फोरम आफ बैंक पेंशनर एक्टिविस्टस्
Forum To: All Activists/ Bank men:
Dear Brothers & Sisters,
Our senior Activist, Sri Raminder Singh, wrote a mail yesterday to Hon'ble Prime Minister under copy to Hon'ble Finance Minister depicting the ugly situations that prevail across the system.
We forward the said mail for the information and knowledge of bank men and pensioners.
Greetings,
(J. N. Shukla)
National Convener
11.2.2021
9559748834
Encl: mail to PM/FM
"माननीय प्रधानमंत्री जी
नमस्कार
आपको विगत में कई बार मेल भेजी हैं,ट्वीट किए हैं और Write to PM platform से भी संदेश भेजे गए हैं। खेद है कि जिस जल्दबाजी में और ग़ैर ज़िम्मेदाराना अंदाज में, बगैर तथ्यों को देखे बिना अनुरोध में लिखी बात को पढ़ें, Write to PM system के तहत Designated Officials ने जो जवाब दिए वो चीख चीख कर अब मुझे फ़िर से आपको संबोधित ये मेल भेजने के लिए मजबूर कर रहा है इसलिए सादर कुछ कहने की अनुमति चाहता हूं।
ये सत्य है कि
कहने को देश में संविधान है,
संविधान के अनुसार सरकारें है,
तमाम संस्थाएं हैं,
अधिकारी हैं,
विभाग हैं,
नियम- कानून हैं,
व्यवस्थाओं के अंबार लगे हैं,
व्यवस्थाओं को लागू करने के सुविधाओं के अंबार लगे हैं,
न्याय के लिए न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय तक है।
लबो-लुआब यह है कि है तो बहुत कुछ,
लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि किसी भी सरकारी स्तर पर अधिकारियों की आम जनता के प्रति "जवाबदेही" का कोई "नामोनिशान" नहीं है!
आप अपनी परेशानी,व्यथा,हो रहे अन्याय,अनदेखी, नियम-कानून या व्यवस्था का हवाला देकर कुछ भी लिखें,पर शीर्ष से लेकर जूनियर अधिकारी तक उत्तर देने की जहमत नहीं उठाता।
जवाब तो दूर मेल या पत्र की पावती या रसीद भी नहीं मिलेगी।
हकीक़त ये है पूरा तंत्र जैसे सुन्न हो कर बैठ गया है,
और देश की व्यवस्थाएं चरमराई सी लगती है।
न कोई संवेदनशीलता दिखाने की जहमत उठाता है न त्वरित निदान की सोचता है
आदरणीय प्रधानमंत्री जी हम मनुष्य हैं,समय के साथ काल कवलित हो जाएंगे,सरकारी व्यवस्थाओं की तरह अमर अजर नहीं है जिनको ये लगता है कि ये मामले रोज़ के हैं बाद में देखेंगे!
सार्वजनिक बैंकों के पेंशनर्स,जिनकी संख्या लाखों में है, इसी चरमराई व्यवस्था के ऐसे शिकार हैं,जिनकी किसी स्तर से सुनवाई नहीं हो रही है।
25 साल से पेंशन अपडेशन की बाट जोह रहे हताश-निराश हजारों पेंशनर्स मर चुके हैं,
हजारों बीमारी के शिकार हैं।
सरकार के आदेश के बावजूद बैंक पेशनरों को बैंकों की "कल्याण निधि" से स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं दी जा रही है।
Department of Financial Services अपने ही आदेशों को बैंकों से लागू नहीं करवा पा रहा है।
मेल भेजें या खत,अधिकारियों की चुप्पी "शोले" फिल्म के पात्र "गब्बर सिंह" के उस अट्टहास का एहसास दिलाती है, जब वह कहता है:
"चिल्लाओ और चिल्लाओ"
"कोई नहीं है यहां सुनने वाला"
दुर्भाग्य ये है कि बैंक पेंशनर्स का न बैंक स्तर पर और न ही उद्योग स्तर पर सुनवाई का कोई पटल है।
आप सरकार के सबसे बड़े मुखिया हैं।
कृपया बताएं,
हम क्या करें?
किसके पास जायें अपनी फरियाद लेकर?
हम पेंशनरों के पेंशन अपडेशन का मामला कोई नहीं सुन रहा है।
माननीया वित्तमंत्री जी ने 30.10.2020 को अपनें एक साक्षात्कार में हमारी मुसीबतों पर रहमदिली दिखाई और 10.11.2020 को बैंकरों को कहा भी कि पेशनरों की समस्याओं का समाधान करो। लेकिन,अभी तक बैंकरों की तरफ से कोई संकेत तक नहीं मिला कि वे कुछ कर रहे हैं।माननीया वित्तमंत्री ने जिस "भावना" से हमारे प्रति "सहानुभूति" व्यक्त की है,बैंकर्स उसका सम्मान करते हैं ।
ये बात सत्य है और मानते हैं,हम बैंक पेंशनर्स वोट संख्या की दृष्टि से कोई माइने नहींं रखते पर हम देश के नागरिक तो हैं न!
लेकिन सत्य ये भी है कि आपकी सरकार तो सबके लिए सोचती- करती है,लटकाने भटकाने में विश्वास नहीं रखती पर आपकी सरकार होने के बावजूद, इतने पत्राचार, अनुरोध,अपीलों के बाद भी पेंशन अपडेशन मामलेे को लटकते भटकते छः साल निकल चुके हैं।
इसी आशा के साथ हम आपसे गुज़ारिश कर रहे हैं कि बैंक पेंशनरों को उनका हक,जिसके वे 29.10.1993 के समझौते की क्लाज 12 के तहत पात्र हैं,दिलानें की कृपा करें।
हमारी पेंशन का रिवीजन रिजर्व बैंक के फार्मूले के तहत करें।
सुनवाई और कार्यवाई की प्रतीक्षा है।
सादर
रमिंदर सिंह
CC:-
Honourable Finance Minister
Chairman IBA
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