If you want to succeed in life you should read, watch and listen only success stories and keep away from all negative news & information related to failures. There is an old saying, we become what we eat. If we consume waste food, our physical health gets affected and we become sick. Similarly if our mind consumes bad information we invite many more dangerous health problems, disturb peace and cause disharmony in human relations. Food is diet for our body and information is for our mind and emotions. Food decides shape and power of body whereas mental diets decides health of body and mind both.
If you want mental peace and stability, peace in family and peace in the country, please do not watch debates on TV. You should listen news during afternoon , that too only once. Similarly mobile is purchased for better communication with distant persons. And internet helps us making a tour of any corner of earth and worldly information. There is heaven and hell on this earth only. We are in heaven or hell depends on how we use our available resources. It is our choice we can choose mobile and internet for making our life energy more powerful.
Discipline is automatically imbibed by children if elders are perfectly and truly disciplined. If elders use mobiles for increasing knowledge children too follow it. On the contrary if elders waste time on mobile and TV in useless chats and watching undesirable materials, youngers follow it in greater proportion.
If elders watch dirty debates on TV whenever they are free and sometimes even causing loss to their normal works, juniors overstep them and try to waste their valuable time in watching waste materials of their choice. In such case elders do not have moral power to restrain children watching dirty and undesirable materials. It is important to mention here that TV provides you only negative information with negligible proportion of positive information.
Life energy of children has to be saved, used and increased for constructive work, in making career bright, in helping others and other good jobs which society expects from them. It is duty of elders to help children in stopping and protecting youngsters from waste of life energies in misuse of Mobile, internet and TV. In modern era, virus of misuse of these tools have spread like epidemic. Need of the hour is to inculcate good practices in children and try to keep them away from evil inputs.
It is also true that mobile, internet and TV are source of several good information too, they keep us abreast of all developments taking place in the world and they are very much helpful in enlarging and modifying our existing knowledge. In the past people used to say that wealth, wine and woman leads to evil activities and are source of sin too. Similarly mobile, Internet and TV are leading new generation boys and girls to evil zone.
We cannot teach total stoppage and total avoidance of these tools from on life of new generation kids and youngsters. But a little effort and motivation from elders may help in regulating use of these tools of advanced technology.
Energy saved is energy produced.
Danendra Jain
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Story collected from Whatsapp is posted below
मेरी पत्नी ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए और एक छोटा सा गार्डन बना लिया।
पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं, नींबू के पौधे में दो नींबू भी लटके हुए हैं और दो चार हरी मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई।
मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस का जो पौधा गमले में लगाया था,उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी।
मैंने कहा तुम इस भारी गमले को क्यों घसीट रही हो?
पत्नी ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं।
मैं हंस पड़ा और कहा अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो।
इसे खिसका कर किसी और पौधे के पास कर देने से क्या होगा?"
_*पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है।*
इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा।
पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।"
यह बहुत अजीब सी बात थी। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं।
मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे। हालांकि मां के जाने के बाद सोलह साल तक वो रहे, लेकिन सूखते हुए पौधे की तरह।
मां के रहते हुए जिस पिताजी को मैंने कभी उदास नहीं देखा था, वो मां के जाने के बाद खामोश से हो गए थे।
_*मुझे पत्नी के विश्वास पर पूरा विश्वास हो रहा था।*_
लग रहा था कि सचमुच पौधे अकेले में सूख जाते होंगे।
बचपन में मैं एक बार बाज़ार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के जार में पानी भर कर रख दिया था।
मछली सारा दिन गुमसुम रही।
मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वो चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमना सा घूमती रही।
सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ
गया, मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिनों तक वो ऐसे ही रही, और एक सुबह मैंने देखा कि वो पानी की सतह पर उल्टी पड़ी थी।
आज मुझे घर में पाली वो छोटी सी मछली याद आ रही थी।
बचपन में किसी ने मुझे ये नहीं बताया था, अगर मालूम होता तो कम से कम दो, तीन या ढ़ेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वो प्यारी मछली यूं तन्हा न मर जाती।
बचपन में मेरी माँ से सुना था कि लोग मकान बनवाते थे और रौशनी के लिए कमरे में दीपक रखने के लिए दीवार में इसलिए दो मोखे बनवाते थे क्योंकि माँ का
कहना था कि बेचारा अकेला मोखा गुमसुम और उदास हो जाता है।
मुझे लगता है कि संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं।
_*आदमी हो या पौधा, हर किसी को*
_*किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है।*
आप अपने आसपास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिए, उसे मुरझाने से बचाइए।
अगर आप अकेले हों, तो आप भी किसी का साथ लीजिए, आप खुद को भी मुरझाने से रोकिए।
_*अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है।* गमले के पौधे को तो हाथ से खींच कर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए जरुरत
होती है रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की।
अगर मन के किसी कोने में आपको लगे कि ज़िंदगी का रस सूख रहा है, जीवन मुरझा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए।
खुश रहिए और मुस्कुराइए। कोई यूं ही किसी और की गलती से आपसे दूर हो गया हो तो उसे अपने करीब लाने की कोशिश कीजिए और हो जाइए
हरा-भरा।
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