PENSIONERS' 4TH FEB. DHARANA
WILL BE AN EXPRESSION OF
THEIR DEEP ANGER & ANGUISH !
This is a mischievous misrepresentation that the government had not given a mandate for Pension Updation. The Government had advised the Banks/IBA to negotiate and settle on the demands of the Unions. The government had not said in its advice letter on which demands to negotiate and compromise and on which not. The government has been as serious towards the problems of Pensioners and their solutions as it has been towards the employees. Govt still wants this, but the Unions have neither made it an issue nor taken a serious stand on it.
Unions worked to squeeze to the last limits of financial feasibility for working staff. Neither in the past nor this time, the Unions thought about the financial plight or health-related problems of the Pensioners. Every rupee of the Welfare Funds has been spent on the Working staffers. Pensioners are entitled to 25% of the allocated Welfare Funds. But not a single penny is being spent on them. This time the Unions kept all the commitments aside and did not even discuss the Pension Revision. The 17% wage load and 3% increase on basic pay, totaling 20%, which would probably have been the maximum affordable capacity of Banks at present, Unions extracted for working staff, left Pensioners in the dark.
The government is anti-workers, this is a mischievous campaign. This is going to be the third agreement during the tenure of this government. Every bank employee knows what was the salary increase till the 9th Agreements made before this. In this government Bankmen got 2.5% to 3% load on basic pay along with 15% to 17% wage load. It is known to everyone that in the years 2016 to 2020, Public Banks were in deep economic crisis, yet they got 15% wage increase load. In this government, the ceiling on Family Pension was removed, Pensioners got 100% DA, pre-1986 retirees got equal ex-gratia amount, Resignees got Pension option. And, the monthly ex-gratia amount mentioned in the MoU dated 7.12.2023 is also a one-sided offer from the Banks, the purpose of which is to cool down the anger of the pensioners.
There is no basis to accept the argument that the government is anti-employee.
(J. N. Shukla)
National Convener
5.1.2024
9559748834
पेंशनर्स का 4 फरवरी का धरना उनके
गहरे क्रोध व पीड़ा की अभिव्यक्ति होगी !
यह शरारतपूर्ण गलत बयानी है कि सरकार ने पेंशन अपडेशन के लिए मैंडेट नहीं दिया था। सरकार ने बैंकों/आईबीए को सलाह भर दी थी कि वे यूनियनों के मांग-पत्रों पर बातचीत और समझौता करें। सरकार ने अपने इस अनुमति पत्र में यह नहीं कहा था कि किन किन मांगों पर बातचीत और समझौता करो, किन किन पर नहीं। सरकार पेंशनर्स की समस्याओं और उसके समाधान के प्रति उतना ही गंभीर रही है, जितना कर्मचारियों के लिए। वह आज भी चाहती है, लेकिन यूनियनों ने इसे मुद्दा नहीं बनाया और न ही इस पर गंभीर रुख अपनाया।
वित्तीय व्यवहार्यता की आखिरी हद तक यूनियनों ने वर्किंग स्टाफ के लिए निचोड़ने का काम किया। यूनियनों ने न अतीत में और न इस बार पेंशनर्स की आर्थिक विपन्नता या स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे में सोचा। कल्याण निधि का एक एक रूपया वर्किंग स्टाफ पर खर्च किया जाता रहा है। पेंशनर्स कल्याण निधि के 25% धनराशि के हकदार हैं। लेकिन उन पर एक पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है। इस बार तो यूनियनों ने सारी मर्तयादाएं ताक पर रखते, पेंशन रिवीजन पर चर्चा तक नहीं की। 17% वेतन भार और 3% मूल वेतन पर वृद्धि, कुल 20%, जो संभवतः वर्तमान में बैंकों की अधिकतम वहनीय क्षमता रही होगी, वर्किंग स्टाफ के लिए लेकर, पेंशनर्स को गच्चा दे दिया।
सरकार कर्मचारी विरोधी है, यह शरारत भरा अभियान है। इस सरकार के दौर में यह तीसरा समझौता होने जा है। इसके पहले हुए 9वें समझौतों तक क्या वेतन वृद्धि थी, यह हर बैंककर्मीं जानता है। इस सरकार में 15% से 17% वेतन भार के साथ 2.5% से 3% मूल वेतन पर लोड मिला। यह सबको मालूम है कि 2016 से 2020 के वर्षों में सार्वजनिक बैंकें गहरे आर्थिक संकट में थीं, फिर भी 15% वेतन भार मिला। इस सरकार में फेमिली पेंशन की सीलिंग हटी, 100% डीए पेंशनर्स को मिला, 1986 के पूर्व रिटायरीज को समान अनुग्रह-राशि मिली, रिजाइनीज को पेंशन विकल्प मिला। और, 7.12.2023 को सहमति-पत्र में जो मासिक अनुग्रह-राशि का जिक्र है, वह भी बैंकों की तरफ से एकतरफा आफर है, जिसका मकसद पेंशनर्स के आक्रोश को ठंडा करना है। इस दलील को मानने का कोई आधार नहीं है कि सरकार कर्मचारी विरोधी है।
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