Sunday, September 30, 2018

Message From A Retired Banker

Received in Whatsapp.
Dear Friends,
                Greetings
Hereunder, please find a TRUTHFUL picture of the pathetic plight of the Retired Bankers posted on the FaceBook. Please go through and spread it among all groups such that all the Indian Citizens will come to know, understand and sympathize with the plight of Retired Bankers. Word of mouth publicity is very strong.

     HERE IS THE REPORT            Dear friends.

10 lakh Bankers since Nationalization of Banks, i.e. 1969 have contributed enormously for growth of Indian economy. Today's rich and poor benefited by bankers launching Govt. welfare schemes sincerely. Few bank-men  have maligned our image past 15years. Despite that corruption in banks Is less compared to government machinery.There will no one who have not utilized bankers services. Just think how many corrupt bankers you met. You will get the answer.

Friends we became 'ill paid' salaried class today. We the retirees of PSB's who contributed to your growth have 'pathetic pension scheme'. We are duped by IBA and GOI by not sanctioning our legitimate PENSION and Pension Revision at par with Central Government Pension Scheme as agreed while introducing Pension in 1994.

Due to above discrimination by govt., today we the retired bank men are fighting in courts from past 20 years for our rights. We are going to launch agitations at this age. Other Senior Citizens are being granted priceless bonanzas for gaining vote-bank.

I shall give you a shocking example to explain our plight. In my profile picture you see Shri Balakrishna Iyer, an intelligent and honest Top Executive of his days, retired in 1994 as Managing Director of State Bank of Hyderabad. He draws pension around Rs.20,000/- . I having retired after serving SBH for 40 years and draw around Rs.30,000/-.

I retired from GHMC br., Hyd. We used to disburse pensions to all Ghmc retirees. A newly retired ' street sweeper' used to get Ra.20000/- plus as her/his pension. Senior retirees pension was between Rs.30,000/- to Rs.40,000/-.

Above example shows you all m, where we bankers stand as pensioners. Is street sweeper services bigger and important than my retired Managing Director? Or my services having slogged for 7 hours on regular days and 10 hours while doing government thrusted schemes launching?

Friends our Pension fund lying with banks cumulative figure is more than 2 lac Crores. This statistics GOI and IBA has on record. The income from this fund is surplus to pay bankers pension giving due revisions periodically, as it happens with Central Govt. Pensioners.

Unfortunately, the corrupt apex serving employees union leaders joining hands with IBA are not representing our cause nor allowing Retiree unions to negotiate with IBA. They are unable to clinch reasonable wage revision to serving employees. They proved their incapability to do justice to their members, what they can do to US?  the retirees. We shall fight for our cause from now on our own leaving Serving Union leaders.

This elaborate explanation of our plight is given to explain to the PUBLIC our pathetic situation. My Super senior retirees (75 yrs above) and senior retirees are not able to meet their basic needs with pension they draw. Medical facilities by banks to retirees is zero. We could get group insurance policy at a very high premium. Please ponder over our grievances and spread the message within your circles. We need everybody's support to raise our issues with GOI.

Thanking  you

Rohini Rao
(Retd Officer)

    Forwarded as received
          from one of my               friends.


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बैंककर्मियों तथा बैंक पेंशनर्स में एक समानता है कि दोनों अपनी दुर्दशा के लिये अपने यूनियन नेताओं को दोषी मानते हैं।

 पेंशनर्स सेवाकाल में किसी न किसी यूनियन से जुड़े हुए लोग हैं और उनका सोचना है कि उन्होने यूनियन के हर संघर्ष में कंधा से कंधा मिलाकर साथ दिया, पेंशन हासिल किया और आज वही यूनियनें पेंशन सुधार से कन्नी काट रहीं है।
कर्मचारियों/अधिकारियों का रोना है कि सरकारी सेवा के लोग ज्यादा वेतन और सुविधाएं पा रहे हैं। किसी जमाने में बैंककर्मीं को 'हाई वेज इजलैंडर' अर्थात 'धनवानों का टापू' कहा जाता था वह आज म्यूनिसिपल कार्पोरेशन से नीचे का वेतन एवं सेवा सुविधायें पा रहा हैं।

यूनियनों का ट्रेक रिकार्ड कहता है कि उन्होंने उनके हिसाब से एक के बाद एक लैंडमार्क समझौते किये है। हर समझौता अद्वितीय होने के अलंकरण से नवाजा जाता रहा है। सवाल मौंजूं है। अगर हर समझौता लैंडमार्क और अद्वितीय रहा है तो लोगों में इतना गहरा असंतोष क्यों है?

इस सवाल पर कोई यूनियन प्रकाश डालने से परहेज ही नहीं करती,  बल्कि सवाल उठानेवालों से निपट लेने की ठान लेती रही है। कोई इस बात पर गौर करने को तैयार नहीं है कि गल्तियां कहां और किस स्तर पर हुईं।

 हठधर्मी यूनियनों की नशा है। कभी गलत न होने कि सनक और हर विषय पर पारंगत होने का दंभ उनके जीन में है। आजतक इस आदत को मेंटेंन किया जा रहा है। राजा और यूनियन नेता गल्ती नहीं करता!

पेंशनर्स परेशान हैं क्योंकि उनकी पेंशन नीति में आजतक कोई सुधार नहीं किया गया। बार-बार पेशन नीति में छेद किया जाता रहा। पेंशन रिगुलेशन से पेंशन अद्यतन करने का प्रावधान गायब हुआ। डी.ए. परिवर्तन तिमाही के बजाय छमाही किया गया। हड़ताल की स्थिति में पेंशन गवाने की शर्त घुसेड़ी गई।

1998 में हड़ताल को लेकर संशोधन हुआ। पेंशन नीति केन्द्रीय पेंशन नीति पर बनी है जहां 6 महीने के अंतराल में डी.ए. परिवर्तित होने का प्रावधान है, अतः बैंक पेंशन के मामले में इसे जायज ठहरा दिया गया। रही बात पेंशन अपडेटिंग की तो इस पर चुप्पी साध ली गई।

अब 'हाथी के दांत खाने के और-दिखाने के और' के तर्ज पर पेंशन के लिए 1616 इंडाइसेस पर एक कितृम पे-स्केल बना दी गई। ऐसा केवल इसलिए किया गया कि लोगों को कुछ ज्यादा एरियर मिल सके और लोग तालियां बजायें, जिंदावाद के नारे लगायें। जब लोग रिटायर होने लगे तो उन्हे पता चला कि 50% के बजाए 41% पेशन मिल रही है। जेब जब काटी गई तो लोग ताली बजा रहे थे और अब गुस्से में गालियां देना शुरू कर दिया। खैर, इस मामले को 2005 में बड़ी सावधानी से ऐबरेशन करार दिया गया और आगे की तारीख से ठीक किया। लोग सुप्रीम कोर्ट गये और 1998 से 2005 के बीच के नुकसान की भरपाई ब्याज रहित हासिल किया।

अब तमाशा पेंशन के एक और विकल्प का आया। पहले तो शहंशाह का फरमान आया की दूसरे विकल्प की लागत की वसूली सभी कर्मचारियों/अधिकारियों से समान रूप से होगी अर्थात पूर्व पेंशन आप्टीज भी इसकी कीमत चुकायेंगे। इसे कामरेडशिप होने की योग्यता से जोड़ दिया गया। भला विरोध कैसे होता? भला हो छोटी यूनियनों का जिन्होनें एन मौके पर समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। कुछ घंटों के बाद संबंधित क्लाज बदला गया और समझौता हुआ।

पेंशन समझौता 1993 तथा पेंशन रिगुलेशन, 1995 की नितियों को दफनाते हुऐ तय किया गया कि (1) पेंशन भुगतान 2009 से शुरू होगा, (2) रिटायर चाहे जब हुये हों, लागत की वापसी सब को समान रूप से करनी होगी। समझौता 1993 व रिगुलेशन 1995 में प्रावधान था कि लोग बैंक का पी.एफ. अंशदान ब्याज सहित जो मिला हो उसे 6% साधारण ब्याज के साथ बैंक को वापस करेंगे और सेवा निवृत्ति तारीख से उन्हें पेंशन मिलेगी। परिणाम यह हुआ कि उस समय लोगों को हजारों/ लाखों का एरियर मिला। स्वैपिंग कु सुविधा देने से किसी को बैंक का अंशदान भी वापस नहीं करना पड़ा था। इस अंतर को देखने की जरूरत है। सही तो नहीं हुआ। लोगों से समान लागत वसूली गई। ऐसा करते समय कौन कब सेवानिवृत्त हुआ, किसको कितना ऐरियर गवाना पड़ा इसका कोई ध्यान नहीं रखा गया।

अब क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का मामला सर्वोच्च न्यायालय ने तय कर दिया है। ग्रामीण बैंक कर्मचारियों/अधिकारियों को केवल बैंक का पी.यफ. अंशदान व ब्याज जो मिला है उसे वापस करना है और सेवा निवृत्ति की तारीख से पेंशन मिलना है। पुन:, 31.3.2018 तक बैंक सेवा में आये लोगों पर पुरानी पेंशन लागू होगी। प्रायोजक बैंकों में पुरानी पेंशन 2010 से बंद लेकिन प्रायोजित बैंकों में पेंशन 31.3.2018 तक खुली। अदालतों से नफरत करें या प्यार! ग्रामीण बैंको की सभी सेवाशर्तें कोर्ट से तय हुईं। यूनियनें तो कभी समान वेतन एवं सुविधा चाहती ही नहीं थी। सवेरा रोका नहीं छा सकता, पर  लोग रोकने का दंभ भरते हैं. इसे सनक न कहा जाये तो क्या कहा जाये!!

नजरिया बदलो तो बदलाव नजर आयेगा। पेंशन नीति में जो कमियां हैं वे हमारी यूनियनों की कमजोरी की देन है। उसे दूर करने के प्रयास के बजाय हम इस या उस सरकार को दोष दें, जिनका इस मामले से कुछ लेना देना नहीं है। चीदांबरम, पूर्व वित्तमंत्री, ने यूको बैंक के अखिल भारतीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया था और वेंकटाचलम भी थे। चिदंबरम ने सवाल किया कि आपके वेतन, सेवा सुविधाओं के मामले में हम कौन होते हैं। बैंकों का मैनेजमेंट कोई बाहरी नहीं है. सब आपके बीच के हैं। बैठिये और तय करिये अपनी बातें। नेताजी चुप रहे। सवाल यही है कि हमारे रहनुमाई करनेवाले संगठन ही हमारी मांगों के साथ नहीं है। पेंशन समझौते में वही पार्टी हैं। अभीतक सभी बदलाव उन्होंने किये हैं। अत: सारा दारोमदार उन्हीं पर है।

 मित्रों, हम लोगों ने पूरा जीवन यूनियन को समर्पित किया और अब हमारा गिला, शिकवा, विरोध, गुस्सा सब नेताओं पर है, जो पेंशनर्स की मांगों की अनदेखी करते रहे है। वे हमारी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं।
By JN Shukla

2 comments:

  1. File a suit against the Prime Minister and President of India that our bankers pensioners are dying with financial hardships and our contributed fund is misused

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  2. File a suit against the Prime Minister and President of India that our bankers pensioners are dying with financial hardships and our contributed fund is misused

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