EVERY BANK EMPLOYEE & OFFICER, WORKING OR RETIRED, MUST READ THIS WRITE-UP. IT'S SOMETHING LIKE 'WRITING ON WALL'.
IT'S ENGLISH VERSION WILL ALSO BE SENT IN DUE COURSE.
READ IT AND FORWARD TO YOUR CONTACTS WITHOUT FAIL. TREAT IT AS GREAT SERVICE TO BANKING FRATERNITY.
ACTIVIST FRIENDS, BANK EMPLOYEES MOVEMENT IS PASSING THROUGH SERIOUS PHASE, THERE ARE HIDDEN AND VISIBLE THREATS. SERIOUSNESS GOES BEYOND MEASUREMENT, AS UNIONS AS INSTITUTION HAVE COLLAPSED & FALLEN IN THE LAP OF
IBA, BANKERS, DFS LAPS.
"इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसके जीवन में कठिनाइयां न आती हों। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि जीवन ने हमारे साथ कितना अन्याय किया है, हमारा कितना अपमान किया है। अगर कुछ महत्वपूर्ण है, तो हमने उन स्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया दी, यह महत्वपूर्ण है। जीवन में यदि कुछ सत्य है तो वह धर्म है। जीवन कितना भी कठोर क्यों न हो, हमें धर्म का ही पालन करना चाहिए... हमें धर्म का ही पालन करना चाहिए।"
उपरोक्त बातें भगवान श्री कृष्ण ने भागवत गीता में दानवीर कर्ण के व्यथा भरे प्रश्नों का समाधान करते कही, जो आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी महाभारत काल में थी
भगवान श्री कृष्ण की बातें व्यक्तियों के साथ-साथ संस्थानों, दोनों, पर समान रूप से लागू होता है। श्रमिकों की 'कठिनाइयों' पर ट्रेड यूनियन की नींव रखी गई थीं। स्थिति कभी गुलाबी नहीं थी। अन्याय और अपमान हमेशा हुआ, लेकिन उन्हें कभी महत्व नहीं दिया गया। महत्व दिया गया था कि उस स्थिति के खिलाफ कैसे प्रतिक्रिया दी जाए।
कामगारों का जीवन हमेशा कठोर रहा है, लेकिन यूनियनों ने हमेशा 'एकजुटता और संघर्ष ' की नैतिकता का ईमानदारी से पालन किया, चाहे परिणाम कुछ भी हुआ हो। यह वही नैतिकता और ईमानदारी पिछले 20 वर्षों में समाप्त हो गई है, जिसको लेकर देशव्यापी विमर्श हो रहा है। यह यूनियन नेताओं द्वारा पैदा किया गया नैतिक विकार है, जो अक्षम्य अपराध और धोखाधड़ी है।
कमजोर और असहाय पेंशनरों की जीर्ण-शीर्ण आत्मा और मन से निकली आह व्यर्थ नहीं जाएगी। यहां तक कि सर्वशक्तिमान ईश्वर भी ऐसे लोगों को उनके पापों की सजा से उन्हें नहीं बचा सकते, जो सामूहिक रूप से पेंशनरों की दुर्दशा के जिम्मेदार हैं।
बैंक अधिकारी और कर्मचारी, स्पष्ट रूप से कुछ तथ्यों को अपना भाग्य/ दुर्भाग्य मानकर स्वीकार करें और अपने व्यवहार में अपेक्षित सुधार करें। ऐसा करने से वे सही-गलत को लेकर मानसिक उलझन से बच सकेंगे।
PENSIONERS
पेंशनरों के हित को लेकर
यूएफबीयू की कोई दिलचस्पी नहीं है।
अत: पेंशनरों को इनसे कोई उम्मीद
नहीं रखना चाहिए। वे कुद में एक
एक्टविस्ट् बनें और अपनें भले-बुरे को
लेकर संघर्ष सघन करें।
RETIREE UNIONS
रिटायरी यूनियनें खटमल की तरह
रिटायरीज का खून चूसना जारी
रखेंगी। वे आपरेटिंग यूनियनों की
चापलूसी जारी रखेंगी। चंदा, लेवी
से इसके नेता कोई आंदोलन नहीं,
बल्कि भ्रमण, मीटिंग, सिटिंग, ईटिंग,
ड्रिंकिंग जारी रखेंगे।
WORKING BANKMEN
कार्यरत लोगों के मामले में यूनियनें
मौकापरस्ती जारी रखेंगी। यूनियनें
केवल चंदा और लेवी के लिए,
पूर्व अर्जित अधिकारों की कीमत पर
समझौते करती रहेंगी।
SETTLEMENTS
मुगालते में कोई न रहे कि समझौता
यूनियनों के वर्चश्व या दबावी रणनीति
के बल पर होगें, बल्कि आई.बी.ए./
बैंकर्स/ डी.एफ.एस. की कृपा पर होगें।
FUTURE SETTLEMENT
आगे समझौता होगा, यह अनिश्चि है।
सरकार अन्य विकल्प पर विचार कर
रही है, या कर सकती है। सरकार जानती
है, समझौते से अधिकारी/कर्मचारी खुश
नहीं हैं। स्मरण दिलाना जरूरी है। पिछली
बार सरकार ने अगले समझौते की वार्ता
शुरू करनें का आदेश जनवरी, 2016 में
दिया था, लेकिन इस बार सरकार चुप है।
STRIKE ACTIONS
अपनी नीति के रूप में वे अपने
राजनीतिक आकाओं को खुश
करने के लिए बैंककर्मियों का
दुरूपयोग औद्योगिक अशांति
पैदा करने के लिए जारी यहेगा,
लेकिन कार्यरत व सेवानिवृत्त
बैंककर्मियों के हितों को लेकर
केवल दिखावटी कार्यवाइयां
होंगी, कोई गंभीर और कठोर
कदम नहीं उठाया जाएगा।
ALL DELAYING TACTICS
जैसा पिछली बार हुआ है,
आगे भी वे केवल लेवी बढ़ोत्तरी के लिए,
वेतन पुनरीक्षण में देरी करने के लिए
सभी हथकंडे अपनाना जारी रखेंगे।
11.11.2020 को 42 महीने से
ज्यादा चली वार्ता और 36 महीने की
देर से समझौता का कीर्तिमान बन चुका है।
SPECIAL ALLOWANCE
वे मौजूदा स्पेशल एलावंस के जरिए,
नये वेज रिवाजन से होने वाली
पेंशन बढ़ोत्तरी को बेअसर करना
जारी रखेंगे। 10वें/7वें द्विपक्षीय
समझौते/ ज्वाइंट नोट में बेसिक पे
से 7.75% से 11.5% के बीच कटौती
कर स्पेशल एलावंस बनाया गया
और उसे पेंशन गणना से बाहर
रखा गया। स्पेशल एलावंस मूल
वेतन का हिस्सा है, जिसका श्रृजन
पेंशन कम करने के लिए किया गया है।
11वें/8वें में सेटेलमेंट/संयुक्त नोट में
स्पेशल एलावंस को बढ़ाकर 16.40%
कर दिया गया है। इस प्रणाली के
अनुसार भविष्य में 11/2022,
11/2027 या 11/2032 के
समझौतों में स्पेशल एलावंस की
वृद्धि जारी रहेगी।
PENSION SEALED
वे सुनिश्चित करेंगे कि पेंशन वृद्धि को
11/2012 के स्तर पर ढक्कन लगा
रहे। अभी तक का परिणाम यह है
कि 11/2012 से पेंशन 50%
से घटकर 45.5 प्रतिशत और
11/2017 से 41.8% हो गई है।
इस नीति को जारी रखते आगामी
11/2022 के समझौते से यह घटकर
36% और 11/2027 से यह लगभग
31% हो सकती है। इस आकलन में
शक की कोई गुंजाइश नहीं है।
D.A. INENDING TUNNEL
वे डीए के मामले में अंधेरी सुरंग में
चल रहे हैं। विश्वास है, वे इस सुरंग में
चलना जारी रखेंगे।1970 में क्लर्कों व
अधिनस्थों का प्रति स्लैव डी.ए. दर
क्रमश: 3 व 4% था जो घट कर
1998 से 0.24%, 2002 से 0.18%,
11/2007 से 0.15%, 11/2012
से 0.10% और 11/2017 से यह
0.07% प्रति स्लैब है।
11/2022 से यह घटकर
0.03% और 12/2027 से 0.00%
हो जायेगा। कोई इसे गलत मानता है,
तो वह साबित करे। इस खामी का
परिणाम है कि 1970 के दशक में
धनवानों का टापू कहा जानें
वाला कैंककर्मीं समूह आज
वेतन के मामले में सरकारी कर्मचारियों
की तुलना में कटोराधारी बन गया है।
NO MORE REPRESENTATIVE
WORKMEN/OFFICERS DIRECTOR
बैंकों के बोर्ड पर कर्मचारियों/
अधिकारियों के प्रतिनिधि निदेशकों
की नियुक्ति अब नहीं होगी। ऐसा
यूनियनों और बैंकरों के बीच हुई गुप्त
सममति के अंतर्गत हो रहा है, अगर
यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
समझौतापरस्ती में बहुत सी बातें
अघोषित होती हैं। यह बैशक बैंक
राष्ट्रीयकरण एक्ट, 1970/1980
के प्रावधान के विपरीत हो रहा है।
ऐसा इसलिए भी हो रहा है कि तीन
बहुसंख्यक यूनियनों का कोई नेता
निदेशक बनने की लिस्ट में नहीं है
और वे अपने अन्य पात्र नेताओं को
निदेशक बनाना नहीं चाहतीं।
NO MORE COMPASSIONATE
GROUND APPOINTMENT
अनुकंपागत नियुक्तियों का हक
यूनियनों ने दफना दिया है। अब
इसकी मांग या उसके लिए
आंदोलन की बात नहीं होती।
NO PSB SALE, BUT MAY
DISINVESTMENT.
तीन बैंकों के निजीकरण पर
यूनियनों की लचर नीति सर्व-
विदित रही है। एक बड़े नेता ने
अपनी बैंक के विलय न होने की
शर्त पर शेष बैंकों के विलय को
हरी झंडी दे दी थी। स्टेट बैंक में
वर्चस्व रखने वाली यूनियन एबाक
व एन.सी.बी.ई. ने स्टेट बैंक की
सहायक बैंकों के विलय का बांह
उठाकर स्वागत किया। तीन बैंकों
का विलय फिलहाल टला, क्योंकि
पेंशनर एक्टविस्ट्स संभवतः
सरकार को कंविंस करने में कामयाब
रहे कि चिंहित बैंकों के निजीकरण
से बेहतर होगा कि सरकार पूंंजी
बाजार की दृष्टि से मजबूत बैंकों का
विनिवेश कर सरकार ज्यादा पूंजी
जुटा सकती है। उम्मीद है, सरकार
बचे बैंकों का भी कंसालिडेशन करेगी,
बिक्री नहीं। प्रश्न उठना स्वाभाविक है
कि इतनें बड़े-बड़े षणयंत्र वह भी
यूनियनों के नेता कर रहे हैं, जो
सार्वजनिक बैंकों और उनके
कार्यरत एवं सेवानिवृत्त कर्मियों के
व्यापक हितों के खिलाफ है।
SUBORDINATES NO MORE
PERMANENT, BUT OUTSOURCED
अधीनस्थों के नियमित पद समाप्त
होंगे। जो हैं वह चलते रहेंगे। अधीनस्थों
की जरूरत बैंके अस्थायी तौर पर लोगों
को रखकर काम चलाएंगी। ऐसा हो रहा
है। अब तक सार्वजनिक बैंकों में
1,50,000 से ज्यादा अस्थायी अधीनस्थ
5/10 वर्ष से काम कर रहे हैं। आगे
चलकर, अधीनस्थों की जरूरत को
आउटसोर्सिंग से पूरा किया जायेगा,
जैसा सुरक्षाकर्मियों के लिए हो रहा है।
(जे.एन.शुक्ल)
17.11.2021
9559748734
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न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्रणिनामार्तिनाशनम्॥
हिमालयं समारभ्य, यावत् इंदु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं, हिन्दुस्तानं प्रचक्षते।।
कुछ अतिरिक्त पानें के लिए,
क्या-क्या नहीं गवांया ?
जीवन की सारी दौड़ केवल 'अतिरिक्त' अर्थात कुछ और की प्राप्ति के लिए है! अतिरिक्त पैसा, अतिरिक्त पहचान, अतिरिक्त सोहरत, अतिरिक्त प्रतिष्ठा। यदि यह 'अतिरिक्त' पाने की लालसा ना हो तो जीवन एकदम सरल और परिपक्व है!
थोड़ा और विस्तार में जाएं तो कह सकते हैं, जीवन की परिपक्वता तब होती है:
■ जब आप दूसरों को बदलने की कोशिश करना बंद कर देते हैं, ... इसके बजाय खुद को बदलने पर ध्यान केंद्रित करते हैं,
■ जब आप लोगों को वैसे ही स्वीकार करते हैं, जैसे वे हैं,
■ जब आप समझते हैं कि हर कोई अपने दृष्टिकोण में सही है,
■ जब आप "जाने देना" सीखते हैं,
■ जब आप रिश्तों से "उम्मीदें" को छोड़ने और बस देने के लिए देते हैं,
■ जब आप समझते हैं कि आप जो कुछ भी करते हैं, वह अपनी आत्मशांति और संतुष्टि के लिए करते हैं,
■ जब आप दुनिया को साबित करना बंद कर देते हैं कि आप कितने बुद्धिमान हैं,
■ जब आप दूसरों से अपने कार्य और व्यवहार का अनुमोदन नहीं मांगते,
■ जब आप दूसरों के साथ तुलना करना बंद कर देते हैं,
■ जब आप स्वयं के साथ शांति में होते हैं,
■ जब आप "ज़रूरत" और "इच्छा" के बीच अंतर करने में सक्षम होते हैं और अपनी इच्छाओं को त्यागने में कामयाब होते हैं, और, अंतिम लेकिन सबसे सार्थक,
■ जब आप भौतिक चीजों से "सुख" को जोड़ना बंद कर देते हैं, तो आध्यात्मिक परिपक्वता प्राप्त होती है।
यह कैसी बिडम्बना है, हम सब यह जानते हैं कि साथ कुछ भी नहीं जाएगा, फिर भी भौतिक सुख और संसाधनों के लिए हम क्या-क्या नहीं करते! अतिरिक्त पानें के लिए हमनें क्या-क्या गवांंया है, इसका हमें इल्म नहीं!! जीवन की एक उम्र और कमाई का एक हिस्सा परमार्थ को हर किसी को देना चाहिए, फिर परमार्थ चाहे छोटा हो या बड़ा!!
Input by:
Hasmukh Bhai Dave,
Ahmedabad
Translated & edited by:
(जे.एन.शुक्ल)
प्रयागराज
17.11.2021
9559748834
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