प्रयोग भी हो सके।*


८. भोजन से पहले और बाद में जल न पियें।

*भोजन पचाने में जठराग्नि का योगदान होता है जल अग्नि को बुझा देता है। अतः भोजन करने से 45 मिनेट पुर्व व बाद में जल नहीं पीना चाहिए।*


९. फ्रिज में रखा पानी न पियें।

*कमरे के तापमान का जल पीना चाहिए। आज भी दक्षिण भारत में इसका अक्षरत पालन होता है।*


१०. कच्चा (अपाश्चुरीकृत) दूध न पियें। इसके बजाय खूब उबाले गये दूध को ग्रहण करें।

*भाग 26 में स्पष्टीकरण दिया जा चुका है।*



११. बेकरी की कोई वस्तु न लें।

*अधिकतर बेकरी उत्पाद स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद सामग्री यथा परिष्कृत आटा, रिफाइंड तेल व चीनी से बनते हैं एवम इनको बनाने में खमीर पद्यति का उपयोग किया जाता है जो भारतीय जलवायु में आवश्यकता से अधिक उपयोग करने पर शरीर को हानि पहुंचा सकती है।*



१२. रात्रि में दही, तिल और सत्तू से बचें। (मूली भी जोड़े)

*ये सभी वस्तुएं ठंडी प्रकृति की होती हैं जो रात्रि मैं उपयोग करने से हानि कर सकती हैं। खांसी, जुकाम, जोड़ो के दर्द, गठिया इत्यादि में नुकसान दायक।*


१३. रात्रि के भोजन में खीरा न खायें। {खीरा सुबह हीरा, दिन मैं जीरा और रात मैं कीड़ा} 

*इसकी ठंडी प्रकृति के कारण*     



१४. भोजन के तुरंत बाद फल न खायें।

*शरीर को भोजन से प्राप्त कैलोरी को फल और अधिक बढ़ा देते हैं यदि भोजन के बाद फल खाएं जाय इससे पचने की समस्या उतपन्न हो जाती है।*


१५. कच्ची या कम उबाली हुए अंकुरित फलियाँ न खायें।

*क्योंकि अंकुरित अन्न जीवाणु व कीटाणु के प्रजनन व फैलने का स्त्रोत है।*


 १६  कच्चे अंडे, मछली व  कस्तूरी (oysters) न लें।

प्रश्न 15 के उत्तर अनुसार।



१७. प्रोसेस किये हुए कार्बोहाइड्रेट जैसे पास्ता, ब्रेड और पकायी हुई वस्तुओं से बचें।

पूर्व मैं कारण बताया गया है।



१८. आलू चिप्स और फ़्रेंच फ्राई का उपयोग न करें।

क्योंकि ये स्टार्च एवम अधिक तेल से भरपूर होते है अतः पाचन, एसिडिटी, दिल की बीमारी व कैंसर होने की संभावना होती है।


१९. खराब गुणवत्ता के खाद्य जैसे ट्रान्स वसा (trans fats) से बचें, जिनसे जलन (inflammation) होती है।

खाद्य तेल सदैव अच्छी गुणवत्ता का उपयोग करें।


२०. तथाकथित आयोडीनयुक्त नमक और सफेद चीनी को तत्काल छोड़ दें। इनकी जगह सेंधा नमक तथा गुड़/खाँड़/बूरा का उपयोग करें। (सफेद मैदा भी जोड़े)

इनके निर्माण में रसायनों का अधिक उपयोग होता है। मैदा प्रोसेस्ड गेंहू से बनने के कारण हानिप्रद है ।


२१. अपाश्चुरीकृत जूस से बचें।

जीवाणु व कीटाणुओ के कारण।


२२. निम्नलिखित खाद्य वस्तुएँ परस्पर विरोधी हैं। *इनको एक साथ नहीं लेना चाहिए*


- दूध और माँस 

- नमकीन और दूध

- पनीर और फल

- दूध के साथ फल

- बासी (बचा हुआ) खाना

- दही या दूध के साथ मछली

- दूध और दही 

- गीली, हरी और पत्तेदार सब्ज़ियाँ या सलाद आवश्यकता से अधिक मात्रा में न लें। 

- अचार या विक्षोभीकृत खाद्य (fermented foods) अधिक मात्रा में न लें।

- रात में आइसक्रीम

- बेमौसम का खाना

- दूध और खट्ठे फल

- दूध और कटहल (jackfruit)

- शहद और घी 

- दूध की खीर के साथ खिचड़ी

- उड़द के अकेले ही लें, विशेषत: दही के साथ नहीं लें।

- जहां तक हो सके द्वि दल के साथ दही लेने से बचें।

यह जोड़े (pair) आपस में गुण व प्रकृति में एक दूसरे के विरोधी है।

दूध चूंकि सम्पूर्ण आहार है अतः अकेला लेना उचित हैं।

देश के कुछ हिस्सों में भोजन को पचाने के लिए रात्रि भोजन के पश्चात केला खाया जाता है। ये विशेष केले होते हैं जो छोटे  क्षेत्र विशेष के एवम उपयोगी हैं। लेकिन रात्रि भोजन वहां पर सूर्य अस्त से पूर्व कर लिया जाता है


२३. हमारे पूर्वजों के समय से परिवार मैं जो खाद्य पदार्थ न खाने की परम्परायें चली आ रही हैं उनका कडाई से पालन करें। इस सलाह का कारण यह है कि पीढ़ियों से मौसम, समय और भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार भोजन की आदतें बनायी जाती हैं।

परम्पराएं अनेक अनुभव, शोधों एवम वैज्ञानिकता के आधार पर बनती हैं।


२४. अपने भौगोलिक क्षेत्र से बाहर उगाये गये तथा बेमौसम के फल, सब्ज़ियों तथा अन्य खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए। इसके बजाय स्थानीय तथा मौसमी वस्तुओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।

यहां पर क्षेत्र को मोहल्ले से न जोड़कर जलवायु क्षेत्र के रूप में लें।



२५. भोजन के समय ठंडे पेय और सामान्यतया बर्फ़ जैसे ठंडे भोजन से बचना चाहिए।

जठराग्नि के कारण


२६.  रिफाइंड आयल प्रयोग न करें अपितु देशी घी, सरसों/तिल/नारियल /मूंगफली के तेल क्षेत्र विशेष के अनुसार कच्ची घानी का प्रयोग करें।

आयुर्वेद में रुषणता /तरावट हेतु चिकनाई उपयोग का विशेष महत्व है अतः अच्छी व शुद्ध गुणवत्ता का खाद्य तेल अपने क्षेत्र विशेष का उपयोग करें।*



 हमारी चर्चा का अगला विषय मात्र वृद्धों के लिए ही नहीं अपितु सभी आयु वालों के लिए महत्वपूर्ण होगा -  *हम क्या अवश्य खायें।*

जगमोहन गौतम

No comments:

Post a Comment