Friday, December 19, 2025

100 Percent FDI in Insurance Sector

 The Indian government's decision to permit 100% FDI in the insurance sector is expected to bring several benefits to various stakeholders. Here are some possible advantages:


Advantages to Insurer (Policyholders)

- *Increased competition*: More foreign insurers may enter the market, leading to increased competition, which can result in better services, innovative products, and competitive pricing.

- *Improved products and services*: Foreign insurers may bring new products, technologies, and expertise, enhancing the overall insurance experience for policyholders.

- *Increased insurance penetration*: More insurers may lead to increased insurance penetration, making insurance more accessible to a larger population.


Advantages to Insurance Companies

- *Increased capital infusion*: 100% FDI can bring in significant foreign capital, strengthening the financial position of Indian insurance companies.

- *Access to global expertise*: Partnerships with foreign insurers can bring in global best practices, expertise, and technology, enhancing operational efficiency.

- *Expansion opportunities*: Increased capital and expertise can enable Indian insurance companies to expand their operations, both domestically and internationally.


Advantages to Employees in Insurance Companies

- *Career growth opportunities*: Increased competition and expansion may lead to more job opportunities and career growth prospects for insurance professionals.

- *Skill development*: Exposure to global best practices and technologies can enhance the skills and expertise of insurance employees.

- *Better compensation packages*: Increased competition may lead to better compensation packages and benefits for employees.


Advantages to Indian Government

- *Increased revenue*: The government can earn more revenue through taxes on increased insurance business and FDI inflows.

- *Economic growth*: The insurance sector's growth can contribute to India's economic growth, creating employment opportunities and increasing financial inclusion.

- *Improved insurance penetration*: Increased competition and innovation can lead to higher insurance penetration, reducing the financial burden on the government in case of unforeseen events.


Overall, the 100% FDI in the insurance sector is expected to bring in more competition, innovation, and investment, ultimately benefiting policyholders, insurance companies, employees, and the Indian government.


There are some people and some parties who are bent upon protesting all policies present government announces. But it is duty of every Indians to look into pros and cons of the policy and if there are more advantages and negligible losses we must admire and appreciate such policy in the larger interest of the country.


When computerization in banking industry started many  left minded leaders protested it. Now even bank employees want that all works be done by computer so that they may enjoy and get promoted easily.


भारत सरकार द्वारा बीमा क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देना एक बड़ा नीतिगत परिवर्तन है। इसके लाभ-हानि अलग-अलग हितधारकों पर अलग तरह से प्रभाव डालते हैं। नीचे इसे सरल हिंदी में, वर्गवार समझाया गया है:


1️⃣ बीमा लेने वाले (Policyholders / Insured) के लिए


✅ लाभ


बेहतर उत्पाद: विदेशी कंपनियाँ नई, कस्टमाइज़्ड और आधुनिक बीमा योजनाएँ लाएँगी।


प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी: ज्यादा कंपनियाँ → बेहतर सेवा और संभवतः कम प्रीमियम।


तेज क्लेम निपटान: विदेशी कंपनियों के पास उन्नत तकनीक और प्रक्रियाएँ होती हैं।


ग्रामीण और नए क्षेत्रों में विस्तार: पूँजी बढ़ने से कवरेज बढ़ेगा।



❌ हानि


प्रीमियम में असमानता: कुछ विशेष सेगमेंट में प्रीमियम बढ़ सकता है।


स्थानीय जरूरतों की अनदेखी: विदेशी कंपनियाँ कभी-कभी भारतीय सामाजिक आवश्यकताओं को कम महत्व दे सकती हैं।


डेटा गोपनीयता का जोखिम: संवेदनशील ग्राहक डेटा के दुरुपयोग की आशंका (हालाँकि नियमन मौजूद है)।


2️⃣ बीमा कंपनियों (Indian & Foreign Insurers) के लिए


✅ लाभ


असीमित पूँजी उपलब्धता: अब विदेशी साझेदार पूरी हिस्सेदारी लेकर बड़ा निवेश कर सकते हैं।


तकनीक और विशेषज्ञता: AI, डिजिटल अंडरराइटिंग, जोखिम प्रबंधन में सुधार।


तेज विस्तार: नए प्रोडक्ट, नए शहर, नए ग्राहक।


जॉइंट वेंचर की बाध्यता समाप्त: निर्णय लेने में स्वतंत्रता।



❌ हानि


भारतीय कंपनियों पर दबाव: छोटी या कमजोर घरेलू कंपनियाँ टिक नहीं पाएँगी।


अत्यधिक प्रतिस्पर्धा: मार्जिन घट सकता है।


निर्णय विदेश से नियंत्रित: भारतीय प्रबंधन की भूमिका कम हो सकती है।


3️⃣ बीमा कंपनियों के कर्मचारियों के लिए


✅ लाभ


नई नौकरियाँ: विस्तार के कारण रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।


बेहतर प्रशिक्षण: अंतरराष्ट्रीय मानकों पर स्किल डेवलपमेंट।


उच्च वेतन और प्रोफेशनल कल्चर: विशेषकर तकनीकी और प्रबंधन पदों पर।


वैश्विक अवसर: अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर।



❌ हानि


नौकरी की असुरक्षा: प्रदर्शन आधारित संस्कृति, कमजोर कर्मचारियों पर दबाव।


री-स्ट्रक्चरिंग / छँटनी: मर्जर या लागत कटौती के कारण।


वर्क प्रेशर बढ़ना: टारगेट और KPI सख्त हो सकते हैं।


4️⃣ भारत सरकार के लिए


✅ लाभ


विदेशी पूँजी का प्रवाह: अर्थव्यवस्था को मजबूती।


बीमा कवरेज में वृद्धि: “Insurance penetration” बढ़ेगा।


कर राजस्व बढ़ेगा: मुनाफे और गतिविधियों से।


सरकार का वित्तीय बोझ कम: स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में बीमा की भूमिका बढ़ेगी।


वैश्विक विश्वास: भारत को निवेश-अनुकूल देश के रूप में पहचान।



❌ हानि


नीति नियंत्रण की चुनौती: विदेशी कंपनियों पर नियमन सख्ती से करना पड़ेगा।


मुनाफे का विदेशी बहिर्गमन: लाभांश बाहर जा सकता है।


रणनीतिक क्षेत्र में विदेशी प्रभुत्व: बीमा एक संवेदनशील सेक्टर है।


PSU बीमा कंपनियों पर दबाव: LIC जैसी संस्थाओं की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।

🔚 निष्कर्ष (Conclusion)


यदि कड़ा नियमन, डेटा सुरक्षा और सामाजिक दायित्व सुनिश्चित किए जाएँ,


तो यह कदम ग्राहकों, रोजगार और अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद सिद्ध हो सकता है।



सरल शब्दों में:

पूँजी + तकनीक + प्रतिस्पर्धा = विकास,

लेकिन नियंत्रण और संतुलन बहुत जरूरी है।

Thursday, November 27, 2025

New Four Labour Code. चार श्रम संहिताएँ

चार नए भारतीय श्रम संहिताओं का उद्देश्य 29 मौजूदा अधिनियमों को मिलाकर श्रम कानूनों को सरल और औपचारिक बनाना है। मुख्य बिंदुओं में नियुक्ति पत्र और समय पर वेतन अनिवार्य करना, सभी श्रमिकों (गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों सहित) के लिए सामाजिक सुरक्षा की गारंटी, समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करना और महिलाओं को सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देनाशामिल है। अन्य मुख्य बिंदुओं में दुर्घटना क्षतिपूर्ति का विस्तार करके आवागमन संबंधी दुर्घटनाओं को शामिल करना, निश्चित अवधि के कर्मचारियों के लिए एक वर्ष के बाद ग्रेच्युटी उपलब्ध कराना, और एकल पंजीकरण और रिटर्न के माध्यम से नियोक्ताओं के लिए अनुपालन को सरल बनाना शामिल है। चार श्रम संहिताओं के मुख्य बिंदु मजदूरी और भुगतान:समय पर वेतन का भुगतान अनिवार्य है, कई क्षेत्रों के लिए वेतन हर महीने की 7 तारीख तक देना अनिवार्य है।"समान कार्य के लिए समान वेतन" सुनिश्चित किया जाएगा तथा राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन स्थापित किया जाएगा।सामाजिक सुरक्षा:गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों सहित सभी श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार किया गया है।एग्रीगेटर्स को \(1-2\%\) गिग श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए अपने वार्षिक टर्नओवर का योगदान करना होगा।निश्चित अवधि के कर्मचारियों के लिए पीएफ, ईएसआईसी, बीमा और मातृत्व लाभ जैसे लाभों की गारंटी देता है।रोजगार और कार्य स्थितियां:सभी श्रमिकों के लिए नियुक्ति पत्र अनिवार्य कर दिया गया है।महिलाओं को रात्रि पाली में काम करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते वे सहमति दें और सुरक्षा उपाय लागू हों।दुर्घटना क्षतिपूर्ति का विस्तार कार्यस्थल पर आने-जाने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को कवर करने के लिए किया गया है।निश्चित अवधि के कर्मचारी अब स्थायी कर्मचारियों के समान लाभ के लिए पात्र होंगे, जिसमें एक वर्ष के बाद ग्रेच्युटी भी शामिल होगी।विवाद समाधान और अनुपालन:उत्पीड़न, भेदभाव और वेतन विवादों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करता है।संहिताओं के अंतर्गत एकल लाइसेंस और एकल रिटर्न की व्यवस्था लागू करके नियोक्ताओं के लिए अनुपालन को सरल बनाया गया है।केवल दंडात्मक कार्रवाई करने के बजाय नियोक्ताओं को मार्गदर्शन देने के लिए "निरीक्षक-सह-सुविधाकर्ता" प्रणाली स्थापित की गई है। 



केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए चार श्रम संहिताएँ अब लागू हो गई हैं। इस कानून के गुणों को उपरोक्त संहिता अधिसूचना और विभिन्न अन्य सूचनात्मक लेखों में पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है।

फिर भी, ट्रेड यूनियन समूहों ने एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।


अगर हम यूनियन नेताओं को होने वाले नुकसान और उनके अहंकार के क्षरण को नज़रअंदाज़ कर दें, तो मुझे श्रम संहिता में बदलाव से मज़दूर वर्ग को किसी भी प्रकार के नुकसान की कोई संभावना नहीं दिखती।


हो सकता है कि मेरा दिमाग इन संहिताओं में खामियाँ ढूँढ़ने के लिए पर्याप्त परिपक्व न हो। इसलिए मैं सभी कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों से अनुरोध करता हूँ कि वे कोई भी दो बिंदु लिखें जिनसे हमारे देश के किसी भी कार्यरत कर्मचारी को नुकसान हो। मैं उन नेताओं के अग्रेषित संदेश नहीं चाहता जो सरकार द्वारा घोषित सभी कार्यों का विरोध करने पर तुले हैं। उनके शब्दकोश में देश के किसी भी कानून की सराहना का एक शब्द भी नहीं है। उनकी कार्यप्रणाली केवल आलोचना और विरोध पर आधारित है।


मैं सभी व्यक्तियों से अनुरोध करता हूँ कि वे हिंदी या अंग्रेजी में कम से कम एक वाक्य लिखें जो यह कारण बताए कि नवगठित श्रम संहिता का विरोध क्यों किया जाना चाहिए।


सेवानिवृत्त कर्मचारियों को विशेष रूप से आत्मचिंतन करना चाहिए कि कैसे वे अपने नेताओं के हर कदम का आँख मूँदकर समर्थन करते थे और सेवानिवृत्ति के बाद उन पर गुस्सा करते हैं क्योंकि पेंशन अपडेट सहित उनकी कई माँगों पर उन्हीं नेताओं ने ध्यान नहीं दिया जिनकी वे सेवाकाल में पूजा करते थे और अब भी करते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी, जब उन्हें स्थानांतरण, पदोन्नति से इनकार या तुच्छ आधार पर सज़ा का कोई डर नहीं है, उनमें सच बोलने का साहस नहीं दिखता। उन्हें अब ज़मीनी हकीकत पर विचार करना चाहिए और बिना किसी डर या परिणाम के साहसपूर्वक सच बोलना चाहिए।



Four labour codes framed by central government is now in action. Merits of the law have already been explained in aforesaid code notification and various other informative articles. 

Still trade union groups have called for one day nationwide strike. 

If we ignore the would be losses to union leaders and erosion in their ego ,I find no possibility of any type of loss to working class by change in labour code.


My mind may not be matured enough to find out loopholes in the codes. I therefore ask all employees and retirees to write any two points which reflect loss to any working employee in our country. I do not want forwarded messsges of those leaders who are bent upon opposing all actions government announces. Their dictionary do not have any word of appreciation for any law of the land. Their modus oparendi is based on criticism and protests only.


I request all individuals to write at least a sentence in Hindi or in English which may give a reason why newly formed labour code should be opposed.


Retirees in particular should introspect how blindly they used to support each and every action of their leaders blindly and after retirement they are angry on them because their several demands including pension updation is not taken care of by those leaders whom they used to worship during working period and whom they still worship , they do not appear to have courage to speak truth even now after retirement when they do not have any fear of transfer or denial of promotion or punishment on flimsy ground. They must now ponder over ground reality and boldly tell the truth without any fear or repercussions


नीचे सरल, स्पष्ट और गहराई से विश्लेषित उत्तर दिया गया है — चारों नए Labour Codes से संभावित परिणाम (possible outcomes) और कौन-कौन सी उपलब्धियाँ/प्राप्तियाँ अपेक्षित हैं — व्यवसाय-वृद्धि, सामाजिक सुरक्षा, राजनीतिक संतुलन, रोजगार-निर्माण, और प्रशासनिक प्रभाव के आधार पर।



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1) व्यवसाय-वृद्धि (Business Growth) पर संभावित परिणाम


✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ


(a) अनुपालन बोझ में कमी (Reduced compliance burden)


29 अलग-अलग कानूनों की जगह चार कोड →

एक रजिस्ट्रेशन, एक रिटर्न, एक लाइसेंस जैसी व्यवस्था कई उद्योगों का समय और लागत घटा सकती है।


उद्योगों को प्रक्रियात्मक भ्रम कम होगा; खासकर MSMEs लाभान्वित होंगे।



(b) व्यवसायों में लचीलापन (Operational flexibility)


Fixed-term employment, छंटनी के लिए उच्चतर threshold, ओवरटाइम/वर्किंग-आवर्स की स्पष्टता

→ कंपनियों को निवेश बढ़ाने व बड़े विनिर्माण प्लांट लगाने में सुविधा महसूस होगी।



(c) अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में सुधार (Improved global competitiveness)


सरल श्रम-ढांचा अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए भारत को आकर्षक बनाता है।


Make in India और PLI जैसी योजनाओं के साथ synergy बन सकती है।



⚠ संभावित चुनौतियाँ


कुछ क्षेत्रों में कम लागत पर श्रमिकों की उपलब्धता का पुराने कानूनों जितना संतुलन बनाना कठिन होगा।


निजी क्षेत्र के दुरुपयोग रोकने के लिए राज्यों पर प्रभावी क्रियान्वयन का बड़ा दायित्व होगा।




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2) सामाजिक सुरक्षा (Social Security Expansion) पर संभावित परिणाम


✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ


(a) गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सुरक्षा का दायरा


पहली बार Uber/Ola, Zomato, Swiggy, Urban Company जैसे gig-workers कानूनन सामाजिक सुरक्षा के पात्र बनाए गए हैं।


इससे करोड़ों युवा अनौपचारिक क्षेत्र से औपचारिक सुरक्षा घेरे में आने की संभावना।



(b) PF, ESI, मातृत्व, पेंशन आदि लाभों में पोर्टेबिलिटी


कार्यकर्ता जहाँ भी काम करे, लाभ उसके साथ जुड़ सकते हैं (one-nation type portability)।



(c) अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारिककरण


गैर-संगठित श्रमिकों को कवरेज →

आबादी का बड़ा हिस्सा अब सरकार व नियोक्ता-समर्थित सुरक्षा योजनाओं में आ सकता है।



⚠ संभावित चुनौतियाँ


गिग कंपनियों पर योगदान (contribution) तय करना जटिल होगा।


राज्यों की आर्थिक क्षमता के अनुसार लाभों में भिन्नता बनी रह सकती है।




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3) रोजगार-निर्माण (Employment Creation) पर संभावित परिणाम


✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ


(a) भर्ती-निकासी में लचीलेपन से बड़े पैमाने पर हायरिंग


IR Code छंटनी-थ्रेशहोल्ड बढ़ाता है, जिससे कंपनियाँ अक्सर बड़ा वर्कफोर्स रखने का जोखिम उठाती हैं।


Fixed-term workers को PF/ESI के साथ लाना → कंपनियाँ short-term projects में हायरिंग बढ़ा सकती हैं।



(b) श्रम-बाजार में गतिशीलता (labour mobility)


पोर्टेबिलिटी से मजदूर एक राज्य/सेक्टर से दूसरे में आसानी से जा सकेंगे, रोजगार अवसर बढ़ेंगे।



(c) इंडस्ट्री 4.0 और टेक्नोलॉजी सेक्टर में तेजी


स्पष्ट नियम कंपनियों को factory rules, contract staffing, gig workforce के साथ जल्दी विस्तार करने देंगे।



⚠ चुनौतियाँ


कुछ यूनियन मानती हैं कि लचीलापन “hire & fire” बढ़ा सकता है — इससे नौकरी स्थिरता पर सवाल उठ सकते हैं।


छोटे शहरों में रोजगार बढ़ने की गति उद्योग नीति पर भी निर्भर करेगी।




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4) राजनीतिक संतुलन (Political Balance) पर संभावित परिणाम


✔ अपेक्षित उपलब्धियाँ


(a) केंद्र सरकार के लिए सुधारवादी छवि


निवेश, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस और रोजगार-सृजन के बड़े सुधार के रूप में तेज़ी से प्रचारित किया जा सकता है।



(b) राज्यों को अधिकार (Cooperative federalism)


कोड्स के तहत राज्य नियम (Rules) बनाकर अपने हिसाब से लचीलापन तय कर सकते हैं →

राज्यों की प्रतिस्पर्धा (competitive federalism) बढ़ सकती है।



⚠ चुनौतियाँ


ट्रेड यूनियनों और वाम राजनीति वाले राज्यों के साथ तनाव बना रह सकता है।


कुछ प्रावधानों को विपक्ष “श्रमिक-विरोधी” बताकर राजनीतिक मुद्दा बना सकता है।




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5) आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर समग्र प्रभाव


✔ सकारात्मक अपेक्षाएँ


1. औपचारिककरण (Formalisation) में तेजी



2. गिग इकोनॉमी को कानूनी पहचान



3. निवेश माहौल में उछाल



4. महिला भागीदारी बढ़ने की संभावना (क्योंकि ओवरटाइम/वर्किंग कंडीशन्स स्पष्ट हैं)



5. कम विवाद, स्पष्ट नियम → उद्योग-श्रम सम्बन्धों में स्थिरता




⚠ जोखिम


1. क्रियान्वयन कमजोर हुआ तो उद्देश्य अधूरा रह सकता है।



2. कर्मचारियों की सुरक्षा और नियोक्ताओं के लचीलेपन के बीच संतुलन एक राजनीतिक चुनौती रहेगा।



3. बहुत से लाभ तभी संभव हैं जब राज्य समय पर नियम (Rules) और IT प्लेटफॉर्म लागू करें।





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6) 5-बिंदु निष्कर्ष (Short Conclusion)


ये कोड भारत को सरल, आधुनिक और निवेश-अनुकूल श्रम-ढांचा देने का प्रयास हैं।


गिग-वर्कर्स, माइग्रेंट-वर्कर्स और अनौपचारिक श्रमिकों को पहली बार व्यापक सामाजिक सुरक्षा का रास्ता खुला है।


कारोबार में स्पष्ट नियम और flexibility से नया रोजगार पैदा हो सकता है।


राजनीतिक रूप से, सुधार समर्थक और यूनियन पक्षों के बीच नया संतुलन बनेगा — संवाद आवश्यक होगा।


सुधारों का वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्य और केंद्र कितनी गंभीरता से नियमों को लागू करते हैं।



नीचे संक्षेप में साधारण, स्पष्ट हिन्दी में वे मुख्य कारण दिए जा रहे हैं जिनकी वजह से केंद्र सरकार ने पुरानी 29 श्रम-कानूनों को चार नए Labour Codes में समेकित (consolidate) किया — और उसके बाद उन-माफ़िक उल्लेखनीय विद्वानों/आर्थिक टिप्पणीकारों और उद्योग संगठनों के नाम जिन्‍होंने इन सुधारों का समर्थन किया या सकारात्मक टिप्पणी दी। हर प्रमुख बात के बाद स्रोत भी दिया है ताकि आप और पढ़-तुलना कर सकें।


मुख्य कारण (हिन्दी — संक्षेप)

• कानूनों का सरलीकरण और एकरूपता (Simplification & Uniformity)

पुरानी 29 अलग-अलग ऐक्ट्स बहुत बिखरी और राज्य-केन्द्रीय अंतर के साथ थीं; चार कोड संहति (single framework) बनाकर अनुपालन आसान और नियमों में संगति लाई गई। 

• आधुनिक बनाना — उपयुक्तता (Modernisation)

कई प्रावधान (कुछ उपनिवेशी-युग के) अब आधुनिक रोजगार-रूपों — ठेकेदार, गिग/प्लैटफॉर्म वर्कर्स, फिक्स्ड-टर्म आदि — के अनुरूप नहीं थे। कोड इन नए काम-रूपों को शामिल करते हैं। 

• सामाजिक सुरक्षा का विस्तार (Universal social security)

संविधान-कृत मजदूर/गिग वर्कर्स आदि को सामाजिक सुरक्षा (PF/ESI/अन्य) के दायरे में लाना — यानी कवरेज का विस्तार और पोर्टेबिलिटी। 

• न्यूनतम वेतन व समय पर भुगतान (Fair wages & timely pay)

राष्ट्रीय-स्तर पर न्यूनतम-आधार/राष्ट्रीय-फ्लोर और समय पर वेतन भुगतान जैसी शर्तें लागू करने का मकसद मजदूरों की आमदनी-सुरक्षा बढ़ाना है। 

• व्यवसायों के लिए अनुपालन बोझ घटाना (Reduce compliance burden / Ease of doing business)

एक-सिंगल रजिस्ट्रेशन / एक-लाइसेंस / एक-रिटर्न जैसी व्यवस्था लागू कर के छोटे/मध्यम उद्यमों का प्रशासनिक बोझ कम करने और निवेश/निर्माण में आसानी देने का लक्ष्य रखा गया। 

• लचीलेपन (Flexibility) और नये रोजगार सृजन की उम्मीद

कुछ प्रावधान (जैसे-लैओफ-अनुमोदन की सीमा बढ़ना, फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों का प्रावधान) से नियोक्ताओं को बड़ी-मात्रा में कर्मचारी रखने/निकालने में पहले से कम बाधा होने की संभावना — सरकार का तर्क है कि इससे निवेश व बड़े प्लांट बनने की प्रेरणा मिलेगी और नौकरी बनेगी। (यह विवादित भी रहा है।) 


किन-विद्वानों / प्रमुख हस्तियों/संस्थाओं ने समर्थन या सकारात्मक टिप्पणी दी (नाम के साथ संक्षेप)


नोट: “समर्थन” का अर्थ यह नहीं कि विरोधी मत न रहे — ये नामों ने सुधारों के तात्कालिक लाभ/आर्थिक तर्क/आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर सकारात्मक टिप्पणियाँ दीं या इतिहास में श्रम-बाज़ार सुधारों के पक्षधर रहे हैं।


• अरविंद पनगड़िया (Arvind Panagariya) — अर्थशास्त्री; उन्होंने इन कोड्स/श्रम सुधारों को “नौकरियाँ फैलाने और कठोर नियमों को खत्म करने” वाला कदम बताया। 

• बिबेक देबरोय (Bibek Debroy) — अर्थशास्त्री; लंबे समय से नियमों/अप्रासंगिक कानूनों को हटाकर सुधार की आवश्यकता पर लिखते रहे हैं और श्रम सुधारों के तर्क को उठाते रहे हैं। (उनके कई संपादकीय/आलोचनात्मक लेख उपलब्ध हैं)। 

• स्वामीनाथन एस. अंकलेसारिया ऐय्यर (Swaminathan S. Anklesaria Aiyar) — कॉलमिस्ट/आर्थिक टिप्पणीकार; पारंपरिक रूप से श्रम-नियमों में लचीलापन लाने के पक्ष में रहे हैं और सुधारों का समर्थन करते रहे हैं। 

• मोंटेक सिंह अहलूवालिया (Montek Singh Ahluwalia) — पूर्व योजना आयोग के वरिष्ठ अर्थशास्त्री/आधिकारिक सलाहकार; अतीत में लचीले श्रम नीतियों का समर्थन कर चुकें हैं और श्रम-कानून सुधारों के हिमायती माने जाते हैं। 

• उद्योग संगठन — CII / FICCI (Confederation of Indian Industry, FICCI) — दोनों ने कोड्स के लागू होने का स्वागत किया और कहा कि इससे अनुपालन सरल होगा, वैश्विक मानकों के करीब आएँगे और उद्योग क्षमता-निर्माण में मदद मिलेगी। (ये संस्थागत-समर्थन हैं)। 

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एक-लाइन-सावधानी (controversy/विरोध की झलक)

• ट्रेड यूनियनों और कुछ सामाजिक-विज्ञों का कहना है कि कुछ प्रावधान (उदा. छंटनी-अनुमोदन सीमा बढ़ना, 12-घंटे तक का काम इत्यादि) श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर कर सकते हैं; इसलिए ये परिवर्तन विवादित भी हैं।--



Friday, July 18, 2025

Bank Nationalisation Merit and Demerit

 बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई, 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था। यह एक ऐतिहासिक कदम था जिसके दूरगामी परिणाम हुए। आइए आज के परिप्रेक्ष्य में इस अधिनियम की 10 प्रमुख उपलब्धियों और 10 प्रमुख कमियों को हिंदी में समझते हैं:

बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम की 10 प्रमुख उपलब्धियां (आज के परिप्रेक्ष्य में):

  1. वित्तीय समावेशन में वृद्धि (Increased Financial Inclusion): राष्ट्रीयकरण से पहले बैंक मुख्य रूप से शहरी और बड़े उद्योगों पर केंद्रित थे। राष्ट्रीयकरण के बाद, बैंकों ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अपनी शाखाएं खोलीं, जिससे आम आदमी, किसानों और छोटे व्यवसायों तक बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बढ़ी।

  2. कृषि क्षेत्र को ऋण का विस्तार (Expansion of Credit to Agriculture Sector): राष्ट्रीयकरण के बाद, कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया। इससे किसानों को आसानी से ऋण मिलने लगा, जिसने कृषि उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।

  3. छोटे उद्योगों और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को समर्थन (Support to Small Industries and Priority Sectors): छोटे और मध्यम उद्योगों (SMEs) को भी राष्ट्रीयकरण के बाद पर्याप्त ऋण मिलना शुरू हुआ, जिससे उनके विकास को गति मिली और रोजगार के अवसर पैदा हुए। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को भी लाभ हुआ।

  4. जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा (Safety of Depositors' Money): सरकारी स्वामित्व में आने से बैंकों की विश्वसनीयता बढ़ी और जमाकर्ताओं का विश्वास मजबूत हुआ कि उनका पैसा सुरक्षित है। इससे बचत को बढ़ावा मिला।

  5. क्षेत्रीय असंतुलन में कमी (Reduction in Regional Imbalances): राष्ट्रीयकृत बैंकों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी शाखाएं खोलीं, जिससे वित्तीय सेवाओं के वितरण में क्षेत्रीय असमानता कम हुई और पिछड़े क्षेत्रों का विकास हुआ।

  6. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में भूमिका (Role in Poverty Alleviation Programs): राष्ट्रीयकृत बैंकों ने सरकार के विभिन्न गरीबी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों (जैसे IRDP, TRYSEM आदि) के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को लाभ हुआ।

  7. सरकार के लिए धन जुटाना आसान (Easier Fund Mobilization for Government): राष्ट्रीयकृत बैंक सरकार के लिए नीतियों को लागू करने और विकास परियोजनाओं के लिए धन जुटाने का एक प्रभावी माध्यम बन गए।

  8. बैंकिंग क्षेत्र का मानकीकरण और विनियमन (Standardization and Regulation of Banking Sector): राष्ट्रीयकरण ने बैंकिंग क्षेत्र में एकरूपता और बेहतर विनियमन लाया, जिससे पूरे सिस्टम में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही आई।

  9. आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का विस्तार (Expansion of Modern Banking Services): राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने तकनीकी उन्नयन और आधुनिक बैंकिंग सेवाओं (जैसे एटीएम, इंटरनेट बैंकिंग) को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हुई।

  10. सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक (Helpful in Achieving Social Goals): कुल मिलाकर, राष्ट्रीयकरण ने बैंकों को केवल लाभ कमाने वाली संस्थाओं से हटकर सामाजिक और विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले उपकरण के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाया।

बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम की 10 प्रमुख कमियां (आज के परिप्रेक्ष्य में):

  1. दक्षता में कमी और नौकरशाही (Reduced Efficiency and Bureaucracy): सरकारी स्वामित्व के कारण बैंकों में नौकरशाही बढ़ी, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हुई और दक्षता में कमी आई।

  2. राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference): राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ गया, जिससे ऋण वितरण और नियुक्तियों में अनुचित दबाव देखा गया, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी खराब ऋण (NPAs) में वृद्धि हुई।

  3. लाभप्रदता पर असर (Impact on Profitability): सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने पर अधिक जोर और राजनीतिक दबावों के कारण बैंकों की लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर हुई।

  4. खराब ऋणों (NPAs) में वृद्धि (Increase in Non-Performing Assets - NPAs): अनुचित ऋण वितरण और वसूली तंत्र की कमजोरी के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की समस्या गंभीर हो गई।

  5. नवाचार में कमी (Lack of Innovation): सरकारी नियंत्रण के कारण निजी बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में नवाचार और नई तकनीकों को अपनाने की गति धीमी रही।

  6. ग्राहक सेवा में गिरावट (Decline in Customer Service): प्रतिस्पर्धा की कमी और सरकारी स्वामित्व के कारण ग्राहक सेवा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, जिससे ग्राहकों को असुविधा हुई।

  7. मानव संसाधन प्रबंधन की चुनौतियां (Human Resource Management Challenges): भर्ती, पदोन्नति और प्रदर्शन मूल्यांकन में लचीलेपन की कमी के कारण मानव संसाधन प्रबंधन में चुनौतियां आईं, जिससे कर्मचारियों की प्रेरणा पर असर पड़ा।

  8. बैलेंस शीट का कमजोर होना (Weakening of Balance Sheets): लगातार पूंजी डालने की आवश्यकता और बढ़ते NPAs ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बैलेंस शीट को कमजोर किया, जिससे उन्हें सरकार से बार-बार पूंजी की आवश्यकता पड़ी।

  9. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे छूटना (Lagging in Global Competition): उदारीकरण के बाद निजी और विदेशी बैंकों के आगमन के साथ, राष्ट्रीयकृत बैंक वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ते हुए दिखाई दिए, खासकर सेवाओं और प्रौद्योगिकी के मामले में।

  10. करदाताओं पर बोझ (Burden on Taxpayers): बैंकों को पुनर्जीवित करने और उनकी पूंजी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा बार-बार पूंजी डाले जाने से अंततः करदाताओं पर बोझ पड़ा।

संक्षेप में, बैंकों का राष्ट्रीयकरण वित्तीय समावेशन और सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसने दक्षता, लाभप्रदता और नवाचार के मामले में कुछ दीर्घकालिक चुनौतियां भी पैदा कीं, जिनसे आज भी भारतीय बैंकिंग क्षेत्र जूझ रहा है।


नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल (2014 से अब तक) भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में कई बड़े बदलावों का गवाह रहा है। इस दौरान देश ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है, वहीं कुछ चुनौतियां भी सामने आई हैं। आइए, हिंदी में जानते हैं कि इस कार्यकाल में क्या बेहतर हुआ और क्या गलत।

नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख उपलब्धियां (जो बेहतर हुआ):

 * आर्थिक विकास और वैश्विक पहचान: भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और वैश्विक स्तर पर इसकी आर्थिक साख बढ़ी है। निवेश को आकर्षित करने के लिए "मेक इन इंडिया" जैसे कार्यक्रमों पर जोर दिया गया है।

 * वित्तीय समावेशन: "प्रधानमंत्री जन-धन योजना" के तहत करोड़ों बैंक खाते खोले गए, जिससे बड़ी संख्या में लोग बैंकिंग प्रणाली से जुड़े। "मुद्रा योजना" के तहत छोटे उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराया गया।

 * बुनियादी ढांचे का विकास: सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों और बंदरगाहों के निर्माण में तेजी आई है। राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार हुआ है और नई उड़ानें शुरू की गई हैं, जिससे कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है।

 * डिजिटल इंडिया: "डिजिटल इंडिया" पहल के तहत विभिन्न सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन किया गया है। "यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)" ने डिजिटल लेनदेन में क्रांति ला दी है, जिससे वित्तीय लेनदेन बहुत आसान हो गए हैं।

 * सामाजिक कल्याण योजनाएं:

   * स्वच्छ भारत अभियान: खुले में शौच मुक्त भारत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।

   * प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए गए, जिससे महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आया।

   * आयुष्मान भारत योजना: गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया गया, जिससे लाखों लोगों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिली।

   * प्रधानमंत्री आवास योजना: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबों के लिए लाखों घर बनाए गए हैं।

 * आतंकवाद पर कड़ा रुख और राष्ट्रीय सुरक्षा: सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाई है। अनुच्छेद 370 को हटाना और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

 * विदेश नीति: भारत की विदेश नीति में सक्रियता बढ़ी है। प्रधानमंत्री ने कई देशों की यात्राएं की हैं और भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी भूमिका मजबूत की है, जैसे अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का गठन।

 * कृषि क्षेत्र को समर्थन: "प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)" के तहत किसानों को सीधे वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। कृषि बजट में वृद्धि की गई है और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद बढ़ी है।

 * भ्रष्टाचार पर नियंत्रण: सरकार ने भ्रष्टाचार के प्रति सख्त रवैया अपनाया है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से बिचौलियों को खत्म करने का प्रयास किया गया है।

 * सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विरासत का संरक्षण: काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन का महाकाल लोक और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे कदम सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन पर जोर देते हैं।

नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में चुनौतियां और आलोचनाएं (जो गलत हुआ/चुनौतीपूर्ण रहा):

 * बेरोजगारी: रोजगार सृजन की दर अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पाई है, खासकर युवाओं के बीच बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगारी दर में वृद्धि देखी गई है।

 * महंगाई: आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतों में वृद्धि ने आम आदमी के बजट पर दबाव डाला है।

 * अर्थव्यवस्था की सुस्ती (कुछ समय के लिए): नोटबंदी और जीएसटी के शुरुआती प्रभावों के कारण अर्थव्यवस्था में कुछ समय के लिए सुस्ती देखी गई थी। हालांकि, सरकार ने आर्थिक विकास दर को बनाए रखने का दावा किया है, कुछ स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों में हेरफेर का आरोप लगाया है।

 * राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण: सरकार के खर्चों और राजस्व के बीच अंतर (राजकोषीय घाटा) एक चिंता का विषय रहा है। विदेशी कर्ज में भी वृद्धि हुई है।

 * कृषि संकट और किसानों का विरोध: कृषि सुधार कानूनों (जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया) के खिलाफ बड़े पैमाने पर किसान विरोध प्रदर्शन हुए, जो कृषि क्षेत्र में व्याप्त असंतोष को दर्शाता है। किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य अभी पूरी तरह से प्राप्त नहीं हुआ है।

 * सामाजिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक तनाव: कुछ आलोचकों का मानना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे मुद्दों ने सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। विभिन्न समुदायों के बीच तनाव की घटनाएं भी देखी गई हैं।

 * अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चिंताएं: प्रेस की स्वतंत्रता और आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के आरोप लगे हैं, जिससे लोकतंत्र में असंतोष की आवाज उठाने वालों के लिए जगह कम होने की चिंताएं बढ़ी हैं।

 * स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च: स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च अपेक्षित स्तर तक नहीं बढ़ा है, जिससे इन क्षेत्रों में गुणवत्ता और पहुंच में चुनौतियां बनी हुई हैं।

 * राज्य और केंद्र के संबंध: कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार पर संघीय ढांचे का सम्मान न करने और राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है।

 * पूंजी निवेश की कमी: निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर नए निवेश (खासकर विनिर्माण में) की कमी रही है, जो रोजगार सृजन और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष रूप में, नरेंद्र मोदी सरकार ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं और देश को आर्थिक और भू-राजनीतिक मोर्चे पर मजबूत करने का प्रयास किया है। हालांकि, बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक सौहार्द जैसे कुछ क्षेत्रों में अभी भी बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।



Monday, September 16, 2024

Jain Religion Celebrate Das Lakshan Parv

उत्तम शौच दस लक्षण के चौथे गुण को संदर्भित करता है, जो "संतोष" या "आत्म-संतुष्टि" है। इसमें जो कुछ है उसमें संतुष्ट रहना और अधिक की इच्छा न करना शामिल है।


पर्युषण पर्व के दौरान, जैन लोग उत्तम शौच की खेती पर ध्यान केंद्रित करते हैं:


1. _इच्छाओं पर चिंतन_: अनावश्यक इच्छाओं को पहचानना और उन्हें छोड़ना।

2. कृतज्ञता का अभ्यास करना: उनके पास जो कुछ है उसकी सराहना करना, बजाय इसके कि उनके पास जो कमी है उस पर ध्यान केंद्रित करना।

3. आत्मनिर्भरता पैदा करना: अपनी क्षमताओं और संसाधनों से संतुष्ट रहना।

4. सादगी अपनाना: सादगी से रहना और अनावश्यक भोग-विलास से बचना।


उत्तम शौच विकसित करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _लगाव कम करें_: भौतिक संपत्ति और इच्छाओं के प्रति लगाव कम करें।

2. _आत्म-जागरूकता बढ़ाएँ_: अपनी और अपनी जरूरतों के बारे में बेहतर समझ विकसित करें।

3. _आध्यात्मिक विकास बढ़ाएं_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


पर्युषण पर्व जैनियों के लिए एक साथ आने, अपने मूल्यों पर विचार करने और आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास करने का एक अद्भुत अवसर है।


 उत्तम सत्य (उत्तम सत्य) जैन धर्म की मौलिक अवधारणा दास लक्षण का पांचवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च सत्य" या "पूर्ण ईमानदारी"।


उत्तम सत्य में शामिल हैं:


1. *सच्चाई*: बिना किसी अतिशयोक्ति, विकृति या छिपाव के सच बोलना।

2. *ईमानदारी*: छल या धोखाधड़ी के बिना, सभी बातचीत में पारदर्शी और ईमानदार होना।

3. *प्रामाणिकता*: बिना किसी दिखावे या पाखंड के, स्वयं और दूसरों के प्रति वास्तविक और सच्चा होना।


उत्तम सत्य में शामिल हैं:


1. *विचार*: बिना झूठे या दुर्भावनापूर्ण इरादे के, सच्चाई से सोचना।

2. *शब्द*: झूठ या आधा सच बोले बिना, सच बोलना।

3. *कार्य*: कपटपूर्ण या बेईमान व्यवहार में शामिल हुए बिना, सच्चाई से कार्य करना।


उत्तम सत्य का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. *विश्वास पैदा करें*: दूसरों के साथ उनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के आधार पर विश्वास पैदा करें।

2. *आत्म-सम्मान विकसित करें*: अपने और दूसरों के प्रति सच्चे रहकर आत्म-सम्मान अर्जित करें।

3. *आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें*: सच्चाई और ईमानदारी को अपनाकर आध्यात्मिक ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ें।


संक्षेप में, उत्तम सत्य जीवन के सभी पहलुओं में सच्चाई और ईमानदारी को अपनाने के बारे में है, जिससे एक अधिक प्रामाणिक, भरोसेमंद और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण अस्तित्व प्राप्त होता है।


उत्तम संयम (उत्तम संयम) जैन धर्म की एक मौलिक अवधारणा दस लक्षण का गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च आत्म-नियंत्रण" या "पूर्ण संयम"।


उत्तम संयम में शामिल हैं:


1. इंद्रियों पर नियंत्रण: अपनी इंद्रियों, इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रित करना।

2. बुराइयों से संयम: हानिकारक आदतों, व्यसनों और नकारात्मक व्यवहारों से दूर रहना।

3. उपभोग में संयम: खाने, पीने और भौतिक उपभोग में संयम बरतना।


उत्तम संयम में शामिल हैं:


1. _शारीरिक नियंत्रण_: भोजन, नींद और कामुक सुख जैसी शारीरिक इच्छाओं को नियंत्रित करना।

2. मानसिक नियंत्रण: क्रोध, लोभ और मोह जैसी मानसिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना।

3. भावनात्मक नियंत्रण: अभिमान, ईर्ष्या और भय जैसी भावनाओं को प्रबंधित करना।


उत्तम संयम का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _कर्म कम करें_: कर्मों का संचय कम करें, जो आत्मा को बांधते हैं।

2. _आंतरिक शांति विकसित करें_: आंतरिक शांति, शांति और शांति का अनुभव करें।

3. आध्यात्मिक शक्ति का विकास करें: आध्यात्मिक शक्ति, इच्छाशक्ति और लचीलेपन का निर्माण करें।


संक्षेप में, उत्तम संयम जीवन के सभी पहलुओं में आत्म-नियंत्रण, संयम और संयम पैदा करने के बारे में है, जिससे एक अधिक संतुलित, शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण अस्तित्व प्राप्त होता है।


उत्तम तप (उत्तम तप) जैन धर्म की मौलिक अवधारणा दास लक्षण का पांचवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च तपस्या" या "पूर्ण तपस्या"।


उत्तम तप में शामिल हैं: 


1. _शारीरिक तपस्या_: उपवास, त्याग और आत्म-पीड़ा जैसे शारीरिक अनुशासन का अभ्यास करना।

2. मानसिक तपस्या: ध्यान, आत्म-चिंतन और मानसिक शुद्धि जैसे मानसिक अनुशासन को विकसित करना।

3. भावनात्मक तपस्या: वैराग्य, समभाव और करुणा जैसे भावनात्मक अनुशासन का विकास करना।


उत्तम तप में शामिल हैं:


1. _त्याग_: आसक्ति, इच्छाओं और सांसारिक सुखों को त्यागना।

2. _आत्म-अनुशासन_: आत्म-नियंत्रण, आत्म-पीड़न और आत्म-शुद्धि का अभ्यास करना।

3. आध्यात्मिक शुद्धि: तपस्या, पश्चाताप और आध्यात्मिक अभ्यास के माध्यम से आत्मा को शुद्ध करना।


उत्तम तप का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. आत्मा को शुद्ध करें: आत्मा से कर्म, अशुद्धियाँ और नकारात्मकताएँ दूर करें।

2. _आध्यात्मिक शक्ति विकसित करें_: आध्यात्मिक सहनशक्ति, लचीलापन और इच्छाशक्ति का निर्माण करें।

3. _आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


संक्षेप में, उत्तम तप आत्मा को शुद्ध करने, आध्यात्मिक शक्ति विकसित करने और आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए तपस्या, अनुशासन और त्याग को अपनाने के बारे में है।


उत्तम त्याग (उत्तम त्याग) जैन धर्म की एक मौलिक अवधारणा दस लक्षण का आठवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च त्याग" या "पूर्ण वैराग्य"।


उत्तम त्याग में शामिल हैं:


1. _सांसारिक सुखों से वैराग्य_: कामुक सुखों, धन और भौतिक संपत्ति के प्रति मोह का त्याग करना।

2. _भावनाओं से अलगाव_: गर्व, क्रोध और भय जैसे भावनात्मक जुड़ाव को दूर करना।

3. _अहंकार से अलगाव_: अहंकार, आत्म-पहचान और व्यक्तिगत इच्छाओं का त्याग करना।


उत्तम त्याग में शामिल हैं:


1. _इच्छाओं का त्याग_: इच्छाओं, लालसाओं और आसक्तियों को त्यागना।

2. _रिश्तों से अलगाव_: राग या द्वेष के बिना, रिश्तों में समभाव बनाए रखना।

3. _संपत्ति से वैराग्य_: भौतिक संपत्ति और धन से मोह का त्याग करना।


उत्तम त्याग का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _लगाव कम करें_: सांसारिक चीजों, भावनाओं और अहंकार के प्रति लगाव कम करें।

2. वैराग्य पैदा करें: वैराग्य की भावना विकसित करें, जिससे आंतरिक शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

3. _आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


संक्षेप में, उत्तम त्याग आसक्ति को त्यागने, वैराग्य विकसित करने और सादगी, विनम्रता और आध्यात्मिक विकास का जीवन अपनाने के बारे में है।


उत्तम अकिंचन जैन धर्म की एक मौलिक अवधारणा दस लक्षण का नौवां गुण है। इसका अर्थ है "सर्वोच्च अपरिग्रह" या "पूर्ण अनासक्ति"।


उत्तम अकिंचन में शामिल हैं:


1. संपत्ति के प्रति अनासक्ति: भौतिक संपत्ति के प्रति स्वामित्व या लगाव महसूस नहीं करना।

2. _रिश्तों के प्रति अनासक्ति_: राग या द्वेष के बिना, रिश्तों में समभाव बनाए रखना।

3. _इच्छाओं के प्रति अनासक्ति_: इच्छाओं, लालसाओं या अपेक्षाओं के प्रति आसक्त न रहना।


उत्तम अकिंचना में शामिल हैं:


1. _सांसारिक चीज़ों से विरक्ति_: धन, पद या भौतिक सुख-सुविधा से आसक्त न होना।

2. _भावनाओं से अलगाव_: अभिमान, क्रोध या भय जैसी भावनाओं से नियंत्रित न होना।

3. _अहंकार से अलगाव_: किसी की अपनी पहचान, आत्म-छवि या अहंकार से जुड़ा न रहना।


उत्तम अकिंचना का अभ्यास करके, जैनियों का लक्ष्य है:


1. _लगाव कम करें_: सांसारिक चीजों, भावनाओं और अहंकार के प्रति लगाव कम करें।

2. वैराग्य पैदा करें: वैराग्य की भावना विकसित करें, जिससे आंतरिक शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होगी।

3. _आध्यात्मिक विकास प्राप्त करें_: आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर प्रगति।


संक्षेप में, उत्तम अकिंचन अपरिग्रह, अनासक्ति और वैराग्य को अपनाने के बारे में है, जिससे सादगी, विनम्रता और आध्यात्मिक विकास का जीवन आगे बढ़ता है।

Sunday, September 8, 2024

दस लक्षण पर्व क्या है?

 दस लक्षण पर्व क्या है?


दशलक्षण पर्व (दस गुणों का त्योहार) दिगंबर जैनियों द्वारा मनाया जाता है। आम तौर पर, खाना, पीना और मौज-मस्ती करना त्योहारों से जुड़ा होता है लेकिन दसलक्षण इसके विपरीत है। दसलक्षण के दौरान जैन लोग तपस्या, व्रत, उपवास और अध्ययन करते हैं। यदि उपवास नहीं कर रहे हैं तो वे जड़ वाली सब्जियां खाने से परहेज करते हैं।

दसलक्षण आत्मा के प्राकृतिक गुणों का जश्न मनाने का समय है।

दसलक्षण का वास्तविक उद्देश्य अपनी आत्मा के करीब रहकर अपनी आत्मा को शुद्ध करना, अपने दोषों को देखना, जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगना और कर्मों को नष्ट करने का व्रत लेना है। सभी दुःखों और कष्टों का मुख्य कारण आत्मा की अशुद्धि है। इस अवधि में प्रत्येक व्यक्ति 10 दिनों में विभिन्न साधनाओं के माध्यम से अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करता है।

दिन 1: उत्तम क्षमा

क) हम उन लोगों को माफ कर देते हैं जिन्होंने हमारे साथ अन्याय किया है और हम उनसे माफी मांगते हैं जिनके साथ हमने अन्याय किया है। क्षमा केवल मानव सहकर्मियों से ही नहीं, बल्कि एक इंद्रिय से लेकर पांच इंद्रिय तक सभी जीवित प्राणियों से मांगी जाती है। यदि हम क्षमा नहीं करते हैं या क्षमा नहीं मांगते हैं, बल्कि आक्रोश पालते हैं, तो हम अपने ऊपर दुख और अप्रसन्नता लाते हैं और इस प्रक्रिया में हमारे मन की शांति को नष्ट कर देते हैं और दुश्मन बना लेते हैं। क्षमा करना और क्षमा मांगना जीवन के चक्र को गति देता है जिससे हम अपने साथी प्राणियों के साथ सद्भाव से रह सकते हैं। यह पुण्य कर्म को भी आकर्षित करता है।

ख) यहां क्षमा स्वयं को निर्देशित है। गलत पहचान या गलत विश्वास की स्थिति में आत्मा यह मान लेती है कि वह शरीर, कर्म और भावनाओं - पसंद, नापसंद, गुस्सा, घमंड आदि से बनी है।  
इस ग़लत धारणा के परिणामस्वरूप यह स्वयं को कष्ट पहुँचाता है और इस प्रकार स्वयं अपने दुःख का कारण बनता है। निश्चय क्षमा धर्म आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करके स्वयं को सही ढंग से पहचानने की शिक्षा देता है और इस प्रकार सही विश्वास या सम्यक दर्शन की स्थिति प्राप्त करता है। सम्यक दर्शन प्राप्त करने से ही आत्मा स्वयं को पीड़ा पहुंचाना बंद कर देती है और परम सुख प्राप्त करती है।

दिन - 2: उत्तम मार्दव (विनम्रता/विनम्रता)

क) धन, अच्छा रूप, प्रतिष्ठित परिवार या बुद्धिमत्ता अक्सर घमंड का कारण बनती है। अभिमान का अर्थ है स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ मानना ​​और दूसरों को तुच्छ समझना। घमंड करके आप अपना मूल्य अस्थायी भौतिक वस्तुओं से माप रहे हैं। ये वस्तुएँ या तो आपको छोड़ देंगी या जब आप मरेंगे तो आप उन्हें छोड़ने के लिए मजबूर होंगे। ये घटनाएँ आपके आत्म-सम्मान को हुए 'नुकसान' के परिणामस्वरूप आपको दुःख का कारण बनेंगी। विनम्र होने से ऐसा होने से रोका जा सकेगा। अभिमान भी बुरे कर्मों या पाप कर्मों के आगमन का कारण बनता है।

ख) सभी आत्माएँ समान हैं, कोई किसी से श्रेष्ठ या निम्न नहीं है। श्रीमद राजचंद्र के शब्दों में: “सर्व जीव चे सिद्ध सम, जे समझे ते थाई - सभी आत्माएं सिद्ध के समान हैं; जो लोग इस सिद्धांत को समझेंगे वे उस स्थिति को प्राप्त करेंगे”। निश्चय दृष्टिकोण आपको अपने वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए प्रोत्साहित करता है। सभी आत्माओं में मुक्त आत्मा (सिद्ध भगवान) बनने की क्षमता है। मुक्त आत्माओं और बंधन में पड़े लोगों के बीच एकमात्र अंतर यह है कि मुक्त आत्माओं ने अपने 'प्रयास' के परिणामस्वरूप मुक्ति प्राप्त की है। पुरुषार्थ से उत्तरार्द्ध भी मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

दिन - 3: उत्तम आर्जव (सीधापन)

क) धोखेबाज व्यक्ति का कार्य सोचना कुछ और, बोलना कुछ और और करना बिल्कुल अलग होता है। उनके विचार, वाणी और कर्म में कोई सामंजस्य नहीं है। ऐसा व्यक्ति बहुत जल्दी अपनी विश्वसनीयता खो देता है और लगातार चिंता और अपने धोखे के उजागर होने के डर में रहता है। सीधा-सादा या ईमानदार होना जीवन के चक्र को गति देता है। आप भरोसेमंद और विश्वसनीय नजर आएंगे। कपटपूर्ण कार्यों से पाप कर्मों का आगमन होता है।

ख) अपनी पहचान के बारे में भ्रम ही दुःख का मूल कारण है। अपने प्रति सीधे रहें और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानें। आत्मा ज्ञान, सुख, पुरुषार्थ, विश्वास और आचरण जैसे अनगिनत गुणों से बनी है। इसमें सर्वज्ञता (केवल ज्ञान) प्राप्त करने और सर्वोच्च आनंद की स्थिति तक पहुंचने की क्षमता है। फिर, शरीर, कर्म, विचार और सभी भावनाएँ आत्मा की वास्तविक प्रकृति से अलग हैं। निश्चय आर्जव धर्म का पालन करने से ही व्यक्ति भीतर से आने वाली सच्ची खुशी का स्वाद चख सकेगा।
दिन – 4: उत्तम शौच (संतोष)

क) अब तक आपने जो भौतिक लाभ हासिल किया है, उससे संतुष्ट रहें। आम धारणा के विपरीत, अधिक भौतिक धन और सुख की इच्छा से खुशी नहीं मिलेगी। अधिक की चाहत इस बात का संकेत है कि हमारे पास वह सब नहीं है जो हम चाहते हैं। इस इच्छा को कम करने और जो हमारे पास है उसमें संतुष्ट रहने से संतुष्टि मिलती है। भौतिक वस्तुओं का संचय केवल इच्छा की आग को भड़काता है।

ख) भौतिक वस्तुओं से प्राप्त संतुष्टि या खुशी, केवल झूठे विश्वास की स्थिति में आत्मा द्वारा ही मानी जाती है। सच तो यह है कि भौतिक वस्तुओं में सुख का गुण नहीं होता इसलिए उनसे सुख प्राप्त नहीं किया जा सकता! भौतिक वस्तुओं का 'आनंद' लेने की धारणा वास्तव में केवल वही है - एक धारणा! यह धारणा आत्मा को केवल दुःख ही प्रदान करती है और कुछ नहीं। वास्तविक खुशी भीतर से आती है, क्योंकि आत्मा ही खुशी का गुण रखती है।

दिन - 5: उत्तम सत्य (सत्य)

क) यदि बात करना आवश्यक न हो तो बात न करें। यदि आवश्यक हो तो कम से कम शब्दों का ही प्रयोग करें और सभी बिल्कुल सत्य होने चाहिए। बातचीत से मन की शांति भंग होती है। उस व्यक्ति पर विचार करें जो झूठ बोलता है और बेनकाब होने के डर में रहता है। एक झूठ के समर्थन में उसे सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। वह झूठ के उलझे जाल में फंस जाता है और उसे अविश्वसनीय और अविश्वसनीय माना जाता है। झूठ बोलने से पाप कर्म का आगमन होता है।

ख) सत्य शब्द सत् से आया है, जिसका अर्थ है अस्तित्व। अस्तित्व आत्मा का गुण है। आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानना क्योंकि वह वास्तव में अस्तित्व में है और आत्मा में आश्रय लेना निश्चय सत्य धर्म का अभ्यास करना है।
दिन - 6: उत्तम संयम (आत्म-संयम)

क) i) जीवन को चोट से बचाना - जीवन की रक्षा के लिए जैन लोग दुनिया के अन्य धर्मों की तुलना में बहुत अधिक प्रयास करते हैं। इसमें एक इंद्रिय से लेकर सभी जीवित प्राणियों को शामिल किया गया है। जड़ वाली सब्जियां न खाने का उद्देश्य यह है कि उनमें अनगिनत एक-इंद्रिय प्राणी होते हैं जिन्हें 'निगोद' कहा जाता है। पर्युषण के दौरान जैन लोग निचली इंद्रियों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए हरी सब्जियां भी नहीं खाते हैं।

ii) इच्छाओं या जुनून से आत्म-संयम - ये दर्द का कारण बनते हैं और इसलिए इनसे बचना चाहिए।

ख) i) स्वयं को चोट पहुंचाना - इस पर निश्चय क्षमा धर्म में विस्तार से बताया गया है।

ii) इच्छाओं या जुनून से आत्म संयम - भावनाएँ, जैसे। पसंद, नापसंद या गुस्सा दुख का कारण बनता है और इसे खत्म करने की जरूरत है। वे आत्मा की वास्तविक प्रकृति का हिस्सा नहीं हैं और केवल तभी उत्पन्न होते हैं जब आत्मा गलत विश्वास की स्थिति में होती है। इनसे स्वयं को मुक्त करने का एकमात्र तरीका आत्मा के वास्तविक स्वरूप पर चिंतन करना और इस प्रक्रिया में मुक्ति या मोक्ष की यात्रा शुरू करना है।

दिन - 7 उत्तम तप (तपस्या)

क) इसका मतलब केवल उपवास करना ही नहीं है, बल्कि इसमें कम आहार, कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध, स्वादिष्ट भोजन से परहेज करना आदि भी शामिल है। तपस्या का उद्देश्य इच्छाओं और जुनून को नियंत्रण में रखना है। अति-भोग अनिवार्य रूप से दुख की ओर ले जाता है। तपस्या से पुण्य कर्मों का आगमन होता है।

ख) ध्यान आत्मा में इच्छाओं और जुनून को बढ़ने से रोकता है। ध्यान की गहरी अवस्था में भोजन ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न नहीं होती। हमारे पहले तीर्थंकर आदिनाथ भगवान छह महीने तक ऐसी ध्यान अवस्था में थे, इस दौरान उन्होंने निश्चय उत्तम तप का पालन किया। इन छह महीनों के दौरान उन्होंने जो एकमात्र भोजन खाया, वह था भीतर से खुशी।

दिन - 8: उत्तम त्याग (त्याग)

क) आम धारणा के विपरीत, सांसारिक संपत्ति का त्याग करने से संतोष का जीवन मिलता है और इच्छाओं को नियंत्रण में रखने में सहायता मिलती है। इच्छाओं पर नियंत्रण करने से पुण्य कर्म का प्रवाह होता है। हमारे भिक्षुओं द्वारा त्याग उच्चतम स्तर पर किया जाता है जो न केवल घर का त्याग करते हैं बल्कि अपने कपड़ों का भी त्याग करते हैं। किसी व्यक्ति की ताकत इस बात से नहीं मापी जाती कि उसने कितना धन इकट्ठा किया है, बल्कि इस बात से मापा जाता है कि उसने कितना धन त्यागा है। इस हिसाब से हमारे भिक्षु सबसे अमीर हैं.

ख) भावनाओं का त्याग करना, जो दुख का मूल कारण है, निश्चय उत्तम त्याग है, जो केवल आत्मा के वास्तविक स्वरूप पर चिंतन करने से ही संभव है।

दिन - 9: उत्तम आकिंचय (गैर-लगाव)

क) यह हमें बाहरी संपत्ति से अलग होने में सहायता करता है। ऐतिहासिक रूप से हमारे ग्रंथों में दस संपत्तियां सूचीबद्ध हैं: 'भूमि, घर, चांदी, सोना, धन, अनाज, महिला नौकर, पुरुष नौकर, वस्त्र और बर्तन'। इनसे अनासक्त रहने से हमारी इच्छाओं को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और पुण्य कर्मों का प्रवाह होता है।

बी) यह हमें अपने आंतरिक जुड़ावों से अनासक्त होने में सहायता करता है: झूठा विश्वास, क्रोध, घमंड, छल, लालच, हँसी, पसंद, नापसंद, विलाप, भय, घृणा, । इनसे आत्मा को मुक्त करने से उसकी शुद्धि होती है

दिन-10: उत्तम ब्रह्मचर्य (सर्वोच्च ब्रह्मचर्य)
ब्रह्मचर्य शब्द ब्रह्म - आत्मा और चर्या - निवास से बना है। 

ब्रह्मचर्य का अर्थ है अपनी आत्मा में निवास करना। आत्मा में स्थित होकर ही आप ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं। अपनी आत्मा से बाहर रहना आपको इच्छाओं का गुलाम बना देता है। इसका मतलब न केवल संभोग से बचना है बल्कि इसमें स्पर्श की भावना से जुड़े सभी सुख भी शामिल हैं, जैसे। गर्मी के दिनों में ठंडी हवा या कठोर सतह के लिए कुशन का उपयोग करना। 

फिर इस धर्म का अभ्यास हमारी इच्छाओं को नियंत्रण में रखने के लिए किया जाता है। भिक्षु अपने पूरे शरीर, वाणी और मन से इसका उच्चतम स्तर तक अभ्यास करते हैं। गृहस्थ अपने जीवनसाथी के अलावा किसी के साथ संभोग करने से परहेज करता है। इसलिए यह दिन ब्रह्मचर्य के महान व्रत का पालन करने के लिए मनाया जाता है; अंतरात्मा और सर्वज्ञ भगवान के प्रति भक्ति रखना।

Jain Religion जैन धर्म

 जैन धर्म, एक प्राचीन भारतीय धर्म, की कई प्रमुख विशेषताएं हैं:


1. *अहिंसा (अहिंसा)*: जैन सभी जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचाने से बचने में विश्वास करते हैं, करुणा और दयालुता पर जोर देते हैं।


2. *अनासक्ति (अपरिग्रह)*: जैन खुद को सांसारिक संपत्तियों और इच्छाओं से अलग करने का प्रयास करते हैं।


3. *सत्य (सत्य)*: जैन विचार, शब्द और कार्य में ईमानदारी और सच्चाई को महत्व देते हैं।


4. *आत्म-नियंत्रण (ब्रह्मचर्य)*: जैन आध्यात्मिक विकास प्राप्त करने के लिए आत्म-नियंत्रण और ब्रह्मचर्य का अभ्यास करते हैं।


5. *चोरी न करना (अस्तेय)*: जैन लोग स्वतंत्र रूप से दी गई किसी भी चीज़ को लेने से बचते हैं।


6. *सादा जीवन*: जैन लोग विलासिता और अधिकता से बचते हुए सरल जीवन शैली की वकालत करते हैं।


7. *शाकाहार*: अधिकांश जैन जानवरों को नुकसान पहुंचाने से बचते हुए लैक्टो-शाकाहारी आहार का पालन करते हैं।


8. *कर्म और पुनर्जन्म*: जैन लोग किसी के कर्म से प्रभावित होकर जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में विश्वास करते हैं।


9. *मुक्ति (मोक्ष)*: अंतिम लक्ष्य पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना, सर्वज्ञता और आनंद प्राप्त करना है।


10. *तीर्थंकर*: जैन 24 तीर्थंकरों (आध्यात्मिक शिक्षकों) का सम्मान करते हैं जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की है और दूसरों का मार्गदर्शन करते हैं।


11. *धर्मग्रंथ*: जैन आगम (विहित ग्रंथ) और अन्य धर्मग्रंथों को पवित्र मानते हैं।


12. *अद्वैतवाद*: जैन भिक्षु और नन सांसारिक मोह-माया को त्यागकर कठोर तपस्वी जीवन शैली का पालन करते हैं।


13. *सामान्य अनुयायी*: जैन अनुयायी सांसारिक जिम्मेदारियों के साथ आध्यात्मिक प्रथाओं को संतुलित करते हैं।


14. *अनुष्ठान और प्रथाएँ*: जैन विभिन्न अनुष्ठान करते हैं, जैसे पूजा (पूजा), और अभ्यास, जैसे ध्यान और उपवास।


ये विशेषताएं जैन धर्म का मूल हैं, जो आध्यात्मिक विकास, करुणा और आत्म-अनुशासन पर जोर देती हैं।

 जैन धर्म स्वस्थ और आध्यात्मिक जीवन शैली के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करता है, जिनमें शामिल हैं:


*आहार:*


1. शाकाहार: मांस, मछली, अंडे और पशु उत्पादों से बचें।

2. _गैर-जड़ वाली सब्जियाँ_: आलू और प्याज जैसी जमीन के नीचे उगाई जाने वाली सब्जियों से बचें।

3. _उपवास_: आत्म-नियंत्रण विकसित करने के लिए नियमित उपवास या आंशिक उपवास।

4. परहेज करें: शहद, शराब और अन्य नशीले पदार्थ।


*पेय पदार्थ:*


1. फ़िल्टर किया हुआ पानी: सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचाने से बचने के लिए कपड़े से फ़िल्टर किया हुआ पानी पियें।

2. परहेज करें: शराब, चाय, कॉफी और अन्य उत्तेजक पदार्थ।


*नींद और जागना:*


1. _जल्दी उठना_: आध्यात्मिक अभ्यास के लिए सूर्योदय से पहले उठें।

2. मध्यम नींद: 6-8 घंटे की नींद का लक्ष्य रखें।

3. परहेज करें: दिन में सोना या अत्यधिक सोना।


*अन्य जीवनशैली दिशानिर्देश:*


1. अनासक्ति: भौतिक संपत्ति और इच्छाओं के प्रति आसक्ति से बचें।

2. सादा जीवन: विलासिता और अधिकता से बचते हुए सादगी से जिएं।

3. _आत्मचिंतन_: अपने विचारों, शब्दों और कार्यों पर नियमित रूप से चिंतन करें।

4. _ध्यान और योग_: आध्यात्मिक विकास के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करें।

5. दान और सेवा: धर्मार्थ गतिविधियों में संलग्न रहें और दूसरों की सेवा करें।

6. _बचें_: हिंसा, झूठ बोलना, चोरी करना और अन्य हानिकारक कार्य।

7. सम्मान करें: सभी जीवित प्राणियों, बड़ों और आध्यात्मिक नेताओं के प्रति सम्मान दिखाएं।


इन सिद्धांतों का उद्देश्य जैन मूल्यों के अनुरूप संतुलित, दयालु और आध्यात्मिक जीवन शैली को बढ़ावा देना है।

Friday, July 19, 2024

क्या हमें हांथ पर हांथ रखे बैठे रहना चाहिए?

SHOULD WE KEEP SITTING 

HAND ON HAND? 


It's online era. Now, our mind set is as such that we place the order and get home delivery on time. But, the matter of Bank Pensioners is not online issue. This is a completely off-line and back-office issue. Inherently, it takes time. Anyway, we Pensioners are outsider for this system. Our voice is like the sound of a trumpet in a theater. Irrespective our said position, we should continue our work taking inspiration from the mythological squirrel. 


The prevalent system in banking is the bilateral System, under which wages, allowances, service conditions, promotions, postings etc. are decided by the Management and the Unions jointly. Pension settlement is also through this system. It is not that in this system there has been no conflict between Management and Unions regarding demands. Conflicts have been there. There have been protests, demonstrations and strikes. But, there has never been any conflict on Pension Revision, since it didn't come to discussion level any time so far. 


There is a practical and legal mechanism to resolve conflicts. The disagreement in the 10th Settlement regarding salaries etc. had turned into tension. IBA was not ready to give wage load more than 13.5% and Unions were adamant on 17%. In this dilemma, the Unions requested to meet the Finance Minister jointly. Both IBA and UFBU  jointly met then Finance Minister Late Sri Arun Jaitley ji. 


During the meeting with the Finance Minister, as it happened, the IBA went up a bit and the Unions came down a bit and the matter was settled at 15% wage load. We may say, the right initiative at the right time in any matter regarding never fails. 


Our question is, did IBA and Unions ever have a standoff regarding Pension Revision? As per  records, till now the issue of Pension Revision has never reached the level of talks, so what can we talk about tension or conflict. And to be clear, the demand for pension revision was always stuck at number 22/24 of the COD. In fact this never reached discussion level. 

The Unions kept making various fake narratives in revision matter. In such a situation, there was no opportunity for agreement or disagreement on this issue, and when such an opportunity did not come, then what to talk about stubbornness! 

There is a section of pensioners who keep cursing the government very off and on. When they were in service, they used to say "Down with the government" as an amateur. They are not giving up this habit even after retirement. This is the easiest thing to do on social media. 

Unions are not hit even though they are representative organizations of Bankmen. It is the responsibility of the Unions to solve the problems of Bankmen. This is a contractual matter between the Unions and the Bankmen. The basic condition of this contract is that "Bankmen give the subscription & levy to Unions & Unions would provide you good wages, allowances, pensions, service conditions' agreements as well as protection from managerial exploitation and harassment." Catch hold your Contractor, not the Government. Rather, seek help from the Government as the contractor has run away from his responsibility, taking along payments. 

People know that there will be no action for abusing the government. But, Bankmen will have to face the consequences of saying something against Union leaders. The bank employees have not chosen the Union leaders, but "Bhai", the same "Bhai" as in the films. Sometimes this "bhai" was really savior of the Bankmen from the tyranny of the management. But now this "bhai' has changed. It can be said that this " Bhai" of the bank employees is now lap kid of the management. He is now double-cross. Bank employees are afraid because their "bhai' is now a pet of the management, but till date we have not understood why the Pensioners are afraid. 


Hit these double-crosses. This makes a difference. This time the bank employees did a small experiment. The Unions resorted to the tactic of forcibly get levy deducted from the arrears by sitting in the lap of the management. Within no time, 100% of the levy was recovered from Canara Bank, but bank employees in other banks exposed this conspiracy. Said 'no' to levy. A Federation of Retirees also tried to impose a levy on the arrears of ex-gratia, but that too failed. The lifeline of these scoundrels is subscriptions and levy. Choke this lifeline. Union funds have turned leaders into criminals. Union funds are the oxygen of leaders. We have seen a leader barking like a mad dog over the levy blockage, writhing in agony as if someone had removed an oxygen pipe from his nose. 

(J. N. Shukla) 
National Convener
19.7.2024
9559748834



जमाना आन लाइन का है। हमारा माइंड सेट बन चुका है कि हम आर्डर दें और समय से होम डिलीवरी हो जाए! लेकिन, बैंक पेंशनर्स का मामला आनलाईन का नहीं है। यह पूर्णतया आफ -लाइन और बैक-आफिस का मामला है। इसमें समय लगना एक स्वाभाविक बात है। वैसे भी हम पेंशनर्स इस सिस्टम के बाहर के लोग हैं। हमारी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसी है। लेकिन हमें गिलहरी से प्रेरणा लेते अपना काम जारी रखना चाहिए। 

बैंकिंग में प्रचलित प्रणाली, अर्थात द्वितीय समझौता प्रणाली, है, जिसके तहत वेतन, भत्ते, सेवा शर्तें, प्रमोशन, पोस्टिंग आदि मैनेजमेंट और यूनियनें मिल कर तय करती रही है। पेंशन समझौता भी इसी प्रणाली की देन है। ऐसा नहीं है कि इस प्रणाली में मांगों को लेकर बैंकों और यूनियनों मे टकराव न हुआ हो। टकराव होते रहे हैं। धरना, प्रदर्शन, हड़तालें होती रहीं हैं। लेकिन, पेंशन रिवीजन को लेकर कभी इस तरह की तनातनी की स्थिति का उल्लेख नहीं मिलता। 

टकराव को दूर करने का एक व्यवहारिक और कानूनी मेकानिज्म है। वेतन आदि को लेकर 10वें समझौते में असहमति तनातनी में बदल गई थी। आईबीए 13.5% से ज्यादा वेज लोड देने को तैयार नहीं था और यूनियनें 17% पर अड़ी हुईं थी। इस अड़ा-अड़ी में यूनियनों ने वित्तमंत्री से मुलाकात की बात रखी। आईबीए और यूयफबीयू, दोनों एक साथ तत्कालीन वित्तमंत्री स्व. अरुण जेटली जी से मुलाकात की। 

वित्तमंत्री से मुलाकात के दौरान, जैसा हुआ, आईबीए थोड़ा ऊपर गया और यूनियनें थोड़ा नीचे आई और मामला 15% वेज लोड पर तय हो गया। सवाल स्थिति और उसके सापेक्ष व्यवहारिक पहल की है। समस्या को लेकर सही समय पर सही पहल कभी असफल नहीं होती। 

हमारा सवाल है, क्या पेंशन रिवीजन को लेकर कभी आईबीए और यूनियनों में अड़ा-अड़ी हुई? रिकार्ड के अनुसार अभी तक पेंशन रिवीजन का मामला कभी बातचीत के स्तर तक पहुंचा ही नहीं, तो तनातनी या टकराव की क्या बात की जाए। और स्पष्ट कहें, तो पेंशन रिवीजन की मांग, मांगपत्र के 22/24 वें नंबर पर हमेशा अटकी रही। यह बातचीत के धरातल पर कभी लाई नहीं गई। इसको लेकर यूनियनें तरह -तरह की जुमलेबाजी करतीं रहीं। ऐसे में इस मुद्दे को लेकर सहमति और असहमति का मौका आया ही नहीं और जब ऐसा मौका ही नहीं आया तो अड़ा-अड़ी की क्या बात करें! 


पेंशनर्स का एक वर्ग है, जो पानी पी-पी कर सरकार को कोसता रहता है। सब सर्विस में था तो शौकिया "सरकार मुर्दाबाद' करता था। सेवानिवृत्ति के बाद भी यह लत नहीं छूट रही है। सोसल मीडिया पर यह सबसे आसान काम है। यूनियनों को हिट नहीं किया जाता, जब कि वे बैंककर्मियों के प्रतिनिधि संगठन हैं। बैंककर्मियों की समस्याओं के निराकरण का दायित्व यूनियनों का है। यह यूनियनों और बैंककर्मियों के बीज संविदात्मक मामला है। इस कांट्रॅक्ट में यह बुनियादी शर्त है कि "तुम हमें चन्दा- लेवी दो - हम तुम्हारे लिए अच्छा वेतन, भत्ता, पेंशन, सेवा सुविधाओं के समझौतों के साथ -साथ प्रबंधकीय शोषण और उत्पीड़न से रक्षा करेंगे। सरकार को नहीं, अपने ठीकेदार को पकड़ो। सरकार से मदद मांगों कि ठीकेदार अपने दायित्व से पैसा लेकर भाग गया है। 

लोगों को मालूम है कि सरकार को गाली देने से कोई एक्सन नहीं होगा। लेकिन, यूनियन नेताओं को कुछ कहने का दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। बैंककर्मियों ने यूनियन नेता नहीं 'भाई', वही फिल्मों वाला भाई  चुना है। कभी यह भाई वाकई मैनेजमेंट की गुंडागर्दी से बैंककर्मियों की रक्षा करता था। लेकिन अब यह भाई बदल गया है। कहने को तो वह बैंककर्मियों का भाई है, लेकिन वह अब मैनेजमेंट की गोद में भी बैठा है। डबल- क्रास हो चुका है। बैंककर्मी डरते है, क्योंकि उनका भाई अब मैनेजमेंट का पालतू है, लेकिन पेंशनर्स क्यों डरते हैं, यह बात हमारे समझ में आज तक नहीं आई। 

इन बेइमानों को हिट करो। इससे फरक पड़ता है। इस बार बैंककर्मियों ने एक छोटा सा प्रयोग किया। यूनियनों ने मैनेजमेंट की गोद में बैठकर एरियर से जबरन लेवी वसूलने का तिकड़म भिड़ाया। देखते देखते कनारा बैंक से शतप्रतिशत लेवी वसूल हो गई, लेकिन अन्य बैंकों में बैंककर्मियों ने इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर दिया। लेवी 'नो' कर दिया। रिटायरी की एक फेडरेशन ने भी एक्सग्रैसिया के एरियर पर लेवी का दांव चला, लेकिन वह भी फेल हो गया। इन बदमाशों की लाइफलाइन चन्दा और लेवी है। इस लाइफलाइन को चोक करो। यूनियनों का फंड नेताओं को अपराधी बना दिया है। यूनियनों का फंड नेताओं का आक्सीजन है। हमने एक नेता को लेवी में हुई रुकावट को लेकर पागल कुत्ते की तरह भौंकते देखा है। उसे तड़पते देखा, जैसे उसकी नाक से किसी ने आक्सीजन पाइप निकाल दिया हो। 


JN SHUKLA
15.1.2024