To All Bank Pensioners
Strike was nothing,
but to support Shaheenbagh,
a political indispensableness.
Forum is in ceaseless efforts at various level, be it IBA, UFBU or Govt, irrespective of like, dislike, aspersons etc., to focus on Bank retirees plights in particular and of bank men in general. You are well aware of your aims and objectives. We are just Special Purpose Vehicle, once our mission is accomplished, we shall wind-up.
We have no prejudices with any Union or their leaders nor we have any ambitions to grind out, but a simple urge to all to look to old veterans who fought for Unions, built them strong and sustainable. Look to old veterans who fought every struggle with full sincerity, dedication and even sufferings, be it nationalization of Banks, credit policy, participative management, emergency, Pension Scheme etc.
These veterans contributed to their might to the growth and expansion of PSBs made them most effective tool to change the economic graph of rural economy. These veterans are left uncared, once they started retiring from 1.1.1986 with meagre amount of pension on last pay drawn. Is there any such instance where pension scheme has been drawn up on Central government Pension Rules, but not revised? It's Pension, why such ad- hocism has prevailed for such long years? Was it ever imagined in initial days by anyone that the Organization which fought for Pension in Banking, against all odds & impediments-created by all banking Unions, Banks, IBA, Govt together-would turn back to pension revision at a point of time when all Unions are together under one roof and settling wages and service conditions repeatedly, but not pension revision? If it is said today, it invites wraths now from Alibaba and his companions.
One Retiree Union was formed some 25 year back and it just continued to work as slave of an Union. It was disliked by other, so another Retiree Union was officially floated. At best, another slave!
However, the Forum was of the opinion that these Unions should first be recognised by UFBU. Accordingly, wrote to UFBU, but they maintained stoic silence. We were thinking, these Retirees Unions would rise up, show spine and make request for recognition and participation. We provoked them too, but for reasons best known to them, they preferred to stay in their 'keep' status.
In the name of 'inactions' of old Union, split was engineered, but today whether one can know as to what old or new Unions have delivered to Pensioners?
This 'inaction' tendency led to formation of several Unions- a source to garner financial strength. Such developments are natural in an environment of uncertainty and chaos. It damaged the credibility andar belief in Trade Union- a noble institution.
For this very fear, we decided not to become any Union/Association, function on voluntary basis for specific job and abondon the Forum, once the specific tasks of Pension/Family Pension revision and Medi Insurance Cover are accomplished.
Such a ridiculous & unfortunate situation is an outcome of chaotic conditions that surged over years due to inept handling of pensioners issues by operating Unions, who have been basically responsible, being signatory to Pension Scheme and revision issue being bilateral between management and Unions.
Still vision is not clear. Blindness prevails. Most confusing, disturbing and distorting informations are afloat with regard to Pension revision. Revision not in one go.... in piece meal like! How far even this piece of information is true, can't be said.
As far bank men demands are concerned, PLI as we said is a ploy to deprive real increase. Looking to deteriorated pay and allowances, 25% increase is bare necessity to make up. As far 20% rise UFBU demand is concerned, as already explained in our earlier articles, it would just compensate them of LIC's last time excess, provided LIC is retained at earlier level of 17.5% level. But, on 30th Jan.2020, they conveyed their decision to agree at 15%, to which bankers had agreed. Strike was nothing, but to support Shaheen bagh, a political indispensableness.
(J. N. Shukla)
National Convenor,
Forum of Bank Pensioner Activists,
Prayagraj
8.2.2020
(Hindi version as well)
सभी पेंशनर एक्टिविस्टों के लिए:
हड़ताल और कुछ नहीं बल्कि शाहीन बाग के
समर्थन में एक राजनीतिक अपरिहार्यता थी.
फोरम विभिन्न स्तरों पर, खासकर बैंक पेंशनरों और सामान्यरूप से अन्य बैंककर्मियों की कठिनाइयों को लेकर प्रयासरत है, चाहे वह आईबीए, यूयफबीयू, हो या सरकार के स्तर पर, बावजूद लोगों की पसन्द, नापसन्द या अवहेलना के. आप सभी हमारे उद्देश्यों से अवगत है. हम एक 'स्पेशल पर्पज वेहिकल' की तरह हैं, एक बार हमारा मिशन पूरा हुआ कि हम इसे बंद कर देंगें.
हमारा किसी यूनियन या उसके नेता से कोई विरोध नहींं है और न ही हमें कोई अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करना है, लेकिन एक साधारण निवेदन है कि उन बूढ़े महारथियों की तरफ भी देखा जाये, जिन्होंने यूनियनों के लिए संघर्ष किया, उसे मजबूत और टिकाऊ बनाया. उन बूढ़े महारथियों को भी देखा जाये, जिन्होंने हर लड़ाई को पूरी सुचिता और समर्पण से लड़ा और संकट भी झेला, चाहे वह लड़ाई बैंक राष्ट्रीयकरण की रही हो, साख नीति की रही हो, पार्टिसिपेटिव मैनेजमेंट, आपातकाल या फिर पेंशन नीति आदि की रही हो..
ये महारथी अपनी पूरी ताकत से सार्वजनिक बैंकों के विकास व विस्तार के लिए काम किये, ग्रामीण अर्थव्यवस्था का.नक्शा बदलने का बैंकों को एक कारगर तंत्र बनाया. आज ये महारथी बिना देखभाल, 1.1.1986 के बाद जब रिटायर हुए उस वेतन पर मामूली बनी पेंशन पर छोड़ दिये गये हैं. क्या कहीं कोई उदाहरण है, जहां केन्द्र सरकार की तर्ज पर पेंशन बनी हो और उसका रिवीजन न किया गया हो? यह पेंशन है, फिर इतने वर्षों से तदर्थता क्यों कायम है? सुरुआती दिनों में क्या किसी ने इसकी कल्पना की थी कि जिस संगठन ने सभी दुस्वारियो, प्रतिरोधों, सभी यूनियनों, प्रबंधन, सरकार के प्रबल विरोध और अवरोध के बाद भी पेंशन नीति हासिल किया, वह आज जब सभी यूनियनें एक छत के नीचे हैं और समझौते पर समझौता कर रही हैं, पर पेंशन रिवीजन नहीं?और, पेंशन रिवीजन पर पीठ दिखा देगी! आज अगर इस पर कुछ कहा जाये तो अलीबाबा और उनके साथियों का कोपभाजन बनना पड़ता है.
25 वर्ष पूर्व एक रिटायरी यूनियन बनी थी और वह गुलाम की तरह काम करती रही. दूसरों को यह पसन्द नहीं आया और एक और यूनिरन बना दी गयी. ज्यादा से ज्यादा एक और गुलाम यूनियन बन गई.
यद्यपि फोरम का मत है कि इन यूनियनों को यूयफबीयू मान्य करे और फोरम में शरीक कर इन्हे दर्जा दे. इस विषय पर हमने यूयफबीयू को पत्र भी लिखा लेकिन वे चुप रहे. हम सोच रहे थे कि रिटायरीज यूनियनें खड़ी होंगी कुछ पहल करेंगी, पर वे भी चुप रहीं. हमने उकसाया भी, पर वे पूरे यनोयोग से अपने पूर्व 'रखेल' के हक पर बने रहने को वरीयता दी.
'अकर्मण्यता' के नाम पर पुरानी यूनियन को तोड़कर नयी यूनियन बनाई गई, लेकिन आज भला कोई जान सकता है कि इन नई- पुरानी यूनियनों ने मिल कर पेंशनर्स के मामले में क्या गुल खिलाया?
'अकर्मण्यता' की प्रवृत्ति ने अनेक यूनियनें बना दिया जो चंदा ऊंगाही का काम कर रही हैं. जहां अनिस्चितता और अव्यवस्था का वातावरण हो, वहां ऐसा होना स्वाभाविक है. इसने ट्रेड यूनियन जैसी पवित्र संस्था की विश्वसनीयता और आस्था को गहरा आघात पहुंचाया है.
मात्र इस कारण से हमने कोई यूनिरन/एसोसिएशन न बनाने का निर्णय लिया. एक्षिक आधार पर, निर्धारित कार्य- पेंशन रिवीजन और स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा-करने का सोचा और कार्य पूरा होने पर फोरम को बंद करने का निर्णय ले रखा है.
ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण और हास्यास्पद संगठनात्मक स्थिति, आपरेटिंग यूनियनों की पेंशनरों के मुद्दों के प्रति बरती गई उपेक्षा और अवहेलना तथा पिछले 20 वर्षों से व्याप्त अनिश्चितता और उथल-पुथल के कारण है, क्योंकि पेंशन रिवीजन और स्वास्थ्य बीमा के लिए वे मूल रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि मामला उनके और मैनेजमेंट के बीच द्विपक्षीय है, जिसे वे करने से कतराते रहें हैं..
दृष्टिकोण अब भी स्पस्ट नहीं है. अंधापन पसरा है. विभ्रम, अशांत करनेवाली और तोड़ीमरोड़ी सूचनायें पेंशन रिवीजन को लेकर तैर रही हैं. रिवीजन एक बार में नहीं..... टूकड़ों मे होगा... ऐसा... वैसा! ये सूचनायें भी कितनी सही हैं, भरोसा नहीं किया जा सकता.
जहां तक बैंककर्मियों की मांगों का प्रश्न है, पी.यल.आई. एक छलावा है, वास्तविक वेतन वृद्धि नकारने का यत्न है, इसे हम पहले ही कह चुके हैं. पे और भत्तों में आई बड़ी गिरावट को किसी हद तक पूरा करने के लिए न्यूनतम 25% वृद्धि आवश्यक है. जहां तक यूयफबीयू की 20% वृद्धि की मांग का प्रश्न है, जैसा हम अपने पूर्व लेख में स्पस्ट कर चुके हैं, यह जीवन बीमा को पिछली बार दी गई ज्यादा वृद्धि की भरपाई भर होगी, यदि जीवन बीमा को पिछले 17.5% के स्तर पर इस बार रखा जाये तो. लेकिन 30 जनवरी, 2020 को यूनियनों ने 15% वृद्धि पर अपनी स्वीकार्यता आईबीए को दे दिया है. हड़ताल और कुछ नहीं बल्कि शाहीन बाग के समर्थन में एक राजनीतिक अपरिहार्यता थी.
(J. N. Shukla)
National Convenor,
Forum of Bank Pensioner Activists,
Prayagraj
8.2.2020
9559748834
jagat.n.shukla@gmail.com
(English version as well)
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