Nothing Wrong To Dream
But,
Don't Let It Become Nightmare!
Some Fundamentals & Parameters
Need Clarity & Understanding:
1. Wage Revision is not a game to play nor subject to economic boom or depression of Banking. It's business imperative linked to job skills, operational risk & responsibilities, comparatives market compensation with a view to maintain a well satisfied and contended workforce to have an edge and to insure & secure best operational results.
2. The parameter & fundamentals, set above, annul the existing wage revision system & procedures based on affordability or paying capacity. They have proved to be uneconomical, unviable and derogatory to the vital interests of workforce, added great discontentments and demotivations that turn to be hampering the vital aspect of productivity and performance of Banks.
3. The existing system of compensation is abnormal, substandard and inferior to sectoral wage market within government and open market establishments. PSBs performance, work culture and connects are compared with their counter part in private sector, but the necessary tools & ingredients are not brought on board. Connects, concentration & services to public by PSBs workforce have decimated over a period of time for multiple reasons. Professionalism & core competence have been totally compromised and now great attitudal decimation at par with government servants.
4. If you see 10th Settlement & compare the same with ensuing 11th Settlement, affordability or paying capacity will become totally irrelevant. The 10th settlement was at 15% on affordability, adjudged and determined on Balance S heets of FY 3/2012, 3/2013 & 3/2014. These BSs were good. Now, look to BSs of 3/2017, 3/2018 & 3/2019. These BSs are worst. But, percentage wise rise is same and amount wise it went up from Rs.4800 crore to Rs.7800 crore. When the affordability was lucrative in 10th Bipartite Settlement and when it is minus in 11th Bipartite Settlement, increase rate is same. So, now affordability and paying capacity is not at all relevant?. It is side tracked, dictated and replaced by trade expediencies. Trade expediency is 'wage increase', whether business fundamentals and parameters permit or not.
5. Time is, what we can say, of 'course correction'. Affordability and paying capacity has never been actual & real, rather it were misleading & deceptive ploy by IBA and Unions. In 11th BS talks if you search quantification of demand in percentage terms from May, 2017, you would have only disappointment. It was never quantified. Vague term of 'adequate' or 'fair' was used. In 10th Jan. 2020, FBPA had in its mail to Convenor, UFBU stressed the need to have 25% wage increase this time. On this, in 13th Jan.2020 meeting with IBA, UFBU, quantified increase to 20%. On 30th Jan, 2020 it was reduced to 15%. Bankers in the beginning rated affordability at 2%. It all were irrelevant and irrational exercise, mere wastage of efforts and time, dragging and making Banking & it's workforce real victims.
Situation in Banking industry has been taking swift twist and turn. Never such unpredictable situation has ever arisen. Perceptional gap between bank men/ground functionaries and top leaders of Unions have never been such wide as it exists today. Top leaders high headedness and arrogance has gone high. Leaders have created horror and most inhuman conditions among Bank Pensioners, whose Pension/Family Pension has never been revised since introduced. 75% of 4.5 lakh Penioners are without health cover, 72000 widow pensioners are just passing their life on paltry 15% pension amount.
If these are right points and
ensuing settlement is blank,
should bank men not treat
settlement Day as
BLACK DAY
and
settlement as
BLACK DEED
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FORUM OF BANK
PENSIONER ACTIVISTS
Central Office
PRAYAGRAJ
01.2.2020
सपने देखने में कोई हर्ज नहीं,
लेकिन इसे दु:स्वप्न न होने दो.
कुछ मौलिकता और मानदंडों
की समझदारी और स्पस्टता जरूरी है.
1. वेतन पुनरीक्षण कोई खेल नहीं है, जो बैंकों के आर्थिक अभिवृद्धि या मंदी के आधार खेला जाये. यह कार्य कुशलता, परिचालन जोखिम, जवाबदेही, बाजार से जुड़ी तुलनात्मक प्रतिपूर्ति, जो कार्यबल को संतुष्ट बनाये रखने की व्यवसायिक अपरिहार्यता है, ताकि उससे सर्वोत्तम परिचालन परिणाम हासिल और सुनिश्चित करने में बढ़त बनाये रखा जा सके.
2. उपरोक्त मौलिकतायें एवं मानदंड वर्तमान वेतन पुनरीक्षण की पद्धति और परिपाटी, जो वहनेय व देय क्षमता पर आधारित है, निरस्त करती है. वह बैंककर्मियों के केवल व्यापक हितों के खिलाफ अलाभकारी और अग्रहणीय ही साबित नहीं हो चुकी हैं, बल्कि गहरे असंतोष और अप्रोत्साहन का कारण बन चुकी हैं जो बैंकों की परिचालन और उत्पादकता को भी नुकसान पहुंचा रहीं हैं.
3. बैंकों में प्रतिपूर्ति का वर्तमान तरीका, क्षेत्रगत सरकारी एवं खुले बाजार की इकाइयों के वेतन बाजार की तुलना में असामान्य, दोयमदर्जे और नीचे है. सरकारी बैंकों के निस्पादन, कार्य संसकृति और जुड़ाव की तुलना निजी क्षेत्र की समकक्ष बैंकों से की जाती है, लेकिन जरूरी साधन और संसाधन उपलब्ध नहीं कराया जाता. सरकारी बैंकों के कामगारों के ग्राहकों से जुड़ाव, उनके प्रति एकाग्रता और सेवा में जो कालांतर में गिरावट हुई है, उसके बहुत से कारण हैं. पेशेवर दक्षता और मूल क्षमता से पूर्णत: समझौता हुआ और आज व्यवहार में सरकारी कर्मचारियों जैसी बड़ी गिरावट है.
4. अगर आप 10वें द्विपक्षीय समझौता को लें और उसकी तुलना होने वाले 11वें समझौते से करें तो वहनेय और देय क्षमता पूर्णत: अप्रासंगिक हो जाती है. 10वां समझौता वित्तीय वर्ष 12012, 2013, 2015 के तुलन पत्रों के आधार पर बनी वहनेय व देय क्षमता के आधार पर 15% तय हुआ था. ये तुलन पत्र काफी अच्छे थे. अब, वर्षांत 2017, 2018, 2019 के तुलन पत्र देखिए. ये सबसे खराब हैं. लेकिन, प्रतिशत के तौर पर एक जैसा राइज दिया गया और राशियां रु.4800 करोड़ से बढ़कर रु.7800 करोड़ हो गईंं. जब वहनेय और देय क्षमता, 10वें समझौते में बहुत आकर्षक थी और आज जब यह 11वें समझौते में नकारात्मक है, वृद्धि दर एक जैसी है. अत: अब वहनेय और देय क्षमता बिल्कुल प्रासंगिक नहीं रह गई हैं, यह दरकिनार हो गई है, व्यवसायिक अनिवार्यताओं के डिक्टेट में बदल दी गईं हैं. वेतन वृद्धि व्यवसायिक जरूरत है, चाहे व्यवसायिक मौलिकतायें या मानदंड स्वीकार्यता दें या न दें.
5. समय, जो हम कह सकते हैं, बदलाव का है. वहनेय और देय क्षमता कभी भी वास्तविक नहीं थी, बल्कि ये भ्रमित करनेवाली थी और आईबीए और यूनियनें, दोनों, झांसा देने के उपाय के रूप में इसका उपयोग करते रहे हैं. 11वें वेतन की मई 2017 से शुरू हुई वार्ताओं में मांग का अंक खोजें तो निराशा हाथ लगेगी. इसे कभी अंक नहीं दिया गया. 'पर्याप्त' या 'उचित' शव्द का अस्पस्ट प्रयोग दिखता है. 10.1.20 को कंवेनर, यूयफबीयू को भेजे मेल में हमारे फोरम ने 25%वेतन वृद्धि की अपरिहार्यता पर बल दिया. 13.1.2020 की आईबीए के साथ हुई वार्ता में पहली बार यूयफबीयू ने 20% वेतन वृद्धि का आंकड़ा रखा. 30.1.20 की वार्ता में 20% घटकर 15% हो गया. बैंकर्स ने शुरू शुरू में देय क्षमता 2% रखा. ये सब बकवास कार्यवाइयां थीं, समय और श्रम की बरबादी थी, बैंकों और बैंककर्मियों को बेवजह घसीटा और घायल किया जा रहा था.
बैंकिंग उद्योग में स्थितियां तेजी से उथल-पुथल हो रही हैं. ऐसी अकल्पनीय स्थिति तो कभी नहीं थी. जमीनी कार्मिकों/नेतृत्व और उच्च पदस्त यूनियन नेताओं के बीच आज जैसा वैचारिक अंतर कभी नहीं था, जैसा आज है. उच्च पदस्त नेताओं का सरफिरापन और गुरूर इतना ऊंचा कभी नहीं था, जितना आज है. नेताओं ने बैंक पेंशनरों के जीवन में भयावह और अमानवीय स्थितियां पैदा कर रखा है, जिनकी पेंशन/फेमिली पेंशन, जबसे लागू हुई कभी पुनरीक्षित नहीं की गई. 4.5 बैंक पेंशनरों में 75% लोग स्वास्थ सुरक्षा से वंचित हैं, जिनमें से 72000 विधवा महिला पेंशनर्स हैं, जो 15% तुच्छ पारिवारिक पेंशन पर गुजर कर यही हैं.
If these are right points and
ensuing settlement is blank,
should bank men not treat
settlement Day as
BLACK DAY
and
settlement as
BLACK DEED
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FORUM OF BANK
PENSIONER ACTIVISTS
Central Office
PRAYAGRAJ
01.03.2020
(Letter mailed to FM on 29.2.20, 10.56 a.m.)
Sister Nirmala Sitaraman,
Hon'ble Finance Minister,
GOI, New Delhi
Respected Sister,
Please Say No
To Tukde-Tukde
BANKS PENSION REVISION...
The IBA has been contemplating an idea of tukde-tukde in Pension Revision matter of Bank employees & officers. The IBA has borrowed this idea from the propagandist of tukde-tukde gang, which entire banking fraternity vehemently opposes & condemns.
Please STOP IBA from any such adventurism, which shall only add fuel to fire, instead resolving the issue in question.
Please advise Banks to have a composition view of wages & pension and reach to a composite and comprehensive settlement in wages & pension matters in line with RBI pension revision.
Banks' Pensioners are denied and deprived of any pension revision since it was introduced in 1986.
Government may please address pension revision issue of other bank men as done in RBI.
Regards,
(J. N. Shukla)
National Convenor,
Forum of Bank Pensioner Activists
Prayagraj
29.2.2020
9559748834
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