चार नए भारतीय श्रम संहिताओं का उद्देश्य 29 मौजूदा अधिनियमों को मिलाकर श्रम कानूनों को सरल और औपचारिक बनाना है। मुख्य बिंदुओं में नियुक्ति पत्र और समय पर वेतन अनिवार्य करना, सभी श्रमिकों (गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों सहित) के लिए सामाजिक सुरक्षा की गारंटी, समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करना और महिलाओं को सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देनाशामिल है। अन्य मुख्य बिंदुओं में दुर्घटना क्षतिपूर्ति का विस्तार करके आवागमन संबंधी दुर्घटनाओं को शामिल करना, निश्चित अवधि के कर्मचारियों के लिए एक वर्ष के बाद ग्रेच्युटी उपलब्ध कराना, और एकल पंजीकरण और रिटर्न के माध्यम से नियोक्ताओं के लिए अनुपालन को सरल बनाना शामिल है। चार श्रम संहिताओं के मुख्य बिंदु मजदूरी और भुगतान:समय पर वेतन का भुगतान अनिवार्य है, कई क्षेत्रों के लिए वेतन हर महीने की 7 तारीख तक देना अनिवार्य है।"समान कार्य के लिए समान वेतन" सुनिश्चित किया जाएगा तथा राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन स्थापित किया जाएगा।सामाजिक सुरक्षा:गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों सहित सभी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार किया गया है।एग्रीगेटर्स को \(1-2\%\) गिग श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए अपने वार्षिक टर्नओवर का योगदान करना होगा।निश्चित अवधि के कर्मचारियों के लिए पीएफ, ईएसआईसी, बीमा और मातृत्व लाभ जैसे लाभों की गारंटी देता है।रोजगार और कार्य स्थितियां:सभी श्रमिकों के लिए नियुक्ति पत्र अनिवार्य कर दिया गया है।महिलाओं को रात्रि पाली में काम करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते वे सहमति दें और सुरक्षा उपाय लागू हों।दुर्घटना क्षतिपूर्ति का विस्तार कार्यस्थल पर आने-जाने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को कवर करने के लिए किया गया है।निश्चित अवधि के कर्मचारी अब स्थायी कर्मचारियों के समान लाभ के लिए पात्र होंगे, जिसमें एक वर्ष के बाद ग्रेच्युटी भी शामिल होगी।विवाद समाधान और अनुपालन:उत्पीड़न, भेदभाव और वेतन विवादों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करता है।संहिताओं के अंतर्गत एकल लाइसेंस और एकल रिटर्न की व्यवस्था लागू करके नियोक्ताओं के लिए अनुपालन को सरल बनाया गया है।केवल दंडात्मक कार्रवाई करने के बजाय नियोक्ताओं को मार्गदर्शन देने के लिए "निरीक्षक-सह-सुविधाकर्ता" प्रणाली स्थापित की गई है।
केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए चार श्रम संहिताएँ अब लागू हो गई हैं। इस कानून के गुणों को उपरोक्त संहिता अधिसूचना और विभिन्न अन्य सूचनात्मक लेखों में पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है।
फिर भी, ट्रेड यूनियन समूहों ने एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।
अगर हम यूनियन नेताओं को होने वाले नुकसान और उनके अहंकार के क्षरण को नज़रअंदाज़ कर दें, तो मुझे श्रम संहिता में बदलाव से मज़दूर वर्ग को किसी भी प्रकार के नुकसान की कोई संभावना नहीं दिखती।
हो सकता है कि मेरा दिमाग इन संहिताओं में खामियाँ ढूँढ़ने के लिए पर्याप्त परिपक्व न हो। इसलिए मैं सभी कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों से अनुरोध करता हूँ कि वे कोई भी दो बिंदु लिखें जिनसे हमारे देश के किसी भी कार्यरत कर्मचारी को नुकसान हो। मैं उन नेताओं के अग्रेषित संदेश नहीं चाहता जो सरकार द्वारा घोषित सभी कार्यों का विरोध करने पर तुले हैं। उनके शब्दकोश में देश के किसी भी कानून की सराहना का एक शब्द भी नहीं है। उनकी कार्यप्रणाली केवल आलोचना और विरोध पर आधारित है।
मैं सभी व्यक्तियों से अनुरोध करता हूँ कि वे हिंदी या अंग्रेजी में कम से कम एक वाक्य लिखें जो यह कारण बताए कि नवगठित श्रम संहिता का विरोध क्यों किया जाना चाहिए।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों को विशेष रूप से आत्मचिंतन करना चाहिए कि कैसे वे अपने नेताओं के हर कदम का आँख मूँदकर समर्थन करते थे और सेवानिवृत्ति के बाद उन पर गुस्सा करते हैं क्योंकि पेंशन अपडेट सहित उनकी कई माँगों पर उन्हीं नेताओं ने ध्यान नहीं दिया जिनकी वे सेवाकाल में पूजा करते थे और अब भी करते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी, जब उन्हें स्थानांतरण, पदोन्नति से इनकार या तुच्छ आधार पर सज़ा का कोई डर नहीं है, उनमें सच बोलने का साहस नहीं दिखता। उन्हें अब ज़मीनी हकीकत पर विचार करना चाहिए और बिना किसी डर या परिणाम के साहसपूर्वक सच बोलना चाहिए।
Four labour codes framed by central government is now in action. Merits of the law have already been explained in aforesaid code notification and various other informative articles.
Still trade union groups have called for one day nationwide strike.
If we ignore the would be losses to union leaders and erosion in their ego ,I find no possibility of any type of loss to working class by change in labour code.
My mind may not be matured enough to find out loopholes in the codes. I therefore ask all employees and retirees to write any two points which reflect loss to any working employee in our country. I do not want forwarded messsges of those leaders who are bent upon opposing all actions government announces. Their dictionary do not have any word of appreciation for any law of the land. Their modus oparendi is based on criticism and protests only.
I request all individuals to write at least a sentence in Hindi or in English which may give a reason why newly formed labour code should be opposed.
Retirees in particular should introspect how blindly they used to support each and every action of their leaders blindly and after retirement they are angry on them because their several demands including pension updation is not taken care of by those leaders whom they used to worship during working period and whom they still worship , they do not appear to have courage to speak truth even now after retirement when they do not have any fear of transfer or denial of promotion or punishment on flimsy ground. They must now ponder over ground reality and boldly tell the truth without any fear or repercussions
नीचे सरल, स्पष्ट और गहराई से विश्लेषित उत्तर दिया गया है — चारों नए Labour Codes से संभावित परिणाम (possible outcomes) और कौन-कौन सी उपलब्धियाँ/प्राप्तियाँ अपेक्षित हैं — व्यवसाय-वृद्धि, सामाजिक सुरक्षा, राजनीतिक संतुलन, रोजगार-निर्माण, और प्रशासनिक प्रभाव के आधार पर।
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1) व्यवसाय-वृद्धि (Business Growth) पर संभावित परिणाम
✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ
(a) अनुपालन बोझ में कमी (Reduced compliance burden)
29 अलग-अलग कानूनों की जगह चार कोड →
एक रजिस्ट्रेशन, एक रिटर्न, एक लाइसेंस जैसी व्यवस्था कई उद्योगों का समय और लागत घटा सकती है।
उद्योगों को प्रक्रियात्मक भ्रम कम होगा; खासकर MSMEs लाभान्वित होंगे।
(b) व्यवसायों में लचीलापन (Operational flexibility)
Fixed-term employment, छंटनी के लिए उच्चतर threshold, ओवरटाइम/वर्किंग-आवर्स की स्पष्टता
→ कंपनियों को निवेश बढ़ाने व बड़े विनिर्माण प्लांट लगाने में सुविधा महसूस होगी।
(c) अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में सुधार (Improved global competitiveness)
सरल श्रम-ढांचा अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए भारत को आकर्षक बनाता है।
Make in India और PLI जैसी योजनाओं के साथ synergy बन सकती है।
⚠ संभावित चुनौतियाँ
कुछ क्षेत्रों में कम लागत पर श्रमिकों की उपलब्धता का पुराने कानूनों जितना संतुलन बनाना कठिन होगा।
निजी क्षेत्र के दुरुपयोग रोकने के लिए राज्यों पर प्रभावी क्रियान्वयन का बड़ा दायित्व होगा।
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2) सामाजिक सुरक्षा (Social Security Expansion) पर संभावित परिणाम
✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ
(a) गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सुरक्षा का दायरा
पहली बार Uber/Ola, Zomato, Swiggy, Urban Company जैसे gig-workers कानूनन सामाजिक सुरक्षा के पात्र बनाए गए हैं।
इससे करोड़ों युवा अनौपचारिक क्षेत्र से औपचारिक सुरक्षा घेरे में आने की संभावना।
(b) PF, ESI, मातृत्व, पेंशन आदि लाभों में पोर्टेबिलिटी
कार्यकर्ता जहाँ भी काम करे, लाभ उसके साथ जुड़ सकते हैं (one-nation type portability)।
(c) अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिककरण
गैर-संगठित श्रमिकों को कवरेज →
आबादी का बड़ा हिस्सा अब सरकार व नियोक्ता-समर्थित सुरक्षा योजनाओं में आ सकता है।
⚠ संभावित चुनौतियाँ
गिग कंपनियों पर योगदान (contribution) तय करना जटिल होगा।
राज्यों की आर्थिक क्षमता के अनुसार लाभों में भिन्नता बनी रह सकती है।
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3) रोजगार-निर्माण (Employment Creation) पर संभावित परिणाम
✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ
(a) भर्ती-निकासी में लचीलेपन से बड़े पैमाने पर हायरिंग
IR Code छंटनी-थ्रेशहोल्ड बढ़ाता है, जिससे कंपनियाँ अक्सर बड़ा वर्कफोर्स रखने का जोखिम उठाती हैं।
Fixed-term workers को PF/ESI के साथ लाना → कंपनियाँ short-term projects में हायरिंग बढ़ा सकती हैं।
(b) श्रम-बाजार में गतिशीलता (labour mobility)
पोर्टेबिलिटी से मजदूर एक राज्य/सेक्टर से दूसरे में आसानी से जा सकेंगे, रोजगार अवसर बढ़ेंगे।
(c) इंडस्ट्री 4.0 और टेक्नोलॉजी सेक्टर में तेजी
स्पष्ट नियम कंपनियों को factory rules, contract staffing, gig workforce के साथ जल्दी विस्तार करने देंगे।
⚠ चुनौतियाँ
कुछ यूनियन मानती हैं कि लचीलापन “hire & fire” बढ़ा सकता है — इससे नौकरी स्थिरता पर सवाल उठ सकते हैं।
छोटे शहरों में रोजगार बढ़ने की गति उद्योग नीति पर भी निर्भर करेगी।
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4) राजनीतिक संतुलन (Political Balance) पर संभावित परिणाम
✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ
(a) केंद्र सरकार के लिए सुधारवादी छवि
निवेश, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस और रोजगार-सृजन के बड़े सुधार के रूप में तेज़ी से प्रचारित किया जा सकता है।
(b) राज्यों को अधिकार (Cooperative federalism)
कोड्स के तहत राज्य नियम (Rules) बनाकर अपने हिसाब से लचीलापन तय कर सकते हैं →
राज्यों की प्रतिस्पर्धा (competitive federalism) बढ़ सकती है।
⚠ चुनौतियाँ
ट्रेड यूनियनों और वाम राजनीति वाले राज्यों के साथ तनाव बना रह सकता है।
कुछ प्रावधानों को विपक्ष “श्रमिक-विरोधी” बताकर राजनीतिक मुद्दा बना सकता है।
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5) आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर समग्र प्रभाव
✔ सकारात्मक अपेक्षाएँ
1. औपचारिककरण (Formalisation) में तेजी
2. गिग इकोनॉमी को कानूनी पहचान
3. निवेश माहौल में उछाल
4. महिला भागीदारी बढ़ने की संभावना (क्योंकि ओवरटाइम/वर्किंग कंडीशन्स स्पष्ट हैं)
5. कम विवाद, स्पष्ट नियम → उद्योग-श्रम सम्बन्धों में स्थिरता
⚠ जोखिम
1. क्रियान्वयन कमजोर हुआ तो उद्देश्य अधूरा रह सकता है।
2. कर्मचारियों की सुरक्षा और नियोक्ताओं के लचीलेपन के बीच संतुलन एक राजनीतिक चुनौती रहेगा।
3. बहुत से लाभ तभी संभव हैं जब राज्य समय पर नियम (Rules) और IT प्लेटफॉर्म लागू करें।
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6) 5-बिंदु निष्कर्ष (Short Conclusion)
ये कोड भारत को सरल, आधुनिक और निवेश-अनुकूल श्रम-ढांचा देने का प्रयास हैं।
गिग-वर्कर्स, माइग्रेंट-वर्कर्स और अनौपचारिक श्रमिकों को पहली बार व्यापक सामाजिक सुरक्षा का रास्ता खुला है।
कारोबार में स्पष्ट नियम और flexibility से नया रोजगार पैदा हो सकता है।
राजनीतिक रूप से, सुधार समर्थक और यूनियन पक्षों के बीच नया संतुलन बनेगा — संवाद आवश्यक होगा।
सुधारों का वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्य और केंद्र कितनी गंभीरता से नियमों को लागू करते हैं।
नीचे संक्षेप में साधारण, स्पष्ट हिन्दी में वे मुख्य कारण दिए जा रहे हैं जिनकी वजह से केंद्र सरकार ने पुरानी 29 श्रम-कानूनों को चार नए Labour Codes में समेकित (consolidate) किया — और उसके बाद उन-माफ़िक उल्लेखनीय विद्वानों/आर्थिक टिप्पणीकारों और उद्योग संगठनों के नाम जिन्होंने इन सुधारों का समर्थन किया या सकारात्मक टिप्पणी दी। हर प्रमुख बात के बाद स्रोत भी दिया है ताकि आप और पढ़-तुलना कर सकें।
मुख्य कारण (हिन्दी — संक्षेप)
• कानूनों का सरलीकरण और एकरूपता (Simplification & Uniformity)
पुरानी 29 अलग-अलग ऐक्ट्स बहुत बिखरी और राज्य-केन्द्रीय अंतर के साथ थीं; चार कोड संहति (single framework) बनाकर अनुपालन आसान और नियमों में संगति लाई गई।
• आधुनिक बनाना — उपयुक्तता (Modernisation)
कई प्रावधान (कुछ उपनिवेशी-युग के) अब आधुनिक रोजगार-रूपों — ठेकेदार, गिग/प्लैटफॉर्म वर्कर्स, फिक्स्ड-टर्म आदि — के अनुरूप नहीं थे। कोड इन नए काम-रूपों को शामिल करते हैं।
• सामाजिक सुरक्षा का विस्तार (Universal social security)
संविधान-कृत मजदूर/गिग वर्कर्स आदि को सामाजिक सुरक्षा (PF/ESI/अन्य) के दायरे में लाना — यानी कवरेज का विस्तार और पोर्टेबिलिटी।
• न्यूनतम वेतन व समय पर भुगतान (Fair wages & timely pay)
राष्ट्रीय-स्तर पर न्यूनतम-आधार/राष्ट्रीय-फ्लोर और समय पर वेतन भुगतान जैसी शर्तें लागू करने का मकसद मजदूरों की आमदनी-सुरक्षा बढ़ाना है।
• व्यवसायों के लिए अनुपालन बोझ घटाना (Reduce compliance burden / Ease of doing business)
एक-सिंगल रजिस्ट्रेशन / एक-लाइसेंस / एक-रिटर्न जैसी व्यवस्था लागू कर के छोटे/मध्यम उद्यमों का प्रशासनिक बोझ कम करने और निवेश/निर्माण में आसानी देने का लक्ष्य रखा गया।
• लचीलेपन (Flexibility) और नये रोजगार सृजन की उम्मीद
कुछ प्रावधान (जैसे-लैओफ-अनुमोदन की सीमा बढ़ना, फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों का प्रावधान) से नियोक्ताओं को बड़ी-मात्रा में कर्मचारी रखने/निकालने में पहले से कम बाधा होने की संभावना — सरकार का तर्क है कि इससे निवेश व बड़े प्लांट बनने की प्रेरणा मिलेगी और नौकरी बनेगी। (यह विवादित भी रहा है।)
किन-विद्वानों / प्रमुख हस्तियों/संस्थाओं ने समर्थन या सकारात्मक टिप्पणी दी (नाम के साथ संक्षेप)
नोट: “समर्थन” का अर्थ यह नहीं कि विरोधी मत न रहे — ये नामों ने सुधारों के तात्कालिक लाभ/आर्थिक तर्क/आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर सकारात्मक टिप्पणियाँ दीं या इतिहास में श्रम-बाज़ार सुधारों के पक्षधर रहे हैं।
• अरविंद पनगड़िया (Arvind Panagariya) — अर्थशास्त्री; उन्होंने इन कोड्स/श्रम सुधारों को “नौकरियाँ फैलाने और कठोर नियमों को खत्म करने” वाला कदम बताया।
• बिबेक देबरोय (Bibek Debroy) — अर्थशास्त्री; लंबे समय से नियमों/अप्रासंगिक कानूनों को हटाकर सुधार की आवश्यकता पर लिखते रहे हैं और श्रम सुधारों के तर्क को उठाते रहे हैं। (उनके कई संपादकीय/आलोचनात्मक लेख उपलब्ध हैं)।
• स्वामीनाथन एस. अंकलेसारिया ऐय्यर (Swaminathan S. Anklesaria Aiyar) — कॉलमिस्ट/आर्थिक टिप्पणीकार; पारंपरिक रूप से श्रम-नियमों में लचीलापन लाने के पक्ष में रहे हैं और सुधारों का समर्थन करते रहे हैं।
• मोंटेक सिंह अहलूवालिया (Montek Singh Ahluwalia) — पूर्व योजना आयोग के वरिष्ठ अर्थशास्त्री/आधिकारिक सलाहकार; अतीत में लचीले श्रम नीतियों का समर्थन कर चुकें हैं और श्रम-कानून सुधारों के हिमायती माने जाते हैं।
• उद्योग संगठन — CII / FICCI (Confederation of Indian Industry, FICCI) — दोनों ने कोड्स के लागू होने का स्वागत किया और कहा कि इससे अनुपालन सरल होगा, वैश्विक मानकों के करीब आएँगे और उद्योग क्षमता-निर्माण में मदद मिलेगी। (ये संस्थागत-समर्थन हैं)।
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एक-लाइन-सावधानी (controversy/विरोध की झलक)
• ट्रेड यूनियनों और कुछ सामाजिक-विज्ञों का कहना है कि कुछ प्रावधान (उदा. छंटनी-अनुमोदन सीमा बढ़ना, 12-घंटे तक का काम इत्यादि) श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर कर सकते हैं; इसलिए ये परिवर्तन विवादित भी हैं।--