Wednesday, February 25, 2015

Dirty Politics On Land Reforms May Drag Growth

भूमि अधिग्रहण: सिर्फ मोदी को घेरने की रणनीति तो नहीं?-EconomicTimes

यह मनवाने की कोशिश की जा रही है कि लैंड बिल किसान विरोधी है। लेकिन जो पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं, उन्हीं पार्टियों की राज्य सरकारों ने पुराने कानून को बदलने की वकालत की थी। मोदी सरकार के लैंड बिल को लेकर लोगों की अलग-अलग राय सामने आ रही है।

भले ही कांग्रेस का इस बिल पर कड़ा रुख अपनाया है और धमकी दी है कि इसे वापस लेने के लिए सरकार को मजबूर कर देगी, लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों ने ही यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून पर आपत्ति जताई थी। महाराष्ट्र की पृथ्वी राज चह्वान के नेतृत्व वाली सरकार ने 2011 में तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश को उक्त कानून के मसौदे में उपलब्ध कमियों के बारे में अवगत कराया था।

2011 को एक पत्र में उन्होंने उल्लेख किया था, 'नए कानून से सार्वजनिक सुविधाओं जैसे वॉटर सप्लाई, स्वास्थ्य सुविधाओं आदि के लिए भूमि और पुनर्वास की कीमत 6 गुना बढ़ जाएगी। चूंकि, कानून पूर्व प्रभाव से लागू है इसलिए वर्तमान पब्लिक प्रॉजेक्ट्स पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि बजटीय राशि से कई गुना अधिक इसकी कीमत बढ़ जाएगी।

केरल और कर्नाटक ने भी कहा था कि बड़ी परियोजनाओं के लिए ही सिर्फ समाजिक प्रभाव आकलन अध्ययन को अनिवार्य बनाया जाए। केरल ने तो यह भी कहा था कि प्राथमित चरण में भूमि मालिकों की सहमति हासिल करने की शर्त से समस्या उत्पन्न होगी। हरियाणा ने तो पीपीपी प्रॉजेक्ट्स के लिए सहमति की जरूरत को या तो खत्म करने या कम करके 50 फीसदी करने की मांग की थी।

मोदी सरकार के भूमि अधिग्रण कानून के बारे में अगर एक्सपर्ट्स की मानें तो इस बिल में ऐसा कुछ भी गलत नहीं है जिसका विरोध किया जाए बल्कि विरोध करने वाले भी अच्छी तरह से जानते हैं कि यह बिल मौजूदा रूप में ही रहे तो सबका फायदा है। लेकिन, विरोध के पीछे उनका अपना स्वार्थ है, वे ऐसा कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहते हैं, जिसका सहारा लेकर मोदी सरकार की घेराबंदी कर सके।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसके बिल के पक्ष में या विरोध में कुछ भी कहने से पहले इस बिल के हर पहलू से अवगत होना जरूरी है। उन लोगों ने इस बिल से जुड़े तथ्यों पर कुछ इस प्रकार से प्रकाश डाला...

भारत की समस्या यह है कि यहां की बड़ी आबादी आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर आश्रित है जहां उनकी आय इतनी कम होती है कि बुनियादी जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो जाता है। कृषि से बाहर दूसरे सेक्टर में अगर कमाई अच्छी है तो उनके लिए जमीन की कमी है। इसका हल यही हो सकता है कि इंडस्ट्री और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए अधिक से अधिक भूमि उपलब्ध करा कर कृषि पर लोगों की निर्भरता कम की जाए। इसके अलावा दूसरा कोई भी विकल्प नहीं है। शायद इसीलिए सरकार इस दिशा में काम कर रही है।

विरोधियों को भूमि अधिग्रहण बिल के यूपीए वर्जन से ज्यादा प्यार दिख रहा है। इसका कारण यह है कि यूपीए वर्जन में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया और मुआवजे के भुगतान की प्रक्रिया जटिल है जो काफी समय बर्बाद करने वाली है। दूसरी ओर मोदी वर्जन में सब प्रक्रिया को तेजी से निपटाने का प्रावधान है। इससे किसानों को तुरंत मुआवजा मिल जाएगा। पुराने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के मुश्किल होने के कारण इससे बिचौलियो और जमींदारों का फायदा होगा। अधिकतर ग्रामीण राजनीतिज्ञ जमींदार हैं और बिजनसमैन उनके दर पर आएंगे तो उनको मोटा फायदा होगा। इसके अलावा इस यूपीए वर्जन में 70/80 फीसदी सहमति और समाजिक प्रभाव आकलन अध्ययन की जो शर्त है, इससे भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी। इस प्रकार की जटिलता होने से बिचौलिये किस्म के लोग एवं अन्यों के लिए घूसखोरी का अवसर उपलब्ध होगा। वे काम जल्द कराने के नाम पर घूस के सहारे मोटी कमाई कर सकेंगे। अनुमान है कि यूपीए वर्जन के मुताबिक भूमि अधिग्रहण में चार से 5 साल का समय लग जाएगा।

बिल के एनडीए वर्जन में अधिग्रहण प्रक्रिया को आसान बनाया गया है, इससे भूमि बेचने वाले लोगों को जल्द ही पैसा मिल सकेगा। प्रक्रिया तेजी से पूरी हो जाएगी तो गरीबों को शीघ्र पुनर्वासित किया जा सकता है।

इसका एक फायदा यह भी है कि इंफ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग के लिए भूमि उपलब्ध होने पर ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी के अवसर बढ़ेंगे, जिससे अंततः किसान और गरीब वर्ग को ही फायदा पहुंचेगा। उनको कम आय वाले कृषि क्षेत्र के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा।

मौजूदा बिल के विरोध में एक और तर्क यह दिया जा रहा है कि इसमें उपजाऊ जमीन को भी अधिग्रहण करने का प्रावधान है, जिससे खाद्य उत्पादन पर असर पड़ेगा। यहां यह समझ लेना जरूरी है कि खाद्य उत्पादन सिर्फ जमीन पर निर्भर नहीं करता है बल्कि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि खेती किस प्रकार की जा रही है। आधुनिक तकनीक के उपयोग से ही उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। ऐसे में यह तर्क भी अर्थहीन हो जाता है।

लोगों का कहना है कि इस विरोध के पीछे मुख्य कारण यह है कि अधिकतर बिल विरोधी बड़े-बड़े काश्तकार हैं। उनका इससे अपना हित जुड़ा है। वे गरीबों के कंधे पर रख कर बंदूक चला रहे हैं। लोगों के मुताबिक, देश के विकास के लिए भी जरूरी है कि इंडस्ट्री और इंफ्रास्टक्चर का विकास हो। देश के विकास से ही देशवासियों का हित जुड़ा है। विकास होने से लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे और उनके जीवन स्तर में सुधार होगा।

जानें: यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून और मोदी सरकार के अध्यादेश में मुख्य अंतर-ABP News-25.02.2015

नई दिल्ली: सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के आंदोलन और विपक्षी पार्टियों के विरोध के बीच आज लोकसभा में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पेश हो गया है. आपको बताते हैं कि यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून और मोदी के भूमि अध्यादेश में क्या अंतर है और लोग क्यों इसका विरोध कर रहे हैं.

 
यूपीए सरकार का भूमि अधिग्रहण कानून
 
  • 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने संसद ने भूमि अधिग्रहण बिल पास किया था. जिससे किसानों के हित में कई निर्णय लिए गये थे.  भारत में 2013 क़ानून के पास होने तक भूमि अधिग्रहण का काम मुख्यत: 1894 में बने क़ानून के दायरे में होता था. ये जबरन ज़मीन लिए जाने की स्थिति को रोकने में मददगार था.
     
  • गांव की जमीन अधिग्रहित करनी है तो गांव के 70 प्रतिशत किसानों की सहमति जरूरी थी. 
  • 5 वर्ष तक इस्तेमाल नहीं करने पर भूमि वापसी का प्रावधान-अधिग्रहित भूमि पर अगर पांच साल में डेवलेपमेंट नहीं हुआ तो वही भूमि फिर से किसानों को वापस मिलने की भी व्यवस्था भी की गई थी.
     
  • सिर्फ बंजर भूमि का का ही अधिग्रहण- सिंचाई हेतु उपयोग होने वाली भूमि अधिग्रहित नहीं करने की व्यवस्था की गई थी. साथ ही साथ अधिग्रहित भूमि के बदले में किसानों के पुनर्व्यवस्था का भी उचित प्रबंध किया गया था.
     
  • अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट जा सकते थे- 2013 के कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी ज़मीन के अधिग्रहण को कागज़ों पर 5 साल हो गए हैं, सरकार के पास जमीन का कब्जा नहीं है और मुआवज़ा नहीं दिया गया, तो मूल मालिक ज़मीन को वापस मांग सकता है.
 
मोदी सरकार का भूमि अधिग्रहण अध्यादेश
 
  • अध्यादेश 2014 में बनाया गया- नौ महिने पहले देश की सत्ता में आयी सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया और 2013 के कानून की कई व्यवस्था को बदलते हुए किसान विरोधी निर्णय लिया है.
     
  • किसानों की सहमति जरूरी नहीं. नए कानून में इसे ख़त्म कर दिया गया है.
     
  • भूमि वापसी का कोई प्रावधान नहीं- एक बार सरकार ने जमीन लेने की घोषणा कर दी और उसने उस पर कोई काम शुरू हो या नहीं यह जमीन सरकार की हो जाएगी.
     
  • उपजाऊ एवं सिंचित भूमि का भी अधिग्रहण- यूपीए सरकार में यह गुंजाइश थी कि सरकार खेती  योग्य जमीन नहीं ले सकती लेकिन मोदी सरकार के अध्यादेश के मुताबिक सरकार खेती लायक और उपजाऊ जमीन भी ले सकती है.
     
  • अधिग्रहण के खिलाफ किसान कोर्ट नहीं जा सकते हैं- अगर सरकार आपकी जमीन ले लेती है तो आप इसके खिलाफ किसी भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का हक भी नहीं रखते. मतलब कि आप की अदालत में भी कोई सुनवाई नहीं होगी.
http://abpnews.abplive.in/ind/2015/02/24/article510325.ece/What-is-land-acquisition-bill

http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/all-opposing-land-bill-have-vested-interests/articleshow/46365223.cms

Read My Views in following link

http://importantbankingnews2.blogspot.in/2015/02/growth-oriented-land-reformation-policy.html

 
Prime Minister Stands His Ground, Opposes Changes to Land Reform Proposal:

New Delhi: Despite the combined onslaught of the opposition and activists, Prime Minister Narendra Modi has decided that land reforms introduced by him will not be discussed at a meeting with leaders of all parties, a measure that was reportedly being considered in an attempt to craft consensus for a legislation that is key to the government's economic agenda in this session of Parliament.

Critics say the proposed legislation to make it easier for businesses to buy farm land for infrastructure and industry is "anti-farmer."


Mr Modi met this morning with top ministers including Rajnath Singh and Arun Jaitley to discuss how the government should navigate the fierce dissent from the Opposition, two major allies, and unions affiliated to the ruling party's ideological mentor, the Rashtriya Swayamsewak Sangh or RSS. The PM reportedly indicated that in the absence of any attempt towards a compromise by the Opposition, it is not worth it to call an all-party session to solicit feedback on the land reforms. The PM is also not in favour of major revisions to the proposed land reforms, said sources.

In December, his government used an ordinance or executive order to exempt projects in defence, rural electrification, rural housing and industrial corridors from provisions of a law enacted by the previous Congress party government that mandated the consent of 80 percent of affected landowners for any deal. The ordinance also ends the need for companies to conduct a social impact study of such projects, which would involve public hearings and, industry executives fear, drag on for years.

The ordinance is a temporary order and needs the approval of both houses of Parliament to come into force. It will lapse if Parliament does not ratify it this session.

Although the ruling BJP enjoys the biggest majority in 30 years in the Lok Sabha or lower house, it is in a minority in the Rajya Sabha or Upper House and needs the support of the Congress to pass bills there.

No comments:

Post a Comment