Tuesday, January 28, 2020

Bank Employees, Government of India AND UFBU


देश में अशांति का माहौल बनाना 
कुछ तो कहता है! 

हम आम भारतीयों की बिडंबना रही है, हम समय से जरूरी एहतियाती कदम नहीं उठाते और बाद में पछतावा करते हैं. शिक्षा का प्रसार हुआ और तकनीकी में हिन्दुस्तानी दुनिया को राह बता रहे हैंं, लेकिन घरेलू स्तर पर, राष्ट्र और समाज को लेकर उसकी समझदारी और सोच में कोई  बदलाव नहीं आया है. 

राष्ट्रीयता को लेकर दुनिया के देश सजग और सतर्क है और अपनी रक्षा के लिए हर उपयुक्त कदम उठा रहे हैं. कोई भी देश किसी तरह का जोखिम लेने को तैयार नहीं है. लेकिन, इस संबंध में हम अंधनीति के शिकार लगते हैं, अत:  भारतीयों की सोच देश और समाज के लिए आत्मघाती है. इनके लिए, राष्ट्र और समाज, दोनों, सर्वथा नकारात्मकता की सूची में हैं, जिसके छोटे-बड़े परिणाम उभर कर सामने आते रहे हैं. 

और, अब तो कोई संदेह की गुंजाइश ही नहीं बची है. अगर ऐसा न होता तो, आज इस बात को देखने और समझने में लोग गल्ती न करते कि भारत अपनी सीमाओं को लेकर पहले से ज्यादा ताकतवर स्थिति में है, आन्तरिक और वाह्य सुरक्षा पहले से अभेद्य है, शैन्य शक्ति का सुदृढ़ीकरण, आर्थिक मोर्चे पर जब दुनिया में फिसलन है, तो भारत अपनी पकड़ बनाये हुए है, आंतरिक संवैधानिक दुरूहताओं चाहे वह 370/35ए हो या बोडो आंदोलन का अंत, तीन तलाक, हलाला जैसी सामाजिक बुराइयां, सामाजिक उत्थान की दिशा में हर धर को बिजली और गैस तथा रोड, रेल, हवाई सेवावों में आधारभूत बदलाव आदि, पता नहीं जनता की समझ में क्यों नहीं आता? 

देश तो वही 6 साल पहलेवाला ही है! और, अर्थव्यवस्था और देश के संसाधनों के  श्रोत भी वही हैं, व्यूरोक्रेसी भी वही है, जो मनमोहन सिंह छोड़ गये थे, पर पता नहीं भारतियों की समझदारी का कि वे इस बात को क्यों नहीं सोच-समझ पा रहे हैं कि ईमानदारी से काम करने और बेईमानी से काम करने में कितना फर्क होता है, जबकि दो भिन्न सरकारों के जीते जागते उदाहरण सासने हैं.

 कांग्रेसी सरकारों और वर्तमान सरकार की सोच और अप्रोच में जमीन और आसमान का अंतर हैं. यह बात तो समझ में आती है कि जमीन पर रहने वालों को अगर आसमान पर बसाया जाये तो उनमें असहजता का भाव जरूर होगा, लेकिन इस बिना पर क्या वे जमीन से उठना पसंद नहीं करेंगे, एक सवाल है?

कभी कुकिंग गैस के सिलिंडरों की लाइन लगाते और दिन बिता देने वाले लोग अब फुरसत में हैं और सरकार को कोसने में समय लगा रहे हैं. घरों में धुयें-धक्कड़ में आंखें फोड़ रोटी बनाती औरतें अब गैस चूल्हे की अहमियत खोती जा रही हैं. गांव अंधेरों से मुक्त हैं. चार/छ:/आठ लेन की सड़कें, फ्लाईओवर, गांव को जोड़ती सड़कें, पक्के मकान, सब घर में बिजली, सौचालय जैसा काम किसी मायने का नहीं है!. जन-धन योजना में हर किसी का बैंक खाता, 12 रूपये में दो लाख का दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा, मुद्रा लोन किसी आदमी के जीवन में संभवत: कोई माइने नहीं रखता. 

इन बातों पर पानी फेरने के लिए अदानी-अंबानी का नाम उछाल दिया जाता है. आजादी के बाद 1960/70/80 के दशकों में टाटा, बिरला, डालमिया, गोयनका, बांगुर आदि कांग्रेसियों को घेरने के विषय होते थे. 10 वर्षों के मनमोहन सिंह के काल में सारे विमर्श बदल गये. सारे भ्रष्टाचार, लूट-खसोट का ठीका कांग्रेसियों ने ले लिया. मनमोहन सरकार का मतलब ही भ्रष्टाचारी सरकार हो गया. अब नई सरकार में कोई भ्रष्टाचार नहीं तो अदानी, अंबानी के नाम से काम चलाया जाता है, जैसे ये कल पैदा हुए हों और देश के लुटेरे हों! यूरिया के लिए अब लाठी चार्ज नहीं होता. किसानों को अपनी उपज का अच्छा मूल्य भी मिल जाता है. 

विकास की दौड़ की सीमा होती है, लेकिन यहां तो हर क्षेत्र में दौड़ जारी है. बात इससे हटकर करें तो नागरिकता कानून, नागरिक रजिस्टर, जनसंख्या पर कानून, कामन सिविल कोड जैसे आधार भूत कानून किसी भी देश की बुनियाद हैं. 

जिस तरह संविधान लोकतंत्र और देश का मार्गदर्शक शास्त्र है, वैसे ही ये कानून उपनिषद हैं. बुनियादी तौर पर जो लोग हैं, हम भारत के लोग, देश उनका है और जो घुसे हैं, घुसाये गये हैं, यह देश उनका नहीं है. एक बात और. खायेंगे भारत की और गायेंगे पाकिस्तान की, यह भला कैसे चल सकता है. नहीं चलेगा. धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े कोई गद्दार यदि देश में अशांति और आतंक फैलायेगा तो, लबादे का ख्याल रखे बिना गद्दार को चीर देने में संकोच नहीं होगा. यह चीरने का काम तो हर नागरिक का है. मुसलमान का भी है, अगर वाकई वह भारत को अपनी सरजमीं समझता है. किसी को ऐसा काम तो नहीं करना चाहिए जो उसे तौहीन और शर्मसार करे. नागरिकता कानून के विरोध के पीछे के सच और जो षणयंत्र हैं, उसे  गंभीरता से लेने की जरूरत हर नागरिक के स्तर पर है. सैकड़ों करोड़ रूपयों से अरबों करोड़ की संपत्ति को नष्ट करना और देश में अशांति का माहौल बनाना कुछ तो कहता है. ऐसे भला कैसे चल सकता है. चुप तो नहीं रहा जा सकता. अब हम इतने भी सेकुलरिस्ट नहीं हैं कि देश को ही खतरे में डाल बैठें.जब देश ही नहीं रहेगा तो सेकुलरिस्ट कैसे रहेंगे?

बीबीसी के विख्यात पत्रकार मार्क टुली ने बयान दिया  कि   "मोदी इस देश के उस बरगद को उखाड़ कर गिरा रहे हैं,  जिसमें विषैले कीड़े लगे हुए हैं! इसके लिए उन्हे लगातार महासंघर्ष करना होगा!"

मोदी को बहुत संघर्ष करना होगा और मोदी संघर्ष कर भी लेंगें, पर देशवासियों को क्या करना चाहिए? मोदी से कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष करना चाहिए या मूकदर्शक बने खड़ा रहना चाहिए, उनकी टांग खीचना चाहिए? ये जंग तो मोदी देशवासियों के लिए ही लड़ रहे हैं, आनेवाली पीढ़ी के लिए लड़ रहे हैं वरना क्या जरूरत है उन्हें? वे प्रधानमंत्री तो बन ही गये और उनकी कोई अपनी पीढ़ी भी नहीं है! वे जो भी कर रहे हैं वह केवल देश और देशवासियों के लिए है.

(जे.एन.शुक्ला, प्रयागराज,28.1.20/ 9559748834)

Praiseworthy Comment by one of message writer on whatsapp on above message is as follows.

शुक्ला जी नमस्कार। 

बैंक रिटायरीस को देश के मौजूदा हालात से रूबरू करवाने  के आपके प्रयास कि मैं सराहना करता हूं। बैंकों में सीनियर सिटीजन रिटायरीस मैं अशांति और अनिश्चिता का माहौल भी तो कुछ ना कुछ कहता है। पिछले 25 वर्षों में जो भी सरकारे सियासत में रहीं यह उनकी गलत नीतियों का नतीजा है कि आज बैंक में बुजुर्ग रिटायर्ड कर्मचारी उपेक्षा के पात्र बने हुए हैं और कोई उनकी बात नहीं सुन रहा। अब नई सरकार को आए भी पांच 6 साल का समय हो चुका है परंतु अब भी अनिश्चितता बनी हुई है। 

जीन ताकतों ने देश को कमजोर बनाने का प्रयास किया है उनमें से कुछ बैंकों के माध्यम से सरकार को आर्थिक नीतियां लागू करने मैं अपनी पैंठ बनाकर असहयोग कर रहे हैं और उसका खामियाजा बैंक रिटायरीस को भुगतना पड़ रहा है। बैंक यूनियंस गलत मौके पर सरकार विरोधी हड़ताल में शामिल होकर विघटन कारी तत्वों का साथ देकर मौजूदा सरकार को गलत संदेश दे रही हैं और सरकार की उपेक्षा का कारण बन रही है।

सरकार बैंक रिटायरीस की पेंशन अपडेशन पर चुप्पी साधे हुए हैं, हवाला पैसों की कमी का दिया जा रहा है। सारी उम्मीद अब प्रधानमंत्री श्री मोदी पर टिकी हुई है, बैंक रिटायरीस ने विभिन्न माध्यमों से अपनी बात और समस्याएं श्री मोदी तक   पहुंचाने की भरसक कोशिश की है, उम्मीद करता हूं की वह अपनी चुप्पी तोड़ेंगे और आने वाले समय में बैंक रिटायरीस की समस्याओं पर अवश्य गौर करेंगे। बैंक रिटायरीस को भी समझना होगा की उन्हें बदले हालात में समय की नजाकत को देखते हुए मौजूदा सरकार की नीतियों का साथ देना चाहिए ताकि ऐसा कोई संदेश ना जाए कि यह वर्ग सरकार की नीतियों की खिलाफत करता है।

बैंक रिटायरीस को एकजुटता का संदेश देना होगा और मिलजुलकर अपनी समस्याओं के निदान के लिए आगे बढ़ना होगा।

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Pension Activists Proved 
To Be The Best Strategists

For the time being, we restrain ourselves to make any comments. Events in Banking are passing through serious phase. We have to just watch with concentration the movement from both sides, i.e. IBA & UFBU. Both sides hold themselves as very responsible people to banking and banking fraternity. Naturally, we look up on both sides, hopefully, to adopt quite pragmatic approach to strike a fair & equitable balance between demands and achievements.

Retirees need not to be in bliss, as there is nothing feelgood for them. Whatever offer, 12.25%, is made or the 20% rise demand is raised, that's on pay slip components. Thus be clear, in UFBU or IBA art of scheme pension/ family pension is non issue. For UFBU, it's a ploy to bargain better slice for pay components. 12.25%+2% load or 20% rise demand doesn't include pension revision.

We have in a couple of days twitted to all important Cabinet Ministers including Finance Minister & Hon'ble Prime Minister to look into banking, leading to turmoil. Thank God, after lapse of 30 months, a memorandum is planned out by UFBU, to be sent to Hon'ble PM, now when Bank men are pushed in strike. Truce efforts should always be made before start of war. Truce effort during war is just showing white flag. Hon'ble PM shall not be given natural time to appraise the memorandums that he will receive in next fortnight. One Retirees Union is also now on signature campaign.

However, we at Forum of Bank Pensioner Activists have been strategically in our endeavors doing such things, which in fact established Unions should have done. We were quite accurate, timely and swift in our Post Card Campaign to Prime Minister from 20.12.19 to 20.1.20. Our Activists pumped 60/70000 cards every day in PMO month long. Our Activists sent memorandum on mail to Hon'ble PM/FM on 17.1.2020 between 1 to 3 p.m. which filled/chocked 4 mail IDs boxes. Now, these established Unions are doing the same task, with fragile manner. Bank men must look into bankruptcy status of their Unions. Are they running the Unions or just the Clubs of elites?

Wait & watch.

( J. N. Shukla)
National Convenor,
Forum of Bank Pensioner Activists,
Prayagraj 211 004

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