Monday, March 2, 2020

Bank Employees And Retirees Must Introspect

सभी पेंशनर एक्टिविस्टों के लिए:

शराब और शहद, दोनों जितनी पुरानी
हो क्रमश: उतनीं ही अच्छी और गुणकारी
होती है! पेंशन रिवीजन पुरानी होती शराब
और शहद है. पीनेवाले पुरानी शराब और न पीनेवाले पुरानी शहद की चाहत लिए इंतजार
करें, धैर्य न खोयें...!

मुर्गा बाग न भी दे, तो भी सूरज निकलेगा!!

हमारे एक्टिविस्टों और फालोवर्स को शिकायत है कि हमारी पोस्ट लंबी होती है. इंगलिश में हो तो इंगलिश न जानने वालो को और हिंदी में हो तो हिंदी न जानने वालों को, जिनकी संख्या अनगिनत है, कठिनाई होती है. ऐसे में हमें अपनी बातों को हिंदी/अंग्रेजी, दोनों, भाषाओं में रखना पड़ता है और हमें भी लंबी पोस्ट लिखने में कठिनाई होती है, पर विषय की गंभीरता और जुड़े तथ्यों को ठीक से न रखा जाये तो आधी-अधूरी जानकारी देने सें वस्तुस्थिति की प्रस्तुति और संपूर्ण जानकारी नहीं दी जा सकती. मित्रों, जब हमें इतना लिखनें में कठिनाई नहीं हो रही है, तो आपको पढ़नें में कठिनाई महसूस नहीं करनी चाहिए. आशा है, पोस्ट लंबी है, इस बिना पर आप उसे नजरंदाज नहीं करेंगे, क्योंकि जानकारी के बिना आप उलझन और भटकाव में रहेंगे.

1 मार्च 2020 की हमारी पोस्ट वेतन, पेंशन और सेवाशर्तों की आधारभूत संरचना की अपरिहार्य जटिलताओं का जिक्र करती है. विषय गंभीर है, जिसकी जानकारी रखना हर बैंकर्मीं के लिए जरूरी है. उसी क्रम में हमें जानना होगा, आईबीए की मंशा, योजना और जाल- जो वे बिछाते हैं - और हमारे ब्रोकर, अर्थात यूनियन नेतागण, अपने कमीशन, अर्थात लेवी और ऊपरी परिलब्धियों, की लालच में हमारे प्रति अपने दायित्वों और प्रतिबद्धताओं को दरकिनार करते सौदा कर बैठते रहे हैं.

आगे हम कहना चाहते हैं, टुकड़े-टुकड़े पेंशन रिवीजन का शिगूफा आईबीए का ठीक वैसा ही हथकंडा है, जैसा उसने वेतन वृद्धि के मामले में सबसे पहले 2% वेतन वृद्धि का प्रस्ताव दिया था।

 इस पर नेताओं का फूला नहीं समा रहा है! खुश हैं, कुछ शुरुआत तो हुई. इनकी स्थिति वैसी है जैसे चूहे के हाथ में चिंदी क्या आई, उसने सोचा पूरा बजाजखाना उसके हाथ लग गया! ऐसा ही कुछ उस समय हुआ, जब आईबीए ने 9% वेतन वृद्धि का प्रस्ताव दिया, तो एक नेता जी लिखा-पढ़ी पर उतर गये. बता बैठे, पिछले समझौते से यह प्रस्ताव बहुत अच्छा है. यह उनका बड़बोलापन था या दीवालियापन, वे ही जानें! हमारी उलझन बस इतनी है कि यदि 9% बहुत अच्छा था तो यह 15% वृद्धि क्या है?

कल तक आईबीए कह रहा था कि वह अपने सदस्य बैंकों का  वही काम करता है, जिसका उसे अनुदेश होता है. उसके पास वेज रिवीजन का अनुदेश है.

आईबीए ने खुद को गैर जिम्मेदार घोषित करते, एक परिपत्र जारी कर अपनी कानूनी हैसियत व वजूद को ही नकार दिया, ताकि वह कानूनी पचड़ों में घसीटा न जा सके. यह कोई अजीब बात नही, बल्कि आईबीए की सोची समझी एक रणनीति है. हमें गफलत में नहीं रहना चाहिए, क्योंकि यह आईबीए की कुटिल व्यूहरचना है, दुरभि जरूरतों को ध्यान रखते हुए. हम मानते हैं, आईबीए एक अति चतुर, लोमड़ी जैसा, और दृढ़ संकल्पी शेर जैसा संगठन है, जिसके सामनें बैंक यूनियनों के नेता भींगी बिल्ली से ज्यादा कुछ नहीं हैं. इनके पास बिल्ली के नाखून जैसा 'हड़ताल' मात्र है, जिसकी कीमत बैंककर्मीं चुकाता है.

यूनियनें बता रही हैं कि फेमिली पेंशन रिवीजन का मामला सरकार को स्वीकृति हेतु भेजा जा चुका है. पर, यह बात तो 10वें समझौते के समय से कही जा रही है? यह तो तभी बताया गया था, वही पुरानी राग मल्हार अलापी जा रही है !.

जानकारों का कहना है कि शराब जितनी पुरानी हो, वह उतनी ही अच्छी होती है. ठीक बात है, पीनेवालों को धैर्य रखना चाहिए, शराब को पुरानी होने का इंतजार करना चाहिए!. रही बात न पीने वालों की, तो जानकारों का कहना है कि शहद जितनी पुरानी होती है, वह उतनी ही मीठी और गुणकारी होती है. पेंशन रिवीजन की मांग पुरानी की जा रही है. इसे शराब पीने वाले साथी हों या न पीने वाले, पुरानी शराब और शहद समझकर, इंतजार करें और धैर्य बनाये रखें.

नेता लोग तूफान से किस्ती निकालने में लगे हैं. अब कहने लगे हैं, हम लाये हैं तूफान से किस्ती निकाल कर! कहते हैं, बैंकर्स तो आद्योगिक स्तर पर समझौता ही नहीं करना चाहते थे. अब सोचिए यह कितनी बड़ी समस्या थी, जिसे नेताओं ने पार किया!!. अब समझौता होगा!!!. पर, सवाल तो यही है कि बात नई क्या है? बैंकर्स तो बर्षों से ऐसा मांगते रहे हैं. बैंकों का वर्गीकरण/श्रेणीकरण, शहरों का वर्गीकरण/श्रेणीकरण आदि कब से था, कब का खतम हो गया? लड़के नये हैं तो क्लास मानीटर अब टीचर बन गये हैं!

पेंशन का मानडेट आया क्या? कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, पर नेताओं की मानें तो आईबीए कुछ टुकड़े-टुकड़े में पेंशन रिवीजन की बात पर तैयार है और नेता जी कहते हैं कि कम से कम शुरुआत की उम्मीद तो जगी. सोनेवालों को जागनें की उम्मीद !! अब पेंशनर्स ताली बजायें या कुछ और, उनकी बला से. नेता जी तो गाल बजा ही रहे हैं.

बड़ी बिडंबना है, नेता जी की कृपा से ऐसा हो रहा है, वरना कुछ भी नहीं होने वाला था. मुर्गा बोला तो ही सूरज निकला! बैंकवाले वाकई इतने बेवकूफ न होते तो इनकी ऐसी दुर्दशा कदापि न होती, जैसी आज है!
मुर्गा न भी बोले तो भी सूरज निकलेगा भाई!

तथ्य यह है कि आईबीए एक सोची-समझी नीति के तहत ऐसी चाल चलता है, जिसमें यूनियनें फस जाती हैं. यूनियनेंं डफली बजाकर, समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करतीं हैंं और इन सोची-समझी बनावटी समस्याओं के निवारण को बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया जाता रहा है. मदारी के खेल जैसा, जमूरों की कलाकारी पर बजती ताली और खेल समाप्त होने पर कटोरा लेकर जमूरा दर्शकों से पैसा मांगता है. मदारी और जमूरा भला होता है, खेल तो सबको दिखाया, मनोरंजन सबका किया, पर पैसा जो दे उसका भला और जो न दे उसका भी भला. लेकिन, हमारे मदारी और जमूरे ऐसे नहीं हैं. मदारी ने नीचे से ऊपर तक अपने लठैत लगा रखे हैं. खेल पसंद आये या न आये, उनकी बला से, पैसा तो वसूल ही करना है. टैक्स में कुछ हेरा-फेरी हो सकती है, पर यूनियनों के टैक्स को सीधे वसूल, टीडीएस, करने का आध्यादेश होता है.

उम्मीद है, यह छोटा सा लेख, देखने में छोटा जरूर है, लेकिन इसके घाव गंभीर हैं. बैंककर्मियों को अपना अस्तित्व खोजना चाहिए. इस आइने में अपनी तश्वीर देखनी चाहिए! आईने में नेताओं की तश्वीरें भी हैं, देखिए ड्रैकुला जैसी!!

Nothing Wrong To Dream
But,
Don't Let It Become Nightmare!

Some Fundamentals & Parameters
Need Clarity & Understanding:

            J. N. Shukla
        FORUM OF BANK
    PENSIONER ACTIVISTS
            Central Office
             PRAYAGRAJ
              03.03.2020

(English version shall follow)

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