Wednesday, December 11, 2019

प्राकृतिक चिकित्सा क्या है? What is Naturopathy?

प्राकृतिक चिकित्सा - 15

प्राकृतिक चिकित्सा क्या है?

हमारा शरीर पाँच प्रमुख तत्वों से बना है- ‘क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा। पंच तत्व यह रचित शरीरा।।’ यदि किसी कारणवश हमारा शरीर अस्वस्थ हो गया है, तो इन्हीं पाँच तत्वों (मिट्टी, पानी, धूप, हवा और उपवास) के समुचित प्रयोग से पुनः स्वस्थ हो सकता है। यही प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान है। प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि रोग हमारी भूलों अर्थात् गलत जीवन शैली के परिणामस्वरूप होते हैं और शरीर से विकारों को निकालने के माध्यम हैं। यदि हम अपनी भूलों को सुधार लें और विकारों को निकालने में प्रकृति की सहायता करें, तो फिर से पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं। यह प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान का मूल सिद्धांत है।

वर्तमान में प्राकृतिक चिकित्सा को एक स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता दी गयी है। वास्तव में यह आयुर्वेद का ही एक अंग है। इसकी कई क्रियाएँ आयुर्वेद में पहले से शामिल हैं। आयुर्वेद में इसका उपयोग सहायक उपायों के रूप में किया जाता है। लेकिन आयुर्वेद का प्रसार घटने और अच्छे वैद्यों की कमी के कारण एवं उनका जोर दवाओं पर अधिक हो जाने के कारण अब आयुर्वेदिक वैद्य इन क्रियाओं को भूल गये हैं। दूसरी ओर, आजकल रोगी भी किसी क्रिया को करने के झंझट में नहीं फँसना चाहते और केवल ऐसी दवाएँ चाहते हैं, जिन्हें खाकर पड़े रहें और ठीक हो जायें। इसलिए वे प्राकृतिक चिकित्सा करने में हिचकते हैं। 

अन्य चिकित्सा पद्धतियों से प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति इस प्रकार भिन्न है कि इसमें दवाओं का पूर्णतः निषेध होता है। वास्तव में इसमें भोजन को ही दवा के रूप में ग्रहण किया जाता है, क्योंकि दवाइयों से जिन आवश्यक तत्वों की पूर्ति की आशा की जाती है, वे सभी तत्व विशेष प्रकार से चुने हुए भोजन में उपलब्ध हो जाते हैं। इसलिए वास्तव में हमारे शरीर को  दवाइयों की कोई आवश्यकता नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा की क्रियाओं के साथ योग और प्राणायाम को शामिल कर लेने पर यह एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति बन जाती है।

यह समझना भूल होगी कि दवा रहित हर चिकित्सा प्रणाली प्राकृतिक चिकित्सा है। कई प्राकृतिक चिकित्सक इस पद्धति के साथ नये-नये प्रयोग करते रहते स्वमूत्र चिकित्सा, एक्यूप्रैशर, एक्यूपंक्चर, चुम्बक चिकित्सा, रेकी आदि को प्राकृतिक चिकित्सा का अंग नहीं माना जा सकता, भले ही इनमें भी दवा नहीं ली जाती। यदि इनको प्राकृतिक चिकित्सा माना जाये, तो झाड़-फूँक चिकित्सा को भी प्राकृतिक चिकित्सा मानना होगा, क्योंकि उसमें भी दवा नहीं ली जाती। रेकी वास्तव में जापानी या कोरियाई झाड़-फूँक चिकित्सा ही है। ऐसी प्रवृत्ति उचित नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा अपने आप में हर तरह से सम्पूर्ण है। मालिश, योगासन और प्राणायाम भी इसके स्वाभाविक अंग हैं। इनसे किसी भी रोग और रोगी की सफल तथा स्थायी चिकित्सा की जा सकती है।

इस लेखमाला की आगे की कड़ियों में मैं प्राकृतिक चिकित्सा की प्रमुख क्रियाओं के बारे में बताऊँगा, जो अपने घर पर ही घरेलू वस्तुओं से बिना किसी कठिनाई के सरलता से की जा सकती हैं और उनका पूरा लाभ उठाया जा सकता है।


प्राकृतिक चिकित्सा - 16

मिट्टी की पट्टी

यह प्राकृतिक चिकित्सा की सबसे प्रमुख क्रिया है। मैं लिख चुका हूँ कि प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी बीमारियों की माता पेट की खराबी कब्ज है। कब्ज पुराना पड़ जाने पर आँतों में मल चिपककर सड़ता रहता है और शरीर में विकार पैदा करता है, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। पेड़ू (नाभि से नीचे का पेट का आधा भाग पेड़ू कहा जाता है) पर रखी गयी मिट्टी की पट्टी इसी कब्ज को दूर करने के लिए रामबाण चिकित्सा है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सभी रोगियों का इलाज पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखकर प्रारम्भ किया जाता है।

मिट्टी की पट्टी रखने की विधि बहुत सरल है। इसके लिए जमीन से एक-दो फुट नीचे की साफ मिट्टी ली जाती है। मिट्टी कहीं से भी ले सकते हैं, लेकिन उसमें कूड़ा-करकट और कंकड़ नहीं होने चाहिए। आवश्यक होने पर उसे छान लिया जाता है। अब उसे ठंडे पानी में आटे की तरह सान लिया जाता है। इसी से लगभग 6 इंच चैड़ी, 10 इंच लम्बी और पौन इंच मोटी चैकोर पट्टी किसी कपड़े पर बना लें। यह ध्यान रहे कि मिट्टी के बीच में हवा आदि न हो। इस पट्टी को उल्टा करके पेड़ू पर रखा जाता है और किसी कम्बल आदि से ढक दिया जाता है। इस पट्टी को 20 मिनट से 30 मिनट तक रखी रहने देते हैं। उसके बाद सावधानी से हटा देते हैं और कपड़े से पौंछ देते हैं। 

आप चाहें तो ऐसी दो और छोटी-छोटी पट्टियाँ या पेड़े बनाकर आँखों पर भी रख सकते हैं। इनसे आँखों को बहुत लाभ होता है।

पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखने से यह हमारी आँतों की गर्मी को सोख लेती है। इससे आँतों में चिपका हुआ वर्षों पुराना मल भी टूट जाता है, जिससे आँतें क्रियाशील हो जाती हैं और पाचन शक्ति बहुत सुधर जाती है। मिट्टी की पट्टी के बाद गुनगुने पानी का एनीमा लेने से बहुत मल निकलता है। एनीमा लेने की विधि आगे की कड़ी में बतायी गयी है। यदि कब्ज बहुत पुराना हो, तो मिट्टी की पट्टी और उसके बाद एनीमा का प्रयोग कई सप्ताह तक नित्य करने की आवश्यकता हो सकती है।

यदि आप जमीन से नीचे की मिट्टी की व्यवस्था न कर सकें, तो सभी जगह उपलब्ध मुल्तानी मिट्टी का उपयोग भी इसके लिए किया जा सकता है। लेकिन वह आधे-चौथाई इंच से अधिक मोटी नहीं बनानी चाहिए। इसके भी अभाव में ठंडे पानी में तौलिया भिगोकर भी पेड़ू पर रख सकते हैं। इसको दो-तीन मिनट बाद बदल देना चाहिए। इससे भी मिट्टी की पट्टी का लाभ कुछ सीमा तक मिल जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा - 17

सभी बीमारियों की माता है कब्ज

प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। इसमें मलनिष्कासक अंग कमजोर हो जाने के कारण शरीर से मल पूरी तरह नहीं निकलता और आँतों में चिपककर एकत्र होता रहता है। अधिक दिनों तक पड़े रहने से वह सड़ता रहता है और तरह-तरह की शिकायतें पैदा करता है तथा बड़ी बीमारियों की भूमिका बनाता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले कब्ज की ही चिकित्सा की जाती है। एक बार कब्ज कट जाने पर रोगी का स्वस्थ होना मामूली बात रह जाती है।

कई लोग कहते हैं कि हमें कब्ज नहीं है, क्योंकि हमारा पेट रोज खूब साफ हो जाता है। वे लोग गलती पर हैं, क्योंकि रोज शौच होते रहने पर भी कब्ज हो सकता है। इसे यों समझिये कि घर में हम रोज झाड़ू लगाते हैं और काफी कूड़ा निकालकर फेंकते हैं। फिर भी होली-दिवाली सफाई करने पर घर में बहुत कूड़ा निकलता है। कब्ज भी इसी प्रकार होता है।

कब्ज की प्राकृतिक चिकित्सा है- मिट्टी की पट्टी, एनीमा और कटिस्नान। पहले आधा घंटा पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखें, फिर गुनगुने पानी का एनीमा लें और अन्त में 5 मिनट का कटिस्नान ले लें। इससे कब्ज में काफी आराम मिलेगा। जिनका कब्ज बहुत पुराना हो, उन्हें प्रारम्भ में इन क्रियाओं के साथ दो-तीन दिन उपवास भी करना चाहिए।

कई बार हफ्तों तक उपवास करने और रोज एनीमा लेते रहने पर भी कड़ा और सड़ा हुआ काला-काला बदबूदार मल निकलता ही जाता है। ऐसे लोगों को उपवास और एनीमा तब तक करते रहना चाहिए, जब तक कि पुराना मल निकलना बन्द न हो जाये। उसके बाद सभी प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं।

जिनके पास मिट्टी की पट्टी, एनिमा और कटिस्नान लेने की सुविधा न हो, वे सुबह खाली पेट सरल विधि से ठंडा कटिस्नान लेकर और उसके बाद दो-तीन किलोमीटर तेज चाल से टहलकर अपना कब्ज कुछ ही दिनों में दूर कर सकते हैं। एनिमा और कटिस्नान की सरल विधियाँ आगे की कड़ियों में बतायी गयी हैं।

कब्ज पाचन शक्ति को बहुत कमजोर कर देता है और सब कुछ खाते रहने पर भी व्यक्ति कमजोर ही रहता है। ऐसी स्थिति में पाचन शक्ति को मजबूत करने के लिए हर तीन दिन बाद पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखने के बजाय गर्म पानी की पट्टी रखकर आँतों की सिकाई करनी चाहिए। फिर रोज की तरह एनीमा और कटिस्नान लेना चाहिए।

यदि आपका खानपान सात्विक नहीं है तो एक बार कब्ज कट जाने के बाद भी कभी भी कब्ज हो सकता है। इसलिए भविष्य में कब्ज न हो, इसके लिए खान-पान में सुधार करना आवश्यक है। उन वस्तुओं से बचना चाहिए जिनके कारण कब्ज हुआ था। यदि सप्ताह में एक दिन या एक बार उपवास कर लिया जाय और उस दिन प्रातःकाल एनीमा भी ले लिया जाये, तो कभी कब्ज होने का प्रश्न ही नहीं उठता। कब्ज से बचे रहने के लिए प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में पानी भी अवश्य पीना चाहिए।


प्राकृतिक चिकित्सा - 18

एनीमा

यह आयुर्वेद द्वारा बतायी गयी वस्ति क्रिया का आधुनिक और सरल रूप है। यह प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की प्रमुखतम क्रियाओं में शामिल है। इसका उद्देश्य है बड़ी आँतों की सफाई करना, क्योंकि बड़ी आँतों में बहुत सा मल एकत्र होकर सड़ता रहता है, जो अपने आप नहीं निकलता। उसको गुदा में पानी चढ़ाकर और उसमें घोलकर निकालना पड़ता है।

एनीमा लेने की विधि बहुत सरल है। इसके लिए एनीमा का एक डिब्बा बाजार में दवाइयों या सर्जीकल वस्तुओं की दूकानों पर मिलता है, जिसमें नीचे की ओर एक टोंटी लगी होती है। उस टोंटी में एक रबर की नली लगा देते हैं और उस नली के दूसरे सिरे पर एक प्लास्टिक की पतली और नुकीली टोंटी लगी होती है, जो गुदा में घुसाई जाती है। (चित्र देखिए।)

एनीमा के डिब्बे को जमीन से लगभग ढाई-तीन फुट ऊपर दीवार पर किसी कील पर टाँग देना चाहिए। फिर उसमें लगभग एक-सवा लीटर सुहाता हुआ गुनगुना पानी भर लेना चाहिए। उसमें एक या आधा नीबू का रस निचोड़ा जा सकता है, हालांकि यह अनिवार्य नहीं है। अब जमीन पर चित लेटकर घुटनों को ऊपर उठा लीजिए और रबड़ की नली के दूसरे सिरे पर लगी हुई प्लास्टिक की टोंटी को गुदा में एक-दो इंच डालिए। आवश्यक होने पर उस टोंटी को तेल लगाकर चिकना किया जा सकता है, ताकि वह गुदा में सरलता से जाये। अब टोंटी खोलकर पानी को पेट में जाने दीजिए। आसानी से जितना सहन हो सके, उतना पानी पेट में जाने देने के बाद टोंटी निकाल दीजिए।

अब पानी को पेट में ही चार-पाँच मिनट रोकिए। लेटकर घड़ी की सुई की दिशा में पेट की गोल-गोल मालिश कीजिए। इससे मल आँतों से टूटेगा और पानी में घुल जाएगा। इसके बाद शौच जाइये। शौच अपने आप होने दीजिए। जोर बिल्कुल मत लगाइये। शुरू में 10 या 15 मिनट तक शौचालय में बैठने की आवश्यकता हो सकती है। एनीमा के बाद कटिस्नान अवश्य लेना चाहिए, क्योंकि एनीमा से आँतों में गर्मी पहुँचती है, जिसे हटाना जरूरी है। कटिस्नान की विधि अगली कड़ी में बतायी गयी है।

एनीमा लेने का उद्देश्य केवल बड़ी आँतों की सफाई करना और कब्ज से बचना होता है। केवल चिकित्सा के दिनों में ही जब अपने आप शौच नहीं हो रहा हो, तब यह क्रिया करनी चाहिए। इसकी आदत डालना गलत है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति यदि सप्ताह में एक बार यह क्रिया कर ले, तो उसे पर्याप्त लाभ होता है। इससे कब्ज नहीं होता और पाचन क्रिया सुधरती है।

पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए शक्तिदायक एनीमा लेना चाहिए। इसमें केवल एक पाव ठंडा पानी रात को सोते समय आँतों में चढ़ाया जाता है और वहीं छोड़ दिया जाता है। सुबह शौच के साथ वह पानी अपने आप निकल जाता है। यदि आपकी पाचनशक्ति बहुत कमजोर है, तो ऐसा एनीमा आप कुछ दिनों तक रोज भी ले सकते हैं।

यदि किसी कारणवश आप एनीमा के डिब्बे की व्यवस्था न कर सकें या ऊपर बतायी गयी विधि से एनीमा न ले सकें, तो उसके स्थान पर निम्नलिखित उपाय करके एनीमा का लाभ उठाया जा सकता है-

एक-डेढ़ लीटर गुनगुने पानी में दो-तीन नीबू निचोड़ लीजिए और उसके बीज यदि हों तो निकाल दीजिए। अब एक-एक गिलास पानी हर 10-15 मिनट बाद पीते रहिए। यदि इसके बाद दस्त होते हों, तो होने दीजिए। इस क्रिया से आमाशय और आँतों की अच्छी प्रकार धुलाई हो जाती है और एनीमा का अधिकांश लाभ मिल जाता है।


प्राकृतिक चिकित्सा - 19

कटिस्नान

यह क्रिया आँतों को मजबूत करने और पाचन शक्ति बढ़ाने में बेजोड़ है। इसके लिए चित्र में दिखाये गये अनुसार टीन या प्लास्टिक का एक टब बाजार में बना-बनाया मिलता है या आर्डर देकर बनवाया जा सकता है।

कटिस्नान लेने के लिए टब में इतना पानी भरिये कि उसमें दायीं ओर के चित्र के अनुसार बैठने या लेटने पर कमर पूरी डूब जाये और पेड़ू के ऊपर एक इंच पानी आ जाये। पानी सामान्य से कुछ अधिक ठंडा होना चाहिए। आवश्यक होने पर बर्फ डाली जा सकती है। टब में जाँघिया उतारकर बैठना अच्छा है। इसकी सुविधा न होने पर जाँघिया ढीला करके पहने हुए भी बैठ सकते हैं। टब में बैठकर एक छोटे रूमाल जैसे तौलिये से पेड़ू को दायें से बायें और बायें से दायें हल्का-हल्का रगड़ना चाहिए। इतनी जोर से मत रगड़िये कि खाल छिल जाये। निश्चित समय तक कटिस्नान लेकर धीरे से उठ जाइए और पोंछकर कपड़े पहन लीजिए। उठते हुए इस बात का ध्यान रहे कि पानी की बूँदें पैरों पर न टपकें।

कटिस्नान प्रारम्भ में दो-तीन मिनट से शुरू करना चाहिए और धीरे-धीरे समय बढ़ाकर अधिक से अधिक 10 मिनट तक लेना चाहिए। इसके लिए सुनहरा नियम यह है कि जैसे ही शरीर में ठंड लगने लगे, तुरन्त उठ जाना चाहिए।

कटिस्नान के बाद शरीर में गर्मी लाना अनिवार्य है। इसके लिए या तो 4-5 मिनट हल्का व्यायाम करना चाहिए या 10-15 मिनट तेजी से टहलना चाहिए। इससे कटिस्नान का पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है।

कटिस्नान की सरल विधि- यदि कटिस्नान के लिए टब की व्यवस्था न हो सके, तो उसके बिना भी कटिस्नान लिया जा सकता है। इसकी विधि यह है कि किसी बाल्टी में ठंडा पानी भर लीजिए। अब बाथरूम में जाँघिया उतारकर दीवाल के सहारे अधलेटी मुद्रा में बैठ जाइये। घुटने उठा लीजिए और दोनों पैरों के बीच बाल्टी को रख लीजिए। अब एक मग या लोटा लेकर उसे पानी से भर-भरकर पेड़ू पर दायें से बायें और बायें से दायें धार बनाकर डालिए। धीरे-धीरे पूरी बाल्टी खाली कर दीजिए। अगर बीच में ही ठंड लगने लगे तो उठ जाइए। अब सावधानी से उठकर और पोंछकर कपड़े पहन लीजिए और शरीर में गर्मी लाने के लिए हल्का व्यायाम कीजिए या टहलिए।

इस क्रिया से भी कटिस्नान का अधिकांश लाभ मिल जाता है। मैंने स्वयं इसी विधि से लाभ प्राप्त किया है और अपने कई मित्रों और सम्बंधियों को इसी विधि से लाभ पहुँचाया है।

अधिक सर्दी के दिनों में इस विधि से कटिस्नान नहीं लेना चाहिए। इसके स्थान पर खूब ठंडे पानी में कोई कपड़ा गीला करके उससे पेड़ू के आसपास दो-तीन मिनट तक पोंछा लगाना चाहिए। इससे कटिस्नान का आवश्यक और पर्याप्त लाभ प्राप्त हो जाता है।

लगभग सभी प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्रों में नित्य प्रातःकाल और सायंकाल पाँच मिनट का कटिस्नान लेकर एक या आधा घंटा टहलना अनिवार्य होता है और इस पर बहुत जोर दिया जाता है। वास्तव में केवल ऐसा करने से ही रोगों का आधा इलाज हो जाता है। यदि आप केवल यही करते रहें, तो फिर किसी चिकित्सा की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी से आप पूर्ण स्वस्थ हो सकते हैं और सदा स्वस्थ बने रह सकते हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा - 20

सिकाई या सेंक करना

कई बार हमें शरीर के किसी अंग की गर्म या गर्म-ठंडी सेंक या सिकाई करने की आवश्यकता होती है। विशेष रूप से जब वात रोग के कारण जोड़ों में दर्द होता हैजैसे पैरों में या हाथों मेंतो गर्म सिकाई उन जोड़ों की जकड़न को दूर करके दर्द कम करती है। नियमित यह करने पर दर्द सही हो जाता हैयद्यपि उसके साथ उन अंगों के कुछ विशेष व्यायाम करना भी आवश्यक होता है। यह क्रिया पूर्ण लाभ होने तक प्रतिदिन कम से कम एक बार करनी चाहिए। यदि सोते समय दोबारा कर ली जायेतो अधिक लाभ मिलता है।

गर्म सिकाई की विधि इस प्रकार हैकिसी भगौने में आवश्यकता के अनुसार गर्म पानी भर लीजिए। अब एक रूमाल जैसा तौलिया लेकर उसे एक दो बार मोड़कर आवश्यक आकार की पट्टी बना लीजिए। इस पट्टी को गर्म पानी में भिगो लीजिए और हल्का निचोड़ लीजिए। अब इसको उस अंग पर रख दीजिए और उसे ऊपर से किसी ऊनी कपड़े या मोटे तौलिए से ढक दीजिए। दो-तीन मिनट तक रखे रहने के बाद उसे उठा लीजिए और किसी अन्य बर्तन में पूरा निचोड़ लीजिए। अब फिर उसे गर्म पानी में भिगोकर रखिए। इस प्रकार आवश्यक समय तक सिकाई की जा सकती है।

यदि हाथ या पैर की गर्म सिकाई करनी होतो पट्टी रखने के बजाय सुहाता हुआ गर्म पानी उस अंग पर आवश्यक समय तक डाला जा सकता है अथवा उस अंग को ही गर्म पानी में डुबोया जा सकता है। यदि घुटनों तक पैरों की सिकाई करनी होतो किसी बड़ी बाल्टी या तामड़ी में इतना गर्म पानी भरा जाता है कि पैर पिंडलियों तक अवश्य डूब जायें। फिर किसी मग या लोटे से उसी बर्तन में से गर्म पानी लेकर घुटनों पर डाला जाता है। यदि पानी ठंडा होता जा रहा होतो उसमें बीच-बीच में गर्म पानी मिलाकर तापमान आवश्यक सीमा तक बढ़ाया जा सकता है।

गर्म-ठंडी सिकाई

जब किसी अंग में सूजन और दर्द होतो केवल गर्म सिकाई के स्थान पर गर्म ठंडी सिकाई करनी चाहिए। इससे वहाँ रक्त का संचालन ठीक होता हैनसें यदि सिकुड़ गयी होंतो सामान्य अवस्था में आने लगती हैं। 
गर्म-ठंडी सिकाई से सिर दर्द को छोड़कर प्रायः हर प्रकार के दर्द और सूजन में बहुत लाभ होता है। गठिया में इससे चमत्कारी लाभ प्राप्त होता है। इसके साथ भी उन अंगों के विशेष व्यायाम अवश्य करने चाहिए।

गर्म-ठंडी सिकाई करने के लिए एक भगौने में गर्म और एक में ठंडा पानी लिया जाता है और बारी-बारी से दोनों प्रकार की सिकाई की जाती है। इसका नियम यह है कि पहले एक मिनट तक ठंडी और फिर तीन मिनट तक गर्म सिकाई करनी चाहिए। इस क्रम को तीन या चार बार दोहराया जाता है और अन्त में एक मिनट ठंडी सिकाई की जाती है। सिकाई का समापन हमेशा ठंडी सिकाई से किया जाता है। 

*प्राकृतिक चिकित्सा - 21*

*ठंडे पानी की पट्टी*

कई बार शरीर के किसी अंग पर ठंडे पानी की पट्टी रखी जाती है। इसकी विधि यह है कि एक भगौने में खूब ठंडा पानी भर लें। आवश्यक होने पर उसमें बर्फ भी डाली जा सकती है। अब दो छोटे-छोटे तौलिये या रूमाल लें। उनको तह करके इस आकार का बना लें कि उस अंग पर पूरी तरह आ जायें, जिस पर पट्टी रखनी है। अब एक तौलिये को भगौने के पानी में भिगोकर हल्का निचोड़कर उसे उस अंग पर रख दें। ऊपर से उसे किसी ऊनी कपड़े से ढक दें। ठीक दो मिनट तक रखे रहने के बाद दूसरे तौलिये को इसी प्रकार रखें और पहले तौलिये को किसी अन्य बर्तन में अच्छी तरह निचोड़ दें। दो तौलिये इसलिए लिये जाते हैं कि एक पट्टी हटाते ही तत्काल दूसरी पट्टी रखी जा सके। इस प्रकार 15-20 मिनट तक या आवश्यक होने पर अधिक समय तक भी ठंडे पानी की पट्टी रखी जा सकती है। उसके बाद किसी सूखे तौलिये से अच्छी तरह पोंछ देना चाहिए।

ठंडे पानी की पट्टी अधिकतर बुखार आने पर पेड़ू और/या माथे पर रखी जाती है। यदि बुखार 102 डिग्री से कम हो, तो केवल पेड़ू पर और यदि 102 या अधिक हो तो माथे पर भी रखनी चाहिए। इससे बुखार तत्काल काबू में आ जाता है। आवश्यक होने पर दिन में तीन-चार बार भी पट्टी रखी जा सकती है। बुखार में पट्टी के साथ-साथ रोगी को या तो केवल जल पर उपवास कराना चाहिए या बहुत हल्का भोजन देना चाहिए। इससे सभी तरह के बुखार ठीक हो जाते हैं।

कई बार आँखों पर भी ठंडे पानी की पट्टी रखी जाती है। इससे आँखों की ज्योति बढ़ती है और उसकी सभी शिकायतें दूर हो जाती हैं।

-- डॉ विजय कुमार सिंघल
प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य
मो. 9919997596


मार्गशीर्ष शु 13, सं 2076 वि (9 दिसम्बर 2019)

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