Saturday, July 25, 2020

Privatisation Of Public Banks

श्री नरेन्द्र मोदी जी,
माननीय प्रधानमंत्री,
भारत सरकार,
नई दिल्ली

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

सादर आपकी अनुमति की अपेक्षा रखते, सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के संबंध में हम निम्नवत कुछ कहना चाहते हैं:

1. सरकार के हाथ में सार्वजनिक बैंकेंं एक अमोघ अस्त्र हैं. बैंकों में लोगों की बचत जमा के रूप में होती है, जो एक तरह से बहुमूल्य 'राष्ट्रीय बचत' है. इस बहुमूल्य 'राष्ट्रीय बचत' की सुरक्षा और इसका देश के आर्थिक विकास के लिए बनी नीतियों में प्रयुक्त करना, दोनों, बैंकों का दायित्व है.

2. राष्ट्रीयकरण के बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों का देश के आर्थिक विकास में जो अभीष्ट योगदान रहा है, उससे आप भलीभाँति अवगत हैं. विगत 6 वर्षों के आपके कार्यकाल में आपके आह्वान पर आपकी हर योजना का बैंकों ने सफलतापूर्वक क्रियान्वयन किया है. विमुद्रीकरण, पी.एम. जन-धन खाते, दुर्घटना बीमा, जीवन बीमा, अटल पेंशन योजना, लाभार्थियों के खातों में विभिन्न सरकारी अनुदानों, पेशन आदि का सीधे अंतरण, कोरोना काल में बैंकिंग सेवावों को निर्वाधरुप से जारी रखना, मुद्रा योजना जैसी जन सामान्य के आर्थिक उत्थान की योजनाओं को लागू करने में सार्वजनिक बैंकों ने अद्वितीय योगदान दिया है.

बैंक खाता विहीन 36 करोड़ देशवासियों का नया बचत खाता खोलकर, बैंकों ने पहली बार, आम आदमी के लिए बैंकों का द्वार खोलने का राष्ट्रीयकरण का प्रथम लक्ष आपके प्रधानमंत्रित्व काल में हासिल किया है.

3. कोविड-19 से उत्पन्न आर्थिक संकट से उबरने के लिए सरकार की 20 लाख करोड़ की पैकेज योजना, सार्वजनिक बैंकों के कंधों पर सवार होकर आगे बढ़ रही है. उम्मीद है, बैंकों की वित्तीय सहायता से उद्योग और व्यापार को बड़ा बल मिलेगा तथा स्वरोजगार के अवसरों में भी आशातीत वृद्धि भी होगी.

4. सार्वजनिक बैंकों के कंसालिडेशन से बड़ा सुधार हुआ है. कुछ छोटी-छोटी बैंकें अभी भी यथावत हैं. सरकार को उन्हें भी कंसालिडेट करने का शीघ्र निर्णय लेना चाहिए, ताकि वे बड़े आकार में आकर काम कर सकें.

5. संचार माध्यमों में, सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण के संदेश आये दिन साया हो रहे हैं, जो हमारी चिंता का विषय है. कभी बी.बी.बी. तो कभी नीति आयोग और अभी-अभी वित्तमंत्रालय के तथाकथित आधार पर संदेश आया कि सरकार बैंक आफ इंडिया, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, बैंक आफ महाराष्ट्र, पंजाब एण्ड सिंध बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक को कार्पोरेट्स के हाथों बेचनें जा रही है. दुर्भाग्य से इन भ्रामक संदेशों का वित्त मंत्रालय से कोई खंडन नहीं किया गया, जो संदेह पैदा करता है.

6. जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, सार्वजनिक बैंकें सरकार के हाथ में अमोघ अस्त्र की तरह हैं. आम आदमी की बचत का संग्रहण और देश के आर्थिक विकास में उसका उपयोग करने का बैंंकों के अलावा और कोई अच्छा माध्यम नहीं हो सकता। लेकिन, जब बैंकों के निजीकरण का झूंठा भी संदेश आता है, तो जबरन दिमाग निजी बैंकों के इतिहास की तरफ चला जाता है और माथे कर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं. जनता की बचत का लूटखसोट एक  दिन भाग जानें का इतिहास. एक दिन ये सार्वजनिक बैंकें भी निजी हाथों में थी और उनका कई दशकों, कुछ का सैकड़ों साल का इतिहास था, लेकिन राष्ट्रीयकरण के समय 1969 तक उनके विकास, विस्तार और राष्ट्रीय उत्थान में उनके योगदान को देखकर आप हैरान होंगे. कुछ भी ठीक नहीं था. राष्ट्रीयकरण के बाद तीन दर्जन निजी क्षेत्र की बैंकों का असफल होना और उनका सार्वजनिक बैंकों में विलय कर हितधारकों को उद्धार की गौरवशाली परंपरा इन्हीं सार्वजनिक बैंकों के बल पर बनी है.

7. निजीकरण के झूंठे संदेश भी हमारे आत्मविश्वास को हिला देते हैं. बैंकों का सरकार से अच्छा कोई और कस्टोडियन नहीं हो सकता. यह जन विश्वास है. आज भी जब कोई निजी बैंक फेल होता है और जमाधारक छाती पीट-पीट कर चिल्लाता है, तो हमारे मन में यही गुस्सा होता है कि निजी बैंक में क्यों खाता खोला. ऐसा हम सार्वजनिक बैंक का खाता धारक होने के नाते सोचते हैं, क्योंकि हमें भरोसा है कि हमारी जमा हमारी बैंक में सुरक्षित है.

प्रार्थना:

आपसे प्रार्थना है, जन हित में सरकार भ्रामक प्रचारों का खंडन करे, देश की अवाम को आश्वस्त करें कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकें और मजबूती के साथ देश और अवाम की सेवा करती रहेंगी.

यह भी निवेदन है कि, शेष बचे सार्वजनिक बैंकों का भी विलय अबिलंब किया जाए. इससे ये बैंक अस्थिरता की भवर से बाहर आकर और अच्छे ढंग से देश की सेवा कर सकेंगी.

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बेचनें का सरकार पर दोषारोपण का अभियान चल रहा है. जनसामान्य की समझदारी में यह बात बड़ी आसानी से उतर जाती है कि सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का अभियान चला रखा है, जबकि सरकार का इरादा सार्वजनिक उपक्रमों को और मजबूत और कारगर करना है. सरकार नें सार्वजनिक बैंकों में पिछले पांच सालों में लाखों करोड़ की पूंजी लगाया है.

आदरणीय प्रधानमंत्री जी, बैंकों के निजीकरण जैसा कोई कदम ब्लंडर होगा, इससे समस्याएं सुलझनें के बजाय और उलझेंगी. सभी सार्वजनिक बैंकें, ग्रामीण बैंकें और सहकारी बैंके गैरजरूरी राजनीतिक हस्तक्षेप और रिजर्व बैंक की अकर्मण्यता की शिकार हैं. कर्ज वितरण में जोरजबरदस्ती, कर्जमाफी को वोट बैंक का जरिया बनाना और आरबीआई की अकर्मण्यता बैंकों के बुरे हाल के मुख्य कारण हैं.

आशा है, देश और जनहित में सार्वजनिक बैंकों को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए आप हर संभव कदम उठाएंगे.

सादर,

(जे.एन.शुक्ला)

25.7.2020
9559748834

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