Saturday, November 27, 2021

व्यायाम करना आवश्यक है

 *पहला सुख निरोगी काया - ६*


*व्यायाम करना आवश्यक है*


स्वास्थ्य के लिए उचित आहार के साथ-साथ उचित व्यायाम भी जरूरी है। भले ही आप कोई शारीरिक श्रम या भागदौड़ वाला कार्य करते हों, फिर भी व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम करने से एक तो हमारी माँसपेशियों और हड्डियों की शक्ति बढ़ती है, दूसरे पसीने के रूप में हमारे शरीर से विकार बाहर निकल जाते हैं, जिससे हम स्वस्थ रहते हैं। इसलिए व्यायाम अवश्य करना चाहिए।


व्यायाम में आपका जो समय लगता है, वह बेकार नहीं जाता, बल्कि उसका कई गुना समय आपको स्वास्थ्य के रूप में मिलता है। कहावत है कि जो व्यायाम के लिए समय नहीं देते, उन्हें बीमारी के लिए समय देना पड़ता है। व्यायाम के अभाव में बीमार पड़ने पर आपको डॉक्टरों के क्लीनिकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और बहुत सा धन भी खर्च करना पड़ता है। उस धन को कमाने में फिर आपका समय लगता है। इसलिए समय का सबसे अच्छा सदुपयोग यही है कि आप नियमित व्यायाम के लिए समय निकालें।


प्रश्न उठता है कि हमें कौन कौन से व्यायाम कितनी देर तक करना चाहिए कि हम स्वस्थ रहें? इस प्रश्न का कोई ऐसा सामान्य उत्तर नहीं दिया जा सकता जो सभी पर लागू हो। व्यायाम व्यक्ति की उम्र और शक्ति को देखकर तय किया जाता है। आवश्यकता से कम व्यायाम करने का पूरा लाभ नहीं मिलता और आवश्यकता से अधिक या गलत व्यायाम करने से हानि भी हो सकती है।


अठारह वर्ष तक के बच्चों के लिए खेलना कूदना ही सबसे अच्छा व्यायाम है। 10 वर्ष से बड़े बच्चे योगासन और प्राणायाम भी कर सकते हैं, ताकि शरीर सुडौल बने। 18 वर्ष से बड़े व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से अपनी रुचि के अनुसार व्यायाम करना चाहिए। व्यायाम का चुनाव अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए। यह अनुभव से निर्धारित हो सकता है या किसी अनुभवी व्यक्ति की सलाह ले सकते हैं। मूल बात यह है कि व्यायाम इतना हो कि आपको थोड़ा पसीना आ जाये और जब आप व्यायाम करके उठें, तो आपको यह तो लगे कि आपने कुछ किया है, लेकिन ऐसी थकान बिल्कुल न हो कि आप घंटों तक शिथिल और आलस्य में पड़े रहें।


सामान्य व्यक्ति के लिए रोज 45 मिनट से 1 घंटे तक का व्यायाम करना सबसे अच्छा है। इसमें योगासन, अंग व्यायाम और प्राणायाम सभी शामिल हैं। टहलना, धीमी दौड़ या जॉगिंग, अंग व्यायाम और प्राणायाम ऐसे व्यायाम हैं जिनको हर उम्र के लोग कर सकते हैं। इनसे कोई हानि होने की संभावना नहीं है। यह अवश्य है व्यायाम नियमित करने चाहिए। कभी किया, कभी नहीं किया - ऐसा करना उचित नहीं। इससे लाभ तो शायद ही हो, पर हानि होने की संभावना बनी रहती है। इसलिए अपवादस्वरूप आप किसी कारण से किसी दिन व्यायाम न कर सकें, तो कोई बात नहीं, लेकिन सप्ताह में पाँच दिन अवश्य अपने निर्धारित व्यायाम कर लेने चाहिए।


सूर्य नमस्कार, योगासन तथा कठिन शारीरिक व्यायाम अपनी शक्ति के अनुसार ही सीमित मात्रा में करने चाहिए। जिम में किये जाने वाले व्यायामों की सलाह मैं किसी को नहीं देता क्योंकि उनके लिए बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। जिम में घंटों तक बहुत कठिन व्यायाम कराये जाते हैं, जिनसे प्रारम्भ में लाभ मालूम होता है और वजन भी घटता है, लेकिन माँसपेशियों पर बहुत जोर पड़ने के कारण ये अन्ततः स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही सिद्ध होते हैं। इसलिए जिम में व्यायाम नहीं करना चाहिए। यदि आप अपना शरीर सुडौल बनाना चाहते हैं, तो आपके लिए सूर्य नमस्कार सबसे अच्छा व्यायाम है। यह अपनी शक्ति के अनुसार 13 से लेकर 25 तक की संख्या में नित्य करने चाहिए।


व्यायामों के बारे में यहाँ सारी बातें बताना सम्भव नहीं है। मैंने अपनी पुस्तिका ‘स्वास्थ्य रहस्य’ में अनेक प्रकार के व्यायामों की विस्तृत चर्चा की है। पढ़कर उसका लाभ उठाया जा सकता है।


कई लोग शिकायत करते हैं कि वे बहुत समय से योग कर रहे हैं, पर उनको कोई लाभ नहीं हो रहा है। इसका कारण यह हो सकता है कि या तो उन्होंने सही आसनों या क्रियाओं का चुनाव नहीं किया या उनको गलत तरीके से करते हैं। इसलिए अपने लिए सही व्यायाम निर्धारित करने के लिए उनको किसी विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए। 


-- *डॉ. विजय कुमार सिंघल*

मार्गशीर्ष कृ. ९, सं. २०७८ वि. (२८ नवम्बर, २०२१)

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*पहला सुख निरोगी काया - ५*


*कभी-कभी उपवास भी कीजिए*


पिछली कड़ियों में आप भोजन के बारे में बहुत सी बातें पढ़ चुके हैं। लेकिन हमारे लिए कभी-कभी भोजन छोड़ देना भी अच्छा होता है। इसे प्रचलित भाषा में “उपवास” कहा जाता है। जिस प्रकार आपको सप्ताहभर काम करने के बाद एक दिन के अवकाश की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार हमारी पाचन प्रणाली को भी सप्ताह में एक दिन आराम देना स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक होता है।


उपवास हमारे धर्म का अंग भी है, जिसे व्रत कहा जाता है, परन्तु जिस प्रकार यह किया जाता है, वह स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। लोग पहले तो दिन भर भूखे रहते हैं और खाली पेट चाय पीते रहते हैं। फिर दोपहर बाद या शाम को कूटू, सिंघाड़े आदि से बनी भारी-भारी चीजें और खोए की मिठाइयाँ ठूँस-ठूँसकर खा लेते हैं। यह बहुत भयंकर है। ऐसे व्रत से तो व्रत न करना ही बेहतर है। ऐसा व्रत करने वाले प्रायः बीमार ही रहते हैं। इसलिए ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। इसके स्थान पर युक्तिपूर्वक उपवास करना चाहिए, जिसकी विधि यहाँ बतायी जा रही है।


साधारण उपवास में केवल साधारण शीतल या गुनगुने जल के सिवाय कुछ नहीं लिया जाता। मौसम के अनुसार साधारण ठंडा या गुनगुना जल प्रत्येक घंटे पर एक गिलास की मात्रा में पीते रहना चाहिए। उपवास में दिन भर में तीन-चार लीटर जल अवश्य पीना चाहिए। प्रारम्भ में उपवास से कमजोरी अनुभव होगी। उसे सहन कर जाना चाहिए और लेट जाना चाहिए। अति आवश्यक होने पर कभी-कभी पानी में आधे नीबू का रस या/और एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाया जा सकता है। 


एक से तीन दिन तक का उपवास कोई भी व्यक्ति सरलता से कर सकता है। इसमें कोई विशेष कष्ट नहीं होता। यदि कोई कष्ट जैसे दस्त, उल्टी, बेचैनी या बुखार हो जाता है, तो उसे प्रकृति की कृपा मानना चाहिए। इनसे पता चलता है कि उपवास का पूरा प्रभाव हो रहा है और प्रकृति हमारे शरीर से विकारों को निकाल रही है।


सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन का पूर्ण उपवास अवश्य कर लेना चाहिए। इससे सप्ताह भर में खाने-पीने में हुई असावधानियों या गलतियों का परिमार्जन हो जाता है। सप्ताह में एक दिन का उपवास करना स्वास्थ्य का बीमा है। ऐसा व्यक्ति कभी बीमार पड़ ही नहीं सकता और सर्वदा स्वस्थ रहकर अपनी पूर्ण आयु भोगता है।


यदि केवल जल पीकर उपवास करना कठिन लगे, तो उसके स्थान पर रसाहार करना चाहिए। इसमें केवल मौसमी फलों का रस या सब्जियों का सूप दिन में तीन या चार बार लिया जाता है और शेष समय इच्छानुसार पानी पिया जाता है। इससे कमजोरी कम आती है और उपवास का लाभ भी काफी मात्रा में मिल जाता है।


जो लोग इतना भी न कर सकें उन्हें सप्ताह में एक दिन सायंकाल का भोजन त्याग देना चाहिए। इससे भी पाचन क्रिया को आवश्यक आराम मिल जाता है और पाचन शक्ति में सुधार होता है। जो लोग सप्ताह में एक समय भी बिना खाये नहीं रह सकते, उन्हें स्वास्थ्य की इच्छा छोड़ देनी चाहिए और मनमाना खा-पीकर कुपरिणाम भुगत लेना चाहिए।


*-- डॉ. विजय कुमार सिंघल*

मार्गशीर्ष कृ. ७, सं. २०७८ वि. (२६ नवम्बर, २०२१)

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*पहला सुख निरोगी काया -४*


*क्या खायें, क्या न खायें*


भोजन के बारे में सभी बातें बताना यहाँ सम्भव नहीं है। यदि आपने पिछली कड़ियों को ध्यानपूर्वक पढ़ा है, तो आप समझ ही गये होंगे कि आपको क्या खाना-पीना चाहिए और क्या नहीं। यहाँ हम एक तालिका के रूप में यह बता रहे हैं है कि कौन सी वस्तुएँ हमें लेनी चाहिए, कौन सी कम लेनी चाहिए और कौन सी बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए।


*पूर्णतः त्यागने योग्य वस्तुएँ-* चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक, चीनी, समुद्री नमक, माँस, मछली, अंडा, शराब, सिगरेट, तम्बाकू, पान मसाला, डिब्बाबन्द खाद्य, बिस्कुट आदि।


*न्यूनतम मात्रा में लेने योग्य वस्तुएँ-* सेंधा नमक, गुड़, मिर्च-मसाले, तेल, खटाई, मिठाई, पकवान, अचार, तली-भुनी चीजें।


*पर्याप्त मात्रा में लेने योग्य वस्तुएँ-* सलाद, अंकुरित अन्न, हरी सब्जी, फल, दही, मठा।


कई बार हमें लोक व्यवहार के कारण अथवा मजबूरी में ऐसी वस्तुएँ खानी पड़ती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं। ऐसी स्थिति आने पर उनको कम मात्रा में ही खाया जाय और अच्छा हो कि अगले दिन एक बार का भोजन छोड़ दिया जाय। यदि अधिक कष्ट हो तो पूरे दिन का उपवास कर लेना उत्तम रहेगा। भोजन के सम्बन्ध में एक सुनहरा नियम यह है कि कड़ी भूख लगने पर ही खाना चाहिए। यों ही बिना भूख के खाना या बीच-बीच में अनावश्यक वस्तुएँ खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है।


*आदर्श आहार क्रम*


यहाँ एक सामान्य स्वस्थ वयस्क व्यक्ति के लिए आदर्श भोजन तालिका दी गयी है। आवश्यकता एवं वस्तुओं की उपलब्धता के अनुसार इसमें परिवर्तन भी किया जा सकता है।


*नाश्ता (प्रातः 7-8 बजे)*

एक गिलास दूध के साथ दो सौ ग्राम फल या 100 ग्राम अंकुरित अन्न या कॉर्नफ्लेक या दो ब्रेड-बटर या दो ब्रेड-जैम। दूध के स्थान पर मौसम और अपनी रुचि के अनुसार मठा या दही या लस्सी भी ली जा सकती है। यदि शरीर में बहुत कमजोरी हो, तो रात को भिगोये हुए कुछ दाने मुनक्का, किशमिश और मूँगफली का सेवन प्रातः जलपान के साथ किया जा सकता है। 


*दोपहर का भोजन (दोपहर 12-1 बजे)*

रोटी, चावल, हरी सब्जी, दाल, सलाद, दही। इन वस्तुओं की मात्रा अपनी पाचन शक्ति और भूख के अनुसार रखें। कोई वस्तु उपलब्ध न होने पर उसकी जगह अन्य वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। हरी सब्जी मौसम के अनुसार हो। आलू, अरबी और फूलगोभी की गिनती हरी सब्जियों में नहीं होती। इनको कम मात्रा में लेना चाहिए।


*रसाहार (तीसरे पहर 3-4 बजे)*

गाजर या खीरा या तरबूज या अनन्नास या किसी मौसमी फल का 1 गिलास जूस। आम और केले की गिनती ऐसे फलों में नहीं की जाती।


*सायंकाल का भोजन (सायं 7-8 बजे)*

रोटी, चावल, हरी सब्जी, दाल, सलाद। गर्मियों में दही सायंकाल भी लिया जा सकता है।


सब्जियों में मिर्च-मसालों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। केवल थोड़ा सा घी डालकर जरा से जीरे और हींग से छोंक लगाना चाहिए और न्यूनतम मात्रा में सेंधा नमक, हल्दी और धनिया डालना चाहिए। इससे आपको सब्जी के प्राकृतिक स्वाद का अनुभव होगा, जो प्रायः मसालों के स्वाद में दब जाता है। सब्जी का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें कुछ बूँदें नीबू की डाली जा सकती हैं। 


दो भोजनों के बीच में कोई अनावश्यक वस्तु न लें, क्योंकि इनसे पेट पर बहुत बोझ पड़ता है और पाचन खराब होता है। यदि किसी समय भूख न हो, तो केवल सलाद या फल खाकर रहा जा सकता है या उस समय भोजन पूरी तरह छोड़ा जा सकता है। 


भोजन की चर्चा कर लेने के बाद अगली कड़ी में हम स्वास्थ्य के लिए दूसरी सबसे अधिक महत्वपूर्ण वस्तु व्यायाम की चर्चा करेंगे।


-- *डॉ. विजय कुमार सिंघल*

मार्गशीर्ष कृ. ५, सं. २०७८ वि. (२४ नवम्बर, २०२१)

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