Monday, January 27, 2020

Ineffectivness of IBA, Abolish IBA and Form Banking Pay Commission

Today on 27th January 2020 ,Chief Labour Commissioner held  a conciliation meeting between Indian Bank Association and United Forum of Bank Unions.  

It has come to light that IBA wanted unions to defer the strike after which they will call for further talks whic UFBU categorically  refused. CLC advised IBA to hold talks before the strike to try to resolve issue. There was no commitment from IBA in this regard. 

Hence UFBU will go ahead with the strikes. 

I have received a forwarded message on Whatsapp platform which is enough to expose the ineffectiveness of system of Bipartite Settlement prevailing in banking industry. I am submitting the message below for the benefit of other bank employees.



सरकारी बैंकों में वेतनवृद्धि के लिए 2018 से बार बार हड़ताल क्यों?

परिपक्व सभ्य लोकतंत्र में अपने अधिकारों माँगो के लिए झगड़ा,गाली गलौच करना हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और ही हमारा कोई भी कानून इसकी इज़ाज़त प्रदान करता है। लेकिन अब सवाल ये उठता है कि किसी की तर्क संगत न्यायोचित माँग को सरकार द्वारा बरसों तक बुरी मानसिकता गंदी मंशा से लंबी अवधि तक जानबूझ कर लंबित रखा जाए तो आखिर शोषित कहाँ जाए किससे फरियाद करे। 

और भी बहुत से विभाग है लेकिन उनमें स्ट्राइक नहीं होती आखिर बैंको में ही बार बार स्ट्राइक क्यो होती है। क्या बैंकर्स केवल जनमानस को परेशान करने के लिए स्ट्राइक करते हैं या स्ट्राइक करना उनकी फितरत में शामिल है। 

जनमानस को ये अवगत कराना आवश्यक नितांत ज़रूरी है कि बैंककर्मियों को हड़ताल करने पर आर्थिक नुकसान को सहन करना पड़ता है अर्थात हड़ताल के दिनों का वेतन उनकी salary से काट लिया जाता है।

ये गहन विचार का विषय है कि आखिर ये बैंक वाले अपना आर्थिक नुकसान सहकर भी हड़ताल पर क्यों जाते हैं
आपको सर्वविदित है कि केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों की वेतनवृद्धि के लिए  Central Pay Commission (सीपीसी )का गठन करती है उसे कानूनी दर्जा प्राप्त है उसी का अनुसरण राज्य सरकारें भी करती हैं।

India में 10 लाख बैंककर्मियों की वेतनवृद्धि Indian Bank Association (IBA) बैंक यूनियंस के मध्य द्विपक्षीय समझौता (BPS)के द्वारा तय होता है। आपको आश्चर्य होगा कि CPC की तरह IBA को किसी भी सरकार द्वारा वैधानिक मान्यता नहीं मिली है और ही वो इतने संवेदनशील मामले को करने के लिए रजिस्टर्ड है। ये आज तक कोई बैंककर्मी नहीं समझ पाया कि IBA किस हैसियत या power से बैंको में वेतनवृद्धि पर द्विपक्षीय करने के लिए qualify करती है।

बैंककर्मियों का वेतनवृद्धि का मामला Nov 2017 से देय है पर 27 महीना बीत जाने के पश्चात भी इसके जल्द होने के कोई आसार नहीं हैं। बैंकों का पिछला वेतनवृद्धि  15% की वृद्धि पर 30 महीनों के विलंब के पश्चात लागू हो पाया था। 

वेतनवृद्धि के बहुत ही आसान साधारण नियम के तहत ये तय होना चाहिए कि CPC की भांति अगली वेतनवृद्धि किसी तय फॉर्मूले या पिछली वेतनवृद्धि के समकक्ष होना चाहिए। लेकिन बैंको में अगली वेतनवृद्धि का कोई भी फार्मूला फिक्स नहीं किया गया है। ये तो एक unconstitutional body IBA की मर्ज़ी पर है कि वो  कितना increase का आफर करती है। 

लेकिन इस बार IBA ने अपनी मनमानी, नीचता लाज शर्म की सारी सीमाओं को तोड़कर बैंककर्मियों को नीचा बेइज़्ज़त करने के इरादे से केवल 2% increase  कुत्ते के सामने एक small टुकड़ा डालने जैसा दुस्साहस  7 माह बाद मई 2018 को किया जबकि वित्त मंत्रालय ने IBA को बहुत clear निर्देश दिया था कि CPC की भांति बैंक में वेतनवृद्धि को समय से लागू कर दिया जाए।

IBA ने 2% का वेतनवृद्धि किस फॉर्मूले किस कैलकुलेशन के आधार किआ इसे वो स्वयं भी सिद्ध करने में असफल है और आश्चर्य की बात तो ये है कि Dec 2019 आते आते फिर जाने अर्थशास्त्र या वेतनवृद्धि के किस सिद्धांत के तहत 6 times बढ़ाकर 12% कर दिया। इससे तो यही साबित होता है कि मई 2018 में IBA द्वारा दिया गया 2% का आफर मनमाना मूर्खतापूर्ण था और IBA का एकमात्र मक़सद  समय को बर्बाद करना तथा बैंककर्मियों को हड़ताल करने के लिए provoke करना है।

 2018 से 2019 के बीच बैंककर्मियों ने सम्मानजनक वेतनवृद्धि के लिए अलग अलग 6 दिनों की हड़ताल की फिर भी IBA ने मामले को संवेदनशील नहीं माना और हड़ताल से जनता को परेशान होने दिया गया। मतलब उसने अपनी हेकड़ी के आगे जनमानस की परेशानी को तुच्छ माना, इससे IBA की गंदी मानसिकता उजागिर होती है।

अभी Sept 2019 में IBA ने अपना एक legal letter भी जारी किया जिसमें उसने स्वयं स्वीकार किया कि वो एक voluntary association है।लेटर के कुछ points इस प्रकार से हैं---

“IBA is neither government/government department nor a regulator and not even a self regulator/self regulatory organisation.IBA has no authority over banks.IBA does not issue direction to the banks.”

अब आप ही अनुमान लगाएं कि किस तरह से एक गैर जिम्मेदार संस्था को बैंको की वेतनवृद्धि जैसे अति संवेदनशील मामले को दे दिया गया है जिसको कहाँ से कैसे शुरुआत किआ जाए इसका A B C D भी नहीं मालूम। पिछले सभी BPS को देखा जाए तो IBA की समय जाया करने सौदेबाज़ी की गंदी मानसिकता जारी है जिससे बैंकों में होने वाली हड़तालों से जनमानस को परेशान होना पड़ता है।

सम्मानजनक वेतनवृद्धि हेतु यूनियंस की IBA के साथ अब तक 39 meetings हो चुकी है और हर बार IBA की सौदेबाज़ी हठधर्मिता के कारण थकहार कर आखिरी हथियार के रूप में यूनियंस ने इस बार लंबी लड़ाई का फैसला कर लिया है ,इन लंबी लंबी strikes के चलते आम जनता को भारी परेशानी होने वाली है। सबसे बड़ी समस्या गरीब जनता ,रोगियों पेंशनर्स को होगी। 1 अप्रैल से indefinite strike का कॉल दिया गया है जिससे पूरी अर्थव्यस्था चरमरा जाने की संभावना है। 

जनमानस को ये बताना अत्यंत आवश्यक है कि बैंक कर्मी क्या वेतन पाते हैं तो इतना कहना काफी है कि बैंक क्लर्क अफसर central govt के क्रमशः चपरासी क्लर्क से या तो कम या आसपास शुरुआती वेतन पाते हैं।

सुनने में ही आश्चर्य होता है क्या बैंक अफसर केंद्रसरकार के क्लर्क के बराबर है। अब आप ही अनुमान लगाए की बैंककर्मियों में recentment व्याप्त होगा कि नहीं। IBA इस बात का रोना रोती है कि बैंक घाटे में हैं पर क्या वाकई में बैंक घाटे में चल रहे हैं। ये भी भ्रम फैलाया जा रहा है। 

अपने देश मे बड़े बड़े अमीर लोग को बैंको से राजनीतिक चंदे के लिए लाखों करोड़ का loan दे दिया जाता है जिसमे चपरासी,क्लर्क या ब्रांच मैनेजर का कोई रोल नहीं है।ये सब खेल ऊपर ऊपर खेला जाता है तथा वसूली के लचर कानून की वजह से ये अमीर कर्ज़ को वापस नहीं करते जिसके कारण बैंकों का NPA लाखो करोड़ हो गया है। बैंक हमेशा operating profit में रहे हैं लेकिन NPA का provision करने के कारण वो घाटे में चले जाते हैं। इससे ये साफ साफ उजागर होता है कि बैंको के घाटे में जाने की असली वजह सरकार की नीतियां है ,गरीब आदमी के पैसे से अमीर आदमी विदेश में ऐश करते हैं और  गरीब जनता पर हर तरह का टैक्स लगा दिया गया है। 

सरकारी बैंकों का उदेश्य समाज की सेवा करना सरकारी योजनाओं पर अमल करना है चाहे वो जनधन,PPF, सुकन्या,  PM सुरक्षा बीमा अथवा नोटबन्दी हो। आखिर 1969 के पूर्व जब सभी बैंक प्राइवेट थे अपने अपने लिए Profit कमा रहे थे तो सरकार ने उनका राष्ट्रीयकरण किस उद्देश्य के लिए किया गया था,Profit कमाने के लिए अथवा समाज के उद्धार के लिए। और जब कोई कार्य समाज के लिए किया जाता उसमे profit का उद्देश्य निहित नहीं होता है। सरकारी स्कूल, हॉस्पिटल, पुलिस ,दमकल, आदि विभाग Profit कमाने के उद्देश्य से नहीं बनाए गए हैं उनकी सैलरी उनके कमाए रुपयों से नही दी जाती है अर्थात इन विभागों में उनकी earning सैलरी में कोई संबंध नहीं है। NPA क्यों बढ़ते जा रहे हैं ये सरकार भी भली भांति जानती समझती है।

अब जबकि यूनियंस ने indefinite स्ट्राइक पर जाने का नोटिस जारी कर दिया है तो IBA ने फिर अपनी गंदी मानसिकता को उजागर कर दिया है उसने सफाई दी है कि वो सौदेबाज़ी करते करते 2 से 12.25% पर गया है BPS हेतु 39 meetings कर चुका है।

आपको बता दिया जाए कि यूनियंस BPS शुरू होने से पूर्व अपना एक Charter of Demand (COD ) IBA को दे देती हैं जिसमे यूनियंस अपनी वेतनवृद्धि की मांगों को तर्कसहित लिखित रूप से ज़ाहिर करती हैं, लेकिन IBA की मंशा हमेशा समय को ज़ाया करने की होती है जिससे यूनियंस हड़ताल करने पर मजबूर होती हैं और जनता को नाहक कष्ट उठाना पड़ता है। बैंको में गरीब लोगों के जमा धन पर अमीर लोगो को ऐश कराया जा रहा है और गरीबो पर heavy service charges लगाए जाते हैं। 

बैंको के nationalisation का उद्देश्य चूर चूर  हो कर बिखर रहा है जिससे सरकार को बैंको का मर्जर करना पड़ रहा है।
सरकार को चाहिए कि समय पर COD देने के बावजूद IBA द्वारा की जाने वाली हीला हवाली हड़ताल से जनता को होने वाली परेशानी को गंभीरता से लेना चाहिए IBA को कसकर लताड़ लगाना चाहिए अथवा IBA को पूर्ण रूप से abolish कर एक banking pay कमिशन का गठन करना चाहिए जिससे बैंककर्मियों के वेतन संबंधी मांग समय पर लागू हो सके।

Please forward

2 comments:

  1. Bankers can't understand why leaders don't meet fin minister. Ms Nirmal Sitaraman Why they don't meet Very nice person Dy finance minister. Mr Anurag Thakur And above all PM. Respected Narinder Modi Ji. To solve bankers problem. They are spoons of cpi. Cpm. Which have no existence. Must think

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  2. Bankers can't understand why leaders don't meet fin minister. Ms Nirmal Sitaraman Why they don't meet Very nice person Dy finance minister. Mr Anurag Thakur And above all PM. Respected Narinder Modi Ji. To solve bankers problem. They are spoons of cpi. Cpm. Which have no existence. Must think

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