Friday, February 14, 2020

क्या वाकई आसमान गिरने वाला है?

क्या वाकई
आसमान गिरने वाला है?

एक यूनियन नेता ने शेष 8 बैंक यूनियनों, एबाक, एनसीबीई, एआईबीओए,बेफी, इंबेफ, इंबाक, एनओबीडब्लू, नोबो को 10.2.20 को एडवाइजरी नोट जारी किया है कि आसमान गिरनेवाला है, बहुत अर्जेंसी है ( ईश्वर का सुक्रिया कि इमरजेंसी नहीं कहा) और बनस्पति वेतन, पेंशन, सेवा शर्तों के रिवीजन के, 'गंभीर' संघर्ष ( शायद अनिश्चित कालीन हड़ताल से बड़े, जो 1.4.2020 से प्रस्तावित है) की जरूरत है. एडवाइजरी में कहा गया है कि ये कार्यवाइयां मार्च के अंतिम हड़ताल से शुरू कर दी जायें.

भगवान जानें, कि इन 8 संगठनों को इन मुद्दों/विषयों का आभास है या नहीं जो महाशय सुप्रिम कमांडर की हैसियत से जारी किये हैं. वास्तव में क्या ऐसा नहीं लगता कि ये महाशय स्वयं को अति स्मार्ट, बुद्धिमान, सतर्क और सुपरकाप  समझते और दूसरों को सोता हुआ अनाड़ी और लंपट मानते हैं? मंशा डिक्टेट करने की है कि लोग अनुपालन करें. यूयफबीयू को नजरंदाज करना, उसे लांघना, अनुमन्य मान  लेना इरादा बन चुका है. अगर वे 'अपनी' बात रखना ही चाहते थे, ठीक है, वे यूयफबीयू को लिखने को स्वतंत्र थे, जो अपनी तरफ से सभी संबद्ध संगठनों को सूचित करता. अनुसाशन, डिकोरम, डिसेंसी सबको हवा में उड़ाते, खुद को औरों पर थोपना आपसी कलह का कारण है जो कहां तक सही है? हमें पता नहीं, इन यूनियनों की प्रतिक्रिया क्या होगी, लेकिन यह बहुत ही दमघोटू है, हमारे अनुसार, और वेतन, पेंशन, सेवाशर्तो के मेद्दे उलझे रहने तक ये गौंंड़ विषय हैं. अब हम उन विषयों पर चर्चा करेंगें, जो एडवाइजरी नोट में उठाये गये हैं.

1. बैंकों का विलय: क्या अब यह कोई प्रासंगिक विषय है? हमारे अनुसार, ये तो निरर्थक मुद्दा है, जिसे फेटा जा रहा है. अब तक, सभी स्टेट बैंक की सहायता बैंकों का भारतीय स्टेट बैंक में विलय  हो चुका है, देना-विजया-बाब एक हो चुके हैं, पी.एन.बी-ओ.बी.सी.-यूनाइडेट और इंडियन बैंक-इलाहाबाद बैंक एक होने की प्रक्रिया में बढ़ चुके हैं. ये हो चुका है, निपटा विषय है, वापसी की कहाँ संभावना है? क्या अब स्टेट बैंक की सहायक बैंकें या विजया बैंक और देना बैंक अपने पूर्व अस्तित्व में वापस आ सकती हैं? इसके लिए समझदारी की जरूरत है, बजाय सनकने के!

2. बैंक्रप्टसी कोड को 'महिमंडित' करने के तंत्र के तौर पर बताया गया है. और 'कठोर उपाय' की आकांक्षा व्यक्त की गई है. 'कठोर उपाय' क्या है, व्याख्यातित नहीं किया गया है. कानून का शासन है. बैंकें कोई अदालतें नहीं हैं. अदालतें भी उचित अवसर और प्राकृतिक न्याय का समय देती हैं. भारतीय अदालतें कोई कंगारू कोर्ट नहीं हैं और न ही चीन की तरह है! आईबीसी से डिफाल्टरों को 'महिमंडित' कैसे किया जा रहा है? पहले कोई कानून.नहीं था और अब यदि आईबीसी के तहत कानून बना दिया गया है, तो आईबीसी किसी को फांसी तो नहीं दे सकता. वह चूककर्ताओं की परिसंपत्तियों को जब्त कर सकता है, नीलाम कर सकता है , बेच सकता है. आईबीसी वह काम तो कर रहा हैं. अब बैंकें स्वयं में पुलिस, कोर्ट तो हो नहीं सकतीं. हम इसे सामान्य तौर पर मानसिक दीवालियापन मानते हैं.

3. आईडीबीआई का 47% विक्री: वर्तमान कानून के तहत सभी सार्वजनिक बैंकों का विनिवेश 48% तक हो सकता है. तो, यह नया विषय क्या है? विनिवेश एक विवादास्पद प्रकरण है. जब विनिवेश का कानून लाया गया था तो बैंककर्मियों ने इसका विरोध किया था. कोई हड़ताल नहीं. प्रारंभिक तोर पर इसका केवल विरोध किया गया और शेयर न खरीदने का निर्णय हुआ था. विरोध हुआ, पर लोगों ने शेयर खरीदा. लेकिन अब हर विनिवेश की खेप पर हड़ताल होती है. हम ध्यान दिलाना चाहते हैं कि बाजपाई सरकार ने 74% तक के विनिवेश का बिल लाया था, जिसका विरोध हुआ. स्व. का. तारकेश्वर ने एलान किया कि यदि यह बिल कानून बनता है तो अनिश्चित कालीन हड़ताल होगी. बिल किसी कमेंटी को भेज दिया गया, कालातीत हो गया और बाद में बाजपाई सरकार भी चली गई थी. हास्यास्पद स्थिति, जो आज है, कि हर विनिवेश पर हड़ताल, वह भी कानूनी दायरे में, अब इस विषय को बैंककर्मियों की नजर में, गैरप्रासंगिक कर दिया है.

4. डिपाजिट बीमा: एक लाख की जगह अब पांच लाख तक की जमा बीमित की गई है. क्या यह जमाधारकों के हित के खिला है? आरोप लगाया गया है कि इससे बैंकों पर प्रीमियम का भार बढ़ जायेगा और स्टेकहोल्डरों पर बेवजह भार बढ़ेगा. इन्हें रिटायरीज के बढ़े स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम की परवाह नहींं है जो 2015 में 5600 था, वह 2019 में बढ़कर 25000 हो गया. लेकिन जमाधारकों के 5 लाख जमा का बीमा इन्हे नागवार लग रहा है. उनका कहना है कि बैंकिग रिगुलेशन्स एक्ट 1949 की धारा 45 के होते,  इस बीमा की कोई जरूरत नहीं है. हम नीचे सेक्सन 45 दे रहे हैं:

"Section 45. Power of Reserve Bank to apply to Central Government for suspension of business by a banking company and to prepare scheme of reconstitution or amalgamation."

उपरोक्त धारा का उद्देश्य ही अलग है. पर वे बैंककर्मियों को गुमराह करने पर तुले हुए हैं. कहते हैं आसमान गिर रहा है.

5. जीवन बीमा विनिवेश: अगर सार्वजनिक बैंकों का विनिवेश हो सकता है और बैंकें सार्वजनिक क्षेत्र में बनी रहती हैं तो जीवन बीमा के विनिवेश को लेकर हाय तौबा क्यों? ये बैंक यूनियन चला रहे हैं या बीमा यूनियन या पूरे वित्तीय क्षेत्र का ठीका ले रखा है? बीमा के लोगों को इस पर विचार करने दें, हम भी अपना नैतिक समर्दन दे देगें. आसमान तो गिर नही रहा है.

6. यफ आर डी आई बिल: लोगों को इस पर विचार करने दो. जो होगा उस पर विचार होगा. संकेत है, इस पर पुरर्विचार हो रहा है, लेकिन कोई समय सीमा तय नहीं है. इतना आतंकित होने की क्या जरूरत है. आसमान थोड़े गिर रहा है।

महाशय बेहद परेशान और उलझे हुए हैं. अक्षमता, अयोग्यता और असंगतता से पिछले बीस वर्षों ते तर-बतर ये महोदय उसे ढकने और संपूर्ण तंत्र में स्वयं को प्रासंगिक बनाये रखने में प्रयासरत हैं. बिल्ली झोले के बाहर हो गई है. बिना गल्ती किये और ध्यान से, इन महाशय का अध्ययन करें. 2% वेतन वृद्धि का प्रस्ताव इन्हीं की सहमति से आया. जो बढ़ा, इनकी इच्छा से. 9% की वृद्धि पर गाड़ी के आगे काठ रखने की नियत से परिपत्र जारी किया कि यह पिछले समझौते की राशि से बहुत ज्यादा है. फिर 11%, 12.5%, 13%, 13.5% सब सही था. 13.1.20 की वार्ता में पहली बार मांग को 20% वृद्धि गिनती दी गई. स्मरण करे: 10.1.20 को हमने 25% न्यूनतम वेतन वृद्धि की मागं करने का मेल किया था, जिससे किसी हद तक वेतन गैप को भरा जा सके. स्मरण करें, 13.1.20 की बैठक के बाद बताया गया कि20% वृद्धि की मांग की गई है. 20% वृद्धि की मांग का प्रतिवाद करते हमने कहा था कि यदि जीवन बीमा को पूर्व स्तर, 17.5%, पर रखते हुए, इस बार बैंककर्मियों को 20% वेतन वृद्धि दी जाती है, तो किसी तरह से पिछली कमीं की भरपाई होगी. यहां तो मांग ही 20% की रखी गई. वह भी 30.1.20 की बैठक में गिर कर 15% पर आ गई. इनके परिपत्र पढ़िये और ड्रामा समझिए.. 15% मांग  रखा और 15% बैंकर्स ने दिया, फिर भी दो दिन की हड़ताल! पेंशन रिवीजन पर बड़ी लागत का ढिढोरा किसने पीटा और बैंकर्स ने किस बुनियाद पर पेंशन रिवीजन पर 95000 करोड़ फंड की जरूरत की बात कही?. अब टुकड़े-टुकड़े की बात सबसे पहले कहां से निकली? इन दुष्परिणितियों के पीछे एक दुरात्मा है, जो पूरी बैंकिंग फ्रैटर्निटी, चाहे वह कार्यरत है या सेवा निवृत्त, का शिकार कर रही है.

इस पर ये हिदायतें! समझिए क्या दांव पर है और कौन सी बात सबसे महत्वपूर्ण है? बैंककर्मियों के वेतन, पेंशन, भत्तोंं, सेवाशर्तो का रिवीजन या वे मुद्दे जो सीपीआई-सीपीएम या कोई और राजनीतिक दलों के राजनीतिक मंतव्यों के तहत उठाये जा रहे हैं?


(J. N. Shukla)
National Convenor,
Forum of Bank Pensioner Activists,
Prayagraj 211 004
12.2.2020
9559748834

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