Thursday, October 22, 2020

सभी फेसबुक, ह्वाट्सएप समूहों के कार्यरत/ सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों के लिये



सभी फेसबुक, ह्वाट्सएप समूहों के 
कार्यरत/ सेवानिवृत्त बैंक कर्मियों के लिये:

     जुर्म इतना बुरा नहीं,
     जितना खोमोशियां।

                बोलना सीखो वरना,
                पीढ़ियां गूंगी हो जाएंगी।।

प्रिय मित्रों,

हम फेसबुक/ ह्वाट्सएप के बैंक संबंधी सभी ग्रुपों को अपने सभी परिपत्र, लेख आदि पिछले 6 वर्षों से भेजते आ रहे हैं। पेंशनर्स, कार्यरत बैंककर्मचारियों-अधिकारियों एवं बैंकिंग से जुड़े मुद्दों को हम बैंककर्मियों, बैंकर्स, आपरेटिंग यूनियनों, सांसदों एवं सरकार के स्तर पर निरंतर उठाते रहे हैं। हमने बैंककर्मियों के हर पक्ष को गंभीरता से प्रस्तुत किया है, बावजूद आपरेटिंग यूनियनों के विरोध एवं प्रतिकार के। आज हर बैंककर्मीं, चाहे वह रिटायरी हो या कार्यरत, वस्तु स्थिति से भली भांति अवगत ही नहीं बल्कि अपनी समस्याओं को लेकर गंभीर, सतर्क एवं  मुखर है। वह कुछ भी करनें को तैयार है।

हम आप सब को फोरम का शुभचिंतक मानते हैं। हमारे परिपत्रों एवं लेखों पर आप सब से स्वीकार्यता एवं सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती रही हैं, जो हमारे सही दिशा में होने का प्रमाण है। हम काफी उत्साहित महसूस कर रहें है, आपसे मिले समर्थन और सहयोग से। आशा है, आपसे आगे भी ऐसा ही सहयोग और समर्थन मिलता रहेगा।

पेंशनर्स हैं कौन, यह सवाल और कोई नहीं बल्कि आपरेटिंग यूनियनों के वे नेता खड़ा कर रहे हैं, जो उन यूनियनों के शीर्ष पदों पर विराजमान हैं, जिसे इन्हींं पेंशनरों ने अपने कार्यकाल में खड़ा किया, बढ़ाया। आज के नेता इतनें बेगैरत और मौकापरस्त हो जाएंगे, ऐसा किसी ने कभी सोचा तक नहीं होगा। इससे सबक लेनें की जरूरत है।

कार्यरत और सेवानिवृत्त बैंककर्मीं एक सिक्के के दो पहलू है। अगर ऐसा न होता तो पेंशनर्स का वजूद ही न कायम होता। आज जब कोई नेता कहता है कि उसे पेंशनरों से क्या लेना-देना, तो हम उनकी सोच का पूरा दीवाला निकला पाते हैंं। यह बात वैसी ही लगती है, जैसे कोई बेटा बूढ़े मां-बाप से अपनें संबंधों को बरखास्त करते सवाल दागे कि आप से हमारा क्या रिस्ता है!  

बहरहाल, यह दुर्भाग्यपूर्ण दृश्य है। आज भी करीब 5 लाख पुरानी पेंशन की पात्रता रखने वाले लोग बैंकों में कार्यरत हैं, जो इन्ही यूनियनों से जुड़े हैं, इन्हें चंदा, लेवी देते है और इनके हर आंदोलनात्मक कार्यक्रमों को लागू करते हैं। कल जब वे सेवा निवृत्त हो जाएंगे, तो ऐसा ही सवाल उनको भी लेकर खड़ा होगा, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। हम इस स्थिति को लेकर चिंतित हैं।

इसे बैंक यूनियनों के वर्ग चरित्र और चेतना के पतन का जीता-जागता उदाहरण मानते हैं। यह बेमिसाल है। अजीब लगता है, वह भी बैंकिंग जैसे उद्योग में, जहां प्रभातकार, परवाना, डी.पी.चड्ढा, तारकेश्वर चक्रवर्ती जैसे प्रथम पीढ़ी के अनगिनत लोगों ने अपनी जिंदगी की अंतिम सांस तक देकर बैंकिंग यूनियन को एक बुलंदी तक पहुंचाया।

बहरहाल, हमें उम्मीद है कि आगामी 11वें समझौते के साथ पेंशन रिवीजन जैसे गंभीर विषयों के समाधान के लिए यूनियनें आईबीए के साथ कोई समयबद्ध सहमति  करार पर हस्ताक्षर कर, अपनी डूबती साख को बचाएंंगी। इतिहास साक्षी है,  बैंक  यूनियनों में वादे केवल कोरे वादे नहीं होते, बल्कि वे उपलब्धियों के इतिहास होते हैं। यह बात अलग है कि आज के नेता वादे ऐसे करते हैं, जैसे कोई बदचलन आदमीं अपनी रखेलों से करता है।


लेकिन, अगर 11वें समझौते के साथ पेंशन रिवीजन जैसे गंभीर मुद्दो के समाधान को लेकर यूनियनें आईबीए के साथ कोई स्पस्ट और समयवद्ध सहमति का करार नहीं करतीं, तो यह फोरम अकेले या अन्य समान विचारधारा वाले लोगों और समूहों के साथ सर्वोच्च न्यायालय के स्तर पर रिजर्व बैंक पेंशन रिवीजन के अनुरूप पेंशन रिवीजन, 100% डी.ए., स्पेशल एलावंस पर स्पेशल पे की तरह पेंशन, ग्रैच्युटी के लिए मान्य कराने, रिटायरीज के हेल्थ बीमा के मामले में डी.एफ.एस. के पत्र दिनांक 24.2.2012 के क्रियान्वयन को लेकर याचिका प्रस्तुत करने पर कृतसंकल्प है। हम पेंशन के दूसरे विकल्प की उन विसंगतियों पर भी अध्ययन कर रहे हैं, जो मूल पेंशन नीति की शर्तों के सर्वथा विपरीत हैं। प्रथमदृष्टया हम दूसरे विकल्प की शर्तों को विधिविरुद्ध, एकतरफा, भेदभावपूर्ण और प्राकृतिक न्याय के खिलाफ पाते हैं।

हम स्पस्ट करते हैं, हम कोई ट्रेड यूनियन नहीं है। हम तो नैतिक सवालों की अनदेखी से उत्पन्न आक्रोश हैं, खुद की यूनियनों के खिलाफ एक प्रेशर ग्रुप हैं। जिस दिन हमारी समानता और न्यायसंगत मांगें पूरी हो जाती हैं, हमारे साथ वेतन, पेंसन, डी.ए., स्वास्थ बीमा को लेकर भेदभाव समाप्त हो जाया है, हम अपना परिचालन समेंट लेंगे। और, जब तक ऐसा नहीं होता हम तांडव जारी रखेंगे, ऐसा हमारा संकल्प है।

फोरम का कोई वित्तीय आधार नही है, बैंक खाता तक नहीं है और न कोई पैसा है। फोरम पेंशनर का एक स्वयंसेवी मंच है। सामान्य परिचालन के लिए हमें किसी अर्थ की जरूरत नहीं होती। हां, यदि हमें मुकदमें की तरफ बढ़ने की मजबूरी आती है, तो हमें वित्तीय संसाधन की जरूरत होगी। यह समय और पैसा, दोनों, लेगा। ऐसा करना हमारी मजबूरी होगी।

हम आपसे अनुरोध करते हैं कि ऐसी स्थिति में आप हमें सहयोग दे सकेंगे या नहीं, हमें स्पष्ट बताएं। हम आग्रह करते हैं कि आप हमारे ह्वाट्सएप नं.9559748834 पर अपने नाम और स्थान को लिखते 'हांं' या 'ना' में स्पष्ट संदेश दें, ताकि हम जरूरत पर आपका सहयोग हासिल कर सकें। 

हम किसी मुगालते में नहीं रहना चाहते है। योजनानुसार, समय पर, पुख्ता व्यवस्था मौजूद होनी चाहिए। काम बड़ा होगा और वित्तीय जरूरत भी बड़ी होगी. दानवीरों की जरूरत है। यह कुछ लोगों के बल पर नहीं होगा. हमें सक्षम लोगों की जरुरत है, इस बात का संज्ञान लेते, अपने निर्णय से हमें अवगत कराएं।

सादर,

(जे.एन.शुक्ला)
नेशनल कंवेनर
22.10.2020

नोट: जो लोग हां/ना दे चुके हैं कृपया वे इस निर्देश को  नजरअंदाज करे।

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