DEATH OF PNB BANK MANAGER
हादसा एक दम नहीं होता, वक़्त करता है परवरिश बरसों....!
SUICIDE OR MURDER : WHO IS REAL CULPRIT ?
Tyranny of Management or Our Cowardiceness & Selfishness.
Goons grow where impotent live....
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल ; जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
{Courtesy : Preet, Dilip & Ajay}
In a tragic incident, one chief manager of bank(Pnb) chandigadh
circle. Sri Ajay Sahgal committed suicide yesterday, around 4 .30 pm,
by jumping before a running train in Panchkula reportedly after
meeting with circle authorities.He was 52 ;under stress ;yesterday.
Worked on counter and last week, had a very bad meeting with CH .
Update on suicide of late Ajay Sehgal received.
Police has found suicide letter annexed with 20 page of documents
justifying performance by late sehgal sir .He has named both GM
and CH .PNB Union leader krishan kumar talked to our GS TR Verma and decided to fight for the departed soul irrespective of his association status.
All employees of our bank should come forward and join in our struggle. so no other colleagues of ours end his life this way.
Red salute to martyr comrade Ajay Kumar Sehgal ;
(May his Soul rest in peace and GOD give strength to his family to bear this irreparable loss .
Piba Aiexbef family is with his family in this hour of crisis. PNB take initiative as we all will support you at Roads, Courts, at Parliament etc. in all times.
सत्य की जीत या हार सत्यर्थी के लगन ,संकल्प और बुद्धि से होती है l
‘‘संघे शक्ति कलियुगे’’
कलियुग में जो संगठित है उनके पास ही शक्ति रहेगी
Kamlesh Chaturvedi writs on Facebook
पंजाब नैशनल बैंक प्रबंधन का क्रूरतम चेहरा उजागर हो गया. महाप्रबंधक और मंडल प्रबंधक द्वारा अपमानित और प्रताड़ित किये जाने से दुःखी होकर चंडीगढ़ में मुख्य प्रबंधक श्री अजय सहगल ने ट्रेन के सामने कूद कर आत्म हत्या कर ली. प्राप्त सूचना के अनुसार श्री सहगल के पास से एक २० पेज का सुसाइड नोट पुलिस को मिला है जिसमें उन्होंने अपनी परफॉरमेंस का जिक्र करते हुए उनकी ईमानदारी और कर्त्तव्य निष्ठा की अनदेखी करते हुए महाप्रबंधक और मंडल प्रबंधक द्वारा सरे आम बुरी तरह अपमानित किये जाने को आत्म हत्या की वजह बताया है. यह भी पता चला है की चंडीगढ़ पुलिस ने फील्ड जनरल मैनेजर और सर्किल हेड के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा ३०४ और ३०६ के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज़ की है.
यह कोई पहली घटना नहीं है, इस से पहले भी ऐसी घटनाएं घटी हैं जो यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पंजाब नैशनल बैंक में मानवता कराह रही है, दानवता का तांडव नृत्य चल रहा है, ट्रेड यूनियन में सक्रिय पापी सो रहे हैं और अमानवीय आचरण करने वाले चैन की बंसी बजा रहे हैं.
ये घटना पंजाब नेशनल बैंक के श्रमिक संघ आंदोलन को कलंकित कर गयी है, ट्रेड यूनियन के नाम पर बड़ी बड़ी बातें करने वालों के मुँह पर कालिख पोत गयी है लेकिन वे इसे स्वीकार करने को तईयार नहीं हैं. घटना की निंदा कर रहे हैं, शोक संतप्त परिवार को सांत्वना दे रहे हैं. लेकिन न तो आत्म विश्लेषण कर रहे हैं और न उनके सन्देश और हाव भाव में क्रोध परलक्षित हो रहा है. उनके जेहन में वे परिस्थतियां ही नहीं आ रहीं जिनके चलते न जाने कितनी पीड़ा को श्री सहगल ने भीतर भीतर भोगा होगा,उनका दिल श्री सहगल के परिवार के दुःख और वेदना को समझ पाने में नाकाम है. कैसे नेता हैं ये?
क्यों इनका खून उबाल नहीं मारता?
क्यों ये ऐसी अमानवीय व्यवस्था जिसमें उच्च अधिकारी अपने मातहत अधिकारी को खुले आम डांटने फटकारने अपमानित और प्रताड़ित करने को जनम सिद्ध अधिकार समझ बैठे हैं को बदलने के लिए उग्र आंदोलन करने के बजाय उच्च अधिकारीयों से वार्ता क्यों कर रहे हैं?
उन्हें बैंक की छवि की चिंता क्यों है?
क्या बैंक के छवि का ठेका केवल उनलोगों के पास है जो शोषण और उत्पीड़न के खुद शिकार हैं?
बैंक की छवि की चिंता उनको होनी चाहिए जो ऊँचे पदों पर बैठे हैं और इस तरह का अमानवीय आचरण कर रहे हैं, आखिर कौन सा नियम या कानों उन्हें इस तरह के आचरण का अधिकार देता है? क्यों वो लिखा पढ़ी से कतराते हैं और खुले आम आतंक मचाते हैं?
पंजाब नैशनल बैंक में कई अधिकारी आतंकवादी की श्रेणी में आते हैं. ये दुखद है की अधिकारीयों की रहनुमाई का दावा करने वालों को बैंक की छवि की चिंता उन लोगों से ज्यादा है जो इस तरह के शोषण का शिकार हैं. जो दूसरों के दुःख में दुखी होते हैं वे अन्याय का प्रतिकार करते हैं, जबरदस्त आंदोलन करते हैं, इस तरह की झकझोर देने वाली घटना को ज्यादा से ज्यादा समाज के बीच ले जाते हैं और ऐसी घटना फिर न हो उसके लिया व्यवस्था में बदलाव का प्रण लेते हैं. बैंक की छवि की चिंता होने का मतलब अन्यायी और अत्याचारी को प्रोत्साहन देना और अपने कर्तव्यों का निर्वाह न करना है.
क्या सहते रहोगे ऐसे ही अत्याचार? आखिर कब उठाओगे धरना प्रदर्शन और हड़ताल के हथियार?
यह कोई पहली घटना नहीं है, इस से पहले भी ऐसी घटनाएं घटी हैं जो यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि पंजाब नैशनल बैंक में मानवता कराह रही है, दानवता का तांडव नृत्य चल रहा है, ट्रेड यूनियन में सक्रिय पापी सो रहे हैं और अमानवीय आचरण करने वाले चैन की बंसी बजा रहे हैं.
ये घटना पंजाब नेशनल बैंक के श्रमिक संघ आंदोलन को कलंकित कर गयी है, ट्रेड यूनियन के नाम पर बड़ी बड़ी बातें करने वालों के मुँह पर कालिख पोत गयी है लेकिन वे इसे स्वीकार करने को तईयार नहीं हैं. घटना की निंदा कर रहे हैं, शोक संतप्त परिवार को सांत्वना दे रहे हैं. लेकिन न तो आत्म विश्लेषण कर रहे हैं और न उनके सन्देश और हाव भाव में क्रोध परलक्षित हो रहा है. उनके जेहन में वे परिस्थतियां ही नहीं आ रहीं जिनके चलते न जाने कितनी पीड़ा को श्री सहगल ने भीतर भीतर भोगा होगा,उनका दिल श्री सहगल के परिवार के दुःख और वेदना को समझ पाने में नाकाम है. कैसे नेता हैं ये?
क्यों इनका खून उबाल नहीं मारता?
क्यों ये ऐसी अमानवीय व्यवस्था जिसमें उच्च अधिकारी अपने मातहत अधिकारी को खुले आम डांटने फटकारने अपमानित और प्रताड़ित करने को जनम सिद्ध अधिकार समझ बैठे हैं को बदलने के लिए उग्र आंदोलन करने के बजाय उच्च अधिकारीयों से वार्ता क्यों कर रहे हैं?
उन्हें बैंक की छवि की चिंता क्यों है?
क्या बैंक के छवि का ठेका केवल उनलोगों के पास है जो शोषण और उत्पीड़न के खुद शिकार हैं?
बैंक की छवि की चिंता उनको होनी चाहिए जो ऊँचे पदों पर बैठे हैं और इस तरह का अमानवीय आचरण कर रहे हैं, आखिर कौन सा नियम या कानों उन्हें इस तरह के आचरण का अधिकार देता है? क्यों वो लिखा पढ़ी से कतराते हैं और खुले आम आतंक मचाते हैं?
पंजाब नैशनल बैंक में कई अधिकारी आतंकवादी की श्रेणी में आते हैं. ये दुखद है की अधिकारीयों की रहनुमाई का दावा करने वालों को बैंक की छवि की चिंता उन लोगों से ज्यादा है जो इस तरह के शोषण का शिकार हैं. जो दूसरों के दुःख में दुखी होते हैं वे अन्याय का प्रतिकार करते हैं, जबरदस्त आंदोलन करते हैं, इस तरह की झकझोर देने वाली घटना को ज्यादा से ज्यादा समाज के बीच ले जाते हैं और ऐसी घटना फिर न हो उसके लिया व्यवस्था में बदलाव का प्रण लेते हैं. बैंक की छवि की चिंता होने का मतलब अन्यायी और अत्याचारी को प्रोत्साहन देना और अपने कर्तव्यों का निर्वाह न करना है.
क्या सहते रहोगे ऐसे ही अत्याचार? आखिर कब उठाओगे धरना प्रदर्शन और हड़ताल के हथियार?
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