Monday, September 16, 2024

Jain Religion Celebrate Das Lakshan Parv

उत्तम शौच दस लक्षण के चौथे गुण को संदर्भित करता है, जो "संतोष" या "आत्म-संतुष्टि" है। इसमें जो कुछ है उसमें संतुष्ट रहना और अधिक की इच्छा न करना शामिल है।


पर्युषण पर्व के दौरान, जैन लोग उत्तम शौच की खेती पर ध्यान केंद्रित करते हैं:


1. _इच्छाओं पर चिंतन_: अनावश्यक इच्छाओं को पहचानना और उन्हें छोड़ना।

2. कृतज्ञता का अभ्यास करना: उनके पास जो कुछ है उसकी सराहना करना, बजाय इसके कि उनके पास जो कमी है उस पर ध्यान केंद्रित करना।

3. आत्मनिर्भरता पैदा करना: अपनी क्षमताओं और संसाधनों से संतुष्ट रहना।

4. सादगी अपनाना: सादगी से रहना और अनावश्यक भोग-विलास से बचना।


उत्तम शौच विकसित करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _लगाव कम करें_: भौतिक संपत्ति और इच्छाओं के प्रति लगाव कम करें।

2. _आत्म-जागरूकता बढ़ाएँ_: अपनी और अपनी जरूरतों के बारे में बेहतर समझ विकसित करें।

3. _आध्यात्मिक विकास बढ़ाएं_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


पर्युषण पर्व जैनियों के लिए एक साथ आने, अपने मूल्यों पर विचार करने और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास करने का एक अद्भुत अवसर है।


 उत्तम सत्य (उत्तम सत्य) जैन धर्म की मौलिक अवधारणा दास लक्षण का पांचवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च सत्य" या "पूर्ण ईमानदारी"।


उत्तम सत्य में शामिल हैं:


1. *सच्चाई*: बिना किसी अतिशयोक्ति, विकृति या छिपाव के सच बोलना।

2. *ईमानदारी*: छल या धोखाधड़ी के बिना, सभी बातचीत में पारदर्शी और ईमानदार होना।

3. *प्रामाणिकता*: बिना किसी दिखावे या पाखंड के, स्वयं और दूसरों के प्रति वास्तविक और सच्चा होना।


उत्तम सत्य में शामिल हैं:


1. *विचार*: बिना झूठे या दुर्भावनापूर्ण इरादे के, सच्चाई से सोचना।

2. *शब्द*: झूठ या आधा सच बोले बिना, सच बोलना।

3. *कार्य*: कपटपूर्ण या बेईमान व्यवहार में शामिल हुए बिना, सच्चाई से कार्य करना।


उत्तम सत्य का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. *विश्वास पैदा करें*: दूसरों के साथ उनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के आधार पर विश्वास पैदा करें।

2. *आत्म-सम्मान विकसित करें*: अपने और दूसरों के प्रति सच्चे रहकर आत्म-सम्मान अर्जित करें।

3. *आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें*: सच्चाई और ईमानदारी को अपनाकर आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ें।


संक्षेप में, उत्तम सत्य जीवन के सभी पहलुओं में सच्चाई और ईमानदारी को अपनाने के बारे में है, जिससे एक अधिक प्रामाणिक, भरोसेमंद और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण अस्तित्व प्राप्त होता है।


उत्तम संयम (उत्तम संयम) जैन धर्म की एक मौलिक अवधारणा दस लक्षण का गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च आत्म-नियंत्रण" या "पूर्ण संयम"।


उत्तम संयम में शामिल हैं:


1. इंद्रियों पर नियंत्रण: अपनी इंद्रियों, इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रित करना।

2. बुराइयों से संयम: हानिकारक आदतों, व्यसनों और नकारात्मक व्यवहारों से दूर रहना।

3. उपभोग में संयम: खाने, पीने और भौतिक उपभोग में संयम बरतना।


उत्तम संयम में शामिल हैं:


1. _शारीरिक नियंत्रण_: भोजन, नींद और कामुक सुख जैसी शारीरिक इच्छाओं को नियंत्रित करना।

2. मानसिक नियंत्रण: क्रोध, लोभ और मोह जैसी मानसिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना।

3. भावनात्मक नियंत्रण: अभिमान, ईर्ष्या और भय जैसी भावनाओं को प्रबंधित करना।


उत्तम संयम का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _कर्म कम करें_: कर्मों का संचय कम करें, जो आत्मा को बांधते हैं।

2. _आंतरिक शांति विकसित करें_: आंतरिक शांति, शांति और शांति का अनुभव करें।

3. आध्यात्मिक शक्ति का विकास करें: आध्यात्मिक शक्ति, इच्छाशक्ति और लचीलेपन का निर्माण करें।


संक्षेप में, उत्तम संयम जीवन के सभी पहलुओं में आत्म-नियंत्रण, संयम और संयम पैदा करने के बारे में है, जिससे एक अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण अस्तित्व प्राप्त होता है।


उत्तम तप (उत्तम तप) जैन धर्म की मौलिक अवधारणा दास लक्षण का पांचवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च तपस्या" या "पूर्ण तपस्या"।


उत्तम तप में शामिल हैं: 


1. _शारीरिक तपस्या_: उपवास, त्याग और आत्म-पीड़ा जैसे शारीरिक अनुशासन का अभ्यास करना।

2. मानसिक तपस्या: ध्यान, आत्म-चिंतन और मानसिक शुद्धि जैसे मानसिक अनुशासन को विकसित करना।

3. भावनात्मक तपस्या: वैराग्य, समभाव और करुणा जैसे भावनात्मक अनुशासन का विकास करना।


उत्तम तप में शामिल हैं:


1. _त्याग_: आसक्ति, इच्छाओं और सांसारिक सुखों को त्यागना।

2. _आत्म-अनुशासन_: आत्म-नियंत्रण, आत्म-पीड़न और आत्म-शुद्धि का अभ्यास करना।

3. आध्यात्मिक शुद्धि: तपस्या, पश्चाताप और आध्यात्मिक अभ्यास के माध्यम से आत्मा को शुद्ध करना।


उत्तम तप का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. आत्मा को शुद्ध करें: आत्मा से कर्म, अशुद्धियाँ और नकारात्मकताएँ दूर करें।

2. _आध्यात्मिक शक्ति विकसित करें_: आध्यात्मिक सहनशक्ति, लचीलापन और इच्छाशक्ति का निर्माण करें।

3. _आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


संक्षेप में, उत्तम तप आत्मा को शुद्ध करने, आध्यात्मिक शक्ति विकसित करने और आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए तपस्या, अनुशासन और त्याग को अपनाने के बारे में है।


उत्तम त्याग (उत्तम त्याग) जैन धर्म की एक मौलिक अवधारणा दस लक्षण का आठवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च त्याग" या "पूर्ण वैराग्य"।


उत्तम त्याग में शामिल हैं:


1. _सांसारिक सुखों से वैराग्य_: कामुक सुखों, धन और भौतिक संपत्ति के प्रति मोह का त्याग करना।

2. _भावनाओं से अलगाव_: गर्व, क्रोध और भय जैसे भावनात्मक जुड़ाव को दूर करना।

3. _अहंकार से अलगाव_: अहंकार, आत्म-पहचान और व्यक्तिगत इच्छाओं का त्याग करना।


उत्तम त्याग में शामिल हैं:


1. _इच्छाओं का त्याग_: इच्छाओं, लालसाओं और आसक्तियों को त्यागना।

2. _रिश्तों से अलगाव_: राग या द्वेष के बिना, रिश्तों में समभाव बनाए रखना।

3. _संपत्ति से वैराग्य_: भौतिक संपत्ति और धन से मोह का त्याग करना।


उत्तम त्याग का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _लगाव कम करें_: सांसारिक चीजों, भावनाओं और अहंकार के प्रति लगाव कम करें।

2. वैराग्य पैदा करें: वैराग्य की भावना विकसित करें, जिससे आंतरिक शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

3. _आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


संक्षेप में, उत्तम त्याग आसक्ति को त्यागने, वैराग्य विकसित करने और सादगी, विनम्रता और आध्यात्मिक विकास का जीवन अपनाने के बारे में है।


उत्तम अकिंचन जैन धर्म की एक मौलिक अवधारणा दस लक्षण का नौवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च अपरिग्रह" या "पूर्ण अनासक्ति"।


उत्तम अकिंचन में शामिल हैं:


1. संपत्ति के प्रति अनासक्ति: भौतिक संपत्ति के प्रति स्वामित्व या लगाव महसूस नहीं करना।

2. _रिश्तों के प्रति अनासक्ति_: राग या द्वेष के बिना, रिश्तों में समभाव बनाए रखना।

3. _इच्छाओं के प्रति अनासक्ति_: इच्छाओं, लालसाओं या अपेक्षाओं के प्रति आसक्त न रहना।


उत्तम अकिंचना में शामिल हैं:


1. _सांसारिक चीज़ों से विरक्ति_: धन, पद या भौतिक सुख-सुविधा से आसक्त न होना।

2. _भावनाओं से अलगाव_: अभिमान, क्रोध या भय जैसी भावनाओं से नियंत्रित न होना।

3. _अहंकार से अलगाव_: किसी की अपनी पहचान, आत्म-छवि या अहंकार से जुड़ा न रहना।


उत्तम अकिंचना का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _लगाव कम करें_: सांसारिक चीजों, भावनाओं और अहंकार के प्रति लगाव कम करें।

2. वैराग्य पैदा करें: वैराग्य की भावना विकसित करें, जिससे आंतरिक शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

3. _आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


संक्षेप में, उत्तम अकिंचन अपरिग्रह, अनासक्ति और वैराग्य को अपनाने के बारे में है, जिससे सादगी, विनम्रता और आध्यात्मिक विकास का जीवन आगे बढ़ता है।

Sunday, September 8, 2024

दस लक्षण पर्व क्या है?

 दस लक्षण पर्व क्या है?


दशलक्षण पर्व (दस गुणों का त्योहार) दिगंबर जैनियों द्वारा मनाया जाता है। आम तौर पर, खाना, पीना और मौज-मस्ती करना त्योहारों से जुड़ा होता है लेकिन दसलक्षण इसके विपरीत है। दसलक्षण के दौरान जैन लोग तपस्या, व्रत, उपवास और अध्ययन करते हैं। यदि उपवास नहीं कर रहे हैं तो वे जड़ वाली सब्जियां खाने से परहेज करते हैं।

दसलक्षण आत्मा के प्राकृतिक गुणों का जश्न मनाने का समय है।

दसलक्षण का वास्तविक उद्देश्य अपनी आत्मा के करीब रहकर अपनी आत्मा को शुद्ध करना, अपने दोषों को देखना, जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगना और कर्मों को नष्ट करने का व्रत लेना है। सभी दुःखों और कष्टों का मुख्य कारण आत्मा की अशुद्धि है। इस अवधि में प्रत्येक व्यक्ति 10 दिनों में विभिन्न साधनाओं के माध्यम से अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करता है।

दिन 1: उत्तम क्षमा

क) हम उन लोगों को माफ कर देते हैं जिन्होंने हमारे साथ अन्याय किया है और हम उनसे माफी मांगते हैं जिनके साथ हमने अन्याय किया है। क्षमा केवल मानव सहकर्मियों से ही नहीं, बल्कि एक इंद्रिय से लेकर पांच इंद्रिय तक सभी जीवित प्राणियों से मांगी जाती है। यदि हम क्षमा नहीं करते हैं या क्षमा नहीं मांगते हैं, बल्कि आक्रोश पालते हैं, तो हम अपने ऊपर दुख और अप्रसन्नता लाते हैं और इस प्रक्रिया में हमारे मन की शांति को नष्ट कर देते हैं और दुश्मन बना लेते हैं। क्षमा करना और क्षमा मांगना जीवन के चक्र को गति देता है जिससे हम अपने साथी प्राणियों के साथ सद्भाव से रह सकते हैं। यह पुण्य कर्म को भी आकर्षित करता है।

ख) यहां क्षमा स्वयं को निर्देशित है। गलत पहचान या गलत विश्वास की स्थिति में आत्मा यह मान लेती है कि वह शरीर, कर्म और भावनाओं - पसंद, नापसंद, गुस्सा, घमंड आदि से बनी है।  
इस ग़लत धारणा के परिणामस्वरूप यह स्वयं को कष्ट पहुँचाता है और इस प्रकार स्वयं अपने दुःख का कारण बनता है। निश्चय क्षमा धर्म आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करके स्वयं को सही ढंग से पहचानने की शिक्षा देता है और इस प्रकार सही विश्वास या सम्यक दर्शन की स्थिति प्राप्त करता है। सम्यक दर्शन प्राप्त करने से ही आत्मा स्वयं को पीड़ा पहुंचाना बंद कर देती है और परम सुख प्राप्त करती है।

दिन - 2: उत्तम मार्दव (विनम्रता/विनम्रता)

क) धन, अच्छा रूप, प्रतिष्ठित परिवार या बुद्धिमत्ता अक्सर घमंड का कारण बनती है। अभिमान का अर्थ है स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानना ​​और दूसरों को तुच्छ समझना। घमंड करके आप अपना मूल्य अस्थायी भौतिक वस्तुओं से माप रहे हैं। ये वस्तुएँ या तो आपको छोड़ देंगी या जब आप मरेंगे तो आप उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर होंगे। ये घटनाएँ आपके आत्म-सम्मान को हुए 'नुकसान' के परिणामस्वरूप आपको दुःख का कारण बनेंगी। विनम्र होने से ऐसा होने से रोका जा सकेगा। अभिमान भी बुरे कर्मों या पाप कर्मों के आगमन का कारण बनता है।

ख) सभी आत्माएँ समान हैं, कोई किसी से श्रेष्ठ या निम्न नहीं है। श्रीमद राजचंद्र के शब्दों में: “सर्व जीव चे सिद्ध सम, जे समझे ते थाई - सभी आत्माएं सिद्ध के समान हैं; जो लोग इस सिद्धांत को समझेंगे वे उस स्थिति को प्राप्त करेंगे”। निश्चय दृष्टिकोण आपको अपने वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए प्रोत्साहित करता है। सभी आत्माओं में मुक्त आत्मा (सिद्ध भगवान) बनने की क्षमता है। मुक्त आत्माओं और बंधन में पड़े लोगों के बीच एकमात्र अंतर यह है कि मुक्त आत्माओं ने अपने 'प्रयास' के परिणामस्वरूप मुक्ति प्राप्त की है। पुरुषार्थ से उत्तरार्द्ध भी मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

दिन - 3: उत्तम आर्जव (सीधापन)

क) धोखेबाज व्यक्ति का कार्य सोचना कुछ और, बोलना कुछ और और करना बिल्कुल अलग होता है। उनके विचार, वाणी और कर्म में कोई सामंजस्य नहीं है। ऐसा व्यक्ति बहुत जल्दी अपनी विश्वसनीयता खो देता है और लगातार चिंता और अपने धोखे के उजागर होने के डर में रहता है। सीधा-सादा या ईमानदार होना जीवन के चक्र को गति देता है। आप भरोसेमंद और विश्वसनीय नजर आएंगे। कपटपूर्ण कार्यों से पाप कर्मों का आगमन होता है।

ख) अपनी पहचान के बारे में भ्रम ही दुःख का मूल कारण है। अपने प्रति सीधे रहें और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानें। आत्मा ज्ञान, सुख, पुरुषार्थ, विश्वास और आचरण जैसे अनगिनत गुणों से बनी है। इसमें सर्वज्ञता (केवल ज्ञान) प्राप्त करने और सर्वोच्च आनंद की स्थिति तक पहुंचने की क्षमता है। फिर, शरीर, कर्म, विचार और सभी भावनाएँ आत्मा की वास्तविक प्रकृति से अलग हैं। निश्चय आर्जव धर्म का पालन करने से ही व्यक्ति भीतर से आने वाली सच्ची खुशी का स्वाद चख सकेगा।
दिन – 4: उत्तम शौच (संतोष)

क) अब तक आपने जो भौतिक लाभ हासिल किया है, उससे संतुष्ट रहें। आम धारणा के विपरीत, अधिक भौतिक धन और सुख की इच्छा से खुशी नहीं मिलेगी। अधिक की चाहत इस बात का संकेत है कि हमारे पास वह सब नहीं है जो हम चाहते हैं। इस इच्छा को कम करने और जो हमारे पास है उसमें संतुष्ट रहने से संतुष्टि मिलती है। भौतिक वस्तुओं का संचय केवल इच्छा की आग को भड़काता है।

ख) भौतिक वस्तुओं से प्राप्त संतुष्टि या खुशी, केवल झूठे विश्वास की स्थिति में आत्मा द्वारा ही मानी जाती है। सच तो यह है कि भौतिक वस्तुओं में सुख का गुण नहीं होता इसलिए उनसे सुख प्राप्त नहीं किया जा सकता! भौतिक वस्तुओं का 'आनंद' लेने की धारणा वास्तव में केवल वही है - एक धारणा! यह धारणा आत्मा को केवल दुःख ही प्रदान करती है और कुछ नहीं। वास्तविक खुशी भीतर से आती है, क्योंकि आत्मा ही खुशी का गुण रखती है।

दिन - 5: उत्तम सत्य (सत्य)

क) यदि बात करना आवश्यक न हो तो बात न करें। यदि आवश्यक हो तो कम से कम शब्दों का ही प्रयोग करें और सभी बिल्कुल सत्य होने चाहिए। बातचीत से मन की शांति भंग होती है। उस व्यक्ति पर विचार करें जो झूठ बोलता है और बेनकाब होने के डर में रहता है। एक झूठ के समर्थन में उसे सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। वह झूठ के उलझे जाल में फंस जाता है और उसे अविश्वसनीय और अविश्वसनीय माना जाता है। झूठ बोलने से पाप कर्म का आगमन होता है।

ख) सत्य शब्द सत् से आया है, जिसका अर्थ है अस्तित्व। अस्तित्व आत्मा का गुण है। आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानना क्योंकि वह वास्तव में अस्तित्व में है और आत्मा में आश्रय लेना निश्चय सत्य धर्म का अभ्यास करना है।
दिन - 6: उत्तम संयम (आत्म-संयम)

क) i) जीवन को चोट से बचाना - जीवन की रक्षा के लिए जैन लोग दुनिया के अन्य धर्मों की तुलना में बहुत अधिक प्रयास करते हैं। इसमें एक इंद्रिय से लेकर सभी जीवित प्राणियों को शामिल किया गया है। जड़ वाली सब्जियां न खाने का उद्देश्य यह है कि उनमें अनगिनत एक-इंद्रिय प्राणी होते हैं जिन्हें 'निगोद' कहा जाता है। पर्युषण के दौरान जैन लोग निचली इंद्रियों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए हरी सब्जियां भी नहीं खाते हैं।

ii) इच्छाओं या जुनून से आत्म-संयम - ये दर्द का कारण बनते हैं और इसलिए इनसे बचना चाहिए।

ख) i) स्वयं को चोट पहुंचाना - इस पर निश्चय क्षमा धर्म में विस्तार से बताया गया है।

ii) इच्छाओं या जुनून से आत्म संयम - भावनाएँ, जैसे। पसंद, नापसंद या गुस्सा दुख का कारण बनता है और इसे खत्म करने की जरूरत है। वे आत्मा की वास्तविक प्रकृति का हिस्सा नहीं हैं और केवल तभी उत्पन्न होते हैं जब आत्मा गलत विश्वास की स्थिति में होती है। इनसे स्वयं को मुक्त करने का एकमात्र तरीका आत्मा के वास्तविक स्वरूप पर चिंतन करना और इस प्रक्रिया में मुक्ति या मोक्ष की यात्रा शुरू करना है।

दिन - 7 उत्तम तप (तपस्या)

क) इसका मतलब केवल उपवास करना ही नहीं है, बल्कि इसमें कम आहार, कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध, स्वादिष्ट भोजन से परहेज करना आदि भी शामिल है। तपस्या का उद्देश्य इच्छाओं और जुनून को नियंत्रण में रखना है। अति-भोग अनिवार्य रूप से दुख की ओर ले जाता है। तपस्या से पुण्य कर्मों का आगमन होता है।

ख) ध्यान आत्मा में इच्छाओं और जुनून को बढ़ने से रोकता है। ध्यान की गहरी अवस्था में भोजन ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न नहीं होती। हमारे पहले तीर्थंकर आदिनाथ भगवान छह महीने तक ऐसी ध्यान अवस्था में थे, इस दौरान उन्होंने निश्चय उत्तम तप का पालन किया। इन छह महीनों के दौरान उन्होंने जो एकमात्र भोजन खाया, वह था भीतर से खुशी।

दिन - 8: उत्तम त्याग (त्याग)

क) आम धारणा के विपरीत, सांसारिक संपत्ति का त्याग करने से संतोष का जीवन मिलता है और इच्छाओं को नियंत्रण में रखने में सहायता मिलती है। इच्छाओं पर नियंत्रण करने से पुण्य कर्म का प्रवाह होता है। हमारे भिक्षुओं द्वारा त्याग उच्चतम स्तर पर किया जाता है जो न केवल घर का त्याग करते हैं बल्कि अपने कपड़ों का भी त्याग करते हैं। किसी व्यक्ति की ताकत इस बात से नहीं मापी जाती कि उसने कितना धन इकट्ठा किया है, बल्कि इस बात से मापा जाता है कि उसने कितना धन त्यागा है। इस हिसाब से हमारे भिक्षु सबसे अमीर हैं.

ख) भावनाओं का त्याग करना, जो दुख का मूल कारण है, निश्चय उत्तम त्याग है, जो केवल आत्मा के वास्तविक स्वरूप पर चिंतन करने से ही संभव है।

दिन - 9: उत्तम आकिंचय (गैर-लगाव)

क) यह हमें बाहरी संपत्ति से अलग होने में सहायता करता है। ऐतिहासिक रूप से हमारे ग्रंथों में दस संपत्तियां सूचीबद्ध हैं: 'भूमि, घर, चांदी, सोना, धन, अनाज, महिला नौकर, पुरुष नौकर, वस्त्र और बर्तन'। इनसे अनासक्त रहने से हमारी इच्छाओं को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और पुण्य कर्मों का प्रवाह होता है।

बी) यह हमें अपने आंतरिक जुड़ावों से अनासक्त होने में सहायता करता है: झूठा विश्वास, क्रोध, घमंड, छल, लालच, हँसी, पसंद, नापसंद, विलाप, भय, घृणा, । इनसे आत्मा को मुक्त करने से उसकी शुद्धि होती है

दिन-10: उत्तम ब्रह्मचर्य (सर्वोच्च ब्रह्मचर्य)
ब्रह्मचर्य शब्द ब्रह्म - आत्मा और चर्या - निवास से बना है। 

ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपनी आत्मा में निवास करना। आत्मा में स्थित होकर ही आप ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। अपनी आत्मा से बाहर रहना आपको इच्छाओं का गुलाम बना देता है। इसका मतलब न केवल संभोग से बचना है बल्कि इसमें स्पर्श की भावना से जुड़े सभी सुख भी शामिल हैं, जैसे। गर्मी के दिनों में ठंडी हवा या कठोर सतह के लिए कुशन का उपयोग करना। 

फिर इस धर्म का अभ्यास हमारी इच्छाओं को नियंत्रण में रखने के लिए किया जाता है। भिक्षु अपने पूरे शरीर, वाणी और मन से इसका उच्चतम स्तर तक अभ्यास करते हैं। गृहस्थ अपने जीवनसाथी के अलावा किसी के साथ संभोग करने से परहेज करता है। इसलिए यह दिन ब्रह्मचर्य के महान व्रत का पालन करने के लिए मनाया जाता है; अंतरात्मा और सर्वज्ञ भगवान के प्रति भक्ति रखना।

Jain Religion जैन धर्म

 जैन धर्म, एक प्राचीन भारतीय धर्म, की कई प्रमुख विशेषताएं हैं:


1. *अहिंसा (अहिंसा)*: जैन सभी जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचाने से बचने में विश्वास करते हैं, करुणा और दयालुता पर जोर देते हैं।


2. *अनासक्ति (अपरिग्रह)*: जैन खुद को सांसारिक संपत्तियों और इच्छाओं से अलग करने का प्रयास करते हैं।


3. *सत्य (सत्य)*: जैन विचार, शब्द और कार्य में ईमानदारी और सच्चाई को महत्व देते हैं।


4. *आत्म-नियंत्रण (ब्रह्मचर्य)*: जैन आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए आत्म-नियंत्रण और ब्रह्मचर्य का अभ्यास करते हैं।


5. *चोरी न करना (अस्तेय)*: जैन लोग स्वतंत्र रूप से दी गई किसी भी चीज़ को लेने से बचते हैं।


6. *सादा जीवन*: जैन लोग विलासिता और अधिकता से बचते हुए सरल जीवन शैली की वकालत करते हैं।


7. *शाकाहार*: अधिकांश जैन जानवरों को नुकसान पहुंचाने से बचते हुए लैक्टो-शाकाहारी आहार का पालन करते हैं।


8. *कर्म और पुनर्जन्म*: जैन लोग किसी के कर्म से प्रभावित होकर जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में विश्वास करते हैं।


9. *मुक्ति (मोक्ष)*: अंतिम लक्ष्य पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना, सर्वज्ञता और आनंद प्राप्त करना है।


10. *तीर्थंकर*: जैन 24 तीर्थंकरों (आध्यात्मिक शिक्षकों) का सम्मान करते हैं जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की है और दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं।


11. *धर्मग्रंथ*: जैन आगम (विहित ग्रंथ) और अन्य धर्मग्रंथों को पवित्र मानते हैं।


12. *अद्वैतवाद*: जैन भिक्षु और नन सांसारिक मोह-माया को त्यागकर कठोर तपस्वी जीवन शैली का पालन करते हैं।


13. *सामान्य अनुयायी*: जैन अनुयायी सांसारिक जिम्मेदारियों के साथ आध्यात्मिक प्रथाओं को संतुलित करते हैं।


14. *अनुष्ठान और प्रथाएँ*: जैन विभिन्न अनुष्ठान करते हैं, जैसे पूजा (पूजा), और अभ्यास, जैसे ध्यान और उपवास।


ये विशेषताएं जैन धर्म का मूल हैं, जो आध्यात्मिक विकास, करुणा और आत्म-अनुशासन पर जोर देती हैं।

 जैन धर्म स्वस्थ और आध्यात्मिक जीवन शैली के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करता है, जिनमें शामिल हैं:


*आहार:*


1. शाकाहार: मांस, मछली, अंडे और पशु उत्पादों से बचें।

2. _गैर-जड़ वाली सब्जियाँ_: आलू और प्याज जैसी जमीन के नीचे उगाई जाने वाली सब्जियों से बचें।

3. _उपवास_: आत्म-नियंत्रण विकसित करने के लिए नियमित उपवास या आंशिक उपवास।

4. परहेज करें: शहद, शराब और अन्य नशीले पदार्थ।


*पेय पदार्थ:*


1. फ़िल्टर किया हुआ पानी: सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचाने से बचने के लिए कपड़े से फ़िल्टर किया हुआ पानी पियें।

2. परहेज करें: शराब, चाय, कॉफी और अन्य उत्तेजक पदार्थ।


*नींद और जागना:*


1. _जल्दी उठना_: आध्यात्मिक अभ्यास के लिए सूर्योदय से पहले उठें।

2. मध्यम नींद: 6-8 घंटे की नींद का लक्ष्य रखें।

3. परहेज करें: दिन में सोना या अत्यधिक सोना।


*अन्य जीवनशैली दिशानिर्देश:*


1. अनासक्ति: भौतिक संपत्ति और इच्छाओं के प्रति आसक्ति से बचें।

2. सादा जीवन: विलासिता और अधिकता से बचते हुए सादगी से जिएं।

3. _आत्मचिंतन_: अपने विचारों, शब्दों और कार्यों पर नियमित रूप से चिंतन करें।

4. _ध्यान और योग_: आध्यात्मिक विकास के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करें।

5. दान और सेवा: धर्मार्थ गतिविधियों में संलग्न रहें और दूसरों की सेवा करें।

6. _बचें_: हिंसा, झूठ बोलना, चोरी करना और अन्य हानिकारक कार्य।

7. सम्मान करें: सभी जीवित प्राणियों, बड़ों और आध्यात्मिक नेताओं के प्रति सम्मान दिखाएं।


इन सिद्धांतों का उद्देश्य जैन मूल्यों के अनुरूप संतुलित, दयालु और आध्यात्मिक जीवन शैली को बढ़ावा देना है।

Friday, July 19, 2024

क्या हमें हांथ पर हांथ रखे बैठे रहना चाहिए?

SHOULD WE KEEP SITTING 

HAND ON HAND? 


It's online era. Now, our mind set is as such that we place the order and get home delivery on time. But, the matter of Bank Pensioners is not online issue. This is a completely off-line and back-office issue. Inherently, it takes time. Anyway, we Pensioners are outsider for this system. Our voice is like the sound of a trumpet in a theater. Irrespective our said position, we should continue our work taking inspiration from the mythological squirrel. 


The prevalent system in banking is the bilateral System, under which wages, allowances, service conditions, promotions, postings etc. are decided by the Management and the Unions jointly. Pension settlement is also through this system. It is not that in this system there has been no conflict between Management and Unions regarding demands. Conflicts have been there. There have been protests, demonstrations and strikes. But, there has never been any conflict on Pension Revision, since it didn't come to discussion level any time so far. 


There is a practical and legal mechanism to resolve conflicts. The disagreement in the 10th Settlement regarding salaries etc. had turned into tension. IBA was not ready to give wage load more than 13.5% and Unions were adamant on 17%. In this dilemma, the Unions requested to meet the Finance Minister jointly. Both IBA and UFBU  jointly met then Finance Minister Late Sri Arun Jaitley ji. 


During the meeting with the Finance Minister, as it happened, the IBA went up a bit and the Unions came down a bit and the matter was settled at 15% wage load. We may say, the right initiative at the right time in any matter regarding never fails. 


Our question is, did IBA and Unions ever have a standoff regarding Pension Revision? As per  records, till now the issue of Pension Revision has never reached the level of talks, so what can we talk about tension or conflict. And to be clear, the demand for pension revision was always stuck at number 22/24 of the COD. In fact this never reached discussion level. 

The Unions kept making various fake narratives in revision matter. In such a situation, there was no opportunity for agreement or disagreement on this issue, and when such an opportunity did not come, then what to talk about stubbornness! 

There is a section of pensioners who keep cursing the government very off and on. When they were in service, they used to say "Down with the government" as an amateur. They are not giving up this habit even after retirement. This is the easiest thing to do on social media. 

Unions are not hit even though they are representative organizations of Bankmen. It is the responsibility of the Unions to solve the problems of Bankmen. This is a contractual matter between the Unions and the Bankmen. The basic condition of this contract is that "Bankmen give the subscription & levy to Unions & Unions would provide you good wages, allowances, pensions, service conditions' agreements as well as protection from managerial exploitation and harassment." Catch hold your Contractor, not the Government. Rather, seek help from the Government as the contractor has run away from his responsibility, taking along payments. 

People know that there will be no action for abusing the government. But, Bankmen will have to face the consequences of saying something against Union leaders. The bank employees have not chosen the Union leaders, but "Bhai", the same "Bhai" as in the films. Sometimes this "bhai" was really savior of the Bankmen from the tyranny of the management. But now this "bhai' has changed. It can be said that this " Bhai" of the bank employees is now lap kid of the management. He is now double-cross. Bank employees are afraid because their "bhai' is now a pet of the management, but till date we have not understood why the Pensioners are afraid. 


Hit these double-crosses. This makes a difference. This time the bank employees did a small experiment. The Unions resorted to the tactic of forcibly get levy deducted from the arrears by sitting in the lap of the management. Within no time, 100% of the levy was recovered from Canara Bank, but bank employees in other banks exposed this conspiracy. Said 'no' to levy. A Federation of Retirees also tried to impose a levy on the arrears of ex-gratia, but that too failed. The lifeline of these scoundrels is subscriptions and levy. Choke this lifeline. Union funds have turned leaders into criminals. Union funds are the oxygen of leaders. We have seen a leader barking like a mad dog over the levy blockage, writhing in agony as if someone had removed an oxygen pipe from his nose. 

(J. N. Shukla) 
National Convener
19.7.2024
9559748834



जमाना आन लाइन का है। हमारा माइंड सेट बन चुका है कि हम आर्डर दें और समय से होम डिलीवरी हो जाए! लेकिन, बैंक पेंशनर्स का मामला आनलाईन का नहीं है। यह पूर्णतया आफ -लाइन और बैक-आफिस का मामला है। इसमें समय लगना एक स्वाभाविक बात है। वैसे भी हम पेंशनर्स इस सिस्टम के बाहर के लोग हैं। हमारी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसी है। लेकिन हमें गिलहरी से प्रेरणा लेते अपना काम जारी रखना चाहिए। 

बैंकिंग में प्रचलित प्रणाली, अर्थात द्वितीय समझौता प्रणाली, है, जिसके तहत वेतन, भत्ते, सेवा शर्तें, प्रमोशन, पोस्टिंग आदि मैनेजमेंट और यूनियनें मिल कर तय करती रही है। पेंशन समझौता भी इसी प्रणाली की देन है। ऐसा नहीं है कि इस प्रणाली में मांगों को लेकर बैंकों और यूनियनों मे टकराव न हुआ हो। टकराव होते रहे हैं। धरना, प्रदर्शन, हड़तालें होती रहीं हैं। लेकिन, पेंशन रिवीजन को लेकर कभी इस तरह की तनातनी की स्थिति का उल्लेख नहीं मिलता। 

टकराव को दूर करने का एक व्यवहारिक और कानूनी मेकानिज्म है। वेतन आदि को लेकर 10वें समझौते में असहमति तनातनी में बदल गई थी। आईबीए 13.5% से ज्यादा वेज लोड देने को तैयार नहीं था और यूनियनें 17% पर अड़ी हुईं थी। इस अड़ा-अड़ी में यूनियनों ने वित्तमंत्री से मुलाकात की बात रखी। आईबीए और यूयफबीयू, दोनों एक साथ तत्कालीन वित्तमंत्री स्व. अरुण जेटली जी से मुलाकात की। 

वित्तमंत्री से मुलाकात के दौरान, जैसा हुआ, आईबीए थोड़ा ऊपर गया और यूनियनें थोड़ा नीचे आई और मामला 15% वेज लोड पर तय हो गया। सवाल स्थिति और उसके सापेक्ष व्यवहारिक पहल की है। समस्या को लेकर सही समय पर सही पहल कभी असफल नहीं होती। 

हमारा सवाल है, क्या पेंशन रिवीजन को लेकर कभी आईबीए और यूनियनों में अड़ा-अड़ी हुई? रिकार्ड के अनुसार अभी तक पेंशन रिवीजन का मामला कभी बातचीत के स्तर तक पहुंचा ही नहीं, तो तनातनी या टकराव की क्या बात की जाए। और स्पष्ट कहें, तो पेंशन रिवीजन की मांग, मांगपत्र के 22/24 वें नंबर पर हमेशा अटकी रही। यह बातचीत के धरातल पर कभी लाई नहीं गई। इसको लेकर यूनियनें तरह -तरह की जुमलेबाजी करतीं रहीं। ऐसे में इस मुद्दे को लेकर सहमति और असहमति का मौका आया ही नहीं और जब ऐसा मौका ही नहीं आया तो अड़ा-अड़ी की क्या बात करें! 


पेंशनर्स का एक वर्ग है, जो पानी पी-पी कर सरकार को कोसता रहता है। सब सर्विस में था तो शौकिया "सरकार मुर्दाबाद' करता था। सेवानिवृत्ति के बाद भी यह लत नहीं छूट रही है। सोसल मीडिया पर यह सबसे आसान काम है। यूनियनों को हिट नहीं किया जाता, जब कि वे बैंककर्मियों के प्रतिनिधि संगठन हैं। बैंककर्मियों की समस्याओं के निराकरण का दायित्व यूनियनों का है। यह यूनियनों और बैंककर्मियों के बीज संविदात्मक मामला है। इस कांट्रॅक्ट में यह बुनियादी शर्त है कि "तुम हमें चन्दा- लेवी दो - हम तुम्हारे लिए अच्छा वेतन, भत्ता, पेंशन, सेवा सुविधाओं के समझौतों के साथ -साथ प्रबंधकीय शोषण और उत्पीड़न से रक्षा करेंगे। सरकार को नहीं, अपने ठीकेदार को पकड़ो। सरकार से मदद मांगों कि ठीकेदार अपने दायित्व से पैसा लेकर भाग गया है। 

लोगों को मालूम है कि सरकार को गाली देने से कोई एक्सन नहीं होगा। लेकिन, यूनियन नेताओं को कुछ कहने का दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। बैंककर्मियों ने यूनियन नेता नहीं 'भाई', वही फिल्मों वाला भाई  चुना है। कभी यह भाई वाकई मैनेजमेंट की गुंडागर्दी से बैंककर्मियों की रक्षा करता था। लेकिन अब यह भाई बदल गया है। कहने को तो वह बैंककर्मियों का भाई है, लेकिन वह अब मैनेजमेंट की गोद में भी बैठा है। डबल- क्रास हो चुका है। बैंककर्मी डरते है, क्योंकि उनका भाई अब मैनेजमेंट का पालतू है, लेकिन पेंशनर्स क्यों डरते हैं, यह बात हमारे समझ में आज तक नहीं आई। 

इन बेइमानों को हिट करो। इससे फरक पड़ता है। इस बार बैंककर्मियों ने एक छोटा सा प्रयोग किया। यूनियनों ने मैनेजमेंट की गोद में बैठकर एरियर से जबरन लेवी वसूलने का तिकड़म भिड़ाया। देखते देखते कनारा बैंक से शतप्रतिशत लेवी वसूल हो गई, लेकिन अन्य बैंकों में बैंककर्मियों ने इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर दिया। लेवी 'नो' कर दिया। रिटायरी की एक फेडरेशन ने भी एक्सग्रैसिया के एरियर पर लेवी का दांव चला, लेकिन वह भी फेल हो गया। इन बदमाशों की लाइफलाइन चन्दा और लेवी है। इस लाइफलाइन को चोक करो। यूनियनों का फंड नेताओं को अपराधी बना दिया है। यूनियनों का फंड नेताओं का आक्सीजन है। हमने एक नेता को लेवी में हुई रुकावट को लेकर पागल कुत्ते की तरह भौंकते देखा है। उसे तड़पते देखा, जैसे उसकी नाक से किसी ने आक्सीजन पाइप निकाल दिया हो। 


JN SHUKLA
15.1.2024

Saturday, July 6, 2024

Updating Pension of Bank Retirees

To

Sri M. V. Rao,

Chairman, IBA 
Mumbai 

Sri Sunil Mehta,
Chief Executive,
Indian Banks Association 
Mumbai 


Dear Sirs,

         PENSIONERS ISSUES

In continuation of our mail dated 29th June, 2024 addressed to both of you, through which we sought your indulgence in resolving Pensioners plight, we would like to draw your kind attention towards the growing unrest and frustration along the Pensioners in respect of whom expected steps are not being taken by you. You are well aware of the issues of Pensioners.


Wage revision settlement was reached on 8.3.2024 and the new pay scale was paid in the next 22 days for March , 2024, with arrears from November, 2022 to February, 2024. Under your able leadership, this time the Settlement was reached in a few months and its implementation took place in a very short time, just 22 days, which is a record.


The Pensioners would have been very happy and grateful to you, if necessary steps would have been taken with same speed, as in case of implementation of wages settlement, in respect of understanding reached in the Joint Note dated 8.3.2024 to insert the provision of 'periodic pension revision in the pension regulations along with wage settlements.' 

Who can understand the urgency of this provision better than you? This provision is directly related to Pension Updation, which is pending for the last 37 years. In the MC Singla case pending in the Supreme Court, IBA has cited the absence of provision for updation in the regulations as the reason for non-pension revision. In the settlement dated 8.3.2024, the reason for non-updation of pension was given as the case being sub-judice. In such a situation, the underlying objective of the above provision is related to pension updation, there is no confusion in it. The eagerness of the pensioners to insert the above provisions in the Pensioners Regulations can be understood.


The agreement regarding ex-gratia has a provision for review in April every year from 2024. A meeting was held last April, but the ex-gratia could not be reviewed, as final financial results of the banks were not finalized. Now that the financial results of the banks have come, no meeting is being held for review. Reviewing the ex-gratia is a contractual obligation, not reviewing is a breach of agreement and we trust it is not your intention to breach the agreement. In view of the long standing neglect and harassment of pensioners, further ignoring their entitlements is inhuman and ingratuous. 


Ignoring the health security of Pensioners is the cause of death of thousands of Pensioners, of which you are well aware. This is deliberate criminal negligence. Report of the Khandelwal Committee and the allocation of Welfare Funds by the Secretary, Department of Financial Services to the Public Sector Banks on the basis of that Report vide his letter dated 24.2.2012 with suggestion that the Welfare Funds may be used for health insurance of "both" working and retired. You are well acquainted of it. It is also known that the Banks have been using the Welfare Funds for Health Insurance of working bank employees, but the responsibility of insurance of the retired has been left on the retired. This is a case of discrimination and  misuse of Welfare Funds.


We have sent several mails to you including the one referred above, requesting you to take necessary steps on the above mentioned issues. And, we are very optimistic that you might be sincerely and seriously doing on above issues, but apparently there is nothing visible, so Pensioners have worries on these matters. We again draw your attention to the following issues and request for the required decision at the earliest:


 1. The provision for periodic pension updation along with wage revision settlements in the Pension Regulations, 1995, as agreed to on 8.3.2024, please be inserted immediately with the prior approval of RBI and Government,


2. Pension updation has been the subject of the 12th Bipartite Settlement /9th Joint Note, hence in accordance with the above newly created updation clause, the Pension of the Pensioners till 31.10.2022 please be revised on RBI line,


3. In  ex-gratia matter, since now the financial results of the Banks have come in, the ex-gratia please be reviwed and fine tuned,


4. Ex-gratia is a matter related to Pensioners and Pension Scheme. The Pension Agreement dated 29.10.1993 is applicable to a total of 58 Banks including PSBs & private sector banks. Therefore, this agreement should be implemented in all the Banks party to Pension Agreement, and


5. Health Insurance is the right of Retired Bank Employees. Therefore, Health Insurance please be provided at the cost of the Banks. The expected reduction in premium from common insurance policy of working and retired is not the solution to the problem. Not being able to pay premium is the problem of Retired Bank Employees. Again, this is the Corporate Social Responsibility of the Banks. The Government has allocated Welfare Funds to the Banks for this. Therefore, Health Insurance of minimum Rs. 5 lakh please be provided by the Banks to all the Retired bank employees.


We are confident that, keeping in view the seriousness of the above issues, you will take immediate decisions on them, for which the pensioners will be grateful to you throughout their life.


Regards,

(J. N. Shukla)
National Convener 
6.7.2024
9559748834

COPY TO: SECRETARY, 
                  DFS, MOF,
                  NEW DELHI
- WITH A REQUEST TO PLEASE LOOK INTO.



आप दोनों को संबोधित हमारे दिनांक 29 जून, 2024 के मेल के क्रम में, जिसके माध्यम से हमने पेंशनर्स की दुर्दशा को हल करने में आपकी कृपा मांगी थी, हम पेंशनर्स के बीच बढ़ती अशांति और हताशा की ओर हम आप की कृपादृष्टि आकर्षित करना चाहते हैं, जिनके संबंध में आपकी ओर से अपेक्षित कदम नहीं  उठाया जा रहा है। पेंशनर्स के मुद्दों से आप भली-भांति अवगत हैं।

8.3.2024 को वेतन पुनरीक्षण समझौता हुआ और मार्च, 2024 के लिए नए वेतनमान का भुगतान नवंबर, 2022 से फरवरी, 2024 तक के एरियर के साथ अगले 22 दिनों में किया गया। आपके कुशल नेतृत्व में इस बार कुछ ही महीनों में समझौता हो गया और बहुत ही कम समय, मात्र 22 दिन, में इसका कार्यान्वयन हुआ, जो एक रिकॉर्ड है.


पेंशन विनियमों में वेतन समझौतों के साथ आवधिक पेंशन अपडेशन के प्रावधान को शामिल करने के लिए दिनांक 8.3.2024 के संयुक्त नोट में बनी सहमति के संबंध में वेतन समझौता लागू करने के समान गति से आवश्यक कदम उठाए गए होते, तो पेंशनर्स आपके प्रति बहुत खुश और आभारी होते। 


इस प्रावधान के महत्व को आपसे बेहतर कौन समझ सकता है। इस प्रावधान का सीधा संबंध पेंशन अपडेशन से है, जो पिछले 37 वर्षों से लंबित है। सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन एम सी सिंगला केस में आईबीए ने पेंशन रिवीजन न होने का कारण रिगुलेशंस में अपडेशन का प्रावधान न होना बताया है। 8.3.2024 के समझौते में पेंशन अपडेशन न होने का कारण मामले का न्यायाधीन होना बताया गया। ऐसे में उपरोक्त प्रावधान का अंतर्निहित उद्देश्य पेंशन अपडेशन से जुड़ा है, इसमें कोई भ्रम नहीं है। पेंशनर्स रिगुलेशंस में उपरोक्त प्रावधान डालने की पेंशनर्स की उत्सुकता समझी जा सकती हैं।

एक्स-ग्रैसिया को लेकर हुए अनुबंध में 2024 से हर वर्ष अप्रैल में उस पर पुनर्विचार का प्रावधान है। विगत अप्रैल में बैठक तो हुई, लेकिन बैंकों के अंतिम वित्तीय परिणाम न आने के कारण एक्स-ग्रैसिया पर पुनर्विचार नहीं हो सका। अब जब बैंकों के वित्तीय परिणाम आ चुके हैं, तो पुनर्विचार के लिए बैठक ही नहीं हो रही है। एक्स-ग्रैसिया पर पुनर्विचार करना अनुबंधीय बाध्यता है, पुनर्विचार न करना अनुबंध की अवमानना है और हमे विश्वास है अनुबंध की अवमानना करना आपका उद्देश्य नहीं है। पेंशनर्स की लंबे समय से उपेक्षा और उत्पीड़न के आलोक में उनके हक की और अनदेखी अमानवीय कृतघ्नता है।

पेंशनर्स के स्वास्थ्य सुरक्षा की अनदेखी हजारों पेंशनर्स के मौत का कारण है, जिससे आप भली-भांति अवगत हैं। यह जानबूझकर की गई आपराधिक लापरवाही है। खंडेलवाल कमेटी की रिपोर्ट और उस रिपोर्ट के आधार पर सार्वजनिक बैंकों को सचिव, वित्तीय सेवाएं विभाग द्वारा अपने पत्र दिनांक 24.2.2012 के माध्यम से कल्याण निधि का आवंटन और उनका सुझाव कि वर्किंग और रिटायर्ड "दोनों" के स्वास्थ्य बीमा के लिए कल्याण निधि का उपयोग किया जा सकता है, जैसी बातों से आप भली-भांति परिचित हैं। इस बात से भी अवगत हैं कि बैंकों ने कल्याण निधि का उपयोग वर्किंग बैंककर्मियों के स्वास्थ्य बीमा के लिए किया जाता रहा है, लेकिन रिटायर्ड के बीमा का दायित्व रिटायर्ड पर छोड़ दिया गया है। यह कल्याण निधि के भेद-भाव पूर्ण दुरूपयोग का मामला है।


हमने आपको उपरोक्त सहित कई मेल भेजे हैं, जिसमें आपसे उपरोक्त मुद्दों पर आवश्यक कदम उठाने का अनुरोध किया गया है। और, हम बहुत आशावादी हैं कि आप उपरोक्त मुद्दों पर ईमानदारी और गंभीरता से काम कर रहे होंगे, लेकिन जाहिर तौर पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, इसलिए पेंशनर्स को इन मुद्दों पर चिंता है। हम फिर से निम्नलिखित मुद्दों पर आपका ध्यान आकर्षित करते हैं और जल्द से जल्द आवश्यक निर्णय लेने का अनुरोध करते हैं:



 1. पेंशन रिगुलेशंस, 1995 में वेतन समझौतों के साथ आवधिक पेंशन अपडेशन का प्रावधान, जिसकी सहमति 8.3.2024 को हुई है,  आरबीआई व सरकार की पूर्वानुमति से तत्काल डाला जाए,

2. पेंशन अपडेशन 12वें द्विपक्षीय समझौते/9वें ज्वाइंट नोट का विषय रहा है, अतः उपरोक्त नवनिर्मित अपडेशन क्लाज के अनुक्रम में 31.10.2022 तक के पेंशनर्स की पेंशन आरबीआई लाइन पर रिवाइज की जाए,

3. एक्स-ग्रैसिया के समझौते के अनुक्रम में, चूंकि अब बैंकों के वित्तीय परिणाम आ चुके हैं, एक्स-ग्रैसिया पर पुनर्विचार करते इसे फाइन ट्यून किया जाए,

4. एक्स-ग्रैसिया पेंशनर्स और पेंशन स्कीम से जुड़ा मामला है। पेंशन समझौता सार्वजनिक बैंकों सहित कुल 58 बैंकों पर लागू है। अतः इसे समझौते से संबद्ध सभी बैंकों में लागू किया जाए, और

5. स्वास्थ्य बीमा रिटायर्ड बैंककर्मियों का अधिकार है। अतः,  बैंकों की लागत से स्वास्थ्य बीमा दिया जाए। वर्किंग और रिटायर्ड के संयुक्त बीमा पालिसी से प्रीमियम में अपेक्षित कमीं समस्या का समाधान नहीं है। प्रीमियम न दे पाना रिटायर्ड बैंक कर्मियों की समस्या है। पुनः , यह बैंकों की कार्पोरेट सोसल रिस्पांसिबिलिटी है। सरकार ने इसके लिए बैंकों को कल्याण निधि आवंटित कर रखा है। अतः सभी रिटायर्ड बैंककर्मियों को न्यूनतम रु.5 लाख का स्वास्थ्य बीमा बैंकों की तरफ से उपलब्ध कराया जाए।

हमें विश्वास है, उपरोक्त मुद्दों की गंभीरता को दृष्टिगत रखते आप इन पर तत्काल निर्णय लेंगे, जिसके लिए पेंशनर्स आपके आजीवन आभारी रहेंगे।

सादर,


Sister Nirmala Sitharaman,
Hon'ble Finance Minister,
Govt of India,
New Delhi


Respected Sister,
Namaskar


             PENSION REVISION-
                  BE A PART OF 
         100 DAYS GOVERNANCE 



Bank Pensioners were  highly hopeful that their Pension would be revised on RBI lines with the recently concluded Pay Settlement on 8.3.2024. As informed, Pension Revision could not be done due to matter being sub-judice, which is not only inappropriate in the light of facts but also a contradictory stand. We seek your permission to place before you the relevant facts as under:

1. There is no 'stay order' from the Court:

"Subjudice" does not mean “stay order.” Since the matter is a bilateral & of contract, the parties involved have complete freedom to reach an amicable settlement outside the Court. Keeping in mind the decorum of the Hon'ble Court, the parties can also reach a settlement with the permission of the Court, as has happened in the case of 40% to 50% Pension issue of State Bank, pending before the Honorable Delhi High Court.

2. Double standards regarding 'subjudice' are unfair:

If sub-judice is said to be a cogent reason for not updating the Pension, it should have been applied earlier in the Special Allowance case, which has been quashed by the Single Judge Bench of the Kerala High Court and the Banks have gone in appeal before the Double Bench. Apart from this, about 14 petitions against Special Allowance are pending in various High Courts. But, despite the Special Allowance case being dismissed at one level and heavily sub-judice in other HCs, the IBA has increased Special Allowance in the 11th and 12th Bipartite Settlements.

How can there be two different definitions or yardsticks to treat "subjudice?" In this way, Banks/IBA cannot behave irresponsibly as per their convenience. Banks and IBA should not forget that the Government of India is also a party to the Special Leave Petition pending in Hon'ble Supreme Court, where the IBA has already put itself as well as the Government of India in the dock by giving a false affidavit. Saying in the Honorable Supreme Court that there is no provision for pension updation in the Pension Regulations is an attempt to take wrongful benefits by misleading the Honorable Court and is a cognizable offense in the eyes of the Court.

3. What happened is unfair:

What has happened so far, even despite your intervention, was unexpected. This has given an unwanted message that the management and the IBA are heavier to the Honorable Finance Minister. IBA has flouted the message you gave in October/November 2020 regarding Bank Pensioners. It's  their audacity. How do you look at this is a matter of your discretion.

4. Gratitude for ex-gratia, but it is not a substitute for Pension Revision:

On 8.3.2024, due to your intervention Pensioners have started getting a small relief amount in the name of ex-gratia from 1.11.2022, for which we are grateful to you. With all humility we want to tell you that ex-gratia is not a substitute for Pension. We have the right to pension revision on RBI lines and we want the same.

5. Ex-Gracia was to be reviwed in April, which did not happen:

The ex-gratia amount was to be reviewed in April, 2024. A meeting was also held, but due to non-availability of financial results of the Banks, review could not take place. Now the results of all the Banks have come, but the IBA has not taken any step to review the ex-gratia. Pensioners are repeatedly sending mails to the Chairman of IBA and Secretary, DFS, in this regard, but no action is being taken.

6 Provision for periodic pension updation in Pension Regulations is not being taken up:

The joint note signed on 8.3.2024 mentions the concurrence that a provision for periodic pension revision along with pay revision should be inserted in the Pension Regulations. 110 days have passed since this consent, but IBA has not taken any step to insert the provision of periodic Pension Revision in the Pension Regulations. In this regard also several mails have been sent to Chairman, IBA and Secretary, DFS. IBA should take steps to insert provisions with prior permission of the government, which is not being taken. 

7. Last Pension option:

Some 100/150 retirees unfortunately could not take second option in 2010. Looking to their poor economic condition, one last chance for pension option may please be granted.

8. There were 58 Banks party to Pension Agreement dated 29.10.1993. Exgratia may please be extended to all Banks' Pensioners party to Pension Agreement. IBA may please be directed accordingly.

We have been continuously requesting you to take serious note of the pitiable condition of the Bank Pensioners and please consider, intervene and direct the Banks to resolve the following major Demands of the Pensioners:


1. Pension updation of Pensioners up to 31.10.2022 on RBI line from the applicable date in RBI,


2. Health insurance to all Pensioners from the Welfare Funds or at the cost of Banks,

3. Last Pension option chance, &

4. Extend exgratia to Pvt Bank
    Pensioners.


Pensioners are looking at you with hopeful eyes. We hope, now they will not have to worry anymore. You will do justice to them at your earliest possible.

Respectful Regards,

(J. N. Shukla)
National Convener 
23.6.2024
9559748834

Copy to:

Sri Girish Chandra Arya,
National Secretary & 
Financial Sector Incharge,
Bharatiya Mazdoor Sangh,
New Delhi 

For necessary action, please.

Saturday, May 11, 2024

Subsidy On Medical Insurance Premium paid By Bank Retirees

 Public Sector Banks have decided to give subsidy to those retirees who buy IBA sponsored Medical Insurance policy.I ask why other retirees who opt for other company's policy or who do not buy any medical insurance  policy should not be compensated equally. 


I would like to submit following pertinent points before you and hope you will sincerely ponder over it. I may be right or wrong but these questions definitely arise after announcement of subsidy by public banks for those retirees who buy IBA /UFBU recommended insurance policy 

A. It appears Banks are getting commission from insurance companies and hence sharing their income with only those employees and retirees who subscribed to Health Insurance policy which Indian Bank Association recommend to them.

B. ARE BANKS in the name of IBA marketing insurance business for companies they like. Sometime they recommend United insurance and sometime New India Sponsored Insurancepolicy. And above all these insurance companies drastically increase premium every year and retirees are constrained/ tempted to buy these policies. 

As a matter of fact retirees who do not buy any policy are bearing more risk and they should be compensated more as compared to those retirees who opt for any policy.

C. Are bank unions also partners in point number A and B and  they are also responsible in implementation of discriminatory policy which directly attack Right of Equality of employees in general and retirees in particular. 


If I am wrong I would like to know from you what is the rationale behind aforesaid policy.

Danendra Jain 

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने उन सेवानिवृत्त लोगों को सब्सिडी देने का फैसला किया है जो आईबीए प्रायोजित मेडिकल बीमा पॉलिसी खरीदते हैं। मैं पूछता हूं कि अन्य सेवानिवृत्त लोग जो अन्य कंपनी की पॉलिसी चुनते हैं या जो कोई मेडिकल बीमा पॉलिसी नहीं खरीदते हैं, उन्हें समान रूप से मुआवजा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए।

मैं आपके समक्ष निम्नलिखित प्रासंगिक बिंदु रखना चाहता हूं और आशा करता हूं कि आप इस पर ईमानदारी से विचार करेंगे। मैं सही या गलत हो सकता हूं लेकिन सार्वजनिक बैंकों द्वारा उन सेवानिवृत्त लोगों के लिए सब्सिडी की घोषणा के बाद ये सवाल जरूर उठते हैं जो आईबीए/यूएफबीयू अनुशंसित बीमा पॉलिसी खरीदते हैं।

उ. ऐसा प्रतीत होता है कि बैंक बीमा कंपनियों से कमीशन प्राप्त कर रहे हैं और इसलिए अपनी आय केवल उन कर्मचारियों और सेवानिवृत्त लोगों के साथ साझा कर रहे हैं जिन्होंने स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी की सदस्यता ली है, जिसे भारतीय बैंक संघ उन्हें सुझाता है।

बी. आईबीए के नाम पर बैंक अपनी पसंदीदा कंपनियों के लिए बीमा व्यवसाय का विपणन कर रहे हैं। कभी वे यूनाइटेड इंश्योरेंस की सलाह देते हैं तो कभी न्यू इंडिया स्पॉन्सर्ड इंश्योरेंस पॉलिसी की। और सबसे बढ़कर, ये बीमा कंपनियाँ हर साल प्रीमियम में भारी वृद्धि करती हैं और सेवानिवृत्त लोग इन पॉलिसियों को खरीदने के लिए बाध्य/प्रलोभित होते हैं।

वास्तव में, जो सेवानिवृत्त लोग कोई पॉलिसी नहीं खरीदते हैं, वे अधिक जोखिम उठा रहे हैं और उन्हें उन सेवानिवृत्त लोगों की तुलना में अधिक मुआवजा दिया जाना चाहिए जो कोई भी पॉलिसी चुनते हैं।

सी. क्या बैंक यूनियनें भी बिंदु संख्या ए और बी में भागीदार हैं और वे भेदभावपूर्ण नीति के कार्यान्वयन में भी जिम्मेदार हैं जो सामान्य रूप से कर्मचारियों और विशेष रूप से सेवानिवृत्त लोगों के समानता के अधिकार पर सीधा हमला करती हैं।


यदि मैं गलत हूं तो मैं आपसे जानना चाहूंगा कि उपरोक्त नीति के पीछे क्या तर्क है?

11.05.2024

दानेन्द्र जैन



Tuesday, February 13, 2024

Good People to Bank


Dear Activist Sisters & Bros,


It is a matter of pride to work with good people for a noble cause. There is self-satisfaction that we all are of use to someone. The people associated with the Forum have the same goal and resolve. They are working as the voice of lakhs of elderly nameless , faceless Pensioners, who are struggling with financial constraints and health security problems.


We Activists will not regret that we did not raise our voice against injustice. We are a few people in lakhs, but wherever the Pensioners are, they can hear our footsteps. We are glad that we are not a bunch of sheep..


As far as the result is concerned, we should not get distracted. One day we will win. Nothing is impossible with strong will and dedicated efforts. Whatever has happened so far, we need to take it positively and for what has not happened, we have to try harder.


We expect the following from you:


1. We have to move forward step by step. Our messages and programs have to reach every Pensioner.


2. The number of Activists has to be increased. For this, every Activist has to add at least three new Activists to the Forum every month.


3. There are some passive Activists among us, who never actively participate in the activities of the Forum. There are some people who keep sending not just one good morning but half a dozen messages or many pictures of Gods and Goddesses. We respect their sentiments, but we appeal to them to behave with restraint.


4. The Forum is a voluntary organisation, self-financed. Therefore, every Activist owe some responsibility towards this. Contribute to your ability.


Regards,


(J. N. Shukla)




नेक काम के लिए अच्छे लोगों के साथ काम करना गौरव की बात होती है। आत्मसंतुष्टि होती है कि हम सब किसी के काम आ रहे हैं। फोरम से जो लोग जुड़े हैं, उनका ध्येय और संकल्प एक है। वे लाखों वयोवृद्ध पेंशनर्स की आवाज बनकर काम कर रहे हैं, जो आर्थिक तंगी और स्वास्थ्य सुरक्षा की समस्याओं से जूझ रहें हैं।


हम एक्टिविस्ट्स को इस बात का अफसोस नहीं रहेगा कि हमने अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाई। हम लाखों में कुछ लोग हैं, लेकिन पेंशनर जहां भी हैं, हमारे कदमों की आहट उन्हें सुनाई देती है। हमें खुशी है कि हम भेड़ों के झुंड नहीं हैं..


रहीं बात परिणाम कि तो हमें विचलित नहीं होना है। एक दिन हम जीतेंगे। दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पित प्रयास के आगे कुछ भी असंभव नहीं है। अभी तक जो कुछ भी हुआ है, उसे सकारात्मकता से लेने की जरूरत है और जो नहीं हो सका है, उसके लिए हमें और ताकत से प्रयास करना हैं।


हम आपसे निम्नलिखित बातों की अपेक्षा रखते हैं:


1. हमें कदम से कदम मिला कर चलना है। हमारे संदेशों और कार्यक्रमों को हर पेंशनर तक पहुंचाना है।


2. एक्टिविस्ट की संख्या बढ़ानी है। इसके लिए हर एक्टिविस्ट को हर महीने कम से कम तीन नये एक्टिविस्ट फोरम से जोड़ने हैं।


3. हमारे बीच कुछ निष्क्रिय एक्टिविस्ट्स हैं, जो कभी फोरम की गतिविधियों में सक्रियता से भाग नहीं लेते। कुछ लोग हैं जो गुड मार्निंग के एक नहीं आधा दर्जन संदेश या देवी -देवताओं के अनेकों चित्र भेजते रहते हैं। हम उनकी भावनाओं का आदर करते हैं, लेकिन हम उनसे संयत व्यवहार करने की अपील करते हैं।


4. फोरम एक स्वैच्छिक संगठन है, जो स्व-वित्तपोषित है। इसलिए, प्रत्येक कार्यकर्ता की इसके प्रति कुछ जिम्मेदारी बनती है। यथाशक्ति योगदान भी करें।