Friday, October 11, 2019

Truth Of Medical Insurance

न्यू इंडिया एशो. कं. की बीमा पालिसी को
ऐसे ही खारिज न करें रिटायरी यूनियनें!

इसे गंभीरता से लें, और

UIIC+IBA+Chain Hospital+TPAs+ Others के NEXUS को ध्वस्त करें !!
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इस सच्चाई से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि यूयफबीयू एक प्रतिनिधि संगठन रहा है, उसने रिटायरीज के स्वास्थ्य बीमा के लिए जो किया होगा वह अपनी तरफ से अच्छा समझकर किया होगा. लेकिन, उसकी जो आज परिणतियां हुई हैं, वह उनके लिए अंजान रही होंगी. और, कहीं न कहीं वे इस मामले में नौसिखिए भी थे, क्योंकि ऐसा कुछ पहली बार हो रहा था, पर उसका खामियाजा आज पूरा रिटायरी समूह उठा रहा है. दुर्भाग्य की यह कि पिछले चार वर्षों से खामियों के सुधार का कोई कदम नहीं उठाया गया, परिणात: 2015 के बेस प्रीमियम में लगभग पाँच गुना की वृद्धि हो चुकी है. 4.5 लाख रिटायरीज में से 70% ने बीमा प्रीमियम का भुगतान  करने की असमर्थता के कारण इस पालिसी से बाहर हो लिया. बचे 1.5 लाख में से उम्मीद है कि 25000 लोग फिर बीमा प्रीमियम नहीं दे पायेंगे. अब वही लोग बीमा लेंगे जो बीमार चल रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में क्लेम रेशियो को लेकर कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी.

एआईबीआरयफ या कोई भी रिटायरी संगठन स्वयं में शक्तिमान नहीं था और न है और न रहेगा, क्योंकि इसके पास ऐसी कोई बटन नहीं हैं जो बैंकों की बिजली गुल कर सके. यह एक ऐसी सच्चाई है, जिसकी रिटायरीज अनदेखी करते रहे हैं और अपनी एकता को तार-तार करते अपनी यूनियनों को ही कमजोर करते रहे हैं.

एबाक को एआईबीआरयफ की एआईबीईए से नजदीकियां नागवार लगती थी. एआइबीआरयफ निकम्मा संगठन कह और उसको ढ़ाल बनाकर एबाक ने इसे तोड़ने का काम किया. एबाक ने एक अपना संगठन बना दिया. एबाक को लगता था कि एआईबीआरयफ ए.आई.बी.ई.ए. का संगठन है. ऐसी भ्रामक स्थिति पैदा करने में ए आई बी आर यफ का नेतृत्व भी किसी हद तक जिम्मेदार है कि वह अपना कुनबा ठीक से नहीं सभाल सका. एबाक ने एक अपना संगठन बनाया और अब संगठन बनने का दौर चल पड़ा है. आगे और संगठन बनते रहेंगे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता..

भातृत्व भाव का होना कोई कमजोरी नहीं, बल्कि एक ताकत है. लेकिन, पिछलग्गू और चापलूस बन जाना पूरी जमात को नुकसान देता है. रिटायरीज संगठनों को लेकर यही हो रहा है. कोई एबाक तो कोई किसी और संगठन की चापलूसी कर रहा है. काम तो कार्यरत यूनियनों के बल पर ही होना है. उनके साथ चलना कोई बुरी बात नहीं है. सभी रिटायरी इन्ही यूनियनों से ही आये हैं और उन्हें इस बात का गर्व है और होना भी चाहिए. कार्यकारी यूनियनों को भी सीनियर साथियों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए था, लेकिन अफसोस जनक बात यह रही कि इन यूनियनों ने रिटायरीज और उनकी यूनियनों को चापलूस और पिछलग्गू बनाये रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा. यह बात अब रिटायरी यूनियनों के नेता भी स्वीकार करने से गुरेज नहीं करते कि उन्हे निरंतर नजरंदाज और दबाया जाता रहा है. मजबूरी है कि वे लड़कर भी इससे राहत नहीं पा सकते.

आपरेटिंग यूनियनों ने रिटायरीज यूनियनों को वह दर्जा और बढ़ावा नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे. इस स्थिति ने लोगों की निगाह में रिटायरीज यूनियनें को पिछलग्गू या यूं कहिये की चापलूस बना दिया. ऐसा नहीं है कि आई बी ए ने यह दर्जा देने से मना किया हो. सरकार से भी निर्देश था कि रिटायरीज यूनियनों से आई बी ए बात करे, पर यह बात खुद आपरेटिंग यूनियनों को स्वीकार्य नहीं हुई और आज भी रिटायरीज यूनियंस की हैसियत रोलिंग स्टोन जैसी बनी हुई है. इनके पास कोई फोरम नहीं है जहां वे अपनी बात रख सकें. और तो छोड़िए, यू.यफ.बी.यू. ने कभी इन्हें अपने फोरम में नहीं घुसने दिया.

आज कुछ संगठन और लोग यह सवाल  उठा रहे है कि न्यू इंडिया एशोरेंस की बात एआईबीआरयफ के नेता जैन ने क्यों नहीं बताया. वस्तुत:, बताया या नहीं, इसका बहुत बड़ा मतलब नहीं होता. मतलब की बात यह है कि अगर ए आई बी आर यफ ने प्रयास किया और एक अल्टरनेट पालिसी लाने में कामयाब हुआ है तो पहले उस पर गौर हो और अगर पालिसी सही और प्रीमियम कम है, तो उसे स्वीकार करने की दिशा में कदम बढ़ाया जाये. बाकी सब गिले-शिकवे बात-चीत के विषय हैं. अगर ए आई बी आर यफ ने सही काम छुप कर भी किया है तो अन्य यूनियनों को ऐसा काम करने से किसने रोका था?. वे भी कुछ ऐसा करते. दिक्कत काम को लेकर नहीं, बल्कि इस बात पर है कि इसका श्रेय जैन को क्यों मिले.

जैसा होता रहा है, इस विषय को लेकर नियत को लेकर भी मन में कौंध होगी. कहावत है, कोयले की दलाली में हाथ काला. ऐसे सवाल पहले भी उठे थे और आज भी उठेंगे, लेकिन इन सवालों का मतलब यह नहीं कि कोयले का कारोबार ही बंद कर दिया जाये. बीमा व्यवसाय कमीशन पर टिका है. बेशक ब्रोकर हैं और प्रीमियम का निर्धारण मान कर होता है कि ब्रोकरेज देना है. यह व्यवस्था है, जिसे तो मानना होगा.

बाजार में तो सभी थे. बीमा तो खरीदना था. न्यू इंडिया ने कोटेशन नहीं दिया, पर माल सत्ता दे रहा है. कोटेशन नहीं दिया की आड़ में लोग एक खेल खेल रहे हैं, जो बंद होना चाहिए. पैसा रिटायरी दे रहा है. उसे सस्ता और बढ़िया माल चाहिए. कोटेशन दिया या नहीं, यह बात भला पैसे से ज्यादा कीमती कैसे हो सकती है. मूर्खता की हद हो रही है और यही कारण है की रिटायरी लोग भुगत रहे हैं.

मैं सर्वथा ऐसी नीति से सहमत नहीं था, जो बैंकों को रिटायरीज के प्रति उनके हेल्थ दायित्व से मुक्त कर देती हो. एक न्यूनतम राशि तक रिटायरीज को हेल्थ सुरक्षा कल्याण निधि से पाने का हक है और वह उसे मिलना चाहिए था. सरकार का भी ऐसा निर्देश था.

इस नीति के पहले हर बैंक में एक सीमा तक ऐसा कुछ हो रहा था. इस नीति को तय करते समय प्रीमियम को क्लेम रेशियों से टैग कर, बीमा कं. को हर साल प्रीमियम बढ़ाने की छूट दे दी गई. बैंकर्स को भी हर वित्तीय दायित्व से मुक्त कर दिया गया. प्रीमियम का पूरा भार रिटायरीज के कंधों पर डाल ही नहीं, बल्कि थोप दिया गया. इतना ही नहीं, आई. बी. ए. ने रिटायरीज बीमा का अतिरिक्त व्यवसाय बीमा कं. को देकर, कार्यरत लोगों का प्रीमिमय कम करवा लिया, जिसका भुगतान बैंकें करती हैं. रिटायरीज को अंधेरे में रखकर उनके हितों की बलि दी गई. लोग चिल्लाते रहे, बीमा छोड़ते रहे लेकिन न युनियनों और न मैनेजमेंट के कान पर जूं रेंगा! मरना जिसकी नियति में है वह मरेगा, अगर इसे मान लिया गया है, तो बीमा एक बेइमानी है!

इतना ही नहीं, आई. बी. ए. ने रिटायरीज की पालिसी अलग कर क्लेम रेशियों को बढ़ने का जुगाड़ कर दिया. दूसरा पक्ष देखिये: सेवारत लोगों को खुद के साथ स्पाज, बच्चों तथा माता-पिता के इलाज का बीमा है. औसत दो बच्चों का लो. मा-बाप की औसत आयु 60 की लो, जो रिटायरीज की आयु होती है. इस तरह एक कर्मचारी/अधिकारी को 6 लोगों का बीमा का लाभ हासिल है. और, प्रीमियम रिटायरीज की तुलना मे 60% कम है. हो क्या रहा है! सब हवाई सफर और पाँच सितारा का दौर चल रहा है!. और, हमारे रिटायरीज इलाज के लिए सफर कर रहे हैं, मर रहे हैं.

लोग जो चाहें वह कहें या करें, फिलहाल उचित यही होगा कि न्यू इंडिया की पालिसी पर गौर कर उसे लेना चाहिए. बीमा कं.+ आईबीए+ टीपीए+ चेन अस्पताल का बड़ा काकस ध्वस्त करना चाहिए. यह रिटायरीज का प्रतिशोधात्मक संकल्प होना चाहिए. अब यह स्पस्ट हो चुका है कि इस खेल में बड़े बड़े लोग शामिल हैं और रिटायरीज को चूना लगाया जाता रहा है. गंध ठीक है पर दुर्गंध कदापि ठीक नहीं है. अगर उपाय नहीं किया गया तो बीमारी और बढ़ेगी. आने वाले वर्षों की सोचो,  जब लोग सब कुछ गवां बैठोगे!

किसी भी पालिसी की संरचना कठिन परिश्रम से होती है. संभवत: KMD ने अपने एक्चूरियल टीम के साथ महीनों इस पालिसी पर काम किया होगा, अध्ययन किया होगा, गैर जरूरी मदों को हटाया होगा ताकि प्रीमियम की लागत घट सके. इसके बाद न्यू इंडिया एशोरेंस कं. को तैयार किया होगा. 30/31% प्रीमियम घटाना कोई मामूली बात तो नहीं है! यह बेहद कठिन काम है जिसे KMD और  AIBRF ने अथक परिश्रम के बाद न्यू इंडिया को तैयार किया है. वैसे बीमा कंपनियां ऐसी पालिसी नहीं बनाती. वे अपनी सामान्य पालिसी पर काम करती हैं, जो सर्वथा बीमित के हितों के प्रतिकूल और बीमा कं. के अनुकूल होती हैं. यह KMD की यह विशिष्टता रही है कि वह ऐसी  यूनीक पालिसी  IBA/MCGC for Hospitality Industry, Farmers, BPL आदि के लिए बनाया है. ऐसे में इस प्रस्ताव को ऐसे ही खारिज करना और 30/31% ज्यादा प्रीमियम देना कोई बुद्धिमानी नहीं होगी.

जे. एन.शुक्ला,
प्रयागराज
12.10.2019

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