*आयुर्वेद सम्मत मानव शरीर को निरोग रखने के उपाय* (भाग २९)
-----///---//-- *जग मोहन गौतम*
हम क्या अवश्य खाएं
हमने इस लेखश्रंखला के प्रारम्भ मैं ही आयुर्वेद के अनुसार अपनी अपनी प्रकृति समझने एवम जानने का अनुरोध किया था, इसको जानने के लिए आवश्यक सूत्र भी बताए थे। खाने के बारे में प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य महृषि वाग्भट्ट जी का प्रसिद्ध वाक्य भी उद्घृत किया था कि *शरीर को जानिये और भोजन को पहचानिए* इससे स्पष्ट है कि भोजन सदैव अपनी प्रकृति के अनुसार करना चाहिये। इसके साथ ही ऋतु के अनुसार भोजन करने का सिद्धांत एवम षटरसों का भोजन में समावेश का सूत्र भी स्वस्थ रहने के लिए दिया था।
क्या कभी आपने अनुभव किया है कि भारतीय रसोईघर क्यों दवाखाना भी है? वस्तुतः आयुर्वेद ने अपने मूल उद्देश्य *स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवम रोगी के विकारों को दूर करके स्वस्थ बनाना* की पूर्ति हेतु जहां एक और जीवनशैली दी तो वहीं यह मानते हुए कि चिकित्सकों के माध्यम से चिकित्सा उपलब्ध कराना असम्भव है, के कारण खानपान में औषिधयों का समावेश कराकर रसोई को आवश्यकता होने पर दवाखाना का रूप भी दे दिया। यह सब सतत परीक्षणो एवं शोधों के उपरांत किया गया। यह व्यवस्था एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वतः संस्कारों के रूप में हस्तांतरण होने का भी प्रबंध किया गया ।
आयुर्वेदाचार्यों ने जनसाधारण को यदि उसकी प्रकृति की विशेषताओं से परिचय कराया तो वहीं खाद्य पदार्थों के भी गुण एवं दोष के कारण संयोग व दुर्योग के सूत्रों को भी कण्ठस्थ करा दिया गया।
विचार करें- क्यों कढ़ी एवं काशीफल को मेथी से छोंक कर सब्जी बनाते हैं तो भिंडी व अरवी को अजवाइन से और करेला व टिंडा को सौंफ से छोंका जाता है। इसी प्रकार विशेष जलवायु क्ष्रेत्र के अनुसार सामान्य तड़का/छोंक यदि कहीं जीरा-हींग से है, तो कहीं कड़ीं पत्ता -सरसों , वहीं कुछ स्थानों पर दाल तो कुछ वस्तुएं एवम स्थान पर लहसुन व प्याज। जलवायु विशेष के खाद्य पदार्थ एवम इनको पकाने की विधि भी इसी प्रकार स्वास्थ्य से जोड़कर संजोयी गयी है।
आज के खान पान एवम जीवन शैली को देखते हुए हमने कुछ खाद्य पदार्थों की सूची उनके गुण एवम धर्म का ध्यान रखते हुए तैयार की है जिसका नित्य उपयोग लाभदायक रहेगा यदि किसी व्यक्ति की विशेष परिस्थितियां न हों। इनके उपयोग की मात्रा का अपनी स्थिति अनुसार सामंजस्य किया जा सकता है। हानि होने की संभावना कम है यदि संतुलन पर ध्यान रखा जाय।
आइये इस सूची पर इसके गुण-दोष को ध्यान में रखकर दृष्टि डालें, साथ में इनको उपयोग करने के लिए कटिबद्ध भी हो जाएं।
1. *आँवला* - किसी भी रूप में इसका दैनिक उपयोग करना अमृत की तरह है। आँवला उच्च रक्तचाप, दिल, आंख, त्वचा और अन्य गंभीर रोगों को नियंत्रित करता है। यह उम्र प्रतिरोधक है। यह अद्भुत फल प्रभु की मानव को स्वस्थ रहने की अनुपम भेंट है। इसका नियम से प्रतिदिन किसी भी रूप में अवश्य प्रयोग करें। इस कि सबसे बड़ी विशेषता है कि यह किसी भी परिस्थिति यथा कूटने, पीसने, उबालने, सुखाने, छोंकने, किसी और रूप में बदलने पर अपने गुण नहीं छोड़ता है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में वात,पित्त,कफ का असन्तुलन ही रोगों का कारण है। आँवला में इन तीनों दोषों में समान रूप से संतुलन करने के गुण विद्यमान है। एलोपैथी भी इसमें अन्य फलों की अपेक्षा विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होने के कारण इसके उपयोग को अपनी विटामिन थ्योरी में ऊपर रखता है।
2. *मेथी* - मधुमेह, जोड़ों के दर्द, पेचिश और बुढ़ापे की अन्य समस्याओं के लिए, यह एक चमत्कारिक देशी औषधि है।
आयुर्वेद के ग्रन्थ भाव प्रकाश के अनुसार मेथी वात को शान्त करती है, कफ और ज्वर का नाश करती है। राज निघन्टु में मेथी को पित्त नाशक, भूख बढ़ाने वाली, रक्तशोधक, कफ और वात का शमन करने वाली बतलाया गया है।
3. *छाछ/मठ्ठा* - इसे पानी के विकल्प के रूप में नाश्ते और दोपहर के भोजन के साथ लिया जाना चाहिए। इससे पाचन शक्ति में वृद्धि होगी और तेज तथा ओज देगी, जिसकी बुढ़ापे में सबसे ज्यादा जरूरत होती है। मसालेदार भोजन के अवगुणों से बचाती है, वजन घटाने में सहायक एवम हड्डियों को मजबूत करती है।
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र के अनुसार छाछ में विटामिन ए, ब, सी, इ और के पाया जाता है। छाछ स्वास्थ्य पोषक तत्व जैसे लोहा, जस्ता, पोटेशियम आदि से भरा होता है। यह सभी मिनरल्स शरीर के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है।
4. *छोटी हरड़* - यह पेट की बीमारियों, बालों और दंत समस्याओं के लिए एक वरदान है, जिसका उपयोग दोपहर के भोजन के पश्चात मुंह में एक टुकड़ा रखकर किया जा सकता है।
घरेलू रूप में छोटी हरड़ का ही अधिकतर उपयोग किया जाता है। हरीतकी( हरड़) संपूर्ण शरीर के लिए फायदेमंद है विशेष रूप से कब्ज, बवासीर, पेट के कीड़ों को दूर करने, नेत्र ज्योति व भूख बढ़ाने, पाचन तथा अलग-अलग मौसम में विशेषतया वर्षा ऋतु में मुख्य रसायन होने के कारण उपयोगी है।
5. *दालचीनी और शहद* - ये अस्थमा, सर्दी, खांसी, हृदय रोग, क्लोरास्ट्रल, यूरिक एसिड और जोड़ों के दर्द में बहुत उपयोगी हैं।
दालचीनी भारत में प्रयुक्त सबसे पुराने मसालों में से एक है जो कि इसके औषधीय और सौंदर्य लाभों के लिए जाना जाता है। और शहद को आयुर्वेदिक ग्रंथों में "योगाही" कहा जाता है। जब शहद को किसी अन्य लाभकारी मसाले या जड़ी बूटी के साथ मिलाया जाता है तो यह शरीर में ऊतकों और नसों में गहराई तक पहुँचकर उस विशेष संयोजन के औषधीय गुणों को बढ़ा देता है।
गठिया, मूत्राशय संक्रमण, केलोस्ट्रोल, सर्दी, प्रतिरक्षा प्रणाली, वजन कम करने में उपयोगी है।
6. *लहसुन* - रात के खाने में लहसुन की दो कलियां लेना कैंसर, हृदय रोग, यूरिक एसिड, जोड़ों के दर्द आदि में उपयोगी होता है। प्रातः खाली पेट भी 2-3 कली लेना लाभप्रद है।
लहसुन में एलिकिन नामक औषधीय तत्व पाया जाता है. एलिकिन में जीवाणुरोधी, एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं. लहसुन विभिन्न प्रकार के विटामिन और पोषक तत्वों से भी भरपूर होता है. इसमें विटामिन B1, B6 और C के साथ-साथ मैगनीज़ कैल्शिम, तांबा, सेलेनियम और अन्य जरूरी तत्व पाए जाते हैं.
7. *तुलसी और काली मिर्च* - खांसी, सर्दी, बुखार, अस्थमा, रोगप्रतिरक्षा और श्वसन समस्याओं के लिए तुलसी के दस पत्ते और पांच काली मिर्च गुड़ के साथ काढ़ा बनाकर बहुत उपयोगी है।
8. *सोंठ-/ अदरक* का उपयोग भी इसके बहु उपयोगी लाभ एवम गुणों के कारण नित्य करें एवम विशेषतया मौसम परिवर्तन के समय, सर्दियों और बरसात के मौसम की शुरुआत में, इसका प्रयोग गुड़ के साथ किया जाना चाहिए।
यदि आप अपने परिवार के खानपान का अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि हमारे पूर्वज ऊपर दी गयी सूची की वस्तुओं का नित्य उपयोग करके स्वस्थ्य जीवन के साथ पूर्ण आयु को प्राप्त हुए हैं।
चूंकि सूची में आने वाले खाद्य पदार्थों में गहरी पर्तिस्पर्धा थी अतः हमने वर्तमान परिस्थियों के अनुसार चयन करके सूची निर्मित की है। हो सकता है किसी व्यक्ति विशेष कि परिस्थितियों अनुसार इसमें परिवर्तन की आवश्यकता हो। आयुर्वेद के ऋतु चर्या एवम स्वयम की प्रकृति से तालमेल पर इनका उपयोग अद्भुत लाभ देगा, यह हम समझते हैं।
इस लेखश्रंखला में *हमें क्या अवश्य खाना चाहिए* के साथ हमने *आहार* क्या है, के साथ इसका, *कब, कैसे, क्या और क्या नहीं खाना चाहिए* पर चर्चा की है। आशा है आप इन विषयों पर पढ़ते हुए अवश्य उन मधुर स्मृतियों में खो गए होंगे जो आपने अपने पूर्वजों के साथ व्यतीत की थीं और उनको पुनर्स्थापित करने की और आगे बढ़ेंगे।
इस लेखश्रंखला का अगला अंक आपको सोशल मीडिया में घूम रहे उस वीडियों से परिचय करवाएगा जिसने वैश्विक व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के खानपान की सूची को ही विगत 50 वर्षों में बदल डाला है।
धन्यवाद
जगमोहन गौतम
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