Wednesday, February 6, 2019

Extradition of Vijay Malla

ब्रिटेन की न्याय व्यवस्था और मानदंडों के आलोक में माल्या का प्रत्यर्पण कोई आसान काम नहीं था.  प्रदीप सिंह जी का निम्न लेख शमें इसलिए  पढ़ना चाहिए कि यह प्रत्यर्पण से जुड़ी प्रक्रियाओं और पेचिन्दीगियों को  उजागर करता है.

और, यह भी देखने और समझने में आसानी होगी कि हमारी न्याय न्यायपालिका किन मानदंडों और प्रक्रियाओं के तरत काम करती है. हमारे न्यायालय गांव की पंचायतों कि तरह होते जा रहे हैं जहां अपनो- परायों में भेद करते हुये न्याय होता है.

माल्या का प्रत्यार्पण
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◆ प्रदीप सिंह

विजय माल्या के ब्रिटेन से सम्भावित भारत  प्रत्यार्पण  की  घटना कितनी महत्वपूर्ण है - इसका अनुमान अधिकांश भारतीयों को नहीं है । ऐसे मामलों में भारतीयों की जानकारी का स्रोत भारतीय मीडिया है । और भारतीय मीडिया की बौद्धिक और चारित्रिक दरिद्रता  की बात किसी से छुपी नहीं है ।

बात माल्या की कम है प्रत्यार्पण की ज्यादा है । पर नारेबाजों के देश में ऐसी बातों पर कौन ध्यान देता है ?  मीडिया वालों ने तो यह तक पता करने का प्रयास नहीं किया कि माल्या के पास अपील की सहूलियत किस हद तक है और इसमें कितना समय लग सकता है ।  हमें तो भारत के बारे में ही कुछ पता नहीं तो ब्रिटेन के न्यायतंत्र के बारे में जानकारी की बात सोचना ही हास्यास्पद है ।

मैं यहाँ सुविधा के लिए बिंदुवार अपनी बात रखूँगा ।

१. ब्रिटेन के न्यायतंत्र की रचना ऐसी है कि ब्रिटेन से किसी को किसी अपराध में दूसरे देश में प्रत्यार्पित करवा पाना  करीब करीब असम्भव है । न्यायतंत्र अभियुक्त के पक्ष में loaded है । प्रत्यार्पण के लिए बहुत कठिन बाधाओं से गुज़रना पड़ेगा । न्यायिक प्रक्रिया भारत की तरह ढीली ढाली नहीं है, पुख्ता प्रमाण माँगती है । फिर मानवाधिकार के बहुत ऊँचे मानदंड हैं जिनकी माँग पूरा किए बिना सफलता की कोई सम्भावना नहीं ।

२. ब्रिटेन से भारत के प्रत्यार्पण की एक भी मिसाल नहीं है ।

३. ब्रिटेन से अमेरिका जैसे देश में प्रत्यार्पण की बहुत कम मिसालें हैं । अबू हामजा जैसे कुख्यात आतंकवादी को ब्रिटेन से अमेरिका प्रत्यार्पित करवाने में वकीलों को लोहे के चने चबाने पड़े ।

४. अबू हाज़मा के अमेरिका प्रत्यार्पण में तक़रीबन दस वर्ष  लग गए । ध्यान रहे कि ऐसा इसके बावजूद हुआ कि अमेरिकी जाँच व्यवस्था, उनके काग़ज़ पत्तर, सबूत के स्तर और भारतीय काग़ज़ पत्तर के स्तर का भेद जमीन और आसमान का भेद है ।

५. माल्या के मामले में दो वर्ष लगे हैं ।

६. भारतीय जाँच एजेंसियाँ अक्षमता और ढील ढाल के लिए मशहूर हैं । आरुषि वाला मामला याद होगा । सीबीआई ने आदमी के डीएनए की जगह जानवर का डीएनए भेज दिया था । सारे सबूत ही मिटा दिए थे । यह सब ब्रिटेन में नहीं चलेगा । जज बिना सुने ही मुक़दमे ख़ारिज करेगा ।

७.यह कोई मामूली बात नहीं है कि ऐसे घटियापन और अक्षमता के लिए कुख्यात भारतीय जाँच तंत्र ने ऐसे पुख्ता watertight प्रमाण दिखाए जिन्होंने ब्रिटेन जैसी सख्त न्यायिक प्रक्रिया वाले देश के ऊँचे मानकों को संतुष्ट किया । यह अपने आप में ? बेमिसाल और ऐतिहासिक घटना है ।

८. ब्रिटेन में भारतीय न्यायतंत्र की तरह अपील दर अपील, सुनवाई दर सुनवाई, छोटी बेंच बड़ी बेंच का अंतहीन जाल नहीं है जो पुश्त दर पुश्त चलता रहे । ब्रिटेन में सर्वोच्च न्यायालय जूता और सैंडिल की परिभाषा तय करने के लिए आधी रात को सात जजों की बेंच नहीं बिठाता । और न्यायालय की अंतहीन सीढ़ियाँ हर कदम पर फिर से नई सुनवाई नहीं शुरु करतीं ।

९. सर्वोच्च न्यायालय सिर्फ बहुत बड़े महत्व के, संवैधानिक टाइप के मसले ही सुनता है ।

१०. विजय माल्या के पास अपील का अब सिर्फ एक ही पायदान है - उच्च न्यायालय । उच्च न्यायालय के ऊपर अपील की कोई व्यवस्था नहीं । पहले शायद European  court of human rights तक जाने की सुविधा रही होगी, अब Brexit के कारण शायद वह रास्ता भी बंद होगा ।

११. ब्रिटिश  हाई कोर्ट भारतीय अदालतों की तरह फिर से क ख ग घ से सुनवाई शुरु नहीं करेगा । वह सब निचली अदालत में पहले ही हो चुका है । बचाव पक्ष को नई और ताज़ा दलीलें देनी होंगी । और यह सुनवाई सम्भवत: एक दिन में निपट जाएगी ।

१२. हाई कोर्ट द्वारा निचली अदालत के फ़ैसले और उस पर गृह मंत्रालय की मुहर के बाद उच्च न्यायालय द्वारा इस फ़ैसले  का निरस्त होना क़रीब क़रीब असम्भव है ।

१३. मूर्खों को समझाने के लिए यह भी कहना पड़ेगा कि इस सारी प्रक्रिया का भारतीय चुनावों से कोई सम्बंध नहीं है ।

१४. अनुमान लगाया जा सकता है कि यह सारी प्रक्रिया ६ सप्ताह से तीन महीने के अंदर पूरी हो जानी चाहिए ।

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सवाल तो हम पूंछेंगे ही:
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सारधा और रोज वैली चिट फंड ने 22 लाख लोगों से 20000 करोड़ ठगा, 2013 में SIT का गठन ममता सरकार ने किया और जांच का मुखिया इन्ही राजीव कुमार को बनाया, जिसे आज ममता दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुलिस अधिकारी होने का सर्टिफिकेट दे रहीं हैं.

फंड घोटाला पक्षिम बंगाल से इतर कई अन्य राज्यों तक फैला था और जांच को लेकर खेल हो रहा था, अत: गुहार सुप्रीम कोर्ट तक गई कि मामला गंभीर है जिसमें लीपा-पोती होती दिख रही है, अत: जांच सीबीआई को सौपी जाये. सुप्रीम कोर्ट ने भी जरूरी समझा और 2014 में जांच का कार्य सीबीआई को सौंपा.

अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि

1. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के बाद क्या जांच की प्रगति कि कोई जानकारी ली?

2. सारधा और रोजवैली कंपनियों के मालिकों की संपत्तियां जब्त की गईं, पर क्या उन्हें बेच कर घोटाले के शिकार लोगों को कोई राहत पहुचाने का काम हुआ?

3. सुदीप्त सेन और उनकी सहयोगी देवजानी जिस लाल डायरी और पेन ड्राइव की बात सीबीआई को बताईं  तथा जिसे राजीव कुमार अपने कब्जे में लिए थे, क्या राजीव कुमार ने उस लाल डायरी और पेन ड्राइव को सीबीआई को सौंपा? ( लाल डायरी और पेन ड्राइव में सारे घोटाले का ब्योरा है, जिसे राजीव कुमार ने सीबीआई को सौंपा नहीं और इसी के लिए सीबीआई उनसे पूंछ-तांछ करने  के लिए चार बार सम्मन किया और न आने पर रविवार को उनके आवास जाकर पूछना चाहती थी)

4.क्या यह सत्य नहीं है कि राहुल गांधी इस मामले में बयान दिये थे कि जिन लोगों ने सारधा घोटाले को अंजाम दिया है, उन्हें ममता जी बचा रहीं हैं और वही गांधी जब  ममता सीधे आरोपी को बचाती दिख रहीं हैं तो उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने की बात कह रहे हैं, इसे अवसरवादिता न माना जाये?

5. क्या ममता के साथ अन्य विपक्षी नेताओं का इस मामले में उतरना अवसरवाद का निकृष्टतम उदाहरण नहीं है, जहां संदिग्ध अपराधियों पर कार्यवाई करने पहुंची केन्द्रीय जांच बल को कैद कर लिया गया हो, उनके साथ मारपीट की गई हो?

6. क्या ममता का केन्द्रीय सुरक्षा बलों को केन्द्र सरकार के आदेश को न मानने को उकसाना, भारत सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काने का काम नहीं है? क्या इसे म्यूटिनी का कदम न माना जाये? (स्मरण दिलाना होगा कि जय प्रकाश नारायण ने ऐसा ही भड़काऊ बयान इंदिरा सरकार के खिलाफ दिया था और उसी दिन इंदिरा सरकार ने देश में आपातकाल लगा दिया था और जय प्रकाश क्या संपूर्ण विपक्ष और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया था.)

7. क्या एक आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार की इस तरह से सुपीरियर ऐजेंसी के काम काज में सहयोग न करना, उनके साथ मारपीट और गिरफ्तार करवाना सेवा नियमावली का उलंघन नहीं है? क्या उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता?

8. क्या ममता सरकार का योगी जी  और अमित साह के हेलीकाप्टर को उतरने न देना, भारत के सघीय स्वरूप का अतिक्रमण नहीं है?

9. क्या  केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को किसी अपराधी की धरपकड़ करने, छापा मारने, छानबीन करने, पूछताछ करने या उसे गिरफ्तार करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी चाहिए? हो सकता है राज्य का कोई बड़ा अधिकारी, राजनेता, मंत्री,  आतंकी या देशद्रोही हो और उसके कब्जे में जरूरी रिकार्ड हों?

10. अगर सारधा घोटाले से ममता बनर्जी का कोई लेना-देना नहीं है तो वह कोलकता के आयुक्त का बचाव अपने कार्यकर्ता की तरह क्यों कर रही हैं?

11. ममता ने तब क्यों ऐसा कदम नहीं उठाया, जब टीएमसी के  सांसद तक इस मामले में उठाये गये थे?

12. सबसे गंभीर सवाल, एक पुलिस आयुक्त, आई पी एस अधिकारी ममता के साथ धरने पर बैठ कर, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अधिकारियों के बुलावे पर जांच में न उपस्थित होकर, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अधिकारियों को दबोचना और उन्हें गिरफ्तार कर थाने ले जाकर क्या संदेश देना चाहता है? वह संविधानेतर कोई तानाशाह है? वेस्ट बंगाल कोई अलग देश है, वहां भारत सरकार का कानून नहीं, ममता का बही खाता चलता है?

13. मीलार्ड, कुछ तो देखो! कभी का बेस्ट बंगाल अव बंगाल तो नहीं हो रहा है? कहीं महाबंगाल की पटकथा तो नहीं लिखी जा रही है?
J. N. Shukla
Prayagraj, 6.2.2019

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