Wednesday, August 19, 2020

सरकार की मुकदमेबाज बनती छवि !

 फोरम आफ बैंक पेंशनर एक्टिविस्टस्

 Forum of Bank Pensioner Activists
                  PRAYAGRAJ
कामये दु:खताप्तानां प्राणिनाम् आर्तिनाशनम् ।


श्री रजनीश कुमार,
चेयरमैन,
आई.बी.ए./ भारतीय स्टेट बैंक
मुम्बई

श्री सुनील मेहता,
चीफ इक्जीक्यूटिव,
भारतीय बैंक्स् संघ
मुम्बई

श्री राजकिरण राय,
चेयरमैन, निगोसिएटिंग कमेटी, आईबीए
एमडी/सीईओ, यूनियन बैंक आफ इंडिया
मुम्बई


आदरणीय महोदय,


          GOVT'S LITIGANT IMAGE !

        सरकार की मुकदमेबाज बनती छवि !

खेद के साथ, हम आपका ध्यान बैंकिंग उद्योग में सरकार की मुकदमेबाज बनती छवि की तरफ आकृष्ट करते कुछ कहना चाहते हैं, जो हम सब की चिंता कि विषय है.

ए.आई.बी.ई.ए. जैसी बड़ी यूनियन की निरंतर नीति रही है कि वह या उसके संगठन अदालतों में न जाएं, बल्कि प्रबंधन से आपसी बातचीत के माध्यम से मुद्दों को तय करें. दूसरे शब्दों में, संगठन ने मुकदमेंबाजी को प्रसय नहीं दिया, लेकिन आपके सदस्य बैंकों नेंं ऐसी न कोई नीति बनाई और न अनुसरण किया. 

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद, कार्मिक मामलों को लेकर अदालतों का दौर ही समाप्त हो गया था. छुट-पुट स्थानीय मामले भी केन्द्रीय श्रमायुक्त के स्तर पर निपट जाते थे. बैंकिंग उद्योग और बैंक स्तरीय मुद्दे भी द्विपक्षीय वार्ता माध्मय से तय होते रहे है. कुल मिला कर एक स्वस्थ औद्योगिक संबंध बैंकों में रहा और इसके सकारात्मक प्रभाव का लाभ बैंकों को मिला. परिचालन विषयों एवं उठते विवादों को तय करनें में आईबीए का महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इसका सकारात्मक परिणाम यह रहा है कि बैंकों में स्वस्थ एवं दीर्घकालिक शांति का औद्योगिक वातावरण बना रहा.

लेकिन, पिछले दो दशकों से स्थिति में बड़ा परिवर्तन हुआ है. जानबूझकर असंगत और विधिविरुद्ध समझौतों, बैंकर्स की हठधर्मीं, आईबीए की गलत अनुसंशाओं की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में दो दर्जन से ज्यादा याचिकाएं एवं अपीलें चल रही हैं. 

इसके अलावा, पेमेंट आफ ग्रैजुटी एक्ट 1972 के तहत सक्षम प्राधिकारियों ने ग्रैजुटी एक्ट 1972 के तहत 30 वर्ष की सेवा से ऊपर हर सेवा वर्ष के लिए 45 दिन की ग्रेजुटी देने का निर्णय दे रखा है. सक्षम प्राधिकारियों के निर्णयों के खिलाफ बैंकें अपील में गई हुई हैं. इन अदालती कार्यवाइयों पर बैंकें पानी की तरह पैसा बरबाद कर रही हैं.

 पेमेंट आफ ग्रैजुटी एक्ट, 1972 के प्रावधानों की व्याख्या (इंटरप्रिटेशन) करते, सक्षम प्राधिकारी, 30 वर्ष के ऊपर के सेवा वर्षों के लिए यदि 45 दिन प्रति वर्ष की ग्रेजुटी का निर्णय दिया है. चूंकि पेमेंट आफ ग्रेजुटी एक्ट, 1972 एक केन्द्रीय कानून है, सक्षम प्राधिकारी के निर्णय की श्रम मंत्रालय, विधि मंत्रालय के स्तर पर समीक्षा कर एक स्पस्ट राय कायम होनी चाहिए थी तथा तदनुसार विवादों का निस्तारण होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 

इस व्याख्या के आलोक में हर बैंककर्मीं और उनकी बैंकों के बीच विवाद जारी है. अब तक हर बैंक में सैकड़ों ऐसे मामले आये हैं और दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं. नि:संदेह इस प्रकरण को हाई कोर्ट से होते सर्वोच्च न्यायालय तक ले जानें की बैंकों की मंशा साफ दिखती है. 

असंगत और विधिविरुद्ध सेवा नियमों के  प्रकरणों में, संबंधित बैंकें, आईबीए और वित्तीय सेवाएं विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार पक्षकार हैं. आईबीए ने अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ते हुए अपनीं हैसियत केवल सलाहकार की घोषित कर रखा है. उम्मीद है, आप सहमत होंगें कि यह सीधे तौर पर जवाबदेही से पलायन है. 

7वें वेतन समझौते में 1616/1684 सूचकांक पर दो पे-स्केल बनाई गई. ऐसा पेंशन कम करने की मंशा से किया गया. इससे 1.4.1998 के बाद सेवानिवृत्तियों की पेंशन 50% से घटाकर 41% हो गई. चूंकि यह सर्वथा असंगत एवं विधिविरुद्ध एक विसंगति थी, 2005 को संपन्न हुए 8वें समझौते में आपने इसे 1.5.2005 से आगे के लिए समाप्त किया, लेकिन 1.4.1998 से 30.4.2005 के दौरान सेवानिवृत्तियों के मामले को, जिनकी पेंशन प्रभावित हुई थी, अपेक्षित सुधार किए बिना पूर्ववत छोड़ दिया. 

परिणाम स्वरूप प्रभावित लोगों को सर्वोच्च न्यायालय तक न्याय के लिए लड़ना पड़ा और फैसला 13.2. 2018 को आया. बैंको को सभी लाभ 9% ब्याज के साथ देना पड़ा. यह भी कहा गया कि इस तरह पेंशन नकारने के लिए मूल वेतन एवं भत्तों को तोड़ामरोड़ा नहीं जा सकता.

यह दुर्भाग्य की बात है कि 7वें समझौते में हुई विसंगति, जिसे 8वें समझौते में 1.5.2005 से दूर किया गया था, उसकी पुनरावृत्ति 25.5.2015 को हुए 10वें समझौते में दोबारा हुई और पेंशन कट करने की मंशा से 1.11.2012 से मूल वेतन का 7.75% से 11% तक काटकर उसे 'स्पेशल एलाउंस' का नाम देते, उसे पेंशन गणना के लिए अमान्य कर दिया गया है! यह सर्वोच्च न्यायालय के 13.2.2018 फैसले की मूल भावना का अनादर है, यदि इसे अब भी दूर न किया जाए. इसके विरुद्ध अनेक याचिकाएं  लंबित हैं और केरल हाईकोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया है. फिर भी बैंकर्स और आईबीए, आज भी इस स्पेशल एलाउंस को जारी रखने तथा पेंशन कम करने पर तुला हुआ है.

जिम्मेदारी का तकाजा है, पेंशन घटाने का यह शेखचिल्ली का खेल बंद होना चाहिए. यह बैंक प्रबंधन तथा आप जैसी बड़ी हस्तियों की गरिमा को घटाता है और हल्कापन प्रदर्शित करता है. आप इतने नीचे उतरकर अपने ही सिपहसालारों के विषय में ऐसी घटिया नीति कैसे बना सकते हैं? कभी दो स्केल बनाओ, तो कभी स्पेशल एलाउंस बनाओ, यह ठीक नहीं है.  इसमें स्पेशल क्या है? कौन से परम विशिष्ट कार्य के लिए यह स्पेशल एलाउंस दिया जा रहा है? 

पुन:, यह आपकी जानकारी में हैं कि 2010 में संपन्न हुए पेंशन के दूसरे विकल्प समझौते में पेंशन रिगुलेशंस, 1995 के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए असंगत एवं विधिविरुद्ध शर्तें थोपी गई, मनमानी वसूली हुई और पेंशन सेवानिवृत्ति तारीख से न देकर 27.9.2009 से दी गई. आप लोग भलीभांति अवगत थे कि  पेंशन रिगुलेशंस, 1995, जो 1.1.1986 से लागू हुआ था, उसमें बैंक का पी.एफ. 6% साधारण ब्याज के साथ वापस करनें तथा पेंशन को सेवा निवृत्ति की तारीख से देने का प्रावधान था, बावजूद इसके आपने मनमाने ढंग से बड़ी राशियां वसूलीं और पेंशन को 27.9.2009 से दिया. यह 1995 के पेंशनर्स और 2010 के पेंशनर्स के बीच भेदभाव पूर्ण है. यह विवाद का मुद्दा है, कानूनन असंगत एवं भेदभावपूर्ण है.

समझौतों के प्रति किसी की जवाबदेही होनी चाहिए, जो नहीं है. असंगत और विधिविरुद्ध समझौतोंं के आलोक में बड़ी संख्या में अदालतों में चल रहे प्रकरणों से सरकार की 'मुकदमेबाज' छवि बनती जा रही है. हर मुकदमें में वित्तमंत्रालय, भारत सरकार अनिवार्य रूप से पक्षकार है. समझौताकर्ता आईबीए खुद को 'सलाहकार' कहते जवाबदेही और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ चुका है. बैंकर्स अपनी गलतियों को सही साबित करने के लिए अदालती कार्यवाइयों पर अपना कीमती समय और सार्वजनिक धन को पानी की तरह बरबाद कर रहे है. यह स्थिति ठीक नहीं है. सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है कि लोगों को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए बल और धन का अपव्यय करे. बैंकों ने ऐसे मामलों में सरकार की उस नीति की भी अनदेखी की है, जिसमें अपील की पूर्वानुमति जरुरी है. यह तो मनमानी है.

ऐसे में, आपसे विनम्र निवेदन है कि सरकार की मुकदमेंबाज बनती छवि का आप लोग संज्ञान लें, तथा इसे रोकें.  जानबूझकर असंगत और विधिविरुद्ध समझौते न करें. गलत को सही साबित करनें के लिए मुकदमेंवाजी न करें.  इससे सरकार की छवि को गहरा धक्का लग रहा है. 

आपसे विनम्र निवेदन है कि निम्नलिखित विषयों की समीक्षा करें और सही निर्णय लेने की कृपा करें:

1. 33 वर्ष से पेंशन रिवीजन न होने के प्रकरण को रिजर्व बैंक पेंशन रिवीजन की शर्तों पर तय करें. बैंकों में लागू पेंशन स्कीम रिजर्व बैंक पेंशन स्कीम जैसी है और आप इस बात से पूर्णतः भिग्य भी हैं.

2. कृपया डी.एफ.एस. के पत्र दिनांक 24.2.2012, जो बैंकों को आवंटित कल्याण निधि के संबंध में है और जिसमें उस निधि से कर्मचारियों/ रिटायरीज के लिए स्वास्थ्य बीमा करानें का आदेश है, का अनुपालन सुनिश्चित कराएं. 75% बैंक पेंशनर्स बीमा प्रीमियम न देने की स्थिति में होने के कारण, स्वास्थ्य बीमा नहीं करा सके हैं और बीमा लागत पितले 5 वर्षों में रु.5600 से रु.25000 हो गई है.

3. स्पेशल एलावंस, जो मूल वेतन का हिस्सा है, को मूल वेतन में 1.11.2012 से मिलाएं ताकि इस विषय पर हो रही वेवजह मुकदमेंबाजी पर विराम लगे. सर्वोच्च न्यायालय के 13.2.2018 के जजमेंट की भावना का समादर हो.

4. ग्रैजुटी के मामले में सक्षम प्राधिकारियों के निर्णयों पर संबंधित मंत्रालयों से विचार विमर्श कर फाइनल निर्णय ले, ताकि मुकदमों पर विराम लगे. बेवजह मुकदमें न चलें.

5. पेंशन के दूसरे विकल्प की शर्तों का पुनरावलोकन करे, पेंशन रिगुलेशंस, 1995 की शर्तों को उन पर लागू करे. इससे संभावित मुकदमों से बचा जा सकता है.

आशा है, उपरोक्त विषयों को गंभीरता से लेते हुए आपकी ओर से आवश्यक उठाएं जाएंगे और सरकार की मुकदमेंबाज की बनती छवि को रोका जा सकेगा.

सादर,


( जे.एन.शुक्ला )
राष्ट्रीय कंवेनर
20.8.3020
9569748834

प्रति:

1. आदरणीय प्रधानमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली

2. आदरणीय वित्तमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली

3. माननीय सचिव,
डी.एफ.एस.
वित्तमंत्रालय
भारत सरकार,
नई दिल्ली

सूचनार्थ और आवश्यक कार्यवाई हेतु.

------------------------------------------------------------

========================================


Sri Sanjeev Chadha,
Managing Director & CEO
Bank of Baroda,
BKC, Mumbai

Dear Sir,

          Medical aid at 70,75,80

No one could understand the logic of above scheme. It could be better understood if it was stated to be a gift on attaining 70, 75, 80, 85, 90 95, 100 years of age.

As far medical needs are concerned, it's routine and perpetual necessity. Purpose could have been better positioned, if it was given as medical aid every year, amount wise it could have been  anything. 

You appreciate the difficulties of retirees, but bring no way to address. Instead such tokenism, it would have been better to strengthened the existing policy in this regard.

In 2015, Mediclaim Insurance Policy was introduced by IBA for Retirees ( officers 4 lakh & clerks 3 lakh rupees cover). The BOB decided to give Rs.3000 as subsidy to insurance premium. In 2015, premium for 3 lakh cover was around Rs.5600/. It helped people to spare Rs.2600 and avail insurance. However, by 5th year, 2019-20, the said premium reached to Rs.25000. People couldn't afford it. 75% retirees had to drop out from cover.

We have already represented to you to please increase aforesaid subsidy of Rs.3000 fixed in 2015 proportionately. It was not considered so far. Further renewal is approaching and as heard, UIIC shall be raising premium again. Again, good number of retirees shall drop it.

Sir, it's really sordid state of affair. You may please appreciate the problem from humanitarian angle. Look to possibilities, how it can be addressed. Bank must think to provide minimum health security to retirees. They must be secured health wise. Please think in this term to render justice to all retirees.

We urge once again to please review health security aspect and bring in place a comprehensive policy.

Awaiting your kind consideration in this regard.

Regards,


( J. N. Shukla)
National Convener
20.8.2020
9559748834
==========================================

TO ALL BANK MEN:

टाइम पास अभियान:

भाई ने तो हद कर दी! मरता क्या न करता! सवाल जिन्दा रहनें का है, तो कुछ भी किया.जा सकता है. तभी भाई ने, यूनियन नेताओं को भगवान बना दिया और बैंक पेंशनरों को भिखारियों का झुंड. कहा, जाइये विराजमान भगवानों के पास और गिड़गिड़ाइए कि हम भुखे हैं, बीमार हैं, मर रहे हैं, पैसा नहीं है, हम पर दया की जिए, पेंशन रिवीजन के नाम पर कुछ दे दीजिये! चलो, बुरा बिल्कुल नहीं मानते, यह भी उपाय करके देखते हैं!

बुरा न मानें, टाइम पास के लिए सोसल मीडिया में कहीं से सुझाव आया है कि फुर्सतमंद बैंक पेंशनर्स ढोल- मजीरा बजाते, कोई लाल टोपी सर पर डाले तो कोई भगवा अंंगरखा गर्दन पर डाले, बैंककर्मियों के भगवानों का यशोगान करते शोभायात्रा निकालें और जो भी भगवान जहां-जहां भी प्रतिस्थापित हैं, वहां उनके देवालय में जाकर मिलें और  उनसे अपनी फरियाद करेंं। 

अजीब है, भगवान की पत्थर की मूर्तियां बोलती, सुनती नहीं हैं,पढ़ नहीं सकतीं,  तो ऐसे में समझा जा सकता है कि उन्हे लोगों की समस्याओं का ज्ञान नहीं है, वे अखबार नहीं पढ़ते और न टेलीविजन पर संदेश देखते हैं। लेकिन जो बैंककर्ममियों के भगवान हैं वे सब बोलते, सुनते, देखते हैं, अखबार पढ़ते हैं, टेलीविजन देखते हैं, तो कैसे मान लिया जाए कि वे अनभिज्ञ हैं और लोगों को जाकर उनसे मिल कर अपनी व्यथा-कथा सुनानी चाहिए?  बैंक पेंशनरों को उनके देवालय जाकर भक्तिभाव से ओतप्रोत होकर अपनें मतलब की बात कहनीं होती  है.  ये बैंककर्मियों के भगवान पत्थर के नहीं हैं, देखते, सुनते, समझते हैं, चढ़ावे का प्रसाद गटक लेते हैं, वापस नहीं करते। उपहार भी प्रसन्न मुद्रा में लेते हैं ! खाते ही नहीं बल्कि छक कर पीते भी हैं! 

अब इनको भला शोभायात्रा निकालकर क्या बताना है? ये तो समस्याओं के जनक हैं, लेकिन वे अब समस्याओं को अपनीं नाजायज औलाद समझते है और कोई समस्याओं का परिचय कराता है, तो उन्हें नागवार लगता है? भड़कते ऐसे हैं  जैसे कोई अपनी नाजायज औलाद का जिक्र करने पर भड़कता है. बहुत से लोगों ने फोन पर जब नाजायज औलादों (समस्याओं) का नाम लिया तो भगवान लोग भड़क उठे. ऐसा समाज का दस्तूर है. नाजायज औलाद का जिक्र होने पर आदमी भड़क जाता है, ये तो भगवान ठहरे!  

इतना ही नहीं, पेंशनर्स को भी नाजायज औलाद कहते सुने गए भगवान. 'हम तो कार्यरत बच्चों के लिए हैं, इन रिटायरी से मेरा कोई संबंध नहीं है.' 

रिटायरीज से भगवान पूंछते हैं कि तुम्हारा पिता कौन है, अर्थात किस यूनियन के थे. लोगों नें अपनी पूर्व यूनियन का नाम बताया तो तपाक से भगवान बोल बैठते हैं: उसके पास जाओ. 

हकीकत यही है कि रिटायरीज का कोई गाडफादर नहीं है. पेंशन स्कीम का गाडफादर होनें का दावा तो दोगले फादर भी करते हैं, लेकिन अगर पेंशन वाकई इन गाडफादरों की औलाद है तो उसे लंगड़ा, लूला, गूंगा अर्थात अपाहिज क्यों बनाये रखा है? बहरहाल, लोगों का खयाल है कि कुछ टुटका करके इन भगवानों को रिझाया, पटाया जा सकता है। अजीम शायर 'गा़लिब' का तजुर्बा बयां है:

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन

दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है !


फरियादों की एक फेहरिस्त भाई ने बड़ी उम्मीद से
प्रसारित की है, जो निम्नवत है:

* पेंशन अद्यतन सरकारी/आरबीआई की 
   पेंशन की तरह हो.

* विशेष भत्ते को सेवोपरांत लाभ में जोड़ा जाए,
   इस पर पेंशन, ग्रैजुटी, कमुटेशन 1.11.12 से
   मिले।

* सभी रिटायरीज व आश्रितों का मुफ्त चिकित्सा
  बीमा हो।

* ग्रैचुटी 1.1.2016 से रु.20 लाख मिले, जैसा
  सरकार/आरबीआई/कुछ पीएसयू में है.

* ग्रैजुटी गणना एएलसी, डीएलसी तथा 
   जबलपुर हाईकोर्ट के निर्णयानुसार हो।

* भावी निवृत्तियों के लिए सीमारहित ग्रेजुटी हो।

* 100% डी.ए. 2002 के पूर्व रिटायरीज को मिले।

* कमुटेशन रिकवरी पीरिएड को 15 की जगह
  12 वर्ष की जाए, क्योंकि निवेश पर ब्याज दरें
   घट गईंं हैं।

* अगर रिटायरी की मृत्यु 67 वर्ष पूर्ण करनें के पूर्व हो 
   तो फेमिली पेंशनर को मृतक के 67 वर्ष पूरा होने
   तक पूर्ण पेंशन मिलती रहे, क्योंकि पहले 
   सेवानिवृत्ति उम्र 58 वर्ष थी जो अब 60 वर्ष है।

उपरोक्त फरियादें तो एक पूर्णत: नया मांगपत्र जैसा है।
बचा क्या है? कार्यरत लोगों से लेकर रिटायरीज
तक के मुद्दे हैं इसमें! हमारे भगवान वैसे ही एक 
मांगपत्र को लेकर कोविड-19 के भवरजाल में 
फसे हुए हैं, और ये फरियादी दूसरी लिस्ट लिए
लामबंद हो रहे हैं, ऊपर से दिखाने के लिए सर पर
लाल टोपी और कंधों पर भगवा अंगरखा  डाले हुए 
हैं और कहते हैं कि इन देवालयों को, जिसमें भगवान 
लोग विराजमान है, उसे अपनें खून पसीने से 
बनाया है! दावा बिल्कुल ठीक है, लेकिन घुसपैठिए
ताकतवर हैं!

देवताओं के नाम और उनके विराजमान होनें का 
स्थान बताया गया है. कोई देवालय चंडीगढ़ में
है, तो कोई चेन्नई में तो कोई कोलकाता में!. 
कुछ बड़े भगवानों का नाम भी दिया गया है, जबकि
छोटे भगवानों को इन्होंने भी एक लाइन में 
'अन्य भगवान' कह कर नाप दिया है. इन 
सिद्धपीठों के सामने लोगों से ढोल-मजीरा लेकर
संकीर्तन करनें का आग्रह किया गया है! उन्हें रिझाने 
को कहा गया है।

दूसरी तरफ, देवाधिदेव आईबीए तथा विष्णु
अवतार के सरकारी अधिकारियों से भी 
चर्चना, परिक्रमा और साष्टांग थंडवत करने
को कहा गया है. ठीक ही है, इतनें बड़े पीपल 
हैं तो भूत होंगे ही!

कुछ रिटायरीज के  तीर्थ पुरोहितों का भी 
जिक्र है जो इंदौर, गुरुग्राम में मठ बनाए हुए
हैं. ये बड़े भगवानों के पुजारी हैं. एक नाम 
और है हैदराबाद से. कृपया ओवेसी समझनें
की भूल न करें. दर्शल में ये सबसे बड़े देवालय
के प्रतिक्षारत भगवान हैं, जो प्रकृति के निर्णय की
प्रतीक्षा कर रहे हैं, अर्थात लाइन में हैं, अत:
उनकी भी आरती करा जाए, ताकि उनकी कृपा
आगे बनी रहे, वख्त जरूरत पर काम आएं!

अपील है कि पूरी विनम्रता और श्रद्धाभाव से,
स्थानीय संभ्रांत वयोवृद्ध पेंशनरों को साथ लेकर
इस अनुष्ठान को संपन्न किया जाए। लोगों का 
विश्वास है कि जब पत्थर के गणेश जी दूध पी 
सकते हैं तो ये हमारे भगवान मानव रूप में हैं 
और प्रत्यक्ष रूप से खाते ही नहीं सटक कर
पीते भी हैं, जरूर प्रसन्न होंगे,  हमारा दुख
और दारिद्र्य, दोनों, दूर करेंगे. 

आयोजन के प्रस्तावक बेहद भोले-भाले और 
मासूम हैं. हम उनके भक्तिभाव और विश्वास 
का समादर करते हुए आग्रह करते हैं कि 
यदि भे भगवानों से मुखातिब होते हैं तो एक 
हमारी चिट भी उनकी तरफ खिसका देवें, इस
निवेदन के साथ कि  हैंगओवर से उबरें तो 
यह चिट देख लेवें:

(i) टुकड़े-टुकड़े में नहीं, रिजर्व बैंक की तरह
सबकी पेंशन रिवाइज हो, और

(ii) न्यूनतम स्वास्थ्य बीमा वेलफेयर फंड से/
बैंक लागत से सभी पेंशनरों का हो.

उम्मीद है, हमारी चिट उन तक पहुंचेगी. शेष तो
उनके मस्त होने पर ही एवमस्त निकल सकता
है.

(जे.एन.शुक्ला)

No comments:

Post a Comment