Friday, July 18, 2025

Bank Nationalisation Merit and Demerit

 बैंकों का राष्ट्रीयकरण 19 जुलाई, 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था। यह एक ऐतिहासिक कदम था जिसके दूरगामी परिणाम हुए। आइए आज के परिप्रेक्ष्य में इस अधिनियम की 10 प्रमुख उपलब्धियों और 10 प्रमुख कमियों को हिंदी में समझते हैं:

बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम की 10 प्रमुख उपलब्धियां (आज के परिप्रेक्ष्य में):

  1. वित्तीय समावेशन में वृद्धि (Increased Financial Inclusion): राष्ट्रीयकरण से पहले बैंक मुख्य रूप से शहरी और बड़े उद्योगों पर केंद्रित थे। राष्ट्रीयकरण के बाद, बैंकों ने ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अपनी शाखाएं खोलीं, जिससे आम आदमी, किसानों और छोटे व्यवसायों तक बैंकिंग सेवाओं की पहुंच बढ़ी।

  2. कृषि क्षेत्र को ऋण का विस्तार (Expansion of Credit to Agriculture Sector): राष्ट्रीयकरण के बाद, कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया। इससे किसानों को आसानी से ऋण मिलने लगा, जिसने कृषि उत्पादन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।

  3. छोटे उद्योगों और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को समर्थन (Support to Small Industries and Priority Sectors): छोटे और मध्यम उद्योगों (SMEs) को भी राष्ट्रीयकरण के बाद पर्याप्त ऋण मिलना शुरू हुआ, जिससे उनके विकास को गति मिली और रोजगार के अवसर पैदा हुए। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को भी लाभ हुआ।

  4. जमाकर्ताओं के धन की सुरक्षा (Safety of Depositors' Money): सरकारी स्वामित्व में आने से बैंकों की विश्वसनीयता बढ़ी और जमाकर्ताओं का विश्वास मजबूत हुआ कि उनका पैसा सुरक्षित है। इससे बचत को बढ़ावा मिला।

  5. क्षेत्रीय असंतुलन में कमी (Reduction in Regional Imbalances): राष्ट्रीयकृत बैंकों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी शाखाएं खोलीं, जिससे वित्तीय सेवाओं के वितरण में क्षेत्रीय असमानता कम हुई और पिछड़े क्षेत्रों का विकास हुआ।

  6. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में भूमिका (Role in Poverty Alleviation Programs): राष्ट्रीयकृत बैंकों ने सरकार के विभिन्न गरीबी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों (जैसे IRDP, TRYSEM आदि) के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को लाभ हुआ।

  7. सरकार के लिए धन जुटाना आसान (Easier Fund Mobilization for Government): राष्ट्रीयकृत बैंक सरकार के लिए नीतियों को लागू करने और विकास परियोजनाओं के लिए धन जुटाने का एक प्रभावी माध्यम बन गए।

  8. बैंकिंग क्षेत्र का मानकीकरण और विनियमन (Standardization and Regulation of Banking Sector): राष्ट्रीयकरण ने बैंकिंग क्षेत्र में एकरूपता और बेहतर विनियमन लाया, जिससे पूरे सिस्टम में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही आई।

  9. आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का विस्तार (Expansion of Modern Banking Services): राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों ने तकनीकी उन्नयन और आधुनिक बैंकिंग सेवाओं (जैसे एटीएम, इंटरनेट बैंकिंग) को अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हुई।

  10. सामाजिक लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक (Helpful in Achieving Social Goals): कुल मिलाकर, राष्ट्रीयकरण ने बैंकों को केवल लाभ कमाने वाली संस्थाओं से हटकर सामाजिक और विकासात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले उपकरण के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाया।

बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम की 10 प्रमुख कमियां (आज के परिप्रेक्ष्य में):

  1. दक्षता में कमी और नौकरशाही (Reduced Efficiency and Bureaucracy): सरकारी स्वामित्व के कारण बैंकों में नौकरशाही बढ़ी, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हुई और दक्षता में कमी आई।

  2. राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference): राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ गया, जिससे ऋण वितरण और नियुक्तियों में अनुचित दबाव देखा गया, जिसके परिणामस्वरूप कभी-कभी खराब ऋण (NPAs) में वृद्धि हुई।

  3. लाभप्रदता पर असर (Impact on Profitability): सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने पर अधिक जोर और राजनीतिक दबावों के कारण बैंकों की लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर हुई।

  4. खराब ऋणों (NPAs) में वृद्धि (Increase in Non-Performing Assets - NPAs): अनुचित ऋण वितरण और वसूली तंत्र की कमजोरी के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की समस्या गंभीर हो गई।

  5. नवाचार में कमी (Lack of Innovation): सरकारी नियंत्रण के कारण निजी बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में नवाचार और नई तकनीकों को अपनाने की गति धीमी रही।

  6. ग्राहक सेवा में गिरावट (Decline in Customer Service): प्रतिस्पर्धा की कमी और सरकारी स्वामित्व के कारण ग्राहक सेवा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, जिससे ग्राहकों को असुविधा हुई।

  7. मानव संसाधन प्रबंधन की चुनौतियां (Human Resource Management Challenges): भर्ती, पदोन्नति और प्रदर्शन मूल्यांकन में लचीलेपन की कमी के कारण मानव संसाधन प्रबंधन में चुनौतियां आईं, जिससे कर्मचारियों की प्रेरणा पर असर पड़ा।

  8. बैलेंस शीट का कमजोर होना (Weakening of Balance Sheets): लगातार पूंजी डालने की आवश्यकता और बढ़ते NPAs ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बैलेंस शीट को कमजोर किया, जिससे उन्हें सरकार से बार-बार पूंजी की आवश्यकता पड़ी।

  9. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे छूटना (Lagging in Global Competition): उदारीकरण के बाद निजी और विदेशी बैंकों के आगमन के साथ, राष्ट्रीयकृत बैंक वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ते हुए दिखाई दिए, खासकर सेवाओं और प्रौद्योगिकी के मामले में।

  10. करदाताओं पर बोझ (Burden on Taxpayers): बैंकों को पुनर्जीवित करने और उनकी पूंजी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा बार-बार पूंजी डाले जाने से अंततः करदाताओं पर बोझ पड़ा।

संक्षेप में, बैंकों का राष्ट्रीयकरण वित्तीय समावेशन और सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसने दक्षता, लाभप्रदता और नवाचार के मामले में कुछ दीर्घकालिक चुनौतियां भी पैदा कीं, जिनसे आज भी भारतीय बैंकिंग क्षेत्र जूझ रहा है।


नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल (2014 से अब तक) भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में कई बड़े बदलावों का गवाह रहा है। इस दौरान देश ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है, वहीं कुछ चुनौतियां भी सामने आई हैं। आइए, हिंदी में जानते हैं कि इस कार्यकाल में क्या बेहतर हुआ और क्या गलत।

नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख उपलब्धियां (जो बेहतर हुआ):

 * आर्थिक विकास और वैश्विक पहचान: भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और वैश्विक स्तर पर इसकी आर्थिक साख बढ़ी है। निवेश को आकर्षित करने के लिए "मेक इन इंडिया" जैसे कार्यक्रमों पर जोर दिया गया है।

 * वित्तीय समावेशन: "प्रधानमंत्री जन-धन योजना" के तहत करोड़ों बैंक खाते खोले गए, जिससे बड़ी संख्या में लोग बैंकिंग प्रणाली से जुड़े। "मुद्रा योजना" के तहत छोटे उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराया गया।

 * बुनियादी ढांचे का विकास: सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों और बंदरगाहों के निर्माण में तेजी आई है। राष्ट्रीय राजमार्गों का विस्तार हुआ है और नई उड़ानें शुरू की गई हैं, जिससे कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है।

 * डिजिटल इंडिया: "डिजिटल इंडिया" पहल के तहत विभिन्न सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन किया गया है। "यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI)" ने डिजिटल लेनदेन में क्रांति ला दी है, जिससे वित्तीय लेनदेन बहुत आसान हो गए हैं।

 * सामाजिक कल्याण योजनाएं:

   * स्वच्छ भारत अभियान: खुले में शौच मुक्त भारत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।

   * प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए गए, जिससे महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आया।

   * आयुष्मान भारत योजना: गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया गया, जिससे लाखों लोगों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिली।

   * प्रधानमंत्री आवास योजना: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबों के लिए लाखों घर बनाए गए हैं।

 * आतंकवाद पर कड़ा रुख और राष्ट्रीय सुरक्षा: सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाई है। अनुच्छेद 370 को हटाना और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

 * विदेश नीति: भारत की विदेश नीति में सक्रियता बढ़ी है। प्रधानमंत्री ने कई देशों की यात्राएं की हैं और भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी भूमिका मजबूत की है, जैसे अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का गठन।

 * कृषि क्षेत्र को समर्थन: "प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)" के तहत किसानों को सीधे वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। कृषि बजट में वृद्धि की गई है और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद बढ़ी है।

 * भ्रष्टाचार पर नियंत्रण: सरकार ने भ्रष्टाचार के प्रति सख्त रवैया अपनाया है। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से बिचौलियों को खत्म करने का प्रयास किया गया है।

 * सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और विरासत का संरक्षण: काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, उज्जैन का महाकाल लोक और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे कदम सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन पर जोर देते हैं।

नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में चुनौतियां और आलोचनाएं (जो गलत हुआ/चुनौतीपूर्ण रहा):

 * बेरोजगारी: रोजगार सृजन की दर अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पाई है, खासकर युवाओं के बीच बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, बेरोजगारी दर में वृद्धि देखी गई है।

 * महंगाई: आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतों में वृद्धि ने आम आदमी के बजट पर दबाव डाला है।

 * अर्थव्यवस्था की सुस्ती (कुछ समय के लिए): नोटबंदी और जीएसटी के शुरुआती प्रभावों के कारण अर्थव्यवस्था में कुछ समय के लिए सुस्ती देखी गई थी। हालांकि, सरकार ने आर्थिक विकास दर को बनाए रखने का दावा किया है, कुछ स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों में हेरफेर का आरोप लगाया है।

 * राजकोषीय घाटा और सार्वजनिक ऋण: सरकार के खर्चों और राजस्व के बीच अंतर (राजकोषीय घाटा) एक चिंता का विषय रहा है। विदेशी कर्ज में भी वृद्धि हुई है।

 * कृषि संकट और किसानों का विरोध: कृषि सुधार कानूनों (जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया) के खिलाफ बड़े पैमाने पर किसान विरोध प्रदर्शन हुए, जो कृषि क्षेत्र में व्याप्त असंतोष को दर्शाता है। किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य अभी पूरी तरह से प्राप्त नहीं हुआ है।

 * सामाजिक ध्रुवीकरण और सांप्रदायिक तनाव: कुछ आलोचकों का मानना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे मुद्दों ने सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। विभिन्न समुदायों के बीच तनाव की घटनाएं भी देखी गई हैं।

 * अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चिंताएं: प्रेस की स्वतंत्रता और आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के आरोप लगे हैं, जिससे लोकतंत्र में असंतोष की आवाज उठाने वालों के लिए जगह कम होने की चिंताएं बढ़ी हैं।

 * स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च: स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक खर्च अपेक्षित स्तर तक नहीं बढ़ा है, जिससे इन क्षेत्रों में गुणवत्ता और पहुंच में चुनौतियां बनी हुई हैं।

 * राज्य और केंद्र के संबंध: कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार पर संघीय ढांचे का सम्मान न करने और राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है।

 * पूंजी निवेश की कमी: निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर नए निवेश (खासकर विनिर्माण में) की कमी रही है, जो रोजगार सृजन और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष रूप में, नरेंद्र मोदी सरकार ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की हैं और देश को आर्थिक और भू-राजनीतिक मोर्चे पर मजबूत करने का प्रयास किया है। हालांकि, बेरोजगारी, महंगाई और सामाजिक सौहार्द जैसे कुछ क्षेत्रों में अभी भी बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।



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