Sunday, January 24, 2021

Bank Pensioners. Continue Your Efforts

फोरम आफ बैंक पेंशनर एक्टिविस्टस् Forum of Bank Pensioner Activists PRAYAGRAJ न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्। कामये दुःखतप्तानां प्रणिनामार्तिनाशनम्॥ हिमालयं समारभ्य, यायव हिन्दुसरोवरं। आतं देवनिर्मितं देशं, हिन्दुस्तानं प्रचक्षेत।। सभी बैंककर्मियों/पेंशनरों के लिए: "जिसे कुछ खोने की चिन्ता व पाने की लालच न हो , वह नि:संदेह वही करेगा जो सब के हित में होगा। "अगर कोई कुछ लीक से हटकर सोचता है और आगे बढ़ता है, थोड़ा साहस और धैर्य जुटाइये और उसका साथ दीजिए। हो सकता है, कोई सपना साकार हो जाये ! कदम उठाये बिना, मंजिल की दूरी तय नहीं होती!" शो-बाजी की भर्त्सना करें, उस पर थूंके.. नजरें अपने मुख्य लक्ष्य पर रखें! अधैर्य, जो आज हम बैंक पेंशनर देखते हैं, वह स्वाभाविक है। पेंशन जबसे लागू हुई है और जो एक बार भी रिवाईज नहीं की गई है, यह गुस्सा और असंतोष उसी की परिणति है। जितना वरिष्ठ पेंशनर, उतनीं ही बड़ी उसकी वित्तीय कठिनाइयां, बीमारियां और स्वास्थ्य असुरक्षा! लेकिन, जो छटपटाहट हम बैंक यूनियन नेताओं में देख रहे हैं, वह अन्य कारणों से है। वित्तमंत्री के बिजनेस लाइन में छपे साक्षात्कार और बैंकर्स को उनके संबोधन, बैंक यूनियनों और उनकी बगलबच्चा रिटायरी यूनियनों के लिए वाटरलू साबित हुआ और उनकी लफ्फाजी की दूकान डगमगा गई है। उन्हे मिर्च लगी, यह बात सबके सामनें आ गई। यूनियनों का बुरी तरह से पर्दाफाश हो गया है। बैंकिंग समुदाय इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका है कि उसकी मुसीबतें, चाहे कमतर वेतन या खराब सेवाशर्तें हों या बेहिसाब काम का बोझ, या फिर काम करने का समय अथवा पेंशन रिवीजन या स्वास्थ्य सुरक्षा का न होना हो, यूनियनों की गैरजिम्मेदाराना हरकतों के कारण हैं, जो घटिया शर्तों पर समझौता करतीं हैं, प्रबंधन की गैरवाजिब हरकतों पर अंकुश लगाने के बजाए खुली छूट देतीं हैं। वित्तमंत्री का मीडिया में साक्षात्कार और आईबीए की सालाना बैठक में उनका संबोधन लीडरों के ताबूत की अंतिम कील साबित हो रही है। बैंकिंग समुदाय के लिए संदेश बिल्कुल साफ और स्पष्ट है कि सरकार बैंक पेंशनरों की दयनीय स्थिति से दुखी है और वह चाहती है कि बैंकर्स पेंशनरों के मुद्दों को तय करें। उन्होंने बैंकरों से कहा कि बैंक पेंशनरों का 'ड्यूज' अर्थात 'बकाया' दो! यह हमेशा होता है, जब कोई अपनी प्रासंगिकता गवां बैठता है, तो वह उसे वापस पाने के लिए हर तरह का उठापटक करता है, हताशा में उलूल-जुलूल हरकतें करता है, ताकि लोगों का ध्यान खामियों से हटाकर वह अपनी खोई हैसियत वापस पा सके। आज यही हाल 'रिटायरी यूनियनों' की है, जिसमें एक 25 साल से ज्यादा पुरानी है और दूसरी 6/7 साल की है। ये दोनों यूनियनेंं, एक बड़ी कर्मचारी और दूसरी बड़ी अधिकारी यूनियनों की 'लटकन' हैं। लटकन का मतलब तो आप समझते ही होंगे! अगर ये इमानदारी से थोड़ा भी काम किए होते, तो हमारा मानना है, पेंशनरों का बड़ा भला हुआ होता। आज पूरा परिदृश्य बदला हुआ होता। हजारों लोग, जो पेंशन रिवीजन की आस लिए मर गये, स्वर्ग में आज उनकी आत्मा अशांत न होती। अब हर कोई जानता है कि वित्तमंत्री की मंशा क्या है, वह क्या महसूस करती हैं और बैंक पेंशनरों के लिए उनके दिल में क्या हैं। हम सब जानते हैं, वित्तमंत्री सरकार की एक सक्षम प्राधिकारी हैं और उनके विचार मूल्यवान हैं। उनका रंचमात्र संकेत ही काफी है, लेकिन उन्होंने तो खुले तौर पर अपना पूरा वजन बैंक पेंशनरों के पक्ष में रखते, बैंकर्स का ध्यान रक्षा मंत्रालय की 'वन रैंक वन पेंशन' की तरफ खींचा और इंगित किया कि वहां पूर्व सैनिकों के लिए क्या हुआ, अर्थात वहां जैसी स्थिति बैंकिंग में क्यों नहीं हो पा रही है? उनके मंतव्यों को हम अच्छी शुरुआत मान सकते है। और, कहावत है कि अच्छी शुरुआत यानी आधा काम सफल! अब 'अति क्रियाशीलता', वोवर एक्टिविज्म, रिटायरी यूनियनों के पर्दाफाश का बड़ा सबूत है। मंत्री या सांसद सिस्टम में कोई नये नहीं हैं और न ही मोदी सरकार की देन हैं। ये लंबे समय से, लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था के अभिन्न अंग हैं। कभी हममें से किसी ने यूनियनों का इनसे डील करते देखा? कभी नहीं। इसे हम एक्टीविस्ट्स ने इजाद किया, इसका प्रयोग किया। आज हमें एक तरह से मंत्रियों, सांसदों के साथ हमारे नुस्खे का इस्तेमाल एक रिटायरी यूनियन कर रही है। उनके लिए नया व्यवसाय! सवाल है, जब मामला वित्तमंत्री और सरकार के संज्ञान में है, यह निरर्थक पाखंड क्यों? हर हाल में, यूनियनों के ऐसे प्रयासों का मकसद बैंक पेंशनरों के साथ किए अक्षम्य अपराधों पर परदा डालना है। हम फोटो शो-बाजी की कटु शब्दों में भर्त्सना करते हैं और उस पर थूकते हैं। हम बैंक पेंशनरों से आह्वान करते हैं कि वे सफलता की पूरी उम्मीद के साथ अपना प्रयास जारी रखें। ईमानदारी से किया गया कोई सद्प्रयास कभी बेकार नहीं जाता। अपनें काम और कार्यवाईयों में विश्वास रखें। हां, एक बात सुनिश्चित करें कि आप अपना लक्ष्य न भूलें। रास्ते से न भटकें और मुख्य लक्ष्य में अन्य विषयों का घालमेल न करें। सर्वप्रथम, पेंशन रिवीजन के 'मुख्य विषय' पर पूरा ध्यान केन्द्रित रखें, जिसका संबंध सबसे है। इसे नीति का हिस्सा बनाओ। एक बार अगर इसे आरबीआई की लाइन पर हासिल कर लिया जाता है, तो आगे का रास्ता अपना होगा। शुभकामनाओं के साथ, (जे.एन.शुक्ला) नेशनल कंवेनर 25.1.2021 9559748834

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