Tuesday, December 11, 2018

Regret _पछतावा_ Near Death

_पछतावा_

आस्ट्रेलिया की ब्रोनी वेयर कई वर्षों तक कोई meaningful काम तलाशती रहीं, लेकिन कोई शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव न होने के कारण बात नहीं बनी।
फिर उन्होंने एक हॉस्पिटल की Palliative Care Unit में काम करना शुरू किया। यह वो Unit होती है जिसमें Terminally ill या last stage वाले मरीजों को admit किया जाता है। यहाँ मृत्यु से जूझ रहे लाईलाज बीमारियों व असहनीय दर्द से पीड़ित मरीजों के मेडिकल डोज़ को धीरे-धीरे कम किया जाता है और काऊँसिलिंग के माध्यम से उनकी spiritual and faith healing की जाती है ताकि वे एक शांतिपूर्ण मृत्यु की ओर उन्मुख हो सकें।
ब्रोनी वेयर ने ब्रिटेन और मिडिल ईस्ट में कई वर्षों तक मरीजों की counselling करते हुए पाया कि मरते हुए लोगों को कोई न कोई पछतावा ज़रूर था।
कई सालों तक सैकड़ों मरीजों की काउंसलिंग करने के बाद ब्रोनी वेयर  ने मरते हुए मरीजों के सबसे बड़े 'पछतावे' या 'regret' में एक कॉमन पैटर्न पाया।
जैसा कि हम सब इस universal truth से वाकिफ़ हैं कि मरता हुआ व्यक्ति हमेशा सच बोलता है, उसकी कही एक-एक बात epiphany अर्थात 'ईश्वर की वाणी' जैसी होती है। मरते हुए मरीजों के इपिफ़नीज़ को  ब्रोनी वेयर ने 2009 में एक ब्लॉग के रूप में रिकॉर्ड किया। बाद में उन्होनें अपने निष्कर्षों को एक किताब “THE TOP FIVE REGRETS of the DYING" के रूम में publish किया। छपते ही यह विश्व की Best Selling Book साबित हुई और अब तक  लगभग 29 भाषाओं में छप चुकी है। पूरी दुनिया में इसे 10 लाख से भी ज़्यादा लोगों ने पढ़ा और प्रेरित हुए।

*ब्रोनी द्वारा listed 'पाँच सबसे बड़े पछतावे' संक्षिप्त में ये हैं:*

1) _"काश मैं दूसरों के अनुसार न जीकर अपने अनुसार ज़िंदगी जीने की हिम्मत जुटा पाता!"_

यह सबसे ज़्यादा कॉमन रिग्रेट था, इसमें यह भी शामिल था कि जबतक हम यह महसूस कर पाते हैं कि अच्छा स्वास्थ्य ही आज़ादी से जीने की राह देता है तब तक यह हाथ से निकल चुका होता है।

2) _"काश मैंने इतनी कड़ी मेहनत न की होती"_

ब्रोनी ने बताया कि उन्होंने जितने भी पुरुष मरीजों का उपचार किया लगभग सभी को यह पछतावा था कि उन्होंने अपने रिश्तों को समय न दे पाने की ग़लती मानी।
ज़्यादातर मरीजों को पछतावा था कि उन्होंने अपना अधिकतर जीवन अपने कार्यस्थल पर खर्च कर दिया!
उनमें से हरएक ने कहा कि वे थोड़ी कम कड़ी मेहनत करके अपने और अपनों के लिए समय निकाल सकते थे।

3) _"काश मैं अपनी फ़ीलिंग्स का इज़हार करने की हिम्मत जुटा पाता"_

ब्रोनी वेयर ने पाया कि बहुत सारे लोगों ने अपनी भावनाओं का केवल इसलिए गला घोंट दिया ताकि शाँति बनी रहे, परिणाम स्वरूप उनको औसत दर्ज़े का जीवन जीना पड़ा और वे जीवन में अपनी वास्तविक योग्यता के अनुसार जगह नहीं पा सके! इस बात की कड़वाहट और असंतोष के कारण उनको कई बीमारियाँ हो गयीं!

4) _"काश मैं अपने दोस्तों के सम्पर्क में रहा होता"_

ब्रोनी ने देखा कि अक्सर लोगों को मृत्यु के नज़दीक पहुँचने तक पुराने दोस्ती के पूरे फायदों का वास्तविक एहसास ही नहीं हुआ था!
अधिकतर तो अपनी ज़िन्दगी में इतने उलझ गये थे कि उनकी कई वर्ष पुरानी 'गोल्डन फ़्रेंडशिप' उनके हाथ से निकल गयी थी। उन्हें 'दोस्ती' को अपेक्षित समय और ज़ोर न देने का गहरा अफ़सोस था।
हर कोई मरते वक्त अपने दोस्तों को याद कर रहा था!

5) _"काश मैं अपनी इच्छानुसार स्वयं को खुश रख पाता!!!"_

आम आश्चर्य की यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात सामने आयी कि कई लोगों को जीवन के अन्त तक यह पता ही नहीं लगता है कि 'ख़ुशी' भी एक choice है!

काश अपनी इस खुशी की इच्छा को जिंदा रखते


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*गृहस्थ बनूँ या साधु ?*

एक व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला- मेरी शिक्षा तो समाप्त हो गई। अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, एक  यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या संन्यास  धारण करूँ? इन दोनों में से मेरे लिए क्या अच्छा रहेगा यह बताइए?

कबीर ने कहा दोनों ही बातें अच्छी है जो भी करना हो,वह सोच-समझकर करो,और वह उच्चकोटि का हो। उस व्यक्ति ने पूछा उच्चकोटि का करना चाहिए। उस व्यक्ति ने पूछा उच्चकोटि का कैसे है? कबीर ने कहा- किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे वह व्यक्ति रोज उत्तर प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा।

एक दिन कबीर दिन के बारह बजे सूत बुन रहे थे। खुली जगह में प्रकाश काफी था कबीर साहेब ने अपनी धर्म पत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया। वह तुरन्त बिना किसी सवाल के जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा वे सूत बुनते रहे।

 सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी पर गए। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे। कबीर ने साधु को आवाज दी। महाराज आपसे कुछ जरूरी काम है कृपया नीचे आइए। बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊँचाई से उतर कर नीचे आया। कबीर ने पूछा आपकी आयु कितनी है यह जानने के लिए  नीचे बुलाया है। साधु ने कहा अस्सी बरस। यह कह कर वह फिर से ऊपर चढ़ा। बड़ी कठिनाई से कुटी में पहुँचा। कबीर ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया। साधु फिर आया। उससे पूछा- आप यहाँ पर कितने दिन से निवास करते हैं? उसने बताया चालिस वर्ष से। फिर जब वह कुटी में पहुँचे तो तीसरी बार फिर उन्हें इसी प्रकार बुलाया और  पूछा- आपके सब दाँत उखड़ गए या नहीं? उसने उत्तर दिया। आधे उखड़ गए। तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगा तब इतने चढ़ने उतरने से साधु की साँस फूलने लगी, पाँव काँपने लगे। वह बहुत अधिक थक गया था फिर भी उसे क्रोध तनिक भी न था।

अब कबीर अपने साथी समेत घर लौटे तो साथी ने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा। उसने कहा तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में यह दोनों घटनायें उपस्थित है। यदि गृहस्थ बनना हो तो ऐसे जीवनसाथी का चयन करना चाहिये जो हम पर पूरा भरोसा रखे और हमारा कहना सहजता से मानें, कि उसे दिन में भी दीपक जलाने की मेरी आज्ञा अनुचित नहीं मालूम पड़ी ,उसनें व्यर्थ कुतर्क नहीं किया और साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई कितना ही परेशान करे क्रोध व शोक न हो,हम सहज रहें।

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