एक नवयुवती बस में बैठी, अगले स्टॉप पर एक दबंग और क्रोधी बूढ़ी माँ आईं और उसके बगल की सीट पर बैठ गईं। उन्होंने अपने कई बैग युवती से सटाकर रख दिए।
बूढ़ी महिला के दूसरी ओर बैठी महिला परेशान हो गई, उसने युवती से कहा कि वह बूढ़ी महिला से क्यों नहीं बोलती या कुछ कहती।
युवती ने मुस्कराते हुए जवाब दिया: "हर बात पर असभ्य व्यवहार या बहस करना आवश्यक नहीं, मैं अगले स्टॉप पर उतरने वाली हूं।"
यह प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है जिसे सुनहरे अक्षरों में लिखी जानी चाहिए:
*हर बात पर असभ्य व्यवहार या बहस करना आवश्यक नहीं, आखिर हमारे साथ की यात्रा है ही कितनी लम्बी!*
अगर हमें यह एहसास हो जाए कि यहाँ हमारा समय कितना कम है; तो व्यर्थ के झगड़े, निरर्थक तर्क, दूसरों को माफ नहीं करना, बात-बात पर असहमति और दूसरों में गलती खोजने वाला रवैया समय और ऊर्जा की बर्बादी का कारण नहीं तो और क्या है?
अगर किसी ने आपका दिल तोड़ा?
शांत रहो, आखिर यात्रा इतनी छोटी जो है।
क्या किसी ने आपके साथ विश्वासघात किया, धमकाया, धोखा दिया या अपमानित किया?
शांत रहें, क्षमा करें, आखिर हमारी यात्रा इतनी कम जो है।
जो भी मुसीबतें हमारे सामने आती हैं, हमें याद रखना चाहिए कि हमारे साथ की यात्रा बहुत छोटी ही है।
इस यात्रा की अवधि कोई नहीं जानता। कोई नहीं जानता कि उनका पड़ाव कब आएगा। हमारी यात्रा एक साथ इतनी कम है कि मालूम नहीं अगले पल क्या होने वाला है।
तो क्यों नहीं, हम अपने दोस्तों व परिवारजनों का ध्यान रखें और अपने काम को संजोएं। आईए, हम एक-दूसरे के लिए सम्मानजनक, दयालु और क्षमाशील हों और यह अहसास हमें कृतज्ञता और उल्लास से भर दें।
अगर मेरे व्यवहार ने आपको कभी कोई चोट पहुंचाई है तो मैं आपसे क्षमा मांगता हूं। यदि आपने मुझे कभी दुख पहुंचाया है, तो मैंने आपको पहले ही क्षमा कर दिया है।
आखिर, हमारी यात्रा एक साथ है ही कितनी!
😊😊
Gita insights for New Year resolutions
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The Bhagavad-gita (18.33)(18.34)(18.35) describes resolution or determination in the three modes of nature: goodness, passion and ignorance. The modes comprise subtle cosmological forces that exert psychological influences on us, thereby impelling us toward certain kinds of action.
When our determination is impelled by the mode of ignorance, the force of destruction dissipates the resolutions even before they materialize. Thus our resolutions remain little more than daydreams.
When our determination is impelled by the mode of passion, the force of creation energizes us to change our externals, but runs out of steam when faced with the internal change necessary to sustain the external change. This makes the change and even the resolution for the change short-lived.
When our determination is impelled by the mode of goodness, the force of sustenance empowers us for inside-out change; it enables us to gain self-mastery and become more mature, responsible and principle-driven human beings. Our internal improvement then kindles external improvement subtly, smoothly and sustainably. What makes this kind of determination unbreakable and inexhaustible is the practice of yoga that enables us to draw strength from the Infinite. The yoga that most easily and effectively connects us with the Supreme is the yoga of devotion, bhakti-yoga.
That’s why our resolution to stick to regular yoga practice underlies our ability to stick to all our other resolutions.
Bhagavad Gita Chapter 18 Text 33
“O son of Prtha, that determination which is unbreakable, which is sustained with steadfastness by yoga practice, and which thus controls the activities of the mind, life and senses is determination in the mode of goodness.”
Bhagavad Gita Chapter 18 Text 34
“But that determination by which one holds fast to fruitive results in religion, economic development and sense gratification is of the nature of passion, O Arjuna.”
Bhagavad Gita Chapter 18 Text 35
“And that determination which cannot go beyond dreaming, fearfulness, lamentation, moroseness and illusion – such unintelligent determination, O son of Prtha, is in the mode of darkness.”
🙏
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