Sunday, January 19, 2020

बैंकिंग उद्योग में बढ़ती अशांति

आदरणीय डा.पी.के.मिश्र,
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव
भारत सरकार
नई दिल्ली

सादर विनती है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के संज्ञान में, उनको संबोधित पत्र लाने की कृपा हो, जो इस पत्र के साथ अग्रसारित है.

हम प्रधानमंत्री से मुखातिब होकर बैंकिंग उद्योग के वेतन और सेवा शर्तों पर एक स्थायी विजन डाकुमेंट प्रस्तुत करना चाहते हैं. हो सकता है हमरा विजन कोई स्थायी समाधान दे सके.

कृपया अनुग्रहीत करें.

सादर,

(जे. एन.शुक्ला)
राष्ट्रीय कंवेनर
फोरम आफ बैंक पेंशनर एक्टिविस्ट्स
प्रयागराज
19.1.2020
9559748834


श्री नरेन्द्र मोदी जी,
प्रधानमंत्री,
भारत सरकार
नई दिल्ली

आदरणीय महोदय,

             बैंकिंग उद्योग में बढ़ती अशांति

सादर कुछ कहने लिए आपके बहुमूल्य समय कि अनुमति चाहता हूं.

कुछ कारण हैं और कुछ राजनीतिक मंतव्य भी, दोनों, जो मिलकर बैंकिंग उद्योग को अशांत करनें को समुद्यत हैं. सरकार का मूक-दर्शक बने रहना कदाचित उचित नहींं है. जो कारण हैं, उन पर उचित पहल और दृष्टिकोण की जरूरत है. और, यदि कारणों का निस्तारण हो जाता है तो राजनीतिक मंतव्य धरा का धरा रह जायेगा.

अशांति के मूल में कर्मचारियों/अधिकारियों के वेतन, पेंशन, सेवाशर्तों मे सुधार का विषय है, जो 1.1.2017 लंबित है. सरकार ने जनवरी, 2016 में ही वेतन वार्ता शुरू करने का आदेश दिया था, जिसका समय से बैंकों ने अनुपालन नहीं किया, वरना नया समझौता कबका हो गया होता. पर, बैंकें क्यों चुप बैठी रहीं, इस पर सरकार को गौर करना चाहिए. हम तो यही कहेंगे बिलंब से समझौता होने पर यूनियनों को  फायदा दिखता है, क्योंकि वे एरियर से लेवी वसूलते हैं. अत: उनका चुप बैठे रहने के पीछे उनका हितलाभ है. बैंकों ने इस विषय में सरकार के आदेश की अवहेलना करते हुए यूनियनों का साथ दिया, ताकि समझौता बिलंब से हो और यूनियनों को लेवी मिले. और, 26 महीनेंं बीत चुके हैं और समझौता अभी तक नहीं हो सका है. गतिरोध बढ़ गया है. हड़ताल की ताल ठोंकी जाने लगी है. एक बड़ी राजनीतिक वजह बेवजह बैंंकरोंं ने पैदा कर दी है.

हमारा मानना है कि सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए. स्वामित्व और जिम्मेदारियों का तकाजा भी है कि स्थिति को संज्ञान में लेते हुए आवश्यक कदम उठाये जायें.

मूल विषय (1) वेतन, (2) पेंशन, (3) भत्ते व शेवाशर्तों मे सुधार और (4) रिटायरीज के स्वास्थ्य सुरक्षा का है.

वेतन, भत्ते व सेवा शर्तों पर पिछले समझौते में 15% वृद्धि दी गई थी. यल.आई.सी. को 17.5% वृद्धि देकर बैंकर्स ने बैंककर्मियों के साथ नाइंसाफी की थी. 2.5% की कमी की भरपाई का अधिकार बैंककर्मियों का बनता है. अर्थात अगले पांच वर्षों तक अगर यल.आई.सी. का वेतन 17.5% रखते बैंककर्मियों को 20% वेतन वृद्धि दी जाये तो किसी तरह से भरपाई हो सकेगी. और, यूनियनें इतना ही मांग रही हैं.

पेंशन के विषय में रिजर्व बैंक पेंशन रिवीजन प्रकरण में सरकार ने बाम्बे हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि यदि रिजर्व बैंक की पेंशन रिवीजन की मांग मान ली जाती है तो इससे अन्य बैंककर्मियों द्वारा भी पेंशन रिवीजन की मांग उठेगी. बहरहाल सरकार ने 1.4.2019 से रिजर्व बैंक पेंशन का रिवीजन कर दिया और इस विषय की फाइल में अन्य बैंकों के पेंशन एग्रीमेंट दिनांक 29.10.1993 का जिक्र किया गया है, जो औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत एक विधिसम्मत समझौता है और आज भी लागू है. इस समझौते में स्पष्ट शब्दों में लिखा है, "पेंशन रिवीजन सहित अन्य शर्तें रिजर्व बैंक पेंशन.नीति की तरह होंगी." अत: जब सरकार ने रिजर्व बैंक पेंशन का रिवीजन कर दिया है तो समझौते कि उपरोक्त शर्त के अनुपालन में अन्य बैंक पेंशनरों की पेंंशन रिवाइज करने में बैंकर्स या सरकार को कोई हिचक नहीं होनी चाहिए. बाम्बे हाईकोर्ट के समक्ष हलफनामा, रिजर्व बैंक पेंंशन फाइल में 29.10.1993 के समझौते का उल्लेख तथा सरकार द्वारा रिजर्व बैंक पेंशन के रिवीजन के बाद अन्य बैंककर्मियों के पेंशन रिवीजन पर कोई सवाल बनता ही नहीं. बैंकें सरकार की स्वामित्व की हैं, कोई सेठसाहूकार की नहीं, जो कुछ देने में आनाकानी करे.

प्रधानमंत्री जी, बैंककर्मीं आर्थिक मोर्चे के आपके इमानदार सैनिक हैं. जो आदेश दिया, बैंककर्मियों ने उसे अपना दायित्व और कर्तव्य मान कर किया. डिमोनेटाइजेशन, मुद्रा लोन, जनधन योजना, बीमा जन जन तक पहुंचाया. आपने प्रशंसा भी की.

सवाल जीवनयापन और आजीविका का है, बैंककर्मियों को उनके कार्य, जोखिम और जिम्मेदारी के अनुरूप वेतन और सुविधाएं दी जायें. पेंशनरों की पेंशन जब से  बनी है, तबसे कभी रिवाइज ही नहीं हुई है, क्योंकि रिजर्व बैंक की पेंशन रिवाइज नहीं हुई थी. अब हो गई है तो इनकी भी हो. सरकार ने स्वास्थ्य बीमा को वेलफेयर फंड से देने का आदेश  24.2.2012 को ही दिया था, जिसका बैंकर्स आज तक अनुपालन नहीं कर रहे हैं डी.यफ.एस. इसका अनुपालन सुनिश्चित कराये।

आपसे विनम्र आग्रह है बैंककर्मियों की उपरोक्त मांगों पर एक कम्पोजिट और काम्प्रीहेंसिव समझौता तुरंत हो और बैंकों को बेवजह की अशांति से बचाया जाये.

सादर,

(जे. एन. शुक्ला)
राष्ट्रीय संयोजक,
फोरम आफ बैंक पेंशनर एक्टिविस्ट्स
प्रयागराज 211 004
18.1.2020
9559748834

प्रति:

श्रीमती निर्मला सीतारमण,
आदरणीय वित्तमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली

-सूचनार्थ एवं विचारार्थ

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