Monday, December 23, 2019

Let Us Join The Campaign And Set An Example Of New Idea


ONE TEAM- ONE THEME

गर्व और पूर्वाग्रह, सिर्फ आग्रह NEITHER PRIDE  NOR  PREDILECTIONS, ONLY  APPEAL

हम 'आह' हैं. हम निकलते हैं. हम भरते हैं. हमें कोई मार नहीं सकता. 'हम' कभी बेकार नहीं जाते. 'आह' ईश्वर को भी स्वीकार नहीं होती. अनीश्वरवादी होने का पाखंड कोई कितना भी कर ले, लेकिन श्रृष्टि के संचालन और निरंतरता में ईश्वरत्व का बोध तो मूर्ख में भी होता है, तो फिर एक सामान्य आदमी का क्या.! यूनियनों के दंभी नेता पेंशनरों के साथ अन्याय चाहे जितना कर लेंं, लेकिन पेंशनरों के हक को मार नहीं सकते. सत्य परेशान होता है, पर पराजित नहीं होता. पेंशनरों का हक जायज है, उस पर कुंडली मार कर बैठे नेताओं को एक एक दिन इसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा.

मुई खाल की धुकनी (भाथी) की सांस से लोहा राख हो जाता है, पेंशनर तो जीवित हैं, यह बात अलग है कि उम्र के इस पड़ाव पर, जोश-जज्बा पहले जैसा नहीं है, लेकिन उनमें 'आह' तो है! यही उन्हें संघर्ष का ऊर्जा देगी।

हम पेंशनरों का एक छोटा सा अभियान है, जिसका मक्सद बस इतना है कि (1) बैंकिंग फ्रैटर्निटी को पता चले कि हम भी उन्हीं के हिस्सा हैं और हम थोड़ा बुरी हालत में हैं, जिसके लिए उनके नेता जिम्मेदार हैं, 
(2) सेवारत पेंशनरों को बताना है कि वे भी पुरानी पेंशन की पात्रता रखते हैं और आज जो हम पर बीत रही है, वही उन पर कल बीतेगी, (3) इस समय हम पेंशनरों से हमदर्दी रखने वाले कुछ लोग बैंकों में हैं और कुछ लोग यूनियनों में भी हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी आयेगा जब बैंकों में केवल एन.पी.यस. के लोग होंगे और यूनियनों में भी एन.पी.यस. के साथी नेतृत्व कर रहे होंगे, (4) तब पेंशनरों का नाम लेनेवाला कोई बैंक में होगा और यूनियनों में और (5) ऐसे में पुरानी पेंशन नीति में पेंंशन रिवीजन का प्रावधान अगर अभी नहीं हुआ तो आगे कभी नहीं होगा. यह लड़ाई वर्तमान पेंशनरों की तो है ही साथ ही साथ उन पेंशनरों की भी है, जो आगे जुड़ने वाले हैं।

अपनी तो जैसे तैसे, थोड़ी ऐसे या वैसे कट जायेगी 
आपका क्या होगा जनाबे-आली आपका क्या ... 

यह कोई मजाक का विषय नहीं है, बल्कि गंभीर चिंतन का विषय है, लेकिन यूनियनें और उनके नेता मदमस्त हाथी की तरह निरंकुश होकर पूरी बैंकिंग फ्रैटर्निटी को कुचल रहे हैं। 

2010 से पुरानी पेंशन स्कीम समझौता बंद कर दिया गया. कानूनी समझौता था, उसे बिना सहमति के रद्द या बदला नहीं जा सकता था। पर सहमति से पुराना समझौता रद्द किया गया. कोई तो बताये, इतिहास में कहीं कभी ऐसा हुआ हो कि कोई अच्छी सुविधा को सहमति से बंद किया गया हो? बैंक या सरकार चाहती तो मनमानी करती और बंद कर देती, हम लड़ते, विरोध करते, हार जाते, यही ? हथियार तो डालते! लेकिन यूनियनों ने ऐसा किया. 

यूनियनों ने ऐसा क्यों किया और इसके बदले किसको क्या कंपेंंसेसन मिला, एक बड़ा सवाल आज भी अनुत्तरित है. 

केन्द्र सरकार ने 2004 में अपने कर्मचारियों की नियमावली में बदलाव कर पुरानी पेंशन की जगह एन.पी.एस. लागू किया. ऐसा उसे करने का हक था. सरकार बजट से पेंशन देती है, जो कर से आती है. बैंक पेंशन बैंकों के रेवेन्यू से नहीं आती और वह सरकारी पेंशन की तरह नहीं थी, बल्कि दो पक्षों के बीच हुए समझौते के अनुसार थी. यह स्पष्ट है कि इसके बदले कर्मचारियों, अधिकारियों को बाबाजी का ठुल्लू मिला. इसी समझौते में दूसरे पेंशन विकल्प का समझौता हुआ. ऐसा नहीं है कि दूसरे पेंशन विकल्प मे कोई रियासत दी गई हो. कठोर से कठोर शर्तें थोपी गई और एक बड़ी कीमत देने के बाद दूसरा विकल्प मिला. 

सबको मालूम है कि पेंशन रिवीजन का मामला भी मांगपत्र में था. ऐसा भी नहीं है कि पुरानी पेंशन बंद करने के बदले पेंशन रिवीज़न ही कर दिया गया हो. तो सवाल उठना लाजमी है कि पुरानी पेंशन नीति को रद्द करने के अंदरखाने क्या था? हद तो तब हो गई, जब  नौवें समझौते की स्याही सूखी भी नहीं थी कि दशवें समझौते के मांग पत्र में पुरानी पेंशन की बहाली की मांग रख दी गई. अब इसे नेताओं का दीवालियापन कहा जाये या बैंककर्मियों की त्रासदी पूर्ण स्थिति? अगर पुरानी पेंशन महज अगले दिन अपरिहार्य हो गई तो एक दिन पहले समझौता करते समय कितनी दारू पी रखी थी या किसने कितना माल लिया था, जानने का हक तो बनता है.

बहरहाल आज नहीं तो कल कोई नेता भी मुंह फाड़ेगा, तबतक मुंह में कीड़े बिलबिला रहें होंगे!

विषय पर आते हैं.  सूचना है, देश के कोने-कोने से, पेंशनर प्रधानमंत्री को अपना हर दूसरे दिन कार्ड भेज रहे हैं. एक-दो दिन में प्रधानमंत्री कार्यालय में हमारे कार्ड दस्तक देना शुरु कर देंगें.

मित्रों, हम लोग यूनियन हैं और नेता.  हम केवल एक बैंककर्मी भर हैं और यह हमारा बेहद निजी प्रयास है. हम यह कदम तब उठा रहें हैं जब हमें यूनियनों से बार-बार निराशा हाथ लगी और हमें लगा कि हमारी भावनाओं को नजरंदाज किया जा रहा है, हमारी मुफलिसी का मजाक उड़ाया जा रहा है और बार-बार आश्वासन देकर हमें नकार दिया जा रहा है, दुत्कार दिया जा रहा है. हम यह कदम अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए उठाये हैं. संघर्ष करते मरने में हमें फक्र होगा. हम ऐसे ही हार मानने से रहे.

गुज़ारा हुआ ज़माना,  आता नहीं दोबारा हाफ़िज खुदा तुम्हारा..

जो गुज़र गये, वे लौटकर नहीं आयेंगे. उनसे माफी मागते हैं

हमारी क़सम है, हमको तुम बेवफा ना कहना
तूफान है जिंदगी का अब आखिरी सहारा!



जैसा कि प्रोग्राम दिया गया है और चल रहा है, हमें हर दूसरे दिन एक पोस्ट कार्ड प्रधानमंत्री को भेजना है. पोस्ट कार्ड का संदेश भी प्रसारित किया गया है और आवश्यक दिशानिर्देश भी. दोबारा यहां नीचे दिया जा रहा है.

कृपया लगे रहें.

शुभकामनाओं के साथ

(जे.एन.शुक्ला) राष्ट्रीय संयोजक फोरम आफ बैंक पेंशनर एक्टिविस्टस्  प्रयागराज  24.12.2019  mob9559748834

                      POST CARD CAMPAIGN
           Some Suggestion to Smoothen Process

कार्यक्रम के अनुसार महीने भर के अभियान में हर दूसरे दिन एक कार्ड भेजना है, अर्थात महीने भर में एक आदमी से कुल 15 कार्ड. इसके लिए सबसे बेहतर निम्नवत होगा:
As per program, in month long drive, One Card every alternative day, means 15 Cards in all from one Person.
Best way will be as under:

1. कार्ड ढेर/बल्क में खरीदें. 15/15 कार्ड का पैक बनायें, रबर बैंड से बांधें.
1. Purchase Post Card in bulk. Bundle them in 15 lot bound by rubber band.


2. अब एक पैक 15 कार्ड का लें, एक साथी से सब पर हस्ताक्षर, नाम, बैंक का नाम, स्थान कार्ड के निचले भाग पर लें. सभी कार्ड को फिर रबर बैंड में बांधें.
2. Now get one bundle (15 card pack) signed with name, Bank, station on bottom side. Now bind them with rubber band.


3. अब, दिया गया संदेश हिन्दी या अंग्रेजी में हस्ताक्षर के ऊपर लिखें. दूसरी तरफ प्रधानमंत्री का पता लिखें. अब कार्ड तैयार है. दूसरे दिन एक कार्ड निकालें डेट डालें और पोस्ट बाक्स में डालें.
3. Now, you may write requisite message in Hindi or English as per draft above signature. On reverse write PM address. Now card is ready. Take one from pack, put date and drop in Post Box.

4. पोस्ट कार्ड की कीमत हर साथी से लें. और, प्रेरित करें कि  लोग जरूरतमंद साथियों को, इस कार्य के लिए कार्ड दान करें. एक्टिविस्टस् को केवल श्रम और समय देना है. इसमें औरों का भी सहयोग लें.
4. Please recover Post Card cost from every person. And, motivate people to donate Card for needy people, for this purpose. Activists need to give time and labour only. In this task, enlist support of others.

5. यह अभियान पेंशन रिवीजन का है, अत: कर्मचारियों/अधिकारियों से सहयोग और समर्थन लें. उन्हें कृतज्ञ भाव से सामिल करें. पेंशन सुधार से उनका भी नाता है.
5. This campaign is of Pension Revision. Therefore, please seek participation and support of employees & officers. Enlist their support from gratitude. Pension Revision relates to them.

6. किसी के उकसावे में मत आयें, हमारा किसी भी कर्मचारी, अधिकारी या पेंशनर साथियों से किसी तरह का मतभेद नहीं है. हम कोई यूनियन नहीं है और हम चाहते हैं कि जो युनियनें हैं, वे मजबूती से काम करें और  कार्यरत तथा रिटायरीज के मसलों को और कारगर ढंगसे निपटायें.
6. Please do not come in provocation of anyone, we don't have any difference with working or retirees staff. We are not Union and we just want that the unions work with powerfully and resolve the issue of working and retirees more effectively.

Card Specimen.

Respected Prime Minister,
Govt. Of India New Delhi

Sir,

I am a Bank Pensioner. My Pension has never been revised, since fixed.

My Pension is as per RBI Pension Policy. Govt. had since revised RBI Pension, my Pension please be revised accordingly.

Regards,

Signature
Name
Address
Date.....

Address:

The Prime Minister,
Govt of India
South Block, Raisina Hill
New Delhi 110 011
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आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
भारत सरकार, नई दिल्ली

मदोदय,

मैं एक बैंक पेंशनर हूं. मेरी पेंशन जब से बनी है, तबसे एक बार भी पुनरीक्षित नहीं हुई है.

मेरी पेंशन रिजर्व बैंक पेंशन नीति की तरह है. सरकार ने रिजर्व बैंक पेंशन का पुनरीक्षण किया है, हमारी पेंशन को तदनुसार पुनरीक्षित करने की कृपा की जाये.

सादर,

हस्ताक्षर
नाम
पता
तारीख
ONE TEAM- ONE THEME

Monitoring System of Campaign

1. Our Campaign/Movement is Ceaseless-Seamless, difficult to know quantum, compliance and accomplishments. It's voluntary and self help program, dedicated to countless nameless, faceless valiants of Bank Employees movement, dead or alive in job or retired. We are friend to all and enemy to none, neither the management, nor the government nor established trade Unions, provided they are on right path and work in the interest of nation & people.

2. Operational methodology is that you are an Activist on our role. We guide, advise and monitor you. All those who are on your contact list, individual or group, they are your Activists. You guide, advise and monitor them. Similarly, your Activists shall have similar role and activities, akin to us and so they and they onward. Suggestions and feed back shall move upward to reach at appex level for final decision. Suggestions shouldn't be circulated to group members. This discipline shall help to have uniformity in  organizational decisions and approach.

3. "One Team-One Theme" is basic idea.
It's paperless, moneyless operation. Motive is to afford cost one self, if any. We shall look into any other options, if that's necessary and shall device operational strategies accordingly, project wise.

Let us join the Campaign
And set an example of new idea..

(J. N. Shukla) National Convenor, Forum of Bank Pensioner Activists, PRAYAGRAJ
20.12.2019   Mob9559748834

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