It is a matter of pleasure that government has approved pension updating for RBI. The copy of letter is posted below which is subject to verification.
Now, it is the responsibility of retirees union AIBRF, service unions AIBEA AIBOC and all others to ensure updation of pension for bank employees also.
Now it has become 50% easier for bank unions to get our demand approved .
Sri Kamlesh Chaturvedi writes on Facebook as under......
रिज़र्व बैंक कर्मियों को पेंसन निर्धारण में सफलता -बहुत बहुत बधाई !
रिज़र्व बैंक के कर्मचारियों और श्रमिक संघ नेताओं को इस बात के लिए हार्दिक बधाई कि उन्होंने न केवल भारत सरकार के पेंसन पुनर्निर्धारण के मामले में “न” को हाँ में बदलने में सफलता पाई है वरन हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मियों की सबसे बड़ी लाल झण्डे वाली यूनियन के बड़े नेता जी को आइना भी दिखा दिया है जो पेंसन बढ़ोत्तरी और पुनर्निर्धारण के मुद्दे पर फ़ण्ड की कमी का बहाना बनाते हुए मजबूरी का राग अलापते रहे हैं ।
भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन कार्यरत वित्तीय सेवा प्रभाग ने आज अधिसूचना जारी कर रिज़र्व बैंक के कर्मियों के पेंसन पुनर्निर्धारण को अपनी मंज़ूरी दे दी -यह पेंसन पुनर्निर्धारण वर्ष 2002, 2007 और 2012 के समझौतों से प्रभावी होगा । उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने 26 फ़रवरी 2018 को यह कहते हुए रिज़र्व बैंक के पेंसन पुनर्निर्धारण प्रस्ताव को यह कहते मंज़ूरी देने से इंकार कर दिया था कि ऐसी मंज़ूरी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मियों को भी ऐसी ही माँग करने को प्रोत्साहित करेगी । रिज़र्व बैंक के कर्मचारियों ने भारत सरकार द्वारा पेंसन पुनर्निर्धारण प्रस्ताव को मंज़ूरी न दिए जाने के निर्णय को माननीय उच्च न्यायालय मुम्बई में चुनौती दी गई जहाँ रिज़र्व बैंक ने शपथ पत्र के माध्यम से वस्तु स्थिति बता दी वहीं भारत सरकार मंज़ूरी न दिए जाने की कोई ठोस वजह बताते हुए शपथ पत्र दाख़िल नहीं कर सकी -भारत सरकार द्वारा आज जारी अधिसूचना रिज़र्व बैंक के कर्मियों के संघर्ष की जीत है -यह अलग बात है कि मज़दूर विरोधी वर्तमान केंद्रीय सरकार ने कर्मचारियों को पेंसन पुनर्निर्धारण के फलस्वरूप हुई पेंसन में वृद्धि के एरियर से कर्मचारियों को वंचित कर दिया है ।
अब बात हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मियों की पेंसन निर्धारण की -एक वक़्त सातवें, आठवें और नौवें द्विपक्षीय समझौते के दौरान आईबीए ने बैंकों के पेंसन फ़ण्ड में कमी का रोना रोते हुए वेतन निर्धारण हेतु राशि में से क्रमशः 8.25%, 9.25% और 13% का अंशदान कर्मचारियों से वसूला और ख़ुद बैंकों ने अपना इतना ही अंशदान समय से जमा नहीं किया । दसवें वेतन समझौते के दौरान 7.75% के अनोखे विशेष भत्ते का प्रावधान किया गया जिसे पेंसन की गड़ना में शामिल नहीं किया जाएगा यानि पेंसन कम । आज हालात ये हैं कि सेंट्रल बैंक, पंजाब नैशनल बैंक आदि बैंकों ने पेंसन फ़ण्ड से करोड़ों की राशि का स्थानांतरण अपनी लाभप्रदता दिखाने के लिए कर लिया - दूसरे शब्दों में सेवा निवृत्त बैंक कर्मियों के अंशदान से सृजित पेंसन फ़ण्ड की राशि पर खुले आम डकैती डाली गई ।
सवाल यह उठता है कि जब रिज़र्व बैंक और हमारी पेंसन योजना बिलकुल एक जैसी हैं तब रिज़र्व बैंक के पेंसन फ़ण्ड में कर्मचारियों की पेंसन पुनर्निर्धारित करने के लिए यदि पर्याप्त धनराशि है तो हमारे पेंसन फ़ण्ड में पर्याप्त धनराशि क्यों नहीं है ? उत्तर बहुत साधारण है -रिज़र्व बैंक के श्रमिक संघ नेताओं ने अपने पेंसन फ़ण्ड के सजग प्रहरी की भूमिका अदा की जबकि हमारे श्रमिक संघ नेताओं ने जो आँकड़े आईबीए ने उपलब्ध करवाए उन्हें आँख मूँद कर सही मान लिया -“न खाता न बही जो आईबीए कहे वही सही” वाले सिद्धांत पर चलते हुए नेताओं ने पेंसन फ़ण्ड में हुए सम्भावित घोटाले पर कभी सवाल नहीं उठाया, कभी जाँच की माँग नहीं की ।
अभी हाल में सेवा निवृत्त बैंक कर्मियों के सबसे बड़े संघठन का दिल्ली में अधिवेशन हुआ जिसमें लाल झण्डे वाली यूनियन के बड़े नेता जी के साथ आईबीए के चेयरमेन मंच पर विराजमान थे जिनके भाषण के वीडियो साझा किए गए हैं -आईबीए चेयरमेन ने बिना पेंसन पुनर्निर्धारण की घोषणा किए वाह वाही लूटी । इस अधिवेशन में AIBOC महासचिव श्री सौम्य दत्ता विशिष्ट अतिथि के रूप में आमन्त्रित थे -उन्होंने स्पष्ट रूप से यह कहते हुए अधिवेशन में शामिल होने से मना कर दिया कि जब बड़े नेताजी पेंसन पुनर्निर्धारण की उनकी माँग को वित्तीय कठिनाई का तर्क देते हुए समर्थन नहीं दे रहे तो ऐसे में उनके साथ मंच साझा कैसे किया जा सकता है ? सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों को गम्भीरता और गहराई के साथ सोचना चाहिए कि सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों का यह सबसे बड़ा संघठन जिसके नेता लाल झण्डे वाली यूनियन के गुज़रे ज़माने के नेता हैं -उसकी अब तक की उपलब्धि क्या है ? यह संघठन केवल बड़े नेता जी से अपील और अनुरोध करने का काम करता आया है और बड़े नेता जी ने दसवें द्विपक्षीय समझौते से पहले इसी संघठन के धरने में सिंह गर्जना की थी कि बिना पेंसन निर्धारण के कोई समझौता नहीं होगा और बाद में अपनी ही गर्जना भूल पेंसन कम करवाने वाले समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए थे -सेवा निवृत्त बैंक कर्मियों के पेंसन पुनर्निर्धारण के वायदे पर बड़े नेता जी ने उनके प्रतिनिधियों के साथ कैसा सलूक किया था यह सर्वविदित है -सोशल मीडिया में सच्चाई साझा की जा चुकी है ।
याद रखना चाहिए कि सरकार से फ़ैसला अनुनय, विनय, भीख जैसी माँगने, तर्क देने से नहीं बल्कि कड़े तेवर अपनाते हुए संघर्ष के ज़रिए ही हांसिल किया जाता है -रिज़र्व बैंक कर्मियों ने यह कर दिखाया है और हमारे लिए पेंसन पुनर्निर्धारण की सम्भावनाओं के द्वार खोल दिए हैं -अब ज़रूरत है चुनाव के पहले सख़्त तेवर अपनाने की-सरकार को खुली चुनौती देने की, आईबीए और नेताओं पर वांछित दवाब बनाने की ।
All retirees shall be agreable to this view,but what about action?
ReplyDelete